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शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

राजनीति - सिर्फ आरोप से न हो भविष्य का फैसला

राजनीति को पवित्र करने की जरुरत है, जरूरत है राजनीति से उन लोगों की सफाई की जो अपने पापों को धाने के लिए राजनीति की गंगा में डुबकी लगाने से परहेज नहीं करते। हो भी क्यों न..? राजनीति दागियों के लिए अपने अपराधों के दागों को छिपाने का सबसे आसान जरिया जो बन गयी है। सोने पर सुहागा तो तब हो जाता है जब ये दागी सांसद और विधायक सत्ताधारी दल का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं। उस वक्त इनका आचरण देखने लायक होता है। वैसे भी अपराधियों के लिए राजनीति से बेहतर ऐशगाह और कहां हो सकती है..?
राजनीति की पेटेंट सफेद परिधान कुर्ता पायजामा में तो इनके सारे दाग जैसे छू मंतर हो जाते हैं। राजनीति दागी नेताओं के लिए टीवी पर अक्सर आने वाले उस टाईड डिटर्जेंट पाउडर और केक के विज्ञापन की तरह है, जो इनके दागों को पलक झपकते ही साफ कर देती है।  
ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर इसका ईलाज है क्या..? हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में यह कहा था कि 2 साल से ज्यादा की सजा पाने वाले सांसदों और विधायकों की सदस्यता खत्म कर दी जानी चाहिए। लेकिन मनमोहन कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए नए अध्यादेश की मंजूरी दे दी जिसके चलते सरकार ने दागी नेताओं को राहत देने का काम किया था। दागी नेताओं पर आई सुप्रीम कोर्ट की सुनामी टलने से दागियों के चेहरे खुशी से खिल गए थे लेकिन अचानक से कांग्रेस युवराज राहुल गांधी अध्यादेश को फाड़कर बाहर निकले और इसे नॉनसेंस कहते हुई अपनी पार्टी के नेता और देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक की किरकिरी कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
पीएम मनमोहन सिंह की मजबूरी सामने आई और उन्होंने इस अध्यादेश को वापस ले लिया जिसके पहले शिकार बने राजद अध्यक्ष और सासंद लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस सांसद राशिद मसूद।
अब केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कैबिनेट के सामने एक प्रस्ताव पेश किया है जिसके तहत बलात्कार, हत्या, अपहरण आदि जैसे गुनाहों (जिनमें न्यूनतम सात वर्ष तक की सजा होती है) के आरोपियों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। राजनीतिक सुधारों की दिशा में सोचा जाए तो ये प्रस्ताव काबिले तारीफ है लेकिन इस प्रस्ताव के विरोध में भी आवाज बुलंद होनी शुरु हो गयी है। ऐसे में सवाल ये है कि सिब्बल के इस प्रस्ताव का विरोध कितना जायज है..?
ये सवाल इसलिए भी क्योंकि ये प्रस्ताव उन राजनेताओं के राजनीतिक भविष्य को चौपट कर सकता है, जो या तो झूठे आरोपों में फंसे हुए हैं या फिर जिन पर राजनीतिक साजिश के तहत आरोप लगाए गए हों। राजनीति में कुछ भी संभव है, ऐसे में निश्चित तौर पर इसका फायदा उठाकर राजनेता अपने फायदे के लिए और विरोधी नेताओं का राजनीतिक भविष्य चौपट करने के लिए उन पर झूठे आरोप भी लगाने से गुरेज नहीं करेंगे।
निश्चित तौर पर इस प्रस्ताव के विरोध से वास्तव में दागी नेताओं को बचने का एक अवसर मिल जाएगा लेकिन इसकी कीमत पर ईमानदार या फिर झूठे मामलों में फंसाए गए नेताओं के भविष्य को चौपट नहीं किया जाना चाहिए। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट पहले ही दागियों के राजनीतिक भविष्य को चौपट करने की दिशा में ऐतिहासिक फैसला दे ही चुका है जिसके दो बड़े शिकार भी लालू और राशिद मसूद के रूप में हमारे सामने मौजूद हैं। 
सिब्बल का ये प्रस्ताव सुधार की राजनीति के अंतर्गत जनता और समाज के हित में तो दिखाई देता है लेकिन इस प्रस्ताव को अमली जामा पहनाना ईमानदार राजनेताओं और राजनीति में जाने की ईच्छा रखने वाले लोगों के लिए एक बड़ी बाधा का काम करेगा। इसका मतलब ये भी नहीं कि राजनीति में सुधार की दिशा में सोचना बंद कर दिया जाए या इस पर काम न हो। सुप्रीम कोर्ट का हाल ही में आया ऐतिहासिक फैसला एक अच्छी शुरुआत दे चुका है। इस शुरुआत को आगे बढ़ाया जाना चाहिए लेकिन ये ध्यान भी रखा जाना चाहिए कि ये ईमानदार लोगों के लिए राजनीति के रास्ते बंद न हों बल्कि वे नए जोश के साथ राजनीति में प्रवेश करें।

deepaktiwari555@gmail.com

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

राहुल के 82 वर्षीय युवा साथी !

2014 में कांग्रेस से अघोषित पीएम प्रत्याशी राहुल गांधी कहते हैं कि युवा देश की तकदीर बदल सकते हैं। राहुल युवाओं से आह्वान करते हैं कि वे राजनीति में आएं। राहुल अपनी पार्टी में युवाओं को प्रतिनिधित्व देने की बातें करते हैं। राहुल कहते हैं कि राजनीति में आना आसान नहीं है क्योंकि हर कोई उनकी तरह राजनीतिक पृष्ठभूमि से नहीं होता लेकिन राहुल ये वादा जरुर करते हैं कि वे युवाओं को राजनीति में लाना चाहते हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा युवा संसद और विधानसभा में पहुंचे ताकि देश की बागडोर युवाओं के हाथों में हों। एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस के बहाने वे अपनी इस सोच को परवान चढ़ाने की पूरी कोशिश भी करते हैं। लेकिन कांग्रेस के युवराज की पार्टी में कुछ ऐसा भी होता है, जो गले नहीं उतरता।
राजस्थान के चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे राहुल के दो युवा साथियों को देखकर तो कम से कम ऐसा ही लगता है। दरअसल ये युवा साथी कुछ जरूरत से ज्यादा ही युवा हैं। 100 से 1 तक अगर उलटी गिनती करें तो इनकी उम्र करीब 18 वर्ष ही होती है, शायद इन दो केसों में राहुल की गिनती 100 से 1 की तरफ ही शुरु हुई होगी इसलिए ही ये दोनों राजस्थान के चुनावी मैदान में ताल ठोकते दिखाई दे रहे हैं। इनमें से एक भंवरी देवी यौन शोषण और हत्या के आरोप में जेल में बंद कांग्रेस विधायक मलखान सिंह की 82 वर्षीय माता अमरी देवी हैं, जिन्हें लूणी विधानसभा से टिकट मिला है तो दूसरे हैं, गहलोत सरकार में कृषि मंत्री हरजीराम बुरड़क जिन्हें टिकट मिला है लाडनूं विधानसभा सीट से। खास बात ये है कि उम्र के मामले में हरजीराम बुरड़क भी अमरी देवी की बराबरी कर रहे हैं और जीवन के 82 वसंत पूरे कर चुके हैं। बात यहीं खत्म हो जाती तो ठीक था लेकिन दिल्ली में अजय माकन की प्रेस कांफ्रेंस में दागियों को बचाने वाले अध्यादेश की कॉपी को नॉनसेंस कहते हुए सार्वजनिक रूप से फाड़ने वाले राहुल गांधी की फटा पोस्टर निकला राहुल वाली इमेज भी यहां पर उस वक्त धराशायी होती दिखाई दी जब कांग्रेस ने दागियों के परिजनों को दिल खोलकर टिकट बांटे।
बलात्कार के आरोप में जेल में बंद पूर्व मंत्री बाबू लाल नागर के भाई हजारी लाल नागर को दद्दू विधानसभा से अपना उम्मीदवार बनाया तो भंवरी देवी यौन शोषण और हत्या के आरोप में जेल मे बंद महिपाल मदेरणा की पत्नी लीला मदेरणा को जोधपुर की ओसियां विधानसभा से टिकट थमा दिया। भंवरी देवी मामले में जेल में बंद कांग्रेस विधायक मलखन सिंह की मां तो लूणी से कांग्रेस की उम्मीदवार हैं ही। ये छोड़िए दुष्कर्म के आरोपों से घिरे अपने विधायक उदय लाल आंजना को फिर से निम्बाहेड़ा विधानसभा सीट से टिकट थमा दिया तो एक महिला की मौत के मामले में मंत्री पद से हाथ धोने वाले रामलाल जाट को भी आसिंद विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाने में देर नहीं की। ये तो कुछ नाम है, प्रत्याशियों की सूची का पोस्टमार्टम किया जाए तो ये फेरहिस्त काफी लंबी दिखाई देगी।
इसके पीछे कांग्रेस का तर्क भी निराला है। कांग्रेस का कहना है कि ये टिकट विश्नोई और जाट समाज के दबाव में जारी किए गए हैं। अगर कांग्रेस के तर्कों से ही मतलब निकाला जाए तो साफ होता है कि वोटों के लिए न तो कांग्रेस को न तो 82 वर्षीय उम्मीदवार से परहेज है और न ही दागियों से क्योंकि राजस्थान में तो विधानसभा चुनाव के लिए जारी टिकटों की सूची में इनकी संख्या ठीक ठाक है।
इस सब के बाद अब राहुल गांधी की युवा और बेदाग नेताओं को संसद और विधानसभा पहुंचाने की सोच के साथ ही उनकी कथनी और करनी के फर्क का क्या मतलब निकाला जाए ये तो आप ही बेहतर बता सकते हैं। वैसे कुछ लोग हैं जो इसके जस्टिफाई भी कर सकते हैं, वो भी पूरे कुतर्कों के साथ, अब उनका नाम क्या लिखना जानते तो आप हैं ही।


deepaktiwari555@gmail.com

बुधवार, 13 नवंबर 2013

और नेता जी लुट गए !

लोकसभा चुनाव हो, विधानसभा चुनाव हों या फिर नगर निकाय या पंचायत के चुनाव। चुनाव जीतने के बाद खुद को राजा समझने वाले नेता जनता रूपी प्रजा को लूटने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। भ्रष्टाचार और घोटालों के जरिए नेता जनता की खून पसीने की कमाई से अपनी नोटों को फसल को सींचने का कोई मौका नहीं छोड़ते क्योंकि ये नेता समझते हैं कि चुनाव जीतकर इन्होंने पांच साल का ऐश परमिट हासिल कर लिया है।
लेकिन चुनाव के वक्त जनता को लूटने वाले ये नेता भी कई बार लुट जाते हैं। ये बात अलग है कि इनकी धन दौलत तो नहीं लुटती, लेकिन धन दौलत का इंतजाम करने वाली कुर्सी पाने का इनका ख्वाब लुट कर जरुर टूट जाता है। इन्हें लूटने वाले भी इनके अपने ही होते हैं, लिहाजा अपनी महत्वकांक्षाओं को दबाकर अक्सर ये शांत बैठ जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपनी महत्वकांक्षाओं को दबा नहीं पाते और बागी हो जाते हैं। मैं बात चुनावी टिकट की कर रहा हूं जिसके लिए नेताओं की जद्दोजहद और मेहनत देखने लायक होती है, आखिर पांच साल का ऐश परमिट पाने की पहली बाधा तो चुनावी टिकट ही है।
देश के पांच राज्यों में चुनावी सरगर्मियां उफान पर हैं, अखबार से लेकर टीवी में चुनावी रंग में रंगे हुए हैं। सुबह की चाय के साथ अख़बार में ऐसी ही ख़बरों को टटोलते हुए राजस्थान के एक नामी दैनिक में एक नेता जी का टिकट कटने की ख़बर सुनी तो ख़बर को पूरा पढ़ने का मन किया। दरअसल एक नेता जी को चुनाव का टिकट मिलने के बाद उनसे छिन गया और उनकी जगह किसी दूसरे नेता को टिकट दे दिया गया। नेता जी का पांच साल का ऐश परमिट हासिल करने का ख्वाब टिकट लुटने के साथ ही टूट चुका था। नेता जी करते भी क्या लूटने वाला भी उनकी अपना ही बिरादरी का था और अपनी ही पार्टी का।
नेता जी बड़े महत्वकांक्षी थे, हर साल में पांच साल का ऐश परमिट हासिल करना चाहते थे। उन्हें अपनी जीत का पूरा भरोसा भी था, लिहाजा नेता जी ने अपनी पार्टी से बगावत करने का ऐलान कर दिया और बागी होकर अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव मैदान में ताल ठोकने की तैयारी शुरु कर दी। आखिर अपने हक के लिए नेता जी खुद आवाज नहीं उठाएंगे तो कौन उठाएगा..?
अच्छा लगा नेता जी को किसी के हक के लिए लड़ते हुए देखकर फिर भले ही अपने बिना किसी स्वार्थ के किसी के हक में आवाज न उठाने वाले नेता जी अपने ही हक के लिए क्यों न बगावत का झंडा उठाकर चुनावी मैदान में कूद पड़ें हों। और भी अच्छा लगा क्योंकि जनता को लूटने वाले नेता जी को भी पता चला कि आखिर लूटे जाने पर कितना दर्द होता है, लूटे जाने पर कितनी तकलीफ होती है। चुनाव के वक्त कम से कम इस टिकटों की लूट का तो लुत्फ उठा ही सकते हैं। जय हो नेतानगरी की।।

deepaktiwari555@gmail.com