पाकिस्तान में नवाज
शरीफ के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने को लेकर ये चर्चा फिर से जोर पकड़ने लगी है
कि क्या भारत-पाकिस्तान के संबंधों पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा..? अगर हां तो क्या
भारत – पाकिस्तान के आपसी संबंधों में मधुरता आएगी..? और सबसे बड़ा सवाल
यह कि क्या पाकिस्तान में दिनों दिन मजबूत हो रहा तालिबान क्या ऐसा होने देगा..?
सवाल तमाम है जिसका
जवाब ढूंढने पर अलग अलग वर्गों की राय भी भिन्न – भिन्न है। भारत में ही एक वर्ग
को नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने पर इसे भारत – पाकिस्तान के रिश्तों में मिठास घुलती
नजर आ रही है तो ऐसा वर्ग भी है जो ये मानता है कि पाकिस्तान में प्रधानमंत्री की
कुर्सी पर कोई भी विराजमान हो जाए लेकिन पाकिस्तान की नीयत में कोई बदलाव नहीं
होने वाला..!
आज नवाज शरीफ भले ही
पाकिस्तान के पीएम बनने की ओऱ बढ़ रहे हैं लेकिन 1999 में जब भारत पाकिस्तान के
बीच कारगिल की जंग हुई थी तो उस वक्त भी नवाज शरीफ ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री
थे। कारगिल युद्ध पर नवाज शरीफ का कहना था कि उन्हें जानकारी ही नहीं है कि पाक
सेना ने भारत के साथ युद्ध छेड़ दिया है। लेकिन क्या ऐसा हो सकता है कि किसी देश
की सेना पड़ोसी देश के साथ जंग का ऐलान कर चुकी है और उस देश के प्रधानमंत्री को
इसकी ख़बर तक नही हो..? जाहिर है नवाज शरीफ का ये सफेद झूठ था कि उन्हें युद्ध की भनक तक नहीं थी..!
ऐसे में तीसरी बार
पाकीस्तान के पीएम की कुर्सी पर विराजमान होते दिखाई दे रहे नवाज शरीफ से भारत के
साथ संबंध सुधारने की नयी पहल करने की उम्मीद करना बेमानी ही होगी..! पाकिस्तान में सत्ता
परिवर्तन जरुर हुआ है लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि भारत के प्रति पाकिस्तान की
सोच में भी परिवर्तन हुआ है..!
ऐसे में एक नयी
निर्वाचित सरकार के मुखिया से जो पहले भी भारत की पीठ में छुरा घोंपने में माहिर
रहा है उससे इस दिशा में कोई सकारात्मक उम्मीद करना कहीं से भी तर्कसंगत नहीं लगता..! पाकिस्तान एक ऐसा
पड़ोसी है जो अपने दुख से नहीं पडोसी के सुख से ज्यादा दुखी है। उसे अपने देश की
दम तोड़ती अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, भूखमरी और मजबूत होते तालिबान की चिंता नहीं
है बल्कि उसे भारत के सुख और शांति से ज्यादा दिक्कत है..! वो सिर्फ इसी उलझन
में डूबा रहता है कि कैसे भारत परेशान हो न कि ये कि कैसे उनकी आवाम की समस्याओं
का निदान हो..! इसका ताजा उदाहरण
भारत में संसद पर हमले के आरोपी अफजल की फांसी है..! आपको याद ही होगा कि अफजल की फांसी पर पाकिस्तानी
संसद ने निंदा प्रस्ताव पेश किया था।
कवाहत है कि दूध का
जला छांछ भी फूंक फूंक कर पीता है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री तो एक नहीं कई बार
दूध से जलने के बाद भी एक बार फिर से गर्म दूध बिना फूंक मारे पीने के लिए उतावले
दिखाई दे रहे हैं..! मनमोहन सिंह पहले
ही मानकर बैठे हुए हैं कि नवाज शरीफ की अगुवाई वाला पाकिस्तान अब भारत के खिलाफ न
तो जहर उगलेगा और न ही भारत की पीठ पर फिर से छुरा घोंपेगा..! मनमोहन सिंह साहब
का उतावलापन देखिए पाकिस्तान के आम चुनाव की मतगणना समाप्त होने पहले ही नवाज शरीफ को बधाई देते हुए भारत आने
का न्यौता दे दिया..!
मनमोहन सिंह का ये न्यौता हर कदम पर भारत को धोखा देने वाले पाकिस्तान के
प्रति भारत का उदार रवैया तो दर्शाता है लेकिन इस बात को कैसे भुलाया जा सकता है
कि हर कदम पर भारत की इस उदारता का फायदा पाकिस्तान ने उठाया है और भारत को सिर्फ
दर्द ही दिया है।
एक पल के लिए ये मान
भी लिया जाए कि नवाज शरीफ की नीयत में कोई खोट नहीं है और वे भारत के साथ बेहतर
संबंध कायम करना चाहते हैं लेकिन क्या पाकिस्तान के कट्टरपंथी गुट नवाज शरीफ की इस
कोशिश को सफल होने देंगे...जाहिर है बिल्कुल नहीं..! नवाज शरीफ को पहले अपने देश में कट्टरपंथियों पर
लगाम कसनी होगी जो पाकिस्तान के हालात को देखते हुए आसान तो बिल्कुल भी नहीं लगता..!
जब तक पाकिस्तान की सोच
में बदलाव नहीं आएगा और पाक की नीयत पाक नहीं होगी तब तक नवाज शरीफ क्या कोई भी
शख्स पाकिस्तान का प्रधानमंत्री क्यों न बन जाए...भारत को अपने इस पडोसी से सतर्क
रहना होगा वर्ना हर बार की तरह पाक भारत का दोस्ती का हाथ तो तुरंत थाम लेगा लेकिन
अपनी आदत से बाज नहीं आएगा और मौका मिलते ही भारत की पीठ में छुरा घोंपने में देर
नहीं करेगा..!
deepaktiwari555@gmail.com
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