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शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

क्यों रूठ गई है कुदरत ?


देहरादून में सुबह आंख खुली तो बाहर कड़कड़ाती ठंड थी। बर्फीली हवाओं ने एहसास करा दिया था कि इस बार कुदरत दिसंबर में बही मेहरबान हो रही है। देर रात मसूरी में हुई बर्फबारी का ही नतीजा था कि देहरादून की फिज़ाओं में  बर्फीली ठंडक घुल गई थी। छत पर जाकर देखा तो नजारा मन को मोह लेने वाले था। मसूरी की ऊंची चोटियां बर्फ की सफेद चादर से ढ़की हुई थी...और सूर्य की किरणें सुनहरी चमक बिखेर रही थी। मसूरी से बह रही ठंडी हवाएं दिसंबर की शुरुआत में ही जनवरी की कड़कड़ाती ठंड का एहसास करा रही थी। सुना है दशकों पहले सर्दियों में कभी देहरादून में भी बर्फ के दीदार हो जाया करते थे....लेकिन मसूरी को जाने वाले राजपुर रोड ईलाके के लिए ये बात ज्यादा पुरानी नहीं है और बीते कुछ सालों तक राजपुर रोड का कुछ ईलाका भी मामूली बर्फबारी के लिए पहचाना जाता था...लेकिन बढ़ते शहरीकरण के बाद न सिर्फ कुदरत देहरादून से रूठ गई बल्कि राजपुर रोड़ के इलाके को भी बर्फ के दीदार के लिए तरसा दिया। कम होती हरियाली और खत्म होते जंगलों के बीच तेजी से फैलते कंक्रीट के जंगल का ही असर है कि मसूरी में भी बर्फबारी का मौसम खिसक कर जनवरी तक पहुंच गया...और अक्सर जनवरी या फरवरी में ही मसूरी में बर्फ के दीदार होते हैं...लेकिन इस बार दिसंबर की शुरुआत में मसूरी में बर्फबारी ने मसूरी जिसके लिए जाना जाता था उसकी याद फिर से ताजा कर दी। खुद मसूरी में रहने वाले लोगों के लिए दिसंबर में बर्फबारी इस बार किसी चमत्कार से कम नहीं है। हालांकि ये बर्फबारी हल्की ही थी...लेकिन दिसंबर में बर्फ फिर भी यहां के पुराने दिनों की याद ताजा करा गया। कंक्रीट का फैलता जंगल और कटते वनों के साथ ही बढ़ता प्रदूषण निश्चित ही बदलते मौसम का मुख्य कारक है...देहरादून की ही अगर बात करें तो इस ईलाके की हरियाली मन को मोह लेती थी...और देहरादून में सालों से रह रहे लोग भी कहते हैं कि देहरादून की हरियाली विकास की अंधी दौड़ की भेंट चढ़ गयी। बेतरतीब होते विकास ने जहां न सिर्फ एक खूबसूरत शहर से उसकी सुंदरता यानि की हरियाली छीन ली बल्कि यहां का सदाबहार मौसम भी पहले जैसा नहीं रहा। देहरादून से मसूरी को जाने वाले रास्ते पर जहां पहले हरे भरे पहाड़ सीना तान कर खड़े रहते थे...वहां अब हरियाली के बीच में तेजी से फैलता कंक्रीट का जाल आसानी से देखा जा सकता है...और ये बेतरतीब तरीके से जारी है। ये हाल सिर्फ देहरादून का ही नहीं है बल्कि पूरे उत्तराखंड में अमूमन ऐसे ही हालात है...फिर चाहे नैनीताल हो या फिर रानीखेत या फिर देश का कोई और शहर...कंक्रीट का फैलता जाल धीरे धीरे हरियाली को चट करता जा रहा है। आंकड़ें कहते हैं कि देश में हर साल 30 से 35 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र विकास की भेंट चढ़ता है लेकिन इसका सिर्फ एक तिहाई हिस्से की ही भरपाई हो पाती है। 1980 में बना देश का वन संरक्षण कानून भी कहता है कि एक पेड़ काटने पर उसके बदले तीन पेड़ लगाने पड़ते हैं...लेकिन आप ने अपने आस पास ही इसको महसूस किया होगा कि वाकई में क्या ऐसा हो पाता है ? पर्यावरण मंत्रायल का अध्ययन कहता है कि देश में उत्सर्जित होने वाली 11.25 फीसदी ग्रीन हाउस गैसों यानि करीब 13.38 करोड़ टन कार्बन आक्साईड गैसों को वन सोखते हैं। वन तो कम हो रहे हैं लेकिन ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है...आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर ये सिलसिला इसी तरह जारी रहा तो जलवायु में कितना परिवर्तन आएगा। राष्ट्रीय वन नीति कहती है की देश के भू-भाग के 33 फीसदी हिस्से पर वन होने चाहिए लेकिन हिंदुस्तान में सिर्फ 21.02 फीसदी हिस्से पर ही वन हैं जबकि 2.82 फीसदी भू-भाग पर पेड़ हैं...और अगर इनको भी वनों का हिस्सा मान लिया जाए तो देश का कुल वन क्षेत्रफल 23.83 फीसदी ही होता है...यानि कि वन नीती के मुताबिक अभी और वनों को विकसित करने की जरूरत है न कि विकास के लिए पेड़ों की बलि ली जाए। दिसंबर में बर्फबारी के बहाने बात निकली है तो आईए एक संकल्प लें पेड़ों को लगाने का और वनों को बचाने का।

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गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

अफजल...खुश तो बहुत होगा आज !


13 दिसंबर 2001 को भारत की संसद पर बेखौफ आतंकी हमला करते हैं...और लोकतंत्र के मंदिर में खून की होली खेलते हैं। हमले का मुख्य आरोपी अफजल गुरु कानून के शिकंजे में भी आ जाता है...और घटना के 4 साल बाद 2005 में देश का सर्वोच्च न्यायालय मुख्य आरोपी अफजल गुरु की फांसी पर मुहर भी लगा देता है...लेकिन इसके बाद भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर पर हमला करने वाले को फांसी नहीं दी जाती है। अफजल की फांसी पर मुहर लगने के बाद सात साल में सरकार अफजल की फांसी पर कोई फैसला नहीं ले पाती है। सात साल से अफजल की फाइल दिल्ली सरकार, गृह मंत्रालय और राष्ट्रपति भवन के बीच झूल रही है। फांसी पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने के बाद 2005 से 2012 तक के सात साल अपने आप में कई सवाल खड़े करते हैं कि आखिर क्यों अफजल गुरु की फांसी पर सरकार और राष्ट्रपति भवन कोई फैसला क्यों नहीं ले पाया। दिल्ली में पिछले 14 सालों से कांग्रेस की सरकार है तो केन्द्र की सत्ता 2004 के बाद से कांग्रेस नीत यूपीए सरकार के पास है तो वहीं राष्ट्रपति की कुर्सी पर पहले प्रतिभा देवी सिंह पाटिल और अब प्रणव मुखर्जी आसीन है...लेकिन अफजल की फांसी की फांस को खत्म करने के लिए किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। ये हाल उस अफजल का है जो संसद पर हमले का आरोपी है और इसी संसद में सारे मंत्री और सांसद बैठते हैं तो इसके बाजू में राष्ट्रपति भवन है। फांसी पर मुहर लगने के सात साल बाद भी अफजल फांसी न हुई न सही...देशवासियों को उम्मीद है कि देर सबेर अफजल का किस्सा जरूर खत्म होगा...लेकिन 11वीं बरसी पर जब संसद पर हमले में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि दी जा रही थी और शहीदों के परिजन उन्हें याद कर आंसू बहा रहे थे तो ऐसे में एक केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ये बयान देते हैं कि अफजल को फांसी की बजाए उम्रकैद हो तो सोचिए क्या गुजरी होगी उन लोगों पर जिन्होंने अपनों को इस हमले में खोया है। बेनी बाबू शहीदों के परिजनों का दर्द न बांट सको कोई बात नहीं कम से कम उनके जख्मों में नमक तो मत छिड़को...ये बात शायद आप भूल गए कि ये वही अफजल है जिसने उस संसद में अपने साथियों के साथ हमला किया था जहां आप जैसे महानुभाव (जिन्हें जनता जाने क्यों चुन लेती है) बैठते हैं। खैर आप ये दर्द समझते तो ऐसा बयान नहीं देते...वो भी संसद पर हमले के आरोपी पर क्योंकि जो लोग शहीद हुए उनमें आपका कोई अपना नहीं था न। वैसे भी आप को आदत है विवादों में रहने की...महंगाई बढ़ती है तो आप खुश होते हैं...सलमान खुर्शीद 71 लाख का घालमेल करते हैं...तो आप कहते हैं कि 71 लाख का घालमेल कोई बड़ी बात नहीं...यहां तक तो ठीक था...लेकिन आपने तो हद ही कर दी 11वीं बरसी पर आप अफजल की फांसी पर सवाल खड़ा कर देते हैं। बेनी बाबू आपके इस बयान से देश की जनता तो नहीं लेकिन अफजल गुरु जरूर बहुत खुश होगा। अब ये आपका बड़बोलापन था या आपके बहाने कांग्रेस का ये शिगूफा छोड़ने की कोशिश कि अफजल के मामले में सरकार का रूख नरम है और इस बहाने जनता का मिजाज भांप लिया जाए और अल्पसंख्यक वोटों को साध लिया जाए तो ये आपकी और आपकी पार्टी की बड़ी भूल होगी...क्योंकि हिंदुस्तान की जनता चाहे वो किसी भी जाति या समुदाय से हो भ्रष्टाचार और घोटालों से घिरी आपकी सरकार और नेताओं को तो एक बार को माफ कर दे लेकिन देश की संप्रभुता पर हमला करने वाले अफजल जैसे आतंकी और इनकी पैरवी करने वाले आप जैसे नेताओं को कभी माफ नहीं करेगी। उम्मीद करते हैं कि अफजल के मामले में सरकार नींद से जागेगी और देश की संप्रभुता पर चोट करने वाले को उसके अंजाम तक पहुंचाने में अब औऱ देर नहीं करेगी...और सही मायने में यही संसद हमले में शहीद हुए जांबाजों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। सभी शहीदों को 11वीं बरसी पर मेरा नमन औऱ विनम्र श्रद्धांजलि।

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बुधवार, 12 दिसंबर 2012

अब पछताए होत क्या...जब चिड़िया चुग गयी खेत


देश में चुनावी मौसम शबाब पर है...हिमाचल प्रदेश में मतदान हो चुका है तो गुजरात में मतदान की उल्टी गिनती शुरु हो चुकी है। इसके साथ ही आने वाले साल 2013 में नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है...तो 2014 में आम चुनाव के साथ ही 6 राज्यों में विधानसभा प्रस्तावित है। ऐसे में भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोप से जुड़े आरोपों से घिरी होने के साथ ही महंगाई और आर्थिक सुधारों से जुड़े फैसलों को लेकर सवालों में घिरी केन्द्र सरकार इस जुगत में है कि कैसे वोटों का गणित बैठाया जाए ताकि चुनाव में अपनी डूबती नैया को तारा जाए। कैश सब्सिडी योजना का ऐलान कर सरकार ने पहला दांव खेला तो चुनाव आयोग के दखल के बाद सरकार को गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इस योजना पर रोक लगानी पड़ी। इसके बाद गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए पहले दौर के मतदान से दो दिन पहले पैट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या 6 से बढ़ाकर 9 करने के संभावनाओं को बल देकर मतदाताओं को रिझाने का फिर प्रयास किया...लेकिन यहां भी चुनाव आयोग ने सख्ती दिखाई तो मोइली साहब सफाई देते नजर आए कि सरकार ने अभी इस पर कोई फैसला नहीं किया है। इससे पहले भी केन्द्र की यूपीए सरकार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने की घोषणा कर चुकी...यानि वोटरों को लुभाने की कोशिश सरकार पहले भी करती नजर आई है। सरकार भले ही इन सब को लेकर अपने इरादों पर सफाई देती हुई नजर आ रही हो...लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर सरकार ने घोषणाओं के लिए चुनाव से पहले का वक्त क्यों चुना ? जाहिर है भ्रष्टाचार, घोटालों के साथ ही महंगाई और आर्थिक सुधारों के अपने फैसलों को लेकर सरकार सवालों के घेरे में है और शायद सरकार में शामिल लोगों को ये डर है कि कहीं इसका खामियाजा चुनाव में न भुगतना पड़े...और शायद चुनाव से ऐन पहले कुछ हद तक सरकार घोषणाएं कर जनता के गुस्से को कम करने की कोशिश में है। बात सिर्फ हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनाव तक होती तो शायद सरकार इतनी नहीं घबराई होती...लेकिन इन दो राज्यों के चुनाव से शुरु हो रहा चुनावी मौसम सरकार की परेशानी का सबब बना हुआ है। 2013 की अगर बात करें तो 2013 में दिल्ली के साथ ही मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और नागालैंड में विधानसभा चुनाव होना है...और ये चुनाव तय करेंगे कि 2014 के आम चुनाव यूपीए की हैट्रिक होगी या फिर बंधेगा यूपीए का बोरिया बिस्तर...ऐसे में ये बात कांग्रेस नीत यूपीए सरकार अच्छे से जानती है कि कहीं भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों के साथ ही महंगाई और आर्थिक सुधारों के नाम पर लिए गए सरकार के फैसले कहीं चुनाव में उसपर भारी न पड़ जाए...इसलिए ही चुनाव से पहले सरकार एक एक कर घोषणाएं कर जनता की नाराजगी दूर करने की पूरी कोशिश कर रही है। 2013 के बाद 2014 में आम चुनाव के साथ ही 6 राज्यों आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव होना है...यानि कि कांग्रेस का इम्तिहान 2014 में सिर्फ आम चुनाव तक ही नहीं बल्कि उसके साथ ही प्रस्तावित 6 राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी होगा। बहरहाल चुनावी मौसम की शुरुआत तो हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव के साथ हो गयी है...और 20 दिसंबर की तारीख जब हिमाचल और गुजरात के नतीजे आएंगे ये तय करेगी कि सरकार के लिए 2013 के साथ ही 2014 की राह कितनी मुश्किल होने वाली है और जनता के फायदे की घोषणाएं कर अपनी राह आसान करने की कोशिश कर रही कांग्रेस नीत यूपीए सरकार की कवायद का जनता पर कितना असर होता है...लेकिन इस सब को देखते हुए इतना तो कहा ही जा सकता है कि...अब पछताए होत क्या...जब चिड़िया चुग गयी खेत।

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मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

आरक्षण की फांस...माया-मुलायम ने अटकाई सांस


एफडीआई के हो हल्ले में खोया प्रमोशन में आरक्षण का जिन्न एक बार फिर से बाहर आ गया है...और फिर से बढ़ गयी हैं सरकार की मुश्किलें। सरकार की एफडीआई की डूबती नैया तो सपा और बसपा ने पार लगा दी...लेकिन प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर तो सपा और बसपा ही सरकार की नैया डुबाने की पूरी तैयारी में है। सरकार के लिए राहत की बात ये है कि सपा को छोड़ अधिकतर राजनीतिक दल इस मुद्दे पर सरकार का न तो विरोध करने के मूड में दिखाई दे रहे हैं और न ही इस मुद्दे को लेकर जल्दबाजी में है। लेकिन सरकार की मुश्किल ये भी है कि क्योंकि ये संविधान संशोधन विधेयक है ऐसे में सरकार को इसे पास कराने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी यानि की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा का साथ भी उसे चाहिए होगा...हालांकि भाजपा इसका विरोध नहीं कर रही है लेकिन भाजपा ने प्रमोशन में आरक्षण संविधान संशोधन विधेयक के ड्राफ्ट सामने आने के बाद ही अपने पत्ते खोलने की बात कही है...यानि की भाजपा ने सरकार की सांसे अटका कर जरूर रखी हुई हैं। इसके साथ ही सरकार को अपने सहयोगियों खासकर सपा को तो हर हाल में मनाना ही होगा लेकिन सपा के तेवर फिलहाल ठंडे पड़ते नहीं दिख रहे हैं। सरकार सपा को मनाने में लगी है तो यूपी में अपनी खोई राजनीतिक जमीन को इस मुद्दे के सहारे वापस पाने की कोशिश में लगी बसपा की जल्दबाजी सरकार के लिए सिरदर्द बनी हुई है। मायावती ने तो सरकार को तीन दिन का अल्टिमेटम तक दे दिया है...सरकार भी प्रमोशन में आरक्षण पर संविधान संशोधन लाने के मूड में है और शायद ये आश्वासन सरकार ने माया को एफडीआई पर साथ देने के बदले दिया भी था...लेकिन सपा के विरोध सरकार की राह में सबसे बड़ी बाधा है। मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में सपा सांसद नरेश अग्रवाल और बसपा सांसद अवतार सिंह के बीच हाथापाई को ज्यादा दिन नहीं हुए हैं और ये साबित करने के लिए काफी है कि प्रमोशन में आरक्षण को लेकर सपा और बसपा अपने अपने फायदे के लिए किस हद तक जा सकते हैं। जाहिर है दोनों के अपने अपने राजनितिक हित हैं...और 2014 के आम चुनाव के मद्देनजर दोनों दल इसको लेकर कुछ ज्यादा ही संजीदा भी हैं लेकिन दोनों की सोच इसको लेकर अलग अलग है। बसपा जहां इसके लागू होने पर इससे लाभांवित होने वाले जाति विशेष के लोगों वोट हासिल करने की कोशिश में है तो सपा इसके लागू होने की दशा में इससे प्रभावित होने वाले सरकारी कर्मचारियों और उनके परिजनों के वोटों(जिनकी संख्या उत्तर प्रदेश में तकरीबन 20 लाख के आस पास है) को साधने की जुगत में है। फिलहाल वॉलमार्ट रिपोर्ट पर संसद नें हंगामा मचा है...जो शांत होने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं...यानि कि एक बार फिर से प्रमोशन में आरक्षण संविधान संशोधन विधेयक का मसला टलता दिखाई दे रहा है...जो मायावती बिल्कुल नहीं चाहती। बहरहाल मनमोहन के लिए एक बार फिर से एमफैक्टर मुश्किल का सबब बना हुआ हैऔर एफडीआई पर सरकार को तारने वाले ये एम फैक्टर कहीं मनमोहन सरकार पर भारी न पड़ जाए।
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सोमवार, 10 दिसंबर 2012

125 करोड़ में बिक गया भारत ???


एफडीआई का भूत सरकार का पीछा छोड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। एफडीआई को लेकर पहले से ही सवालों में घिरी सरकार अब वॉलमार्ट रिपोर्ट को लेकर कठघरे में आ गई है। सरकार पर एफडीआई लागू करने को लेकर विदेशी ताकतों के दबाव में काम करने का आरोप लगा था...जैसे तैसे सरकार ने बड़ी मुश्किल से सब कुछ मैनेज करके दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में एफडीआई को मंजूरी दिलाकर एफडीआई लागू होने का रास्ता साफ किया ही था कि अमेरीकी सीनेट में वॉलमार्ट की रिपोर्ट में भारत के बाजार में प्रवेश के लिए लॉबिंग के नाम पर 125 करोड़ रूपए खर्च करने की खबर ने एक बार फिर से सरकार की नींद हराम कर दी है। हालांकि साढ़े चार हजार करोड़ डॉलर के सालाना टर्न ओर वाले कंपनी वॉलमार्ट को उम्मीद है कि भारत का बाजार पांच हजार करोड़ डॉलर का है...ऐसे में अगर वॉलमार्ट 125 करोड़ रूपए सिर्फ लॉबिंग पर खर्च करता है तो वॉलमार्ट के लिए ये कोई घाटे का सौदा नहीं है। वॉलमार्ट भारत में इसी शर्त पर प्रवेश कर सकता है जब एफडीआई को भारत सरकार लागू करे। भारत सरकार ने जिस तरह एफडीआई को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दिखाई थी...और संसद के दोनों सदनों में इसे पारित करवाने में पूरी ताकत लगा दी थी...उससे ये सवाल भी खड़ा होता है कि 125 करोड़ की जो राशि वॉलमार्ट ने खर्च की है...उसमें से कुछ राशि क्या सरकार में शामिल किसी व्यक्ति या किसी भारतीय राजनेता को भी मिली है...जो भारत सरकार से वालमार्ट के लिए लॉबिंग कर रहा था...और बिचौलिये की भूमिका में था और इसी को लेकर सरकार पर एफडीआई को हर हाल में भारत में लागू करने का दबाव था..?  ये सवाल इसलिए भी खड़ा होता है क्योंकि वॉलमार्ट की रिपोर्ट के अनुसार 2008 से 2012 तक खर्च की गई 125 करोड़ की राशि में से सितंबर 2012 में खत्म हुई अंतिम तिमाही में भारत में निवेश के मुद्दे पर चर्चा के लिए लॉबिंग पर 10 करोड़ रूपए खर्च किए गए10 करोड़ रूपए किसे मिले इस पर भी सवाल खड़ा होता है। माना कि वॉलमार्ट ने अमेरिकी कानून के मुताबिक लॉबिंग की और ये सही है...औऱ वॉलमार्ट ने ये लॉबिंग अपने फायदे के लिए की...क्योंकि साढ़े चार हजार करोड़ डॉलर के सालाना टर्नओवर वाली कंपनी को भारत जैसे बड़े बाजार में घुसना है जहां का बाजार उसके मुताबिक 5 हजार करोड़ डॉलर का है तो वॉलमार्ट क्या कोई इस बाजार में घुसने के लिए उतावला होगा और 125 करोड़ जैसे रकम उसके लिए मामूली होगी। लेकिन सवाल यहां ये भी खड़ा होता है कि लॉबिंग भारत में गैर कानूनी है और अगर वॉलमार्ट भारत में आता है तो वह शुरुआत में फिलहाल सिर्फ 18 शहरों में ही अपना कारोबार कर पाएगा...लेकिन क्या वॉलमार्ट का सिर्फ 18 शहरों में कारोबार कर खुश रहना चाहेगा...जाहिर है नहीं और ये निश्चित ही वॉलमार्ट के लिए घाटे का सौदा होगा...क्योंकि वॉलमार्ट सिर्फ इन 18 शहरों में धंधा करने नहीं बल्कि 5000 करोड़ के भारतीय बाजार पर कब्जा जमाने की फिराक में है। ऐसे में क्या वॉलमार्ट भारत में प्रवेश करने के बाद दूसरे शहरों और उन राज्यों में अपना व्यापार बढ़ाने के लिए उन राज्यों की सरकारों से लॉबिंग का प्रयास नहीं करेगा। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश की अगर बात करें जहां सपा की सरकार है और सपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में काबिज है...क्या वॉलमार्ट नहीं चाहेगा कि उत्तर प्रदेश जहां आधा दर्जन से ज्यादा शहरों की आबादी 10 लाख से अधिक है वहां अपनी दुकानें सजाई जाएं...ऐसे में क्या वो सपा सरकार से लॉबिंग की कोशिश नहीं करेगा और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह के चरित्र से हर कोई वाकिफ है कि वो कब कहां डोल जाएं कोई नहीं जानता...क्या गारंटी है कि वे वॉलमार्ट के प्रलोभन में नहीं आएंगे...? वैसे भी मुलायम सिंह एफडीआई के विरोध का नाटक तो खूब कर रहे हैं लेकिन संसद के दोनों सदनों में वॉक आउट कर सरकार का फायदा पहुंचा चुके हैं। इसी तरह अन्य राज्य जो अभी एफडीआई का खुलकर विरोध कर रहे हैं...क्या गारंटी है कि वॉलमार्ट के प्रलोभन में नहीं आएंगे...? इसका प्लस पाइंट राज्य सरकारों के लिए ये है कि इसका फैसला करने के लिए वे स्वतंत्र हैं कि वॉलमार्ट जैसी कंपनियों को वे अपने राज्य में कारोबार करने की अनुमति दें या न दें। खैर ये तो बाद की बातें हैं फिलहाल पहला सवाल तो वॉलमार्ट रिपोर्ट के बाद सरकार पर उठ खड़ा हुआ है कि आखिर इस 125 करोड़ की लॉबिंग का पूरा राज क्या है...? क्या इसके तार भारत के किसी राजनेता या सरकार में शामिल किसी व्यक्ति से जुड़े हुए हैं...जिसने इसमें बिचौलिए की भूमिका निभाई हो..? देर सबेर इस पर से भी पर्दा हट ही जाएगा...फिलहाल तो विपक्ष ने इस पर होमवर्क शुरु कर सरकार की नींद हराम करने का काम तो शुरु कर ही दिया है...जो साफ ईशारा कर रहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र का बचा हुआ वक्त भी हंगामे की भेंट चढ़ने के पूरे आसार हैं।

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रविवार, 9 दिसंबर 2012

बधाई सोनिया जी- जन्मदिन की नहीं अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस की


9 दिसंबर बड़ी ही महत्वपूर्ण तारीख है...दुनिया इसे अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस के रूप में मनाती हैं...दुनिया भर में इस मौके पर खूब आयोजन हुए और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की और इसे खत्म करने का संकल्प लिया गया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने सभी देशों से संयुक्त राष्ट्र के भ्रष्टाचार के खिलाफ समझौते में हस्ताक्षर करने की साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की कसम खाने की सभी से अपील की। भारत की अगर बात करें तो ट्रांस्पेरेंसी इंटरनेश्नल की 2012 की सूची में भारत 176 देशों की सूची में 94वें स्थान पर है। भारत में भ्रष्टाचार किस कदर अपनी जड़ें पसार रहा है इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। देश की वर्तमान यूपीए 2 सरकार को ही देख लें तो भ्रष्टाचार और घोटालों के सारे रिकार्ड ये सरकार तोड़ने पर आमादा है। बात भ्रष्टाचार औऱ यूपीए सरकार की हो रही है तो यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी तो कैसे भूल सकते हैं। वो भी आज के दिन जब कि सोनिया गांधी 66 साल की हो गई हैं। दरअसल आज 9 दिसंबर को सोनिया गांधी का जन्मदिन भी होता है और 9 दिसंबर को ही अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस भी मनाया जाता है। सोनिया के जन्मदिन पर 10 जनपथ पर खूब आतिशबाजी हुई और कांग्रेसियों ने जश्न भी खूब मनाया और मिठाइयां भी बांटी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने और उनके मंत्रिमंडल के सभी मंत्रियों ने सोनिया को जन्मदिन की बधाई दी। कांग्रेस नेताओं में तो मानो होड़ लगी थी कि कौन पहले सोनिया को जन्मदिन की शुभकामनाएं देगा। कुछ एक समझदार नेताओं ने तो एक दिन पहले ही सोनिया को पैदाईश की मुबारकबाद दे दी। लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि हिमाचल और गुजरात चुनाव में प्रचार के दौरान सोनिया गांधा से लेकर प्रधानमंत्री से लेकर कांग्रेसी नेता भ्रष्टाचार को कैंसर बताते हुए इसके खिलाफ खूब बोले लेकिन अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस पर किसी भी नेता के श्रीमुख से एक शब्द तक नहीं निकला। बेहतर होता सोनिया गांधी अपने जन्मदिन की बजाए अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस मनाती और यूपीए अध्यक्ष होने के नाते यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रियों और कांग्रेसी नेताओं को उनका जन्मदिन मनाने की बजाए भ्रष्टाचार विरोधी दिवस मनाने को कहती और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का शंखनाद करने का संकल्प सबको दिलवाती...लेकिन ऐसा नहीं हुआ। होती भी कैसे ये तो वही सोनिया है जो भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अपने मंत्रियों को प्रमोशन देती हैं...सलमान खुर्शीद तो याद ही होंगे आपको भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे थे...चारों तरफ खूब आलोचना हो रही थी...लेकिन सोनिया ने खुर्शीद को कानून मंत्री से प्रमोट कर विदेश मंत्री का ओहदा दे दिया। सोनिया जी पैदाईश की हमारी तरफ से भी ढ़ेरों शुभकामनाएं...लेकिन एक अनुरोध है...भ्रष्टाचार के खिलाफ आप चुनावी रैलियों में जितने विश्वास से भाषण पढ़ती हैं...उतनी ही प्रतिबद्धता इसके खिलाफ लड़ाई में भी दिखाएं तो मानें। कथनी और करनी का फर्क देश की जनता भी समझती हैं...देर सबेर चुनाव में जनता इसका जवाब भी आपको दे ही देगी...हम तो यही कहेंगे कि भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देना बंद करें और कथनी को करनी में बदल कर अपने जन्मदिन की तारीख 9 दिसंबर को सार्थक करें। सोनिया जी एक बार फिर से शुभकामनाएं इस बार जन्मदिन की नहीं अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस की।

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