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शनिवार, 15 सितंबर 2012

M से मनमोहन...M से मुश्किल


कोयला घोटाले की आग बुझी भी नहीं थी कि महंगाई और रिटेल में 51 प्रतिशत एफडीआई को मंजूरी देकर यूपीए सरकार ने मानो अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मार ली। दो दिनों में दो बड़े फैसले के खिलाफ जहां समूचा विपक्ष सरकार के खिलाफ लामबंद हो गया हैवहीं प्रधानमंत्री देश के आर्थिक हालात में सुधार के लिए इन फैसलों को सही ठहरा रहे हैं...लेकिन इसको लेकर विपक्ष के साथ ही सरकार के सहयोगियों के रवैये को देखते हुए तो यही लगता है कि फिलहाल आने वाले दिन सरकार के लिए आसान नहीं होंगे। ऐसे में बड़ा सवाल ये भी उठता है कि क्या यूपीए 2 अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाएगी या फिर कोयला घोटाले की आग पर महंगाई और एफडीआई का घी सरकार की बलि ले लेगा। एफडीआई की अगर बात करें तो सरकार एफडीआई में 51 प्रतिशत विदेशी निवेश के पीछे तर्क दे रही है कि इससे रिटेल सेक्टर में करीब एक करोड़ नौकरियां मिलेंगी...आर इसके साथ ही बिचौलियों पर लगाम लगेगी औऱ किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम मिलेगा...लेकिन विपक्ष का तर्क है कि इससे छोटे दुकानदार खत्म हो जाएंगे...और विदेशी कंपनियां बाजार का विस्तार नहीं करेंगी...औऱ मौजूदा बाजार में ही काबिज हो जाएंगी..जिससे इससे जुड़े करीब 4 करोड़ लोगों पर इसका असर पड़ेगा...इसके अलावा भी तमाम तर्क देकर विपक्ष के साथ ही सरकार की सहयोगी पार्टियां एफडीआई का विरोध कर रही हैं। हालांकि एफडीआई पर राज्य सरकारों के पास ये अधिकार है कि वे अपने राज्य में एफडीआई लेकर आएं या नहीं...लेकिन इसके बाद भी विपक्ष को सरकार का ये फैसला रास नहीं आ रहा है। डीजल के दामों में वृद्धि और रसोई गैस में प्रति परिवार सिलेंडर का कोटा फिक्स करने पर तो सिर्फ सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन और विरोध के ही स्वर सुनाई दे रहे थे...औऱ सरकार के सहयोगी नाराज होने के बावजूद समर्थन वापस लेने पर विचार नहीं कर रहे थे...लेकिन उसके तुरंत बाद सरकार के एफडीआई के कदम पर समूचे विपक्ष के साथ ही सरकार की सहयोगी पार्टियां भी लामबंद हो गयी हैं...औऱ सरकार से फैसला वापस न लेने पर समर्थन वापस लेने की धमकी दे रही हैं। मनमोहन सरकार के लिए इसमें सबसे बड़ी मुश्किल साबित हो रहे हैं चार एम...ममता, मायावती, मुलायम और एम करुणानिधि। विरोध तो मुख्य विपक्षी दल भाजपा समेत समूचा विपक्ष कर रहा है लेकिन मनमोहन सरकार के सहयोगियों का विरोध सरकार पर भारी पड़ सकता है। मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी की अगर बात करें तो सपा के 23 सांसद हैं, मायावती की बहुजन समाज पार्टी के 21, ममता की तृणमूल कांग्रेस के 19 सांसद हैं तो एम करूणानिधि की द्रमुक के 18 सांसद हैं। वर्तमान में सरकार को लोकसभा में 317 सांसदों का समर्थन हासिल है...जबकि जरूरत 272 सदस्यों के समर्थन की है। अगर मनमोहन सरकार से चार एमयानि ममता, मुलायम, मायावती और एम करूणानिधि समर्थन वापस ले लेते हैं तो सरकार के पास सिर्फ 236 सासंद रह जाएंगे...यानि कि सरकार अल्पमत में आ जाएगी। हालांकि इन सभी दलों ने अभी सरकार को सिर्फ धमकी दी है...और पार्टी की बैठक के बाद इस पर फैसला लेने की बात कही है...लेकिन जिस तरह के तेवर चारों के हैं...उसको देखते हुए तो नहीं लगता कि मनमोहन की मुश्किलें कम होने जा रहा हैं। मुद्दा सिर्फ एक होता तो सरकार को मैनेज करने में भी आसानी होती लेकिन...यहां तो पहले से ही जल रही कोयला घोटाले की आग के बीच महंगाई और एफडीआई का बम भी सरकार ने फोड़ दिया है। विपक्ष के साथ ही सहयोगियों के तेवरों के बाद भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का ये बयान कि सारे फैसले देशहित में हैं...और अगर हम जाएंगे तो भी लड़ते हुए जाएंगे ये साफ करने के लिए काफी है कि सरकार फिलहाल विपक्ष और सहयोगियों के दबाव में आने वाली नहीं है...यानि कि सरकार शायद इस बात के लिए भी पहले से ही तैयार है कि सरकार गिर भी सकती है...औऱ मनमोहन का ये बयान कि लड़ते हुए जाएंगे ये भी बयां कर रहा है कि वे मान चुके हैं कि सरकार का जाना तय है...ऐसे में क्यों न बिना झुके कुछ कड़े फैसले लिए जाएं...और सरकार की उस छवि से बाहर निकला जाए जो कड़े फैसले लेने में पीछे हटती हो। बहरहाल मनमोहन सरकार के लिए सबसे बड़ी मुश्किल एम फैक्टर ही बना हुआ है...और ये एम फैक्टर राजनीति के चार बड़े सूरमा हैं...ऐसे में देखना ये होगा कि ये सूरमा मनमोहन सिंह पर हावी होते हैं या फिर मनमोहन सिंह एम फैक्टर पर विजय हासिल कर अपनी उस बयान को सही ठहराने में कामयाब होते हैं...जो उन्होंने हाल में तेहरान से लौटते वक्त अपने विशेष विमान में दिया था कि वे 2014 तक प्रधानमंत्री बनें रहेंगे और जो लोग सत्ता पाने के ख्वाब देख रहे हैं...वो 2014 का इंतजार करें। हम तो बस इतना ही कह सकते हैं कि एम फैक्टर से निपटने के लिए बेस्ट ऑफ लक मनमोहन सिंह साहब।

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मंगलवार, 11 सितंबर 2012

इन्होंने तो महंगाई को भी दे दी मात !


महंगाई की रफ्तार भी गजब की है...किसी भी चीज पर चढ़ बैठती है...और ऐसा भागती है कि पूछो मत...रूकने का नाम ही नहीं लेगी मुई। इतनी निरंतरता और तेजी से बढ़ती है कि कमबख्त सोचने का वक्त ही नहीं मिलता...बस कुछ सामान खरीदने बाजार जाते हैं तो महंगाई को कोसते रहते हैं ओर सत्ता में बैठे लोगों को। जब किसी चीज के दाम बढ़ते हैं या फिर बढ़ने की ख़बर आती है तो लोगों का खून खौल उठता है...और याद आता है पीपली लाइव फिल्म का महंगाई पर बना मशहूर गाना महंगाई डायन खाए जात है एक बार फिर से डीजल और रसोई गैस के दाम बढने की खबर ने इस बेचैनी को और बढ़ा दिया है। पेट्रोलियम मत्री जयपाल रेड्डी साहब तो 5 दिनों में ही अपनी जुबान से पलट गए...7 सितंबर 2012 को रेड्डी साहब बयान देते हैं कि फिलहाल बहुत जल्दी पेट्रोल, डीजल, केरोसीन और रसोई गैस के दाम नहीं बढ़ने जा रहे हैं...लेकिन 11 सितंबर 2012 को वे कहते हैं कि दाम बढ़ना तो तय है। खैर दाम तो देर सबेर बढ़ेंगे ही...पहले ज्यादा बढ़ेंगे फिर विरोध के स्वर उठेंगे तो तय रणनीति के तहत मामूली कमी कर दी जाएगी...लेकिन दाम तो बढ़ेंगे ये तय है। अब तो लोगों को आदत सी हो गयी है...इस सब की...वैसे भी कौन सा इस सब पर बस चलता है उनका। बढ़ती महंगाई के अनवरत सिलसिले के बीच ऐसा लगता है कि महंगाई से दौड़ में कोई जीत ही नहीं सकता...लेकिन हमारे देश में एक जमात ऐसी भी है जो महंगाई क्या अच्छी अच्छी चीजों को पीछे छोड़ देती है। और कौन हमारे देश के राजनेता...इनकी संपत्ति के बढ़ने की गति इतनी तेज है कि महंगाई उससे कोसों पीछे रह जाती है। जिस तरह से हमारे राजनेताओं को संपत्ति में दिन दोगुना रात चौगुना ईजाफा हो रहा है...उससे तो यही जाहिर होता है कि इस दौड़ में उनसे आगे निकलने का माद्दा किसी में नहीं है...फिर ये महंगाई क्या चीज है। दिमाग पर ज्यादा जोर डालने की जरूरत नहीं है...कुछ ही दिन पहले चले जाइये...जब पीएमओ की वेबसाइट से खुलासा हुआ कि हमारे प्रधानमंत्री समेत उनके मंत्रिमंडल सहयोगियों की संपत्ति में बेहिसाब बढ़ोतरी हुई है। सिर्फ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगर बात करें तो एक साल में उनकी संपत्ति दोगुनी हो गयी है। बीते साल उनकी संपत्ति जहां करीब 5 करोड़ रूपए थी...वो अब बढ़कर करीब 11 करोड़ हो गयी है। कैबिनेट मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने तो सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए...उनकी संपत्ति की कीमत करीब 52 करोड़ रूपए बतायी गयी है...जबकि एक और कैबिनेट मंत्री शरद पवार की संपत्ति करीब 22 करोड़ रूपए और पी चिंदबरम की संपत्ति करीब 12 करोड़ है। ये सिर्फ कुछ नाम है। प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल में कई ऐसा करोड़वीर हैं...जिनकी संपत्ति उन्हें इस तमगे का सही हकदार बना देती है। वैसे मनमोहन सिंह के एक सहयोगी ऐसे भी हैं जिन्हें ये तमगा हासिल करने में फिलहाल देर लग रही है...वेबसाईट कहती है कि रक्षा मंत्री ए के एंटोनी के पास सिर्फ 55 लाख रूपए की संपत्ति है। निरंतर बढ़ती महंगाई के इस दौर में करोड़वीर का ये तमगा हमारे अधिकतर सांसदों और राज्यों की विधानसभा के विधायकों पर भी एकदम फिट बैठता है...बस मुंह चिढ़ाता है तो देश की गरीब जनता तो जिसे दो वक्त तक की रोटी मयस्सर नहीं है...और ऊपर से बढ़ती महंगाई ने उसके मुंह से वो निवाला भी छीन लिया है।
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सोमवार, 10 सितंबर 2012

क्यों पैदा होते हैं असीम त्रिवेदी सरीखे कार्टूनिस्ट ?


असीम त्रिवेदी ने विवादित कार्टून को लेकर बवाल मचा है...असीम पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है तो समाचार चैनलों से लेकर सोशल नेटवर्किंग साइटस तक सिर्फ ये ही मुद्दा छाया रहता है। सवाल खड़े उठते हैं कि क्या एक कार्टून बनाना देशद्रोह हो सकता है...क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी शख्स को अपनी बात को अभिव्यक्त करने पर देशद्रोह के आरोप में जेल में डाल देना ठीक है। देशद्रोह के जिस कानून के तहत असीम त्रिवेदी को जेल में डाल दिया जाता है वो कानून 152 साल पुराना है जिसे 1860 में उस वक्त बनाया गया था...जब हम ब्रिटिश हुकुमत के गुलाम थे और उस वक्त ब्रिटिश महारानी के खिलाफ बोलने वाले को राजद्रोह के तहत गिरफ्तार कर लिया जाता था। इन 152 सालों में बड़े बड़े बदलाव आए..1947 में हमें आजादी भी मिली...स्वतंत्र भारत में हर भारतीय को खुली हवा में सांस लेने का अधिकार मिला...अधिकार मिला अभिव्यक्ति का...अपनी बात को खुलकर कहने का...लेकिन अफसोस इस बात का है कि आजादी से पहले हम ब्रिटिश हुकुमत के गुलाम थे...वो लोग हमारा शोषण कर रहे थे...तो आज हमारे अपने ये सब करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। असीम पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज होने के बाद जो नाटकीय घटनाक्रम हुआ उसे देखते हुए तो ये सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि क्या वाकई में 152 साल पुराना ये कानून आज प्रासंगिक है। क्या वाकई में असीम ने विवादित कार्टून बनाकर जो काम किया वो देशद्रोह की श्रेणी में आता है। ऐसा इसलिए भी लगने लगता है क्योंकि जिस तरह मुंबई पुलिस पहले राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लेती है उसके बाद असीम की रिमांड की जरूरत न होने की बात कर सरेंडर करती है...औऱ असीम के कार्टून को लेकर और उस पर दर्ज देशद्रोह के मुकदमे को लेकर पुलिस की कानूनी सलाह लेने पर विचार करने की खबरें सामने आती हैं...उससे तो कम से कम यही लगता है। खैर 152 साल पुराना कानून 21वीं सदी में कितना प्रासंगिक है ये एक बड़ा मसला है...और निश्चित तौर पर इस पर बड़ी बहस की जरूरत है...लेकिन ऐसे वक्त पर ये सवाल उठाना बहुत जरूरी लगता है कि आखिर क्यों असीम जैसे कार्टूनिस्टों को ऐसे कार्टून बनाने की जरूरत पड़ती है...ये विचार उनके मन में क्यों आया। असीम का विवादित कार्टून सीधे तौर पर देश को चला रही सरकार पर प्रहार था और असीम ने अपने कार्टून के जरिए ये अभिव्यक्त करने की कोशिश की थी कि किस तरह भ्रष्टाचार देश को खा रहा है...और किस तरह सरकार में शामिल लोग भ्रष्टाचार में डूबे हैं। यानि की हमारे देश के नेता भ्रष्ट न होते...तो निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता सड़कों पर न उतरती। हाल ही में अन्ना के आंदोलन की बात करें...बाबा रामदेव के आंदोलन की बात करें...कोयला घोटाले की भेंट चढ़े संसद के मानसून सत्र की बात करें तो सबकी जड़ के पीछे एक ही वजह थी भ्रष्टाचार। ऐसा में हमारे नेताओं को ये सोचना चाहिए इस पर मंथन करना चाहिए कि आखिर असीम त्रिवेदी को विवादित कार्टून बनाने की जरूरत क्यों पड़ी...भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को आवाज़ उठाने की जरूरत क्यों पड रही है...बजाए इसके की बेवजह की बातों पर बयानबाजी करें औऱ अपने साथी राजनेताओं पर कीचड़ उछालें। राजनेता अगर इस पर मंथन करें और सिर्फ ये सोचें की देश की जनता का कल्याण कैसे होगा...देश से गरीबी, भूखमरी कैसे दूर होगी...देश से बोरोजगारी कैसे हटेगी...भारत विकासशील देश से विकसित राष्ट्र कैसे बनेगा तो शायद किसी असीम त्रिवेदी को किसी का कार्टून बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी...भविष्य में कोई और दूसरा असीम त्रिवेदी पैदा ही नहीं होगा...और कार्टून बनाने पर अपनी बात अभिव्यक्त करने पर किसी असीम त्रिवेदी सरीखे कार्टूनिस्ट पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज नहीं होगा। ये तय राजनेताओं को करना है...और राजनेताओं ने समय रहते इसे तय नहीं किया तो राजनेताओं को ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि लोकतंत्र के त्यौहार यानि की चुनाव में फिर जनता तय करेगी कि उनके देश को चलाने के लिए उन्हें कैसा व्यक्ति चाहिए...कोई ऐसा व्यक्ति जिसके खिलाफ असीम त्रिवेदी जैसे कार्टूनिस्ट कार्टून बनाने पर मजबूर हों या फिर एक ऐसा व्यक्ति जो सिर्फ ये सोचे की भारत की तरक्की कैसे होगी...अंतिम पंक्ति में खड़े भारतवासी की तरक्की कैसे होगी।
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