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सोमवार, 22 जून 2015

योग पर धर्म का चश्मा !

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की प्लानिंग से लेकर क्लोजिंग तक योग पर धर्म का तड़का लगा। राजपाथ जब योगपथ में तब्दील हुआ, तो आरएसस से डेप्युटेशन पर बीजेपी में आए राम माधव की निगाहें किसी को तलाश रही थीं। पैंतीस हजार से ज्यादा की भीड़ में आम आदमी को खोजना भले ही आटे में सुई ढ़ूंढ़ने के बराबर हो लेकिन खास पर नज़र पड़ ही जाती है।
शाम ढ़लते ढ़लते राम माधव ट्विटर पर चह-चहाए। योग दिवस पर उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की गैर मौजूदगी पर सवाल खड़े कर दिए। लेकिन क्या है कि अगर तड़के में मिर्च ज्यादा हो जाए तो छींक आने लगती है। राम माधव के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। हालांकि जल्द ही उन्हें गलती का एहसास हुआ और माफी मांगते हुए बाद में उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट भी कर दिया। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। राम माधव की छींक से शुरु हुआ मामला सामूहिक सर्दी-जुकाम में तब्दील हो चुका था।
राम माधव की माफी का मतलब ये बिल्कुल नहीं की मुद्दा खत्म हो जाता है।  आखिर माधव के मन की बात सार्वजनिक हो गई थी। ये पता चल चुका था कि  कहीं न कहीं वो हामिद अंसारी की अनुपस्थिति के बहाने धर्म के मुद्दे को हवा देने की कोशिश कर रहे थे।
संयोग देखिए, अपनी ही पार्टी के बड़े नेता अमित शाह का पटना में योग ना करना राम माधव को नजर नहीं आया, लेकिन राजपथ पर योग करते 35,985 लोगों की भीड़ में हामिद अंसारी की अनुपस्थिति उन्हें खल गई।
हैरानी उस वक्त और ज्यादा हुई, जब उपराष्ट्रपति कार्यालय से योग दिवस में हामिद अंसारी के शामिल नहीं होने का स्पष्टीकरण दिया गया कि उन्हें न्यौता ही नहीं मिला था। फिर आयुष मंत्री श्रीपद नाईक बोले, कि अगर किसी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मुख्य अतिथि है तो राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति को निमंत्रण नहीं दिया जाता।
नाईक साहब आपके तर्क तो अपनी समझ से परे है। दुनिया को न्यौता देकर योग दिवस पर रिकार्ड बनाने की चाहत रखने वाले आप अगर उपराष्ट्रपति को न्यौता भेज देते तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता ?  
गजब है, आप दुनिया से तो योग करने का आह्वान करते हैं, लेकिन अपने देश के उपराष्ट्रपति को निमंत्रित करने में नियम की किताब खोल कर बैठ जाते हैं।
विडंबना है कि योग को धर्म के चश्मे से ना देखने की अपील करने वाली भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की ही आंखों पर कम से कम योग के मामले पर तो धर्म चश्मा चढ़ा हुआ दिखाई दे रहा है, ऐसे में कैसे दूसरे लोग इनकी बातों पर भरोसा कर अपने-अपने चश्में उतारें ?


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