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शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

Give & Take का खेल


अरविंद केजरीवाल इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि 2013 में 9 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के साथ ही 2014 के आम चुनाव में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा रहेगा। ऐसे में अपनी ताकत सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर केजरीवाल अब राजनेताओं के साथ ही उद्योगपतियों की घेराबंदी में जुट गए हैं। अपने चौथे खुलासे में अरविंद केजरीवाल ने राजनीति दलों के साथ ही जिस तरह से उद्योग घरानों और उद्योगपतियों की घेराबंदी की है...उससे तो यही लगता है कि केजरीवाल के निशाने पर चुनाव में राजनीतिक दलों को बड़ी आर्थिक मदद करने वाले उद्योग घराने और उद्योगपति भी हैं। यानि कि केजरीवाल इन पर निशाना साध कर राजनीतिक दलों की कमर तोड़ने की तैयारी में हैं ताकि चुनाव में वे इन से मिलने वाली आर्थिक मदद से वंचित हों और जनता के पैसे से चुनाव लड़ने का दावा करने वाली केजरीवाल एंड कंपनी इन राजनीतिक दलों को कड़ी टक्कर दे सके। ये बात जग जाहिर है कि चुनाव में उद्योग घराने और उद्योगपति राजनीतिक दलों को बड़े पैमाने पर फंडिंग करते हैं जिसका इस्तेमाल राजनीतिक दल चुनाव में करते हैं। इसके बदले सत्ता में आने पर राजनीतिक दल इन उद्योग घरानों और उद्योगपतियों को तमाम तरह के कॉन्ट्रेक्ट देने के साथ ही तमाम तरह की छूट देते हैं...जिससे ये लोग मोटा पैसा बनाते हैं। यानि कि इसे हम सीधे तौर पर Give & Take का धंधा कह सकते हैं। वैसे काले धन को लेकर हो हल्ला तो लंबे समय से मचता रहा है और इससे पहले योगगुरु बाबा रामदेव काले धन को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं...और रामदेव ने तो खुलकर कांग्रेस के खिलाफ नाम लेकर जंग का ऐलान भी कर दिया है। लेकिन सरकार काले धन के मुद्दे पर कार्रवाई की बात कहकर सिर्फ आश्वासन ही देती नजर आई...जिससे सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े उठते हैं...शायद यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल ने खुद के पास जुटाई गई जानकारी के आधार पर कुछ बड़े उद्योग घरानों, उद्योगपतियों और नेताओं को बेनकाब करने की कोशिश की है...औऱ बकायदा ये भी बताने की कोशिश की है कि किसका कितना काला धन विदेशी बैंकों में जमा है। हालांकि जिन पर आरोप लगे हैं वे इन्हें निराधार बताते हुए किसी प्रकार का काला धन न होने की बात कर रहे हैं...लेकिन केजरीवाल का ये दावा कि ये जानकारी उन्हें भाजपा और कांग्रेस के राजनेताओं ने नाम न छापने की तर्ज पर ही उपलब्ध कराई है ये इस बात पर सोचने के लिए जरूर मजबूर करता है कि कहीं न कहीं केजरीवाल के दावों में दम जरूर है। वैसे भी जिस तरह हमारे राजनेता भ्रष्टाचार और घोटाले में लिप्त हैं और जिस तरह सरकार ने देश के संसाधनों की बंदरबांट बड़े बड़े उद्योग घरानों को की है...उससे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ये लोग काले धन के मालिक न हों। बहरहाल काले धन पर बाबा रामदेव के बाद केजरीवाल के खुलासे ने एक बार फिर से सरकार पर तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं...ऐसे में देखना ये होगा कि कभी दिल्ली के रामलीला मैदान में तो कभी हरियाणा के सूरजकुंड में मंथन कर और अपनी मजबूरियां बताकर अपना दामन पाक साफ बताने की कोशिश में लगी सरकार अब कालेधन पर आगे क्या स्टैंड लेती है। क्या सरकार काले धन के मुद्दे पर किसी के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई करती है या फिर अपने भ्रष्ट मंत्रियों और नेताओं की तरह इनको भी पूरा संरक्षण देती है ?

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गुरुवार, 8 नवंबर 2012

क्या सच बोल रहे हैं आडवाणी ?


 देर से ही लेकिन कम से कम भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने खुद पर लगे पीएम इन वेटिंग के तमगे को धो ही डाला। इसके लिए आडवाणी ने मौका भी बेहतरीन चुना और अपने 85वें जन्मदिन पर ये कहकर इन अटकलों पर विराम लगाया कि भाजपा और देश ने उन्हें बहुत कुछ दिया है...और ये प्रधानमंत्री की कुर्सी से भी बढ़कर है। इससे पहले आडवाणी को लेकर सियासी गलियारों में ये चर्चाएं गर्म रहती थी कि आडवाणी आजीवन पीएम इन वेटिंग ही रहेंगे। चार बार राज्यसभा और पांच बार लोकसभा सांसद रहे आडवाणी प्रधानमंत्री न बन पाए तो क्या हुआ 29 जून 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में आडवाणी उप प्रधानमंत्री तो बन ही गए। कोशिश इसके बाद भी उन्होंने काफी की लेकिन ये सुनहरा अवसर आडवाणी के राजनीतिक जीवन में नहीं आया। खैर उम्र के साथ ही राजनीति के अंतिम पड़ाव में खड़े आडवाणी शायद इस बात को अच्छी तरह समझ गए होंगे कि पीएम की दौड़ शायद अब उनके बस की नहीं रही क्योंकि भाजपा में ही उनके पीछे उनकी तरह ऊंची राजनीतिक महत्वकांक्षाओं वाले नेताओं की फौज खड़ी है जो राजनीति के सर्वोच्च शिखर देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोए बैठे हैं...और आडवाणी के राजनीति से रिटायरमेंट का इंतजार में बैठे हैं। जिसमें सबसे आगे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम लिया जा रहा है...इसके अलावा सुषमा स्वराज, अरूण जेटली सरीखे तमाम और नेता हैं जो मन में एनडीए की सरकार बनने पर पीएम बनने के सपना संजए बैठे हैं। ऐसे में आडवाणी को अपने 85वें जन्मदिन पर शायद ये बेहतर मौका लगा कि कम से कम राजनीति के अंतिम पड़ाव में अपने ऊपर उपहास उड़ाते सरीखे लगे तमगे को धो दिया जाए। आडवाणी भले ही अब कह रहे हों कि प्रधानमंत्री पद से ज्यादा उनको भाजपा और देश ने दिया...लेकिन आडवाणी की पीएम बनने की चाहत किसी से छिपी नहीं है...ज्यादा पीछे न जाएं तो 2009 के आम चुनाव को ही ले लें...तो देखने में आया था कि किस तरह आम चुनाव से पहले आडवाणी ने देशव्यापी रथयात्रा निकाली थी। लेकिन आडवाणी के दुर्भाग्य से कहें कि 2009 में जनता ने यूपीए सरकार पर ही भरोसा जताया और आडवाणी का पीएम बनने का सपना एक बार फिर बिखर गया। 2009 में भाजपा की पराजय के बाद से ही उतार पर आए आडवाणी के राजनीतिक करियर का ही असर कहें की आडवाणी ने अपने 85वें जन्मदिन में एक तरह से राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान कर दिया...और ये कहकर पीएम इन वेटिंग के तमगे को धो दिया कि उन्हें पार्टी और देश ने इससे कहीं ज्यादा दिया है...आडवाणी भले ही पीएम पद की लालसा न होने की बात कह गए हों...लेकिन कहीं न कहीं आडवाणी के दिल में इसकी कसक जरूर रही होगी। खैर हम तो यही कह सकते हैं देर आए दुरुस्त आए।

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बुधवार, 7 नवंबर 2012

...और उसने रिक्शा पंचर कर दिया


सोमवार का दिन था...रोज की तरह घर से ऑफिस के लिए निकला...वही सड़क थी...और वही रोज का ट्रैफिक जाम...हर कोई ऑफिस जाने या अपने काम पर जाने की जल्दी में था...कई गाड़ियां आढ़ी -  टेढ़ी खड़ी थी...ये वो गाडियों थी जिनके चालक जल्दी के चक्कर में कई लोगों को इस जाम में फंसा चुके थे...कुछ एक रिक्शा चालक भी इस जल्दबाजी में निकलने की पुरजोर कोशिश में लगे थे। इसी बीच गाड़ियों के इंजन के शोर के बीच अचानक ट्रैफिक को व्यवस्थित करने की कोशिश कर रहे ट्रैफिक पुलिस के जवान की चिल्लाने की आवाज ने ध्यान उसकी तरफ खींचा तो नजारा कुछ अलग था। टैफिक पुलिस का जवान हाथ में लोहे का एक नुकीला सा उपकरण लिए एक रिक्शा चालक पर चिल्ला रहा था..उसने पहले रिक्शा चालक को दो चार थप्पड़ रसीद किए और फिर उस नुकीले उपकरण से रिक्शे के आगे के पहिए को पंचर कर दिया। रिक्शा चालक शायद इस बात की जल्दी में था कि जल्दी जाम से निकल जाएगा तो शाम तक दो – चार सवारियां ज्यादा ढ़ो कर कुछ ज्यादा पैसे कमा लेगा...लेकिन ट्रैफिक पुलिस के जवान ने उसकी जल्दी को देरी में तो बदला ही साथ ही सुबह से कमाए कुछ पैसों को रिक्शे के पंचर जोड़ने में खर्च कराने का इंतजाम भी कर दिया। ये महज एक घटना थी...जो अक्सर आपने भी देखी होगी...लेकिन शायद इस पर गौर न किया हो। ये घटना अपने आप में कई सवाल खड़े करती है। क्या ट्रैफिक जाम के लिए सिर्फ वो रिक्शा वाला ही जिम्मेदार था या फिर चमचमाती दो – चार कारें जो जल्दी निकलने के चक्कर में आढ़ी – तिरछी खड़ी थी...और पूरे ट्रैफिक को जाम कर रही थी...या फिर वो भी उतनी ही जिम्मेदार थी। जाहिर है जवाब होगा कि शायद चमचमाती लंबी कारों के चालक भी उतने ही दोषी थे...लेकिन फिर सवाल ये उठता है कि ट्रैफिक पुलिस के उस जवान ने या कहें आधिकतर जवान अलग – अलग जगहों पर ऐसी स्थिति में सिर्फ रिक्शा चालक पर ही क्यों अपना गुस्सा उतारते हैं। शायद इसलिए कि उन्हें रिक्शा चालक अपना गुस्सा उतारने का आसान तरीका लगता है और वे ये सोचते हैं कि रिक्शा चालक कम से कम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। ट्रैफिक को जाम कर बैठी किसी चमचमाती लंबी गाड़ी के चालक को अगर टोकने या रोकने का प्रयास किया तो शायद उस गाड़ी वाले की पहुंच या फिर रसूख कहीं उसका तबादला या उसे सस्पेंड न करवा दे। हालांकि ऐसा नहीं है कि सभी ट्रैफिक पुलिसकर्मी ऐसे सोचते हैं या ऐसा करते हैं...कुछ एक अपवाद भी हमें देखने को मिलते हैं जो सिर्फ अपनी ड्यूटी निभाते हैं और नियम तोड़ रही चाहे वो चमचमाती लंबी गाड़ी हो या फिर रिक्शा या ऑटो चालक वे सभी को एक तराजू में तोलते हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसे ट्रैफिक पुलिस कर्मी जिनकी बड़ी तादाद रिक्शे को पंचर करने में विश्वास रखती है..आखिर उनके ऐसा करने की बड़ी वजह क्या है। वैसे शायद ये हमारे सिस्टम में ही है कि गरीब, लाचार और बेसहारा लोगों पर जुल्म कर लो...क्योंकि उनकी सुनने वाला कोई नहीं है...और यही तो होता आ रहा है...हर जगह बेसहारा, गरीब और लाचार दबाए जा रहे हैं...जबकि चमचमाती लंबी गाड़ी वाले...ऊंची पहुंच वाले रसूखदारों को हर जगह पहली पंक्ति में जगह मिलती है...और बिना पंक्ति में लगे ही उनके सारे काम अंदरखाने हो जाते हैं। आप सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान का उदाहरण ले लें या फिर ड्राईविंग लाईसेंस बनवाने पहुंच जाएं...हर जगह ऐसा ही होता है...शायद अधिकतर लोगों ने इसको महसूस भी किया होगा। सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान खोलने के पीछे की भावना शायद यही थी कि गरीबों को बाजार से कम मूल्य पर सस्ती दर पर राशन मिल सके...लेकिन गरीबों के लिए आने वाला आधे से ज्यादा राशन ब्लैक हो जाता है। ऐसा एक नहीं तमाम उदाहरण हैं। ऊपर से लेकर नीचे तक मंत्रियों से नेता तक, अफसरों से लेकर बाबू तक हर कोई कहीं न कहीं...किसी न किसी रूप में इस सब के लिए जिम्मेदार हैं...मंत्री और आला अफसर सोचते तो हैं कि बाबू और कर्मचारी अपना काम ईमानदारी से करें...लेकिन खुद पर अपनी कही बातों को लागू नहीं करते। छत में अगर छेद होने से लीकेज हो रहा है तो...जाहिर है कि लीकेज ठत का छेद ऊपर से बंद करने पर ही रूकेगा न कि नीचे से बंद करने पर...लेकिन हमारे मंत्री, नेता, अफसर सोचते हैं कि छेद नीचे से बंद हो न कि ऊपर से। क्योंकि शायद वे जानते हैं कि छेद ऊपर से बंद कर दिया तो लीकेज की तरह होने वाली उनकी कमाई भी बंद हो जाएगी। बहरहाल बात रिक्शा पंचर होने के दृश्य से निकली थी...इसकी गूंज बहुत दूर तक जाती है...आम आदमी इस पर सोचकर परेशान भी होता है...लेकिन शायद इन नेताओं और अफसरों के कानों तक ये गूंज नहीं पहुंचती...इनकी आंखे शायद इस दृश्य को देखकर अनदेखा कर देती हैं...और यही वजह है कि एक ट्रैफिक पुलिसकर्मी रिक्शा चालाक को थप्पड़ मारने से गुरेज नहीं करता...उसका रिक्शा पंचर करने से भी नहीं हिचकिचाता...और हिचकिचाता है तो बस रिक्शे के साथ ही ट्रैफिक को जाम कर रही उस लंबी चमचमाती गाड़ी की तरफ देखने से...उस गाड़ी में सवार रसूखदार से कुछ कहने से।

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मंगलवार, 6 नवंबर 2012

‘राज’नीति



ज्यादा दिन नहीं हुए जब हरियाणा के सूरजकुंड में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में नितिन गडकरी के दोबारा भाजपा अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ हो गया था...और कार्यसमिति के सभी सदस्यों ने हाथ उठाकर इसका अनुमोदन किया था...दरअसल संघ की मंशा थी कि भाजपा हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव के साथ ही 2013 में 9 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2014 के आम चुनाव को गडकरी के नेतृत्व में लड़े...लेकिन गडकरी पर उठी एक ऊंगली ने भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे पर मिशन 2014 की तैयारी में लगी भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पहले कांग्रेस की नींद उड़ा चुके सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता बने अरविंद केजरीवाल की एक प्रेस कांफ्रेंस ने भाजपा के मिशन 2014 के सपनों पर मानो कुठाराघात कर दिया...रही सही कसर पूरी कर दी उन मीडिया रिपोर्टों ने जिसमें गडकरी की कंपनी में फर्जी कंपनियों के हुए निवेश को उजागर किया गया। भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों से घिरी कांग्रेस को तो मानो गडकरी पर आरोप लगने के बाद संजीवनी मिल गयी। पहले कांग्रेस ने घेरा तो भाजपा ने जमकर अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का बचाव किया...लेकिन इसके बाद गडकरी अपनी ही पार्टी में घिरते चले गए। हालात ऐसे हो गए कि गडकरी पर इस्तीफे का दबाव बढ़ता गया और कई बड़े भाजपा नेता गडकरी से किनारा करने लगे...हालांकि खुलकर किसी भी भाजपा नेता ने इस बात को नहीं कहा सिवाए राम जेठमलानी और उनके बेटे महेश जेठमलानी के...लेकिन अपने ही घर में गडकरी बुरी तरह घिर गए। राजनीति में सियासी दलों और नेताओं की चाल, चरित्र और चेहरे कैसे बदल जाते हैं, इसका अंदाजा गडकरी के मामले से आसानी से लगाया जा सकता है। गडकरी पर उठी एक ऊंगली ने गडकरी को अर्श से फर्श पर पहुंचाने की पूरी रूप रेखा तय कर दी...जो पार्टी अपने निजाम के साथ कदम से कदम मिलाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान शुरु करने का दम भरते हुए सत्ता में लौटने का ख्वाब देख रही थी...उस पार्टी के निजाम ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिर गए तो ऐसा होना ही था। लेकिन आखिर में दिनभर की जद्दोजहद के बाद आखिरकार भाजपा ने खुद ही गडकरी को क्लीन चिट देते हुए गडकरी के नेतृत्व पर पूरा भरोसा होने का ऐलान करने के साथ ही गडकरी के इस्तीफे की अटकलों को खारिज कर दिया। सवाल ये भी है कि जो पार्टी विपक्ष में रहते हुए विरोधियों पर आरोप लगने पर उनके इस्तीफे की मांग करती है वो पार्टी अपने ऊपर बात आने पर अपने नेता को पूरा संरक्षण देते हुए खुद ही उसे क्लीन चिट दे देती है। शायद यही राजनीति है...राज करना है तो समय के साथ अपनी सुविधानुसार नीति को ही बदल डालो और राज करो...वैसे गौर कीजिए भाजपा हो या कांग्रेस या कोई और राजनीतिक दल सभी जगह तो यही हो रहा है।
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सोमवार, 5 नवंबर 2012

ये कैसी नैतिकता…?


 केन्द्र की कांग्रेस नीत सरकार पर लगे भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों को लेकर मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा समेत तमाम विरोधी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ ही आरोपों से घिरे उनके मंत्रियों से इस्तीफे का मांग कर रहे हैं...लेकिन जब यही आरोप देश की मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर लगता है तो उनकी ही पार्टी उनका खुलकर बचाव करती है। विरोधियों पर भ्रष्टाचार के आरोपों पर उनसे इस्तीफा मांगने वाले खुद के दामन पर छींटे पड़ने पर चुप्पी साध लेते हैं। हालांकि कुछ एक नेता ऐसे हैं जो अपनी ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर सवाल खड़े करते हुए इस्तीफा मांगते हैं...लेकिन ये गिनती में ही हैं। माना सोनिया गांधी ने भ्रष्टाचार और घोटालों से घिरे अपने मंत्रियों का बचाव करते हुए उनकी पीठ थपथपाते हुए उन्हें प्रमोशन दे दिया...तो क्या आप भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सोनिया के कदमों पर ही चलेंगे। हालात तो कुछ ऐसा ही बयां कर रहे हैं...जिस तरह गडकरी के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी का रास्ता गडकरी का बचाव कर साफ किया जा रहा है...उससे इस पर मुहर लगती भी दिखाई दे रही है। भाजपा दूसरों को तो नैतिकता का पाठ पढ़ाती है लेकिन जब उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष पर जब भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं तो भाजपा की नैतिकता जाने कहां चली जाती है। एक तरफ तो आप भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ने के बात कहते हुए 2014 में देश की सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब देखते हैं...लेकिन आपके शीर्ष नेता पर आरोपों पर आप चुप्पी साध लेते हैं। भ्रष्टाचार और घोटालों के खिलाफ आप प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांगते हुए संसद ठप कर देते हैं, लेकिन जब खुद पर बन आती है तो आप आरोपों को ही नकारते नजर आते हैं। साफ है कि भ्रष्टाचार को कैंसर बताते हुए कांग्रेस और भाजपा इसे जड़ से खत्म करने के साथ ही भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने की बात करते हैं...लेकिन खुद गले तक भ्रष्टाचार के दलदल में डूबे हुए हैं...ऐसे में कैसे ये दोनों पार्टियां भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कारगर कदम उठाएंगी...ये बड़ा सवाल है। सवाल इसलिए भी क्योंकि दोनों ही पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं...और दोनों ही पार्टियों के नेता भ्रष्टाचार में घिरे साथी नेताओं का न सिर्फ खुलकर बचाव करते हैं बल्कि सीना ठोक पर उन्हें निर्दोष बताते हैं। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर देश के दोनों ही प्रमुख दलों का ये रवैये निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं। सत्ताधारी दल के नेता सत्ता के लालच में गंभीर आरोप लगने के बाद भी जहां कुर्सी छोड़ने से कतराते हैं तो वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा का भी कुछ ऐसा ही हाल है। न तो मनमोहन सिंह और उनकी टीम के दागी मंत्री नैतिकता के नाम पर इस्तीफा देने की हिम्मत जुटा पाते हैं और न ही दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाली भाजपा के नेताओं में ही पद छोड़ने का साहस है। भारतीय राजनीति में एक दौर वो भी था जब सिर्फ ऊंगली मात्र उठ जाने पर नेता पद और कुर्सी का मोह छोड़ इस्तीफा दे देते थे...लेकिन अब वक्त बदल गया है, नैतिकता राजनीति से गायब हो गयी है...या यूं कहें कि नेताओं ने नैतिकता की हत्या कर दी है। नेता अब सिर्फ और सिर्फ कुर्सी के लिए...लाल बत्ती के लिए जीते हैं...उन पर तमाम ऊंगलियां उठे लेकिन उन्हें किसी की कोई परवाह नहीं है...शायद वे ये समझते हैं कि जनता ने उन्हें चुनकर पांच साल का ऐश परमिट दे दिया है...इसलिए जितनी ऐश करनी है कर लो...क्या पता फिर मौका मिले न मिले सत्ता में आने का।   

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रविवार, 4 नवंबर 2012

ये राजनीति है...


एफडीआई और महंगाई पर सरकार के फैसलों के साथ ही भ्रष्टाचार और तमाम घोटालों के आरोप से घिरी कांग्रेस ने न सिर्फ दिल्ली के रामलीला मैदान से देश की जनता को सफाई देने की कोशिश की बल्कि कड़े फैसलों के पीछे सरकार की मजबूरी का भी बखान किया। दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ ही कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने जनता के सामने न सिर्फ एक के बाद एक सरकार के फैसलों पर सफाई दी बल्कि मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा पर जमकर हल्ला बोला। एफडीआई के मुद्दे पर तो सरकार के तमाम मंत्री दर्जनों बार सफाई दे चुके थे...लेकिन महंगाई पर आज पहली बार सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह ने बात की। हालांकि महंगाई पर ये लोग सिर्फ सरकार की मजबूरी ही सामने रख सके...लेकिन महंगाई से निकट भविष्य में आम जनता को राहत देने जैसी कोई बात इन्होंने नहीं की। हां भ्रष्टाचार को लेकर सोनिया गांधी ने खूब हुंकार भरी और जैसा वो करती आई हैं ठीक उसी तरह भ्रष्टाचार में लिप्त सरकार के नुमाइंदों का बचाव करती दिखाई दी। लेकिन अपनों को बचाने के साथ ही विपक्षियों पर भ्रष्टाचार को लेकर निशाना साधने से सोनिया नहीं चूकी। अच्छा लगा जब एफडीआई और बढ़ती महंगाई पर सरकार का पक्ष रखने कांग्रेस आगे आई...भ्रष्टाचार पर सोनिया का रवैया और तेवर तो काबिले तारीफ थे...लेकिन भ्रष्टाचार की कालिख से अपनों को बचाना और दूसरों पर ताने मारना ये समझ से परे था। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भ्रष्टाचार सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि अधिकतर राजनीतिक दल और राजनेता इस दलदल में गले तक डूबे हुए हैं...और किसी का भी दामन पाक साफ नहीं कहा जा सकता...लेकिन सोनिया गांधी का ये कौन सा पैमाना है कि खुद के लोगों पर आरोप साबित होने तक वो दोषी नहीं है और दूसरों को आप चिल्ला चिल्ला कर दोषी ठहराएं। वैसे आपके लिए अपने लोग कितने महत्वपूर्ण हैं वो तो आप भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अपने प्रिय सलमान खुर्शीद को प्रमोशन दे जता ही चुकी हैं...ऐसे में आप जनता के सामने ये चिल्ला चिल्ला कर भले ही कह लें कि भ्रष्टाचार कैंसर की तरह है और आप भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगी...लेकिन आपके दोहरे रवैये तो देख आप से कम से कम ये उम्मीद करना तो बेईमानी ही होगी कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आप कोई कार्रवाई करेंगी। खैर इसमें दोष आपका भी नहीं है कमबख्त राजनीति चीज ही ऐसी है कि ये सब करे बिना काम भी तो नहीं चलता।
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