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शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

भाजपा की शाजिया: हवा के साथ चल !

हवा का रुख जिधर हो, उधर ही चलने में समझदारी है, इस लिहाज से सोचा-समझा जाए तो किरण बेदी के बाद अब शाजिया इल्मी की समझ को न समझने की कोई वाजिब वजह नहीं दिखाई देती है। आम आदमी पार्टी के झंडे तले 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने वाली शाजिया  ने पहले आप का झाड़ू छोड़ भजपा का स्वच्छता अभियान का झाड़ू हाथ में थामा और फिर कमल का फूल।
आम आदमी पार्टी में रहते हुए भाजपा समेत दूसरे विरोधी राजनीतिक दलों के खिलाफ मोर्चा लेने वाली शाजिया ने अपने राजनीतिक विरोधियों पर वार करने का कभी कोई मौका नहीं छोड़ा। शाजिया को भाजपा समेत दूसरी विरोधी राजनीतिक दलों में पहले देश का भविष्य अंधकारमय नजर आता था, लेकिन अब यही शाजिया को भाजपा में अपना भविष्य उज्जवल नजर आने लगा है !
भाजपा में शामिल होते वक्त शाजिया क चेहरे की खुशी देखने लायक थी। शाजिया कह रही हैं कि वे चुनाव नहीं लड़ना चाहती, सिर्फ जनता की सेवा करना चाहती हैं। लेकिन शाजिया जी, जरा ये भी बता दीजिए कि क्या बिना राजनीति के जनता की सेवा नहीं हो सकती या फिर भाजपा में रहकर जनता की सेवा ज्यादा अच्छी तरह से हो सकती है !
किरण बेदी की ही तरह भाजपा को कोसने वाली शाजिया का भाजपा में शामिल होने के पीछे महत्वकांक्षाओं का बड़ा पहाड़ है, जिन्हें पूरा करने में फिलहाल के राजनीतिक हालात तो मोदी लहर पर सवार भाजपा पर सवार होने के संकेत दे रहे हैं ! फिर शाजिया ने क्या गलत किया, भाजपा का दामन थाम कर। छह महीने के अंदर पहले दिल्ली की आरके पुरम विधानसभा सीट से और फिर गाजियाबाद लोकसभा सीट से चुनाव में मात खाने के बाद शाजिया को शायद ये बात समझ में आ गई थी कि वर्तमान राजनीतिक हालात में भाजपा से बेहतर विकल्प उनके पास नहीं हो सकता, वो भी विधानसभा चुनाव के वक्त !
आप की टोपी पहनकर कभी भाजपा के कमल को मुरझाने की हर मुमकिन कोशिश करने वाली शाजिया इल्मी अब कमल खिलाने के लिए जी जान लगाती नज़र आएंगी! बहरहाल कड़कड़ाती सर्दी में कोहरे में खोई दिल्ली में हीटर और ब्लोअर न सही, लेकिन दिल्ली का चुनावी मौसम दिल्लीवासियों को खूब गर्मी का एहसास करा रहा है !


deepaktiwari555@gmail.com

गुरुवार, 15 जनवरी 2015

किरण बेदी मौका भी दस्तूर भी, फिर पीछे क्यों रहना


दिल्ली का नया निज़ाम कौन बनेगा, इसका फैसला तो दिल्ली की जनता ही करेगी लेकिन दिल्ली की सर्द हवाएं चुनावी मौसम में अब गर्माहट का एहसास कराने लगी हैं। किरण बेदी का नया राजनीतिक अवतार दिल्ली की सर्दी पर भारी चुनावी गर्मी का एहसास कराने के लिए काफी है।
समाजसेवी अन्ना हजारे के मंच पर तिरंगा लहराती किरण बेदी के तीखे ट्वीट कभी नरेन्द्र मोदी के प्रति उनकी भावनाओं को बयां किया करते थे। जिनमें से एक में ये भी जिक्र था कि गुज़रात दंगों पर मोदी को एक दिन स्पष्टीकरण देना होगा, लेकिन मोदी का समय बदला तो अब किरण बेदी भी बदली बदली नजर आने लगी हैं। आधिकारिक तौर पर भगवा रंग में रंग चुकी बेदी के इस नए अवतार की झलक तो कई महीने पहले से ही दिखने लगी थी, जब उन्होंने भाजपा और नरेन्द्र मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़ने शुरु कर दिए थे।
दिल्ली चुनाव के ऐलान के बाद किरण बेदी का भाजपा का दामन थामने के पीछे की संभावित वजह पर भी बात करेंगे लेकिन पहले ये जानना जरूरी है कि आखिर भाजपा और मोदी के प्रति किरण बेदी का हृदय परिवर्तन कैसे हुआ..?
आखिर क्या वो वजह रही, जिसके चलते बेदी ने कमल का फूल हाथ में ले लिया..?
बेदी इसका जवाब देते हुए कहती हैं कि वे मोदी के प्रेरक नेतृत्व से उन्हें प्रेरणा मिली हैं। अब यहां पर सवाल ये उठता है कि नेतृत्व तो मोदी ने गुजरात में भी किया था लेकिन क्या वो प्रेरक नहीं था या फिर मोदी पीएम बनने के बाद ज्यादा प्रभावी हो गए हैं..?
खैर छोड़िए, माना बेदी की बात में दम है, लेकिन अब सवाल ये उठता है कि क्यों भाजपा में शामिल होने की प्रेरण बेदी को चुनाव के वक्त ही मिली..?
जाहिर है, ये महज एक इत्तेफाक तो नहीं हो सकता !  तो क्या किरण बेदी की राजनीतिक महत्वकांक्षाएं कुछ ज्यादा ही उछाल मारने लगी थी..? क्या बेदी को दिल्ली का सीएम बनाए जाने का जो शिगूफा पहले छिड़ा था, उसने बेदी को भाजपा का दामन थामने के लिए ज्यादा प्रेरित तो नहीं किया..?
वो भी ऐसे वक्त पर जब भाजपा के पास सीएम की कुर्सी के लिए कोई दमदार नेता मौजूद नहीं है, जो भाजपा की राह के सबसे बड़े रोड़ा बनकर उभरे आपअरविंद केजरीवाल को बराबरी की टक्कर दे सके। वैसे भी तमाम ओपिनियन पोल भी मोदी लहर पर सवार भाजपा की दिल्ली में सरकार बनाने की भविष्यणवाणी कर रहे हैं। ऐसे में मौका भी था और दस्तूर भी, फिर किरण बेदी क्यों न इसे हाथों हाथ लेती..?  

deepaktiwari555@gmai.com

सोमवार, 12 जनवरी 2015

दिल्ली में मोदी जादू या “आप” का झाड़ू ?

दिल्ली को एक बार फिर से मौका मिला है, अपनी सरकार चुनने का। दिल्ली की राजगद्दी में कौन बैठेगा इसका फैसला करने का ! 7 फरवरी को दिल्ली की जनता अपनी सरकार चुनेगी और 10 फरवरी को धुंध में लिपटी दिल्ली की तस्वीर शीशे की तरह साफ हो जाएगी कि आखिर दिल्ली को उसका राजा मिलेगा या फिर दिल्ली की कहानी फिर से वहीं अटक जाएगी जहां से इस नई कहानी की शुरुआत हुई थी। राजनीतिक दल तो बेकरार हैं ही लेकिन दिल्ली की जनता कितनी बेकरार है, ये भी 7 फरवरी को ही साफ हो जाएगा!
चुनाव की तारीख के ऐलान के बहाने एक छोटी सी तस्वीर है, जो वाकई में काफी रोचक है और ये तस्वीर खुद कहती है कि दिल्ली की जंग भी उतनी ही रोचक होगी।
तस्वीर दिल्ली के आरके पुरम विधानसभा क्षेत्र के आरके पुरम सेक्टर 9 के छोटी सी मार्केट की है। दिल्ली के रामलीला मैदान में मोदी की रैली से एक दिन पहले 9 जनवरी 2015 को चाय की दुकान पर काम करने वाला समीर जिसकी उम्र करीब 21-22 वर्ष होगी मुझसे पूछता है कि सर, कल मोदी रामलीला मैदान में आ रहे हैं। मैंने हां में जवाब दिया तो वह तपाक से बोला, मैं तो कल मोदी जी से मिलने रामलीला मैदान जाऊंगा।
अगले दिन 10 जनवरी को मोदी रामलीला मैदान में रैली को संबोधित कर रहे होते हैं तो उस चाय की दुकान का नजारा बदला बदला सा है। मोबाईल पर समाचार चैनल में मोदी का भाषण चल रहा है, और चाय की दुकान वाला मोनू चाय बनाते बनाते मोदी के भाषण को सुन रहा है, वहां खड़े कुछ लोगों का ध्यान भी छोटे से मोबाईल में भाषण देते दिखाई दे रहे मोदी की तरफ ही है। लेकिन दुकान में आज समीर नदारद है, पूछने पर मोनू बताता है कि समीर रामलीला मैदान गया है मोदी को सुनने के लिए !
चाय की दुकान के पास बिजली के खंभे में आम आदमी पार्टी का पोस्टर लगा है। पोस्टर में बताया गया है कि आम आदमी पार्टी के सर्वे में आरके पुरम सीट आम आदमी पार्टी जीत रही है, ऐसे में चुनाव में आम आदमी पार्टी को ही वोट करें !
उसी दिन शाम का वक्त, समय करीब 7 बजे के करीब। कान में अरविंद केजरीवाल की आवाज सुनाई दे रही है। पास जाकर दिखाई दिया कि एक बड़े एलसीडी में केजरीवाल का रिकार्डेड भाषण बज रहा है। साथ ही दिल्ली में केजरीवाल सरकार के 49 दिनों के कार्यों का बखान किया जा रहा है। वहां से आते जाते लोग एक झलक एलसीडी को देखने के लिए रूकते हैं, फिर आगे बढ़ जाते हैं ! चाय की दुकान पर चाय पी रहे लोग भी एलसीडी को निहार रहे हैं, तो पास ही एक दुकान में मोमो खाते हुए लोगों का ध्यान भी एलसीडी की ही तरफ है।
चुनाव की तारीख का ऐलान होने से पहले की दिल्ली की एक विधानसभा की ये तस्वीर बताने के लिए काफी है कि जनवरी में दिल्ली की कड़कड़ाती सर्दी में भी सियासी पारा अपने चरम पर है। ये तस्वीर मोदी लहर के असर की एक झलक दिखाती है, तो दिल्ली में 49 दिन की सरकार के मुखिया रहे अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की पूर्ण बहुमत पाने की ललक भी दिखाती है। दिल्ली की सत्ता पाने के लिए हर कोई बेकरार है, फिर चाहे भाजपा हो, आप हो या फिर अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस! ऐसे में अब जब चुनावी तारीख का ऐलान हो चुका है तो हर कोई बस मतदाताओं को साधने की जुगत में जुट गया है। वैसे भी इस घड़ी का राजनीतिक दलों ने बड़ी ही बेसब्री से इंतजार किया है।  
कहते भी हैं कि इंतजार का फल मीठा होता है, देखना ये होगा कि इंतजार का ये मीठा फल दिल्ली में किसकी झोली में गिरता है।


deepaktiwari555@gmail.com