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शनिवार, 27 अप्रैल 2013

ये हंसी ठहाके में न बदल जाए..!

विपक्ष के हंगामे के चलते संसद की कार्यवाही ठप होने पर हमारे देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी की चुप्पी टूटती है। मनमोहन सिहं कहते हैं कि सदन की कार्यवाही ठप करके हम लोकतांत्रिक व्यवस्था का मजाक बना रहे हैं। मनमोहन सिंह आगे कहते हैं कि पूरा विश्व हम पर हंस रहा है। चीन के साथ संबंधों पर भी मनमोहन सिंह की चुप्पी टूटती है और वे कहते हैं कि भारत इस मसले को तूल नहीं देना चाहता।
दो अलग अलग मुद्दों पर प्रधानमंत्री के बयान को समझने की जरूरत है लेकिन देशवासियों को नहीं खुद हमारी देश की सरकार को...बल्कि खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को..!
प्रधानमंत्री जी कम से कम मैं तो आपकी पहली बात से पूरी तरह सहमत हूं कि दुनिया हम पर हंस रही है..! लेकिन दुनिया सदन में हंगामे के चलते नहीं हंस रही बल्कि आपके नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के फैसलों और देश की सुरक्षा से जुड़े अहम मुद्दों पर सरकार के लचर रवैये पर हंस रही है..!  दुनिया तक जब आपके ये बयान पहुंचेगा कि भारत सरकार के प्रधानमंत्री कहते हैं कि हम चीन के मसले को तूल नहीं देना चाहते तो शायद ये हंसी ठहाकों में बदल जाए..!
चीन हमारी सीमा में 19 किलोमीटर तक दाखिल हो जाता है। चीनी सैनिक हमारी जमीन में तंबू गाढ़कर हमें ही मुंह चिढ़ा रहे हैं और आप कहते हैं कि हम मसले को तूल नहीं देना चाहते। आप क्या उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब चीन की  घुसपैठ चीन सीमा से लगे हमारे क्षेत्र में कब्जे तक पहुंच जाएगी और चीन उस पर आपना आधिपत्य जताने लगेगा..? वो तो चीन अभी भी कर रहा है..!  खैर आपसे तो तब भी मसले को तूल न देने जैसे बयान की ही उम्मीद है..! जब आप पाकिस्तानी सैनिकों की हमारी सीमा में घुसकर हमारे सैनिकों के सिर कलम करने की घटना पर मसले को तूल देने की बजाए जयपुर में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को शाही डिनर कराने में विश्वास रखते हैं तो आपसे अब चीन के मसले पर क्या उम्मीद की जा सकती है..?
रही बात संसद में विपक्ष के हंगामे की तो निश्चित तौर पर ये भी एक गंभीर विषय है। संसद में जहां पर एक घंटे की कार्यवाही में लाखों रुपए खर्च होते हैं वहां अहम मुद्दों पर, जनता से जुड़े मुद्दों पर बहस होनी चाहिए। सदन की कार्यवाही को लेकर प्रधानमंत्री होने के नाते आपकी चिंता जायज भी है लेकिन देश सुरक्षा से जुड़े मुद्दे पर आपका उसे तूल न देने की बात करना समझ से परे है..!
आखिर कब तक आप धैर्य रखेंगे...कभी पाक की नापाक हरकतों पर तो कभी चीन के आंखे तरेरने पर..! मनमोहन सिंह जी याद रखिए सबसे पहले सीधे पेड़ों को ही काटा जाता है इसलिए दुनिया को भारत का इतना सीधापन न दिखाएं कि कभी पाकिस्तान तो कभी चीन हम पर आरी चलाने की हिम्मत करे..!

deepaktiwari555@gmail.com

सोमवार, 22 अप्रैल 2013

लो, फिर बोले गृहमंत्री शिंदे..!


दिल्ली में पांच साल की मासूम से दरिंदगी पर संसद में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को सुनकर सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव का बयान याद आ गया। ज्यादा दिन पुरानी बात नहीं है जब उत्तर प्रदेश में पुलिस अधिकारी की हत्या के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने राज्य में बढ़ती आपराधिक वारदातों के लिए जब सपा सरकार को कठघरे में खड़ा किया था तो मुलायम सिंह यादव का जवाब कुछ यूं था...सूप बोले तो बोले, छलनी भी बोले जिसमें बहत्तर छेद। मायावती की सरकार के कई मंत्री और विधायक रेप, भ्रष्टाचार जैसे मामलों में जेल की सजा काट रहे हैं, ऐसे में उन्हें सपा सरकार के बारे में बोलने का कोई हक नहीं है। मुलायम का बयान ये दर्शा रहा था कि वे राज्य में हो रही आपराधिक घटनाओं को जायज ठहरा रहे थे..! (जरूर पढ़ें- छलनी भी बोले जिसमें 72 छेद..!)।
5 साल की मासूम से दरिंदगी और दिल्ली में रेप की बढ़ती घटनाओं पर संसद में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे का बयान भी कुछ ऐसा ही था..! शिंदे बोले कि रेप की घटनाएं दूसरे राज्यों में भी होती हैं। अब शिंदे के इस शर्मनाक बोल के क्या मतलब निकालें जाएं..? शिंदे के बयान से तो ये लगता है कि जैसे वे देश के गृहमंत्री न होकर सिर्फ दिल्ली के गृहमंत्री हैं और राजधानी के अलावा दूसरे राज्यों में क्या हो रहा है उससे इन्हें कोई मतलब नहीं है..! शिंदे का बयान क्या ये भी नहीं दर्शाता कि देश के दूसरे राज्यों में भी तो बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं तो दिल्ली में भी बलात्कार हो रहे हैं तो क्या गलत है..?
मेरे कुछ मित्रों को मुझसे इस बात की शिकायत रहती है कि मैं बेवजह शिंद के खिलाफ कलम घिसता हूं..! अब इऩ मित्रों से सवाल है कि जब आपके प्रिय गृहमंत्री 5 साल की मासूम से दरिंदगी पर महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा की बजाए इसकी तुलना दूसरे राज्यों में हो रही रेप की घटनाओं से कर रहे हैं तो इसे क्या कहा जाए..? देश के गृहमंत्री से जब लोग महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने की उम्मीद लगाए बैठे हैं तब गृहमंत्री साहब दूसरे राज्यों में रेप की घटनाओं का जिक्र कर जिम्मेदारी से अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहे हों तो इसे क्या कहा जाए..? (जरूर पढ़ें- क्यों पड़े हो शिंदे के पीछे..?)
खैर छोड़िए शिंदे के प्रेमियों को हर बार की तरह यहां भी शिंदे के बोल अनमोल ही लग रहे होंगे। शिंदे के प्रति उनके इस अगाध प्रेम की वजह तो वे ही जानते होंगे लेकिन क्या हम देश के गृहमंत्री से इस तरह के बेतुके और शर्मनाक बयान की उम्मीद कर सकते हैं..!
गृहमंत्री की कुर्सी पर आसीन होने के बाद से ही शिंदे अपने अनमोल वचनों की वजह से ज्यादा चर्चा में रहे हैं..! संसद में मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को श्री और मिस्टर कहकर संबोधित करने का मामला हो या फिर संसद में महाराष्ट्र के भंडारा की रेप पीड़ित तीनों सगी बहनों का नाम लेकर उनकी पहचान जाहिर करने का मामला...शिंदे की जुबान लगातार फिसलती रही। बफोर्स घोटाले की तरह कोयला घोटाले को भूल जाने के शिंदे के बोल हों या फिर हैदराबाद धमाकों पर शिंदे का बयान...शिंदे खुद के साथ ही अपने पद और गरिमा का भी मखौल उड़ाते रहे..!
एक बार फिर से उऩके अनमोल बोलों ने उनकी सोच पर सवालिया निशान लगा दिया है और फिर से ये सोचने को मजबूर कर दिया है कि क्या शिंदे गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठने लायक हैं..?

deepaktiwari555@gmail.com

अंबानी को सुरक्षा आम आदमी को क्यों नहीं..?


सुबह के अखबार में एक तरफ दिल्ली में 5 साल की मासूम के साथ दरिंदगी के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए जाने की जरूरत पर बल देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का बयान था तो दूसरी तरफ अरबपति कारोबारी रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी को सरकार का जेड श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराने का सरकार के फैसले की खबर।
विडंबना देखिए महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा के लिए सरकार और कड़े कदम उठाए जाने की बात करती है...वो भी तब जब 16 दिसंबर के बाद एक पांच साल की मासूम का जीवन नर्क हो जाता है और वीआईपी सुरक्षा पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी अरबपति कारोबारी को जेड श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराने का फैसला ले लेती है..!
ये जाहिर करता है कि सरकार को देश की आवाम की सुरक्षा की चिंता नहीं है...महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा की चिंता नहीं है लेकिन अरबपति कारोबारियों की सुरक्षा की खूब चिंता है..! वीआईपी सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ जवानों को तुरंत तैनात होने का आदेश दे दिया जाता है। हो हल्ला मचने पर सरकार भले ही बचाव में आते हुए सुरक्षा का खर्च मुकेश अंबानी के द्वारा उठाए जाने की दलील देकर चारों तरफ हो रही किरकिरी से बचने की कोशिश करती है लेकिन इसके बाद भी जेड श्रेणी सुरक्षा के तहत 28 हथियारबंद जवान तो 24 घंटे अंबानी के साथ तैनात रहने के सवाल पर कुछ नहीं बोलती..!
इसका मतलब तो यही निकलता है कि अंबानी ने सुरक्षा के खर्च उठाने की पेशकश करके सरकार से सीआरपीएफ के उन 28 जवानों को खरीद लिया है जो अब हरदम उनकी सुरक्षा में नात रहेंगे..! सरकार की सोच देखिए वे सीना चौड़ा करके कहते हैं कि अंबानी सुरक्षा का खर्च खुद उठा रहे हैं तो जेड श्रेणी सुरक्षा देने में क्या हर्ज है..!
क्या एक अरबपति कारोबारी अगर सुरक्षा का खर्च खुद उठा सकता है तो अपने ही खर्च पर निजि सुरक्षाकर्मियों को सुरक्षा के लिए नहीं रख सकता लेकिन ऐसा नहीं है..! सरकार को भी सुरक्षा के लिए अपने 28 सशस्त्र जवानों को अंबानी के साथ व्यस्त रखने में कोई आपत्ति नहीं है..! आखिर क्यों..? इसका जवाब सरकार के किसी नुमाइंदे के पास नहीं है..!
महिलाएं और बच्चियां असुरक्षित रहें तो रहें...लेकिन अंबानी की सुरक्षा में 28 सशस्त्र जवानों को तैनात करना सरकार के लिए ज्यादा जरूरी है..! बात सिर्फ महिलाओं और बच्चियों की ही नहीं है। देशभर में अपराधों का ग्राफ लगातार चढ़ रहा है। किसी घटना के बाद पुलिस बल की कमी का बहाना पुलिस विभाग के आला अफसरों के साथ ही सरकार के नुमाइंदों की जुबान के पहले शब्द हैं लेकिन वीआईपी सुरक्षा देने के अपने फैसले का सरकार खुलकर बचाव करने से पीछे नहीं हटती..! इन पर तो सर्वोच्च न्यायालय के नोटिस का भी कोई असर नहीं होता है। कोर्ट वीआईपी सुरक्षा के औचित्य पर सवाल खड़ा करता है और सरकार इसके बाद भी मुकेश अंबानी जैसे अरबपति कारोबारी को जेड श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराने के फैसले लेने में नहीं हिचकती..!
पूरे देश की छोड़िए राजधानी दिल्ली की ही अगर बात करें तो यहां पर वाईआपी सुरक्षा में आठ हजार से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात है जब्कि आपराधिक वारदातों की तफ्तीश के लिए सिर्फ 3400 पुलिसकर्मी ही हैं। वीआईपी सुरक्षा में होने वाला खर्च सुनेंगे तो शायद आपके पैरों तले जमीन खिसक जाए..! वीआईपी सुरक्षा में सरकार सालाना करीब साढ़े तीन सौ करोड़ से ज्यादा रूपए खर्च कर देती है...जिसमें से राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा का खर्च करीब 40 करोड़ है।
वैसे भी सरकार अरबपति कारोबारियों के हितों की रक्षा नहीं करेगी..उनको सुरक्षा मुहैया नहीं करेगी तो किसे कराएगी..?
आम चुनाव करीब है...चुनाव लड़ने के लिए राजनीतिक दलों को पैसा भी तो चाहिए..! अरबपति कारोबारी कम से कम पार्टी फंड में करोड़ों रूपया तो दे देंगे...एक आम आदमी तो नेताओं के लिए ये कर नहीं सकता..! फिर क्यों करे सरकार आम आदमी की सुरक्षा की चिंता..? क्यों न मुहैया कराए मुकेश अंबानी जैसे अरबति कारोबारियों को जेड श्रेणी की सुरक्षा..?

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रविवार, 21 अप्रैल 2013

क्या इनका काम सिर्फ निंदा करना है..?


महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाओं का ग्राफ आसमान छू रहा है...हर घंटे बलात्कार की एक नयी घटना सामने आ रही है..! विकृत मानसिकता के लोग दरिंदगी की हदें पार करते हुए अपनी हवस की भूख मिटाने के लिए महिलाओं और बच्चियों की जिंदगी को नर्क बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। अपराधियों पर लगाम कसने के लिए तैनात पुलिस अपनी फरियाद लेकर थाने पहुंचने वालों के साथ ही अपराधियों जैसा सलूक करती है तो सरकार में बैठे जनता के नुमाइंदे हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं..!
अति होने पर जनाआक्रोश फूटता है तो सरकार की भी नींद टूटती है। पुलिस को दोषियों को पकड़ने का अल्टीमेटम दिया जाता है और पीड़ित को दुत्कारने वाली पुलिस हरकत में आते हुए अपराधियों को गिरफ्तार करने में पूरी ताकत लगा देती है लेकिन ये तब होता है जब 16 दिसंबर जैसी या फिर 5 साल की मासूम के साथ बलात्कार और दरिंदगी की घटना सामने आती है। (जरूर पढ़ें- सिर्फ तारीख बदली...तस्वीर नहीं...!)
ऐसी ही किसी दरिंदगी के बाद हमारे माननीय राष्ट्रपति का मन आहत हो जाता है..! वे घटना पर दुख प्रकट करते हुए घटना की निंदा करते हैं..! अक्सर मौन रहने वाले हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी दुखी हो जाते हैं...वे भी घटना की निंदा करते हैं..! महिलाओं की सुरक्षा के लिए अभी बहुत काम किए जाने की बात करते हैं...संवेदनशील होने की बात करते हैं..! लेकिन कब..? इसका जवाब किसी के पास नहीं है..?
वजह साफ है समय गुजरने के साथ लोग अपनी रोजी रोटी के जुगाड़ में जुट जाते हैं तो सरकार भी सब भूलकर चैन की नींद सो जाती है..! फिर ऐसी ही किसी दरिंदगी पर जब लोगों का खून खौल उठता है तो फिर से घटना की निंदा की जाती है...महिला सुरक्षा की बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं...दोषियों को हर हाल में सख्त सजा दिलाने के साथ ही पीड़ित को इंसाफ दिलाने की बातें की जाती हैं लेकिन नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात..!
क्या हमारे माननीय 16 दिसंबर जैसी या फिर 5 साल की मासूम के साथ दरिंदगी जैसे किसी घटना के घटित होने के बाद सिर्फ इसकी निंदा करने के लिए ही हैं..?  क्या महिलाओं और बच्चियों को सुरक्षित वातावरण देना इनकी जिम्मेदारी नहीं है..?  जाहिर है सरकार में शामिल लोग अगर चाहें तो दोषियों को तय समय सीमा के अंदर सजा दिलाने के लिए कड़े कानून बनाने की दिशा में काम कर सकते हैं ताकि अपराधियों को जल्द से जल्द उसके अंजाम तक पहुंचाने का रास्ता साफ किया जा सके लेकिन कड़े कानून बनाने की जब बात आती है तो उसके लिए कमेटियां गठित कर दी जाती हैं...आयोग बनाए जाते हैं और उनकी रिपोर्ट का इंतजार किया जाता है। रिपोर्ट आती भी है तो उसके बिंदुओं को लेकर कैबिनेट में मतभेद उभर कर सामने आते हैं..!
एंटी रेप लॉ जैसा कोई नया कानून सामने आता है तो उसमें भी ऐसे दरिंदों को फांसी की सजा देने के लिए शर्तें रख दी जाती हैं..! अब नये एंटी रेप लॉ को ही देख लें...इसकी धारा-376 ए में प्रावधान है कि रेप किए जाने के कारण अगर लड़की की मौत हो जाए या फिर उसे ऐसा जख्म हो जाए कि वह लंबे समय तक के लिए विजिटेटिव स्टेट(निष्क्रिय) में पहुंच जाए तो ऐसे मामले में कम से कम 20 साल कैद जबकि ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद अथवा फांसी तक हो सकती है। मतलब साफ है कि ऐसे दरिंदों को मौत की सजा के लिए भी या तो लड़की का रेप के बाद मरना जरूरी है या फिर विजिटेटिव स्टेट में पहुंचना..!
ऐसा हो भी जाता है तो लंबी कानूनी प्रक्रिया के चलते अदालत में ये मामले सालों तक लंबित रहेंगे। माना आरोपी को फांसी की सजा हो भी जाती है तो राष्ट्रपति के पास दया याचिका डालने का भी तो अवसर है..! ये छोड़िए इनके मानवाधिकारों की बात करने वालों की भी लंबी फौज है...जो इनको जेल में जरा सी तकलीफ होने पर उनके मानव अधिकारों की बात करते हैं लेकिन उसके मानवाधिकार का क्या जो ऐसे दरिंदों की हवस की शिकार बनीं..?
कुल मिलाकर ऐसे दरिंदे किसी मासूम को दर्द भरी मौत देने या फिर उसकी जिंदगी नर्क से भी बदतर बनाने के बाद भी जिंदा रहेंगे लेकिन जरा सोचिए उसका क्या जिसकी जिंदगी नर्क से भी बदतर हो गयी या फिर जिसने अपनी बेटी, बहन या फिर अपने किसी जिगर के टुकड़े को तड़प तड़प कर मरते देखा है..?
विडंबना देखिए 16 दिसंबर 2012 की घटना हुई तो एंटी रेप लॉ वजूद में आता है...दिल्ली में 5 साल की मासूम के साथ दरिंदगी होती है तो प्रधानमंत्री कहते हैं कि महिला सुरक्षा के लिए बहुत काम किया जाना बाकी है। सवाल ये उठता है प्रधानमंत्री जी कि क्या अब इस बहुत कुछ को अमल में लाने के लिए एक और घटना का इंतजार किया जा रहा है..? (जरूर पढ़ें- बलात्कार- 1971 से लगातार..!)
खैर छोड़िए कहां तक सवाल करेंगे..? किससे सवाल करेंगे..? सवालों की फेरहिस्त तो काफी लंबी है लेकिन अफसोस जवाब किसी के पास नहीं है...क्योंकि किसी घटना के घटित होने के बाद इनका मन आहत हो जाता है...ये घटना की निंदा करते हैं और बहुत जल्द पीड़ित के दर्द को भूल जाते हैं..!

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मोदी से बेहतर सुषमा..!


एनडीए से प्रधानमंत्री के संभावित उम्मीदवार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जितनी तेजी से राष्ट्रीय पटल पर उभरे उतनी ही तेजी से मोदी के विरोधियों की संख्या भी बढ़ी है। एनडीए के अहम घटक जदयू के साथ ही भाजपा में ही मोदी विरोधियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो 2014 में मोदी के पीएम बनने के सपने को चकनाचूर भी कर सकता है..! ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या भाजपा के पास पीएम की उम्मीदवारी के लिए मोदी से बेहतर विकल्प नहीं है या फिर मोदी के बढ़ते कद के आगे राष्ट्रीय राजनीति में सालों से सक्रिय भाजपा के दूसरे नेताओं को कद बौना प्रतीत हो रहा है..!
जाहिर है भाजपा में ऐसे नेताओं की जमात काफी लंबी है जो राष्ट्रीय राजनीति में मोदी से बड़ा कद रखते हैं..! पीएम की उम्मीदवारी को लेकर एनडीए के घटक दलों के साथ ही भाजपा में मोदी के बढ़ते विरोध के बाद पीएम की उम्मीदवारी को लेकर सुषमा स्वराज का नाम तेजी से उठने लगा है..! लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या सुषमा स्वराज के नाम को एनडीए के घटक दलों के साथ ही भाजपा में सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया जाएगा..? इसमें कोई दो राय नहीं 25 सालों से राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय सुषमा स्वराज को एक प्रखर नेता के साथ ही बेहतरीन वक्ता के रूप में जाना जाता है। सुषमा हमेशा से ही एक निर्विवाद नेता रही हैं...ऐसे में सुषमा को पीएम पद का उम्मीदवार बनाया जाता है तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सुषमा के नाम पर भाजपा के साथ ही एनडीए में सर्वसम्मति बनने के संभावना मोदी के अपेक्षा ज्यादा प्रबल होगी। लाल कृष्ण आडवाणी की पसंदीदा नेता होने का फायदा भी सुषमा स्वराज को मिल सकता है जबकि मोदी के केस में ऐसा नहीं है..! (जरूर पढ़ें- खुश तो बहुत होंगे आडवाणी आज..!)
नरेन्द्र मोदी भी निश्चित तौर पर एक बेहतरीन वक्ता हैं और उनकी भाषण शैली के कायल लोगों की कमी नहीं है लेकिन हिंदुओं के पुरोधा होने का ठप्पा नरेन्द्र मोदी के सांप्रदायिक नेता होने की छवि से बाहर नहीं निकाल पा रहा है और शायद यही नरेन्द्र मोदी और पीएम की कुर्सी के बीच में सबसे बड़ा रोड़ा है..! एनडीए से गठबंधन तोड़ने की धमकी देने वाली जद यू नेता भी मोदी को सांप्रदायिक बताते हुए पीएम पद के लिए मोदी की उम्मीदवारी के खिलाफ विरोध का झंडा लेकर खड़े हैं..! (जरूर पढ़ें- मोदी के खिलाफ क्यों हैं नीतीश..?)
ऐसे में इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि आगामी आम चुनाव में सांप्रदायिक होने का दंश झेल रहे मोदी को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है..!
ऐसी स्थिति में मोदी के बाद भाजपा में पीएम की उम्मीदवारी की सबसे प्रबल नेता सुषमा स्वराज का नाम आगे आता है तो निर्विवाद छवि की नेता होने के साथ ही महिला होने के नाते सुषमा स्वराज की दावेदारी को कमजोर तौर पर आंककर नहीं देखा जा सकता। ऐसे में सवाल ये है कि क्या सुषमा स्वराज पीएम की कुर्सी के लिए मोदी से बेहतर उम्मीदवार हो सकती हैं..?
जाहिर है सुषमा की निर्विवाद नेता की छवि के साथ ही सुषमा की आक्रमक और लाजवाब भाषण शैली के कायल लोगों की कमी नहीं है और सबसे बड़ी बात ये कि सुषमा पर मोदी के तरह सांप्रदायिक नेता होने का आरोप कभी भी नहीं लगा हैजो सुषमा को हर वर्ग के मतदाताओं में मोदी की अपेक्षा स्वीकार्य बना सकता है..! लेकिन इसके बाद भी भाजपा में प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी के तौर पर सुषमा की अपेक्षा मोदी को अहमियत दी जा रही है और सुषमा को कहीं न कहीं नजरअंदाज किया जा रहा है जो इस ओर साफ ईशारा कर रहा है कि भाजपा एक बार फिर से हिंदुत्व के सहारे केन्द्र की सत्ता में वापसी करने का मन बना चुकी है और भाजपा को लगता है कि नरेन्द्र मोदी की हिंदुओं के पुरोधा की छवि ही उसकी नैया पार लगा सकती है...फिर चाहे इसकी कीमत उसे एनडीए के कुनबे के बिखरने के रूप में ही क्यों न चुकानी पड़े..! लेकिन भाजपा शायद इस बात को भूल रही है कि उसका ये कदम उसे एक वर्ग के करीब लाकर उसके वोट तो दिलवा सकता है लेकिन पार्टी को दूसरे वर्ग की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है..! (जरूर पढ़ें- अगला पीएम कौनराहुल, मोदी या..?)
राजनीति में कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता..? विरोध के बाद भी भाजपा में आज मोदी की गूंज है...हो सकता है कल तस्वीर बदल जाए..! नितिन गडकरी का चैप्टर तो याद ही होगा आपको...दोबारा अध्यक्ष बनाने के लिए भाजपा के संविधान में तक संशोधन कर दिया गया लेकिन किसने सोचा था कि पार्टी के अगले अध्यक्ष राजनाथ सिंह होंगे..!

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