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गुरुवार, 11 जुलाई 2013

और नेतानगरी में छाया मातम..!

हमारे देश के नेताओं पर लगता है अदालत की महादशा शुरु हो गयी है। पहले सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक इतिहास वाले दागी नेताओं पर लगाम कसने की ओर कदम बढ़ाते हुए फैसला दिया कि किसी भी मामले में दो या दो साल से ज्यादा की सजा होने पर सांसद और विधायक की सदस्यता खुद ब खुद समाप्त हो जाएगी तो यूपी हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश में जातीय आधारित रैलियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाकर उन राजनीतिक दलों की नींद उड़ा दी है जो जाति के नाम पर लोगों को बांटकर सत्तासीन होने का ख़्वाब देख रहे थे..!
नेतागण इस सदमे से उबरे भी नहीं थे कि सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के उस फैसले पर अपनी मुहर लगा दी जिसमें पटना हाईकोर्ट ने जेल में जाते ही चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी यानि कि कोई भी व्यक्ति अब जेल जाने के बाद चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाएगा।
चुनाव करीब आते ही सत्ता पर नजरें गढ़ाए बैठे जिन नेताओं के चेहरे पर खुशी दिखाई देती थी वो सर्वोच्च न्यायलय और यूपी और पटना उच्च न्यायलय के फैसले के बाद अब अब काफूर होती दिखाई दे रही है..! नेता हैरान हैं...परेशान हैं कि करें तो क्या करें..?
अदालत के फैसले के सामने नेता न तो खुलकर कुछ बोल पा रहे हैं और न ही इसका विरोध कर पा रहे हैं..!
कुछ अदालत के आदेश को पढ़ने के बाद ही कुछ कहने की बात कर रहे हैं तो कुछ बेमन से अदालत के फैसले का स्वागत करते दिखाई दे रहे हैं..! (पढ़ें- नेता जी, दाग अच्छे हैं..!)
संसद और राज्य विधानसभाओं में जनता से जुड़े मुद्दों पर मुंह फेरने वाले और अपने हक के सवाल पर, अपने वेतन भत्तों को बढ़ाने के नाम पर एकजुट होने वाले अधिकतर नेताओं को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद अब अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा है, क्योंकि हमारे अधिकतर माननीय अपनी सफेद पोशाक के पीछे हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के साथ ही भ्रष्टाचार और घोटालों की कालिख को समेटे हुए हैं..!
ये छोड़िए, ये लोग तो लोगों को उनकी जाति के आधार पर बांटकर राज करने में भी गुरेज नहीं करते। देश के सबसे बड़े प्रदेश यूपी में तो जातीय समीकरण को अपने अपने पक्ष में फिट करने के लिए राजनीतिक दल क्या कुछ नहीं करते..? दलितों के नाम पर राज करने वाले बसपा सुप्रीमो मायावती भी ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन करती हैं तो समाजवादी पार्टी जिसका नाम ही समाजवाद है खास वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ती..! ऐसा ही हाल राज्य में भाजपा और कांग्रेस के साथ ही दूसरे राजनीतिक दलों का भी है..! लेकिन जातीय रैलियों पर रोक के इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले के बाद अब सबकी सिट्टी पिट्टी गुम है। अब राजनीतिक दल मुश्किल में हैं कि करें तो क्या करें..? कैसे किसी खास जाति के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए कोई नया रास्ता तैयार करें..?
बहरहाल अदालत के फैसले से नेतानगरी में भले ही मातम छाया हुआ है पर नेताओं की कारगुजारियों से अजीज आ चुकी देश की जनता में अदालत के इन फैसलों से खुशी की लहर है लेकिन इसका असली मजा तो तब है जब देश की जनता अपने वोट की कीमत को समझे और चुनावों में भी ऐसे नेताओं को सबक सिखाए..!


deepaktiwari555@gmail.com

बुधवार, 10 जुलाई 2013

नेता जी, दाग अच्छे हैं..!

अधिकतर मामलों में सबूतों के अभाव में नेताओं को कोर्ट से राहत मिलते तो कई बार देखा था लेकिन पहली बार सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से नेताओं की नींद उड़ते देखी है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला होने के कारण चाहकर भी नेता इस फैसले के खिलाफ कुछ नहीं बोल सकते लेकिन जिन नेताओं पर छोटा या बड़ा कोई भी मामला अदालत में लंबित है उनके दिल का दर्द उनसे बेहतर और कौन समझ सकता है..?
हमारे देश में आपराधिक रिकार्ड वाले नेताओं की फेरहिस्त काफी लंबी है। हत्या, हत्या का प्रयास, लूट, अपहरण के साथ भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों से घिरे नेताओं की संख्या काफी ज्यादा है औऱ हैरत की बात तो ये है कि इसके बाद भी या तो वे विधायक हैं या फिर सांसद..! सबसे बड़ी बात तो ये कि इनके लिए विधानसभा और लोकसभा चुनाव में टिकट पाना कोई मुश्किल काम नहीं है। चुनाव में ईमानदार और स्वच्छ छवि के नेताओं को टिकट देने का दावा करने वाले हमारे देश के लगभग सभी छोटे बड़े राजनीतिक दल आपराधिक इतिहास वाले नेताओं को अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनाने में जरा भी नहीं हिचकते..!
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कि किसी भी मामले में दो या दो से अधिक वर्ष की सजा होने पर सांसद और विधायक की सदस्यता रद्द हो जाएगी और वे चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे अपने आप में एक ऐतिहासिक फैसला है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से न सिर्फ राजनीति में आपराधिक इतिहास वाले नेताओं की घुसपैठ पर रोक लगेगी बल्कि किसी भी अपराध को करने या उसमें किसी भी तरह से शामिल होने से पहले नेता सौ बार सोचेंगे..!
अभी तक किसी भी मामले पर सजा होने पर नेतागण जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को सुरक्षा कवच बनाकर फैसले के खिलाफ अपील लंबित होने पर अपने पद पर बने रहते थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस सुरक्ष कवच को ही खत्म कर दिया है जिसके बाद दो या दो साल से ज्यादा की सजा होने पर सांसद और विधायक की सदस्यता रद्द हो जाएगी।   
आपराधिक इतिहास वाले नेताओं की देश के छोटे बड़े सभी राजनीतिक दलों में कितनी पैठ है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि मई 2009 की नेशनल इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक 15वीं लोकसभा में 150 दागी सांसद हैं जिनमें से 73 के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
वहीं राज्यों की बात करें तो www.myneta.info के मुताबिक दागी विधायकों के मामले में झारखंड देश में सबसे अव्वल है, जहां पर कुल विधायकों में से 72 फीसदी (55 विधायक) विधायकों के खिलाफ कोई न कोई आपराधिक मामला चल रहा है। 55 में से भी 24 विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
बिहार इस सूची में दूसरे नंबर पर है जहां पर 58 फीसदी (140 विधायक) विधायक दागी हैं जिनमें से भी 84 विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
महाराष्ट्र इस फेरहिस्त में 51 फीसदी (146 विधायक) विधायकों के साथ तीसरे नंबर है जिनमें से 56 विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
विधायकों की संख्या के साथ चौथे नंबर पर उत्तर प्रदेश विराजमान है, जहां दागी विधायकों का प्रतिशत 47(189 विधायक) है, जिसमें से 98 विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
अन्य राज्यों में भी हालात कुछ जुदा नहीं है और बड़ी संख्या में दागी विधायक राज्य की विधानसभाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं। सिर्फ मणिपुर ही इकलौता ऐसा राज्य है जहां पर किसी भी विधायक के खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला नहीं है और सभी 60 विधायक बेदाग हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जाहिर है, ऐसे नेताओं के माथे पर बल पड़ना लाजिमी है। कोर्ट ने अपने फैसले से न सिर्फ देश की संसद और विधानसभाओं को साफ करने की ओर कदम उठाया है बल्कि कोर्ट का ये फैसले उन नेताओं और राजनीतिक दलों के मुंह पर एक करारा तमाचा है जो ये सोचते हैं कि पैसे और बाहुबल के आधार पर चुनाव जीतकर वे संसद या विधानसभा में आसानी से पहुंच जाएंगे और अपनी मनमानी करेंगे..!
देश के सर्वोच्च न्यायालय की अगर बात करें तो सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या 60 हजार के करीब है जबकि वर्ष 2011 तक देश की विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या करीब 43 लाख 22 हजार से अधिक हैं। इससे देश के विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों की संख्या का अंदाजा लगाया जा सकता है। (पढ़ें- इंसाफ- मौत के बाद..!)
ऐसे में अब उम्मीद है कि दागी सांसदों और विधायकों के संबंध में सर्वोच्च न्यायलय के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों के तेजी से निपटारे को लेकर भी सर्वोच्च न्यायालय कोई सकारात्मक कदम उठाए ताकि अदालत का ये ऐतिहासिक फैसला जल्द सार्थक हो और देश की संसद और राज्य विधानसभाओं से दागी नेताओं का पत्ता साफ हो।

deepaktiwari555@gmail.com

मंगलवार, 9 जुलाई 2013

लोकार्पण करने वाले खुद पहुंच गए हवालात

नाम- राघवजी, उम्र-79 वर्ष, चेहरे पर सादगी लेकिन कर्म ऐसे कि शर्म भी शर्म से आंखें चुराने पर मजबूर हो जाए..! मोटे चश्मे के पीछे से झांकती शैतान निगाहें पता नहीं कब से बंद कमरे में अपनी हवस की भूख को शांत कर कितनों का जीवन नर्क करने पर तुली हुई थी..! जाने कितने वर्षों से अपने परिवार के साथ ही लोगों की आखों में राघव जी धूल झोंक कर एक सज्जन पुरुष का जीवन जीने का ढोंग रच रहे थे लेकिन राघवजी की ये करतूत तीसरी आंख से नहीं बच पाई और तीसरी आंख ने वो राज खोला कि सारी सज्जनता, सारी नैतिकता धरी की धरी रह गयी और 79 वर्ष की अवस्था में राघवजी का जो घिनौना चेहरा सामने आया वो किसी को भी शर्म से पानी पानी करने के लिए काफी है..!  (पढ़ें- ये हैं राजनीति के मर्यादा पुरुष..!)
कहते हैं इंसान को अपने कर्मों का फल जीते जी ही भगुतना पड़ता है..! उम्र के इस पड़ाव में राघवजी की गिरफ्तारी कम से कम इस विश्वास को तो और दृढ़ करती ही है। वक्त कैसे बदलता है, इसका इससे बढ़िया उदाहरण और क्या हो सकता है कि जिस हबीबगंज थाने का लोकार्पण राघवजी ने किया था उसी थाने में न सिर्फ राघवजी के खिलाफ एफआईआर लिखी गई बल्कि हबीबगंज थाना पुलिस ने ही राघवजी को हवालात तक भी पहुंचा दिया।
भोपाल में पत्रकारिता के दैरान चार साल पहले मैं खुद हबीबगंज थाने के लोकार्पण समारोह में मौजूद था जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और राघवजी ने थाने का लोकार्पाण किया लेकिन मैं क्या वहां मौजूद किसी शख्स ने विशेषकर राघवजी ने ये नहीं सोचा होगा कि भविष्य में वक्त ऐसी करवट लेगा कि हबीबगंज थाने में ही उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज होगी और जो हबीबगंज थाना पुलिस उनको मंत्री रहते हुए सलाम ठोक रही थी वही पुलिस उनको गिरफ्तार करेगी। 
ये भी वक्त का ही तकाजा है कि जिस राघवजी के साथ इस घटनाक्रम से पहले तक उनकी पार्टी कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहती थी उसने भी राघवजी के कुकर्म की सीडी सामने आने के बाद राघवजी से किनारा कर लिया है।
आखिर चाल, चरित्र और चेहरे की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी के चेहरे पर उनके ही वयोवृद्ध नेता कालिख पोत दें तो सवाल उठने लाजिमी ही हैं..! ऐसे में भाजपा ने राघवजी से किनारा करने में जरा सी भी देर नहीं की लेकिन जो राघव जी कई दशकों से भाजपा के साथ जुड़े हुए थे उनसे एक झटके में किनारा करने से भाजपा का दामन तो साफ होगा नहीं..! और न ही वे सवाल शांत होंगे जो राघवजी की कुकर्म कथा ने भाजपा पर भी खड़े किए हैं..!
वैसे भी चुनाव की देहरी पर खड़े मध्य प्रदेश की सत्ता से 10 वर्षों से दूर कांग्रेस हर हाल में सत्ता हासिल करना चाहती है ऐसे में राघवजी की कुकर्म कथा तो कांग्रेस के लिए चुनाव में किसी संजीवनी से कम नहीं है और कांग्रेस ने भी इसको भुनाने की पूरी तैयारी कर ली है जबकि भाजपा के पास राघवजी की इस कुकर्म कथा पर उठ रहे सवालों का कोई जवाब नहीं है..!

deepaktiwari555@gmail.com

रविवार, 7 जुलाई 2013

अब और बर्दाश्त (नहीं) करेंगे..!

बोधगया के महाबोधी मंदिर पर आतंकी हमले के बाद हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहते हैं कि ऐसे हमले बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे..! आतंकी एक के बाद एक आतंकी हमले को अंजाम देते जाते हैं और हमारी सरकार के मुखिया हर बार ये कहते हैं कि देश में आतंकी हमले बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। समझ में नहीं आता कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए आखिर इस बर्दाश्त की सीमा कहां तक है..?
मनमोहन सिंह बर्दाश्त न करने की बात तो हर बार कहते हैं लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद से ही वे सिर्फ बर्दाश्त ही कर रहे हैं और कुछ नहीं..! देश के दुश्मन भी इस बात को अच्छी तरह समझ गए हैं कि भारत सिर्फ बर्दाश्त ही कर सकता है और कुछ करने का दम भारत में नहीं है..! शायद यही वजह है कि आतंकियों के हौसले बुलंद हैं और वे एक के बाद एक कभी मुंबई में तो कभी पुणे में, कभी बंगलुरु में तो कभी बिहार में आतंकी हमलों को अंजाम देकर निर्दोष भारतीयों को मौत के घाट उतार रहे हैं..!
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मजबूरी तो पूरा देश समझता है कि आखिर क्यों वे हर चीज बर्दाश्त न करने की बात तो कहते हैं लेकिन फिर भी चुपचाप बर्दाश्त करते रहते हैं..! वैसे भी प्रधानमंत्री की कुर्सी ऐसे ही थोड़े न मिल जाती है...उसके लिए तो बर्दाश्त करने की क्षमता होनी चाहिए..! जो कि मनमोहन सिंह में कूट कूट कर भरी हुई है..! लेकिन मनमोहन सिंह को कौन समझाए कि उनको पीएम की कुर्सी दिलाने वाली उनकी ये अनोखी काबिलियत देश पर भारी पड़ी रही है और आए दिन निर्दोष भारतीयों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा रहा है..!
हैरानी तो उस वक्त होती है जब इस तरह के आतंकी हमले होने की सूचना दिल्ली पुलिस के जरिए बिहार सरकार को पहले ही मिल जाती है लेकिन इसके बाद भी आतंकी बिहार के बोधगया में स्थित महाबोधी मंदिर में एक नहीं, दो नहीं पूरे एक दर्जन से ज्यादा बम आसानी से प्लांट कर अपने नापाक मंसूबों में कामयाब हो जाते हैं..! अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों की सुरक्षा को लेकर सरकार कितनी गंभीर है..?
ये छोड़िए राज्य के डीजीपी अभयानंद महाबोधी मंदिर पर हुए धमाके की पूर्व सूचना के सवाल पर कहते हैं कि हर घटना से कुछ न कुछ सिखने को मिलता है..! सुन लिजिए ये कहना है राज्य के पुलिस प्रमुख का जिनका सोचना है कि कुछ सीखने के लिए ऐसी घटनाएं होना जरुरी है..! अब जनाब विस्फोट नहीं होंगे तो फिर बिहार पुलिस सबक कैसे लेगी..?
जब देश के प्रधानमंत्री कहते हैं बर्दाश्त (नहीं) करेंगे, बिहार के मुख्यमंत्री आतंकी हमले की सूचना के बाद भी मंदिर की सुरक्षा को लेकर कोई कारगर कदम नहीं उठाते और बिहार के ही पुलिस प्रमुख विस्फोट के बाद कहते हैं कि ऐसी घटनांओं से ही तो पुलिस कुछ सीखेगी..! फिर क्यों न आतंकी बेखौफ होकर एक के बाद धमाकों से भारत को दहलाते रहें..! जब हमारे प्रधानमंत्री बर्दाश्त न करके भी बर्दाश्त कर सकते हैं तो फिर आतंकी क्यों बर्दाश्त करें..? लेकिन असल सवाल तो ये है कि देश की जनता अपनी जान की कीमत पर आखिर कब तक ये सब बर्दाश्त करेगी..?


deepaktiwari555@gmail.com