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शनिवार, 9 जून 2012

कौन बजाएगा सितार ?


कौन बजाएगा सितार ?

विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही सबसे बड़ा सवाल ये था कि बहुगुणा चुनाव कहां से लडेंगे। मुख्यमंत्री जहां पर भी जाते पत्रकारों के सवालों की बौछार के बीच सबसे अहम सवाल ये भी होता कि मुख्यमंत्री जी आप चुनाव कहां से लड़ेंगे। इसी बीच एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत सितारगंज से भाजपा विधायक किरण मंडल ने इस्तीफा देकर भाजपा में खलबली मचा दी। बहुगुणा की तारीफ करने वाले मंडल के इस्तीफे के बाद मुख्यमंत्री ने भी सितारगंज जाकर वहां करोड़ों की घोषणाएं कर उनका दिल जीतने की पूरी कोशिश की। जिसके बाद से ही ये कयास लगाए जा रहे थे कि बहुगुणा सितारगंज से ही ताल ठोकेंगे। आखिरकार सितारगंज उपचुनाव की तारीख घोषित होने के बाद बहुगुणा ने भी अपने पत्ते खोलते हुए ऐलान कर दिया कि वे सितारगंज से ही चुनाव लड़ेंगे। बहगुणा ने 13 जून को नामांकन भरने का भी ऐलान किया है। मुख्यमंत्री ने तो चुनाव लडने का ऐलान कर दिया...लेकिन भाजपा ने इस पर अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं...हालांकि खबरें हैं कि भाजपा सितारगंज उपचुनाव में खंडूरी या कोश्यारी में से किसी एक को मैदान में उतार सकती है। बहरहाल सितारगंज उपचुनाव कांग्रेस के साथ ही भाजपा के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल है। बहुगुणा के लिए तो ये चुनाव उनकी किस्मत तय करेगी कि वे मुख्यमंत्री बने रहेंगे या नहीं...जबकि भाजपा हर हाल में न सिर्फ अपनी खोई हुई सीट को वापस हासिल करने को पूरी ताकत लगाएगी...बल्कि बहुगुणा की हार में प्रदेश में सरकार बनाने की गुंजाईश भी तलाशेगी। बहरहाल चुनाव की बिगुल बज चुका है और 08 जुलाई को प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो जाएगी...हालांकि वक्त अभी काफी है...ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों में से कोई भी मिशन सितारगंज फतह में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहेगा।













दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com

बुधवार, 6 जून 2012

टॉयलेट में 35 लाख !


टॉयलेट में 35 लाख !

हिंदुस्तान में दो भारत बसते हैं इसका एहसास एक बार फिर से हो गया...जब आरटीआई एक्टिविस्ट सुभाष कुमार अग्रवाल की आरटीआई ने योजना आयोग का बड़ा खुलासा कर दिया। आरटीआई में जानकारी भी ऐसी सामने आयी...जिस पर यकीन करना मुश्किल था...लेकिन ये जानकारी खुद योजना आयोग से आयी थी...तो फिर कैसे भरोसा नहीं होता। मामला दरअसल ये है कि योजना आयोग ने दिल्ली स्थित मुख्यालय योजना भवन में दो टॉयलेट पर 35 लाख रूपये खर्च कर डाले...जिसमें से 5 लाख 19 हजार रूपये दोनों टॉयलेट में एक्सेस कंट्रोल सिस्टम लगवाने में खर्च कर दिए गए। इसके लिए बकायदा योजना आयोग के 60 अफसरों को एक्सेस कार्ड भी जारी कर दिए...ताकि इन अफसरों के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति टॉयलेट का इस्तेमाल न कर सके। एक्सेस कार्ड ने 1947 के पहले की वो याद ताजा कर दी...जब अधिकतर चीजों को यहां तक की पक्की सड़क को भी सिर्फ गोरे ही इस्तेमाल करते थे...और भारतीयों को उन चीजों के इस्तेमाल की इजाज़त नहीं थी...यानि एक बार फिर से ऐसा लगने लगा कि वे दिन वापस आ गए हैं...बस फर्क इतना है कि तब राज करने वाले गोरे थे...अब अपने ही लोग हैं। बहरहाल हम बात कर रहे थे 35 लाख के टॉयलेट की...ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब प्रधानमंत्री ने देश के वर्तमान आर्थिक हालात का हवाला देते हुए खर्चों में कमी करने की बात कही थी...औऱ अधिकारियों को भी ऐसी ही हिदायत दी थी। ऐसे समय में योजना आयोग का ये कारनामा अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। हैरत की बात तो ये भी है कि आरटीआई में मिली जानकारी कहती है कि आयोग के तीन और टॉयलेटों को इसी तर्ज पर अपग्रेड किया जाना है...यानि कि अभी इसी तरह टॉयलेट पर लाखों रूपए और खर्च किए जाने हैं। योजना आयोग का ये कारनामा ये बताने के लिए काफी है कि आखिर शुरूआत में...मैं क्यों हिंदुस्तान में दो भारत बसने की बात कर रहा था...एक भारत वो है जहां पर गरीब और पिछड़े लोग रहते हैं...जिनके पास शौचालय तो बहुत दूर की बात है...रहने को छत तक नहीं है...और एक भारत है...नहीं नहीं भारत नहीं...एक इंडिया है...जहां पर योजना आयोग के जैसे अधिकारी 35 लाख रूपए का टॉयलेट इस्तेमाल करते हैं। ऐसा नहीं है कि योजना आयोग पहली बार ऐसी किसी घटना के चलते चर्चा में आया हो...इससे पहले भी रोजाना 28 रूपए से ज्यादा खर्च कने वाले को गरीब न मानने वाले आयोग की अनोखी रिपोर्ट गरीबों का उपहास उड़ाती दिखी थी। बीते साल मई से अक्टूबर के बीच योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया का विदेश दौरा भी ऐसी ही कुछ कहानी बयां कर रहा था...जब आरटीआई से मिली जानकारी से पता चला कि विदेश दौरे पर अहलूवालिया का एक दिन का खर्च 2 लाख रूपए से भी ज्यादा था। बहरहाल बात 35 लाख के टॉयलेट की हो रही है...ऐसे में इस पर अहलूवालिया साहब का कहना है कि हमारे देश में ज्यादातर सरकारी इमारतों के साथ ही वहां के टॉयलेट की हालत बहुत खराब है...और योजना आयोग का टॉयलेट बेहतर हो रहा है तो इसमें हर्ज ही क्या है...वे ये भी कहते हैं कि आयोग के दफ्तर में वीवीआईपी के साथ ही विदेशी प्रतिनिधि भी आते हैं...इसलिए भी टॉयलेट पर इतना पैसा खर्च किया गया है। इनकी दलीलें मुझे तो समझ के परे लगती हैं...लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि काश ये पैसा जरूरतमंदों पर खर्च हुआ होता तो औऱ कुछ नहीं तो कम से कम लाखों लोगों को खासकर महिलाओं को खुले में शौच के लिए नहीं जाना पड़ता।













दीपक तिवारी

सोमवार, 4 जून 2012

रामदेव – गडकरी मुलाकात कितनी सियासी !



रामदेव – गडकरी मुलाकात कितनी सियासी !

मिशन 2014 की तैयारी में जुटी भाजपा को अब बाबा रामदेव का ही सहारा...कालेधन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा का समर्थन लेने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के घर पहुंचे बाबा रामदेव को समर्थन देने का ऐलान कर गडकरी ने तो ये जता ही दिया है कि भाजपा के मिशन 2014 में रामदेव और उनके आंदोलन की भूमिका अहम होगी। गडकरी जिस अंदाज में रामदेव से मिले उससे भी ये अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि भाजपा अब रामदेव की शरण में आ गयी है। अब भले ही गडकरी साहब कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ रामदेव के आंदोलन को समर्थन देने की बात कह रहे हों...लेकिन दिल्ली में गडकरी के आवास पर हुई इस मुलाकात के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। रामदेव बाबा को भी सफाई देने की जरूरत पड़ रही है...बाबा कहते हैं...ये राजनीति नहीं है...ये देश का सवाल है...इसलिए हम भाजपा ही नहीं सभी राजनीतिक दलों से समर्थन मांग रहे हैं। अब बाबा कितनी ही सफाई दें लेकिन हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले बाबा रामदेव के उस बयान को कैसे भुलाया जा सकता है जिसमें रामदेव ने लोगों से खुले शब्दों में भाजपा को वोट देने की अपील की थी। बाबा काला धन भारत में वापस लाने के साथ ही देश की प्रतिष्ठा और विकास की बात करते हैं...तो भाजपा भी अब उनके साथ खड़े होने का दम भर रही है...भाजपा की निगाहें मिशन 2014 पर हैं...और रामदेव एंड कंपनी की सीढ़ी के सहारे भाजपा अपने मिशन को पूरा करने में जुट गयी है...ऐसे में देखना ये होगा कि भाजपा के मिशन 2014 में रामदेव भाजपा की नैया पार लगाने में कितने सफल होते हैं।











दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com