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बुधवार, 11 दिसंबर 2013

मेरे पास मां है !


केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को टीवी पर सुनकर एक बार फिर से दीवार फिल्म में अमिताभ बच्चन और शशि कपूर के उस दृश्य की याद ताजा कर दी जब पुलिस इंस्पेक्टर शशि कपूर अपने बड़े भाई अमिताभ बच्चन के तीखे तंज मेरे पास गाड़ी है, बंगला है, दौलत है, तेरे पास क्या है..?” के जवाब में कहता है कि मेरे पास मां है। शशि कपूर का फिल्मी संवाद तो मां के वास्तवित प्रेम को दर्शाता है और मां की ममता की ताकत को बताता है, लेकिन हमारे विदेश मंत्री माननीय सलमान खुर्शीद साहब को सुनकर तो चाटुकारिता की महक ज्यादा आई बजाए इसके कि ये उनका सोनिया मांके प्रति प्यार है।
दरअसल अलग अलग मौकों पर गांधी परिवार की भक्ति को चाटुकारिता के तड़के से सजाने वाले सलमान खुर्शीद साहब ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि सोनिया गांधी सिर्फ राहुल गांधी की नहीं बल्कि पूरे देश की मां है। बात यहीं खत्म हो जाती तो ठीक था, राहुल के अलावा पीएम के लिए किसी दूसरे नाम के सवाल पर भी खुर्शीद साहब सोनिया भक्ति में ही डूबे दिखाई दिए। खुर्शीद साहब ने फरमाया कि सोनिया जी का निर्णय ही विकल्प होगा, जब आएगा तब पता चल जाएगा। ये उसी कांग्रेस पार्टी के नेता का बयान है, जो किसी राज्य के मुख्यमंत्री या फिर प्रधानमंत्री के नाम का चुनाव पार्टी में सर्वसम्मति से होने का दावा करती है, हालांकि इस दावे में कितनी हकीकत है, इसे आज खुर्शीद साहब ने बयां कर ही दिया।  
चाटुकारिता का तड़का लगाने में कई और कांग्रेसी भी माहिर हैं, जिनमें से एक नाम मणिशंक्कर अय्यर का भी है, राहुल के अलावा पीएम उम्मीदवार कौन के सवाल पर अय्यर साहब का जवाब भी खुर्शीद साहब की चरह चाटुकारिता से भरपूर था। अय्यर साहब बोले कि कांग्रेस में राहुल गांधी के अलावा उनकी(राहुल) मां ही पीएम पद की उम्मीदवार हो सकती है और कोई नहीं।
खुर्शीद साहब और अय्यर साहब के बयान का ये मतलब कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि कांग्रेस में कोई और नेता पीएम बनना ही नहीं चाहता। हसरतें तो जाने कितनों की होगी लेकिन अफसोस अपनी हसरतों का बयां करने की हिम्मत शायद किसी भी कांग्रेसी नेता में नहीं है। होती तो हर मंच पर कांग्रेसी नेता राहुल गांधी के अलावा किसी और को 2014 में पीएम के रूप में देखना पसंद न करने की बात न कहते। देखा जाए तो कांग्रेसी नेता हैं बड़े दिलवाले। पीएम बनने की हसरत तो हर कोई रखता है लेकिन इसके बाद भी पीएम के सवाल पर राहुल और सोनिया के अलावा किसी और का नाम तक जुबां पर नहीं लाते। इनके लिए तो बस इतना ही कह सकते हैं - लगे रहो नेता जी, लगे रहो, मां की भक्ति का आशीर्वाद अवश्य मिलेगा !


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मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

राजस्थान में क्यों हारी कांग्रेस ?

राजस्थान में डूबते हाथ को तिनके का सहारा भी न मिला और चुनाव में सत्ताधारी दल का सूपड़ा ही साफ हो गया। विकास के मुद्दे पर दमदारी से चुनाव लड़ने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को चुनावी नतीजे से पहले पूर्ण विश्वास था कि सत्ता परिवर्तन की रवायत को पीछे छोड़ इस बार राजस्थान में कांग्रेस पूरी दमदारी से लगातार दूसरी बार सत्ता में काबिज होगी लेकिन 8 दिसंबर को 8 बजे सुबह मतगणना शुरू होने के साथ ही स्पष्ट होने लगा था कि राजस्थान में गहलोत सरकार के सूर्यास्त का वक्त करीब आ गया है। इसकी तस्वीर कांग्रेस के लिए इतनी भयावह(कांग्रेस 21 सीट) होगी ये तो शायद ही किसी ने सोचा था लेकिन जनता के फैसले का कोई कैसे नकार सकता है।   
जनता के फैसले को गहलोत ने समझने में देर नहीं की और मतगणना शुरू होने के चंद घंटों बाद ही अपनी हार स्वीकार कर ली लेकिन इसका ठीकरा उन्होंने केन्द्र सरकार के सिर फोड़ कर अपने दामन को बचाने की कोशिश जरूर की लेकिन राजस्थान में कांग्रेस का एक तरह से जमीन के नीचे चले जाना कई अहम सवाल खड़े करता है कि क्या वाकई में चुनाव में ऐसा हुआ है जैसा कि अशोक गहलोत ने हार के बाद कहा या फिर इस करारी शिकस्त के पीछे कुछ और ही कारण थे।
जहां तक मेरी समझ में आया मोदी का असर कहीं न कहीं राजस्थान में हावी था लेकिन इसके अलावा कांग्रेस का चुनावी कुप्रबंधन, नेताओं की आपसी खटपट और टिकटों का वितरण भी इस करारी हार के लिए काफी हद तक जिम्मेदार रहा। (जरूर पढ़ें- राहुल के 82 वर्षीय युवा साथी !)
राहुल गांधी के युवाओं और दागियों को पार्टी और चुनाव से दूर रखवे का फार्मूला राजस्थान में उस वक्त फेल होता दिखा जब जातिगत वोटों के खातिर कांग्रेस ने दागियों के परिजनों को टिकट बांटने से जरा भी परहेज नहीं किया। बहुचर्चित भंवरी देवी मामले में जेल में बंद गहलोत के पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा की पत्नी लीला मदेरण औंसया में औंधें मुंह गिरी तो इसी मामले में जेल में बंद पूर्व विधायक मलखान सिंह की मां अमरी देवी 85 वर्ष में भी कुछ कमाल नहीं कर सकी। इसी तरह दुद्दू विधानसभा पर यौन शोषण मामले में जेल में बंद पूर्व मंत्री बाबू लाल नागर के भाई को हजारी लाल नागर और एक महिला की मौत पर मंत्री पद गंवाने वाले राम लाल जाट आसिंद सीट पर बड़े अंतर से चुनाव हारे जबकि दुष्कर्म के आरोंपों से घिरे विधायक उदयलाल आंजना भी अपनी सीट नहीं बचा पाए। जातीय वोटरों को लुभाने के लिए कांग्रेस ने दागियों और उनके परिजनों को टिकट देने से परहेज नहीं किया और नतीजा सबके सामने है। कांग्रेस के ये भरोसेमंद घोड़े चुनावी दौड़ में फिसड्डी साबित हुए।  
ये छोड़िए मांडवा सीट से चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रभान सिंह तो चुनाव जीतना तो दूर अपनी जमानत तक नहीं बचा सके और चौथे नंबर पर रहे जबकि लाडनूं सीट से ताल ठोक रहे कांग्रेस के 83 वर्षीय हरजीराम बुरड़क भी बड़े अंतर से चुनाव हार गए। ये तो महज कुछ नाम हैं, गहलोत के 22 मंत्रियों का चुनाव हारना और 5 दर्जन से ज्यादा कांग्रेस प्रत्याशियों का 20 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से चुनाव हारना बताने के लिए काफी है कि टिकट वितरण से लेकर चुनावी प्रबंधन में कांग्रेस नेतृत्व पूरी तरह फेल रहा और कांग्रेस राजस्थान के इतिहास में अपने न्यूनतम स्कोर पर आऊट हो गयी।


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रविवार, 8 दिसंबर 2013

बरसाती मेंढ़क का कमाल

70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली प्रदेश तो छोटा है लेकिन दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले का कद देशभर में अपने आप ऊंचा हो जाता है। सोचिए जो शीला दीक्षित 15 सालों तक इस कुर्सी पर राज करती रही, जिस पार्टी से वह आती है और देश की राजनीति में उस शख्सियत का क्या कद होगा..? चुनाव में इस शख्सियत को राजनीति में एक साल पहले कदम रखने वाले एक शख्स अरविंद केजरीवाल ने ये कहकर चुनौती दी कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जिस सीट से चुनाव लड़ेंगी, वह भी उसी सीट से मैदान में उतरेंगे।
राजनीतिक पंडितों की नजर में ये अति उत्साह में उठाया गया कदम था, जिसे दूसरी भाषा में पॉलीटिकल सुसाईड भी कहा जा रहा था। लेकिन 4 दिसंबर को दिल्ली के मतदाता जब अपने पोलिंग बूथ पर वोट डालने पहुंचे तो उनके मन में शायद कुछ और ही था। उन्हें केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के झाड़ू को दिल्ली की राजनीति से कांग्रेस और भाजपा को साफ करना एक बेहतर विकल्प लगा और जब 8 दिसंबर को ईवीएम का पिटारा खुला तो दिल्ली के लोगों की दिल की बात दुनिया के सामने आ गयी और आपके झाड़ू से दिल्लीवासियों ने कांग्रेस का सफाया कर दिया। केजरीवाल के साथ ही आम आदमी पार्टी इतिहास रच चुकी थी और सबके अनुमानों से परे केजरीवाल ने न सिर्फ नई दिल्ली सीट पर 15 सालों से दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को न सिर्फ 25 हजार 864 वोटों से करारी हार का स्वाद चखा दिया बल्कि केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने राजनीति की अपनी पहली ही पारी में 28 सीटों में भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों को पटखनी देखकर आप के अस्तित्व पर सवाल उठाने वालों के मुंह पर ताला जड़ दिया।   
आप को बरसाती मेंढ़क की संज्ञा देने वाली शीला दीक्षित को नई दिल्ली विधानसभा सीट के परिणाम से ही ये समझ में आ चुका होगा कि जिन्हें वे बरसाती मेंढ़क समझ रही थी दिल्ली की जनता ने उन्हें राजनीति की गंदगी साफ करने का बीड़ा सौंप दिया है और इसके लिए झाड़ू उठाने से भी परहेज नहीं किया।      
वैसे भी शीला जी राजनीति के दलदल में बरसाती मेंढ़क ही ऐसा कमाल दिखा सकते हैं लेकिन अफसोस सत्ता के नशे में आप इन्हें पहचान नहीं पायी और अपने 40 साल के राजनीतिक करियर में हार का एक ऐसा दाग लगा बैठीं जो शायद ही कभी आपके दामन से मिट पाए। वैसे गलती आप की भी नहीं है 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाला कोई भी शख्स इस खुशफहमी का शिकार हो जाएगा कि वो अजेय है और उसे पराजित करना नामुमकिन है, लेकिन आपकी ये खुशफहमी भी आप ने ही दूर कर दी। आप के अऱविंद केजरीवाल ने तो आप को आपकी ही सीट पर ऐसा पटका की शायद ही आप इस सदमे से कभी उबर पाएं। वैसे हार के बाद आपकी बेवकूफ हैं हम वाली पंक्तियां आपके हार के दर्द को बयां भी कर रही थी।
असल राजनीति भी वैसे आपको राजनीति की अपनी संभवत: आखिरी पारी में ही समझ आयी होगी क्योंकि आपने ये शायद ही अपने राजनीतिक जीवन में सोचा होगा कि एक साल पहले राजनीति में आया एक शख्स आपके राजनीतिक करियर पर झाड़ू फेर कर चला जाएगा।
बहरहाल दिल्ली के चुनावी नतीजे शीला दीक्षित और कांग्रेस के लिए ही नहीं वरन देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के लिए भी एक सबक है कि राजनीति किसी की बपौती नहीं है। जनता अगर ठान ले तो किसी को भी शीला दीक्षित बना सकती है और किसी को भी अरविंद केजरीवाल बस सामने वाले की नीयत में खोट नहीं होना चाहिए। उम्मीद करते हैं आप आम आदमी की उम्मीद को धूमिल नहीं होने देगी और जनता के भरोसे को कायम रखेगी। आखिर में दिल्ली की जनता के साथ ही आम आदमी पार्टी को राजनीति में शानदार आगाज के लिए ढ़ेरों बधाई।


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