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बुधवार, 27 नवंबर 2013

“आप” पर लगे आरोपों में कितना दम..?

चाहे कोई कुछ भी कहे लेकिन इस बात को नहीं नकार सकता कि इस भौतिक युग में अर्थ के बिना सब अनर्थ हैं। मतलब साफ है कि आप अगर किसी अच्छे कार्य के लिए लड़ाई भी लड़ रहे हैं तो भी आप अर्थ पर ही निर्भर हैं। आम आदमी पार्टी अगर भ्रष्टाचार के खात्मे के लक्ष्य के साथ चुनावी मैदान में है, जैसा कि आप के नेता अरविंद केजरीवाल दावा कर रहे हैं तो जाहिर है कि बिना अर्थ के वे इस लड़ाई को बहुत लंबे समय तक नहीं लड़ सकते। लेकिन अर्थ जुटाने के लिए आप के नेता किस हद तक जा रहे हैं, ये गौर करने वाली बात है। क्योंकि अगर आप बेनामी चंदे या किसी के भी कालेधन का इस्तेमाल इसके लिए कर रहे हैं तो इसे कहीं से भी जायज नहीं ठहाराया जा सकता। और अगर ऐसा हो रहा है तो आप और ऐसा करने वाले दूसरे लोगों में कोई फर्क नहीं रह जाएगा। चुनाव से ऐन पहले एक स्टिंग ऑपरेशन में आप के नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप ये सोचने पर मजबूर जरूर करते हैं।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भ्रष्टाचार के खात्मे और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ झंडा बुलंद कर दिल्ली के चुनावी समर में उतरी आम आदमी पार्टी ने सत्ताधारी कांग्रेस के साथ ही एक बार फिर से दिल्ली की सत्ता हासिल करने का ख्वाब देख रही भारतीय जनता पार्टी की भी रातों की नींद उड़ा दी है। लेकिन जो पार्टी भ्रष्टाचार के खात्मे के संकल्प के साथ आम आदमी से वोट की अपील कर रही थी उस पार्टी पर भ्रष्टाचार के आरोपों का लगना निश्चित तौर पर हैरान वाला है। मीडिया सरकार संस्था ने अपने स्टिंग में जो दावा किया था उस पर अगर यकीन किया जाए तो ये भाजपा और कांग्रेस के विकल्प के रूप में आप की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे लोगों का दिल तोड़ने के लिए काफी है। लेकिन स्टिंग को देखने के बाद मेरा व्यक्तिगत रूप से ये मानना है कि मीडिया सरकार के स्टिंग में आप के नेताओं पर लगे आरोपों में दम बिल्कुल भी नहीं है। ये इसलिए भी क्योंकि स्टिंग में आम आदमी पार्टी के नेता शाजिया इल्मी के साथ ही कुमार विश्वास भी कैश के बदले रसीद देने की बात करते नजर आ रहे थे। जहां तक कुमार विश्वास का 50 हजार कैश लेने की बात है तो प्रोफेशनली देखा जाए तो उनका किसी आयोजन के बदले उसकी फीस लेना और सुविधाएं लेना गलत तो नहीं है, वो भी जब वे उसकी रसीद भी दे रहे हैं।  
वहीं आम आदमी पार्टी का रॉ फुटेज देखने के बाद दावा है कि टीवी पर एडिटेड फुटेज दिखाई गयी और कई अहम हिस्सों को कांट छांट कर हटा दिया गया। अगर ये सही है तो ऐसे में स्टिंग करने वाली संस्था मीडिया सरकार पर सवाल तो उठते ही हैं। चुनावी समय में सिर्फ एक ही पार्टी के कई नेताओं को टारगेट कर स्टिंग करना भी मीडिया सरकार की नीयत पर शक करने को मजबूर करता है।
जिस तरह से आम आदमी पार्टी ने अपने नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर आप ने साहस दिखाते हुए आरोप सही होने पर अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान से वापस बुलाने तक की बात पूरी दमदारी से कही वो काबिले तारीफ है क्योंकि आज के समय में शायद ही कोई दूसरा ऐसा राजनीतिक दल होगा जो ये कहने का साहस दिखा पाएगा वो भी ऐसे वक्त पर जब वे उनकी जगह पर दूसरे उम्मीदवार को खड़ा नहीं कर सकते।
आप का कितना डर भाजपा और कांग्रेस में है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आप के नेताओं पर आरोप लगने के बाद भाजपा और कांग्रेस नेताओं ने इसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और आप पर चौतरफा हमले शुरु कर दिए। हालांकि आप ने इस स्टिंग के कांग्रेस का हाथ होने का दावा किया है और इसके लिए 1400 करोड़ रूपए खर्च करने का आरोप लगाया है लेकिन कांग्रेस का या फिर भाजपा का इस स्टिंग के पीछे कितना हाथ है ये तो वे ही बेहतर जानते होंगे लेकिन इसके बहाने भाजपा और कांग्रेस नेताओं ने जिस तरह आप पर चढ़ाई शुरु कर दी थी, वो जाहिर करने के लिए काफी है कि कहीं न कहीं आपका डर दोनों ही पार्टियों में हावी जरुर है। वैसे भी जो पार्टियां गले तक भ्रष्टाचार में डूबी हुई हों, जिनके नेताओं पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लग चुके हों उनका भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आप पर सवाल उठाना कहीं से भी जायज तो नहीं ठहरा जा सकता। कम से कम इनके मुंह से ये बातें अच्छी तो बिल्कुल भी नहीं लगती।
बहरहाल दिल्ली के चुनावी नतीजों पर इस स्टिंग का कितना असर पड़ेगा और जनता आप के झाड़ू से कांग्रेस और भाजपा को किस हद तक साफ करेगी या फिर आप का झाड़ू आप पर ही उल्टा चलेगा ये तो 8 दिसंबर 2013 को दिल्ली विधानसभा के चुनावी नतीजों के बाद ही सामने आएगा लेकिन फिलहाल आप ने दिल्ली में तो कांग्रेस और भाजपा का बैंड बजाने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है।


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सोमवार, 25 नवंबर 2013

जहरीला कौन..?

पांच राज्यों के चुनावी समर और 2014 के आम चुनाव से पहले सत्ता के जहर का नशा नेताओं के सिर चढ़कर बोल रहा है। खास बात ये है कि हर कोई इस जहर को पीने के लिए ललायित दिखाई दे रहा है। साथ ही किसने कितना जहर पिया..? कौन कितना जहरीला है इसका बखान भी खूब हो रहा है।
बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब राजस्थान की राजधानी जयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर में राहुल गांधी ने कांग्रेस में नंबर दो की पोजीशन संभालने से पहले अपने भाषण में कहा था कि बीती रात उनकी मां सोनिया गांधी ने उन्हें ये बताया कि सत्ता जहर के समान है। राहुल के इस बयान के बाद हर कोई हैरान था कि अगर वाकई में सत्ता जहर है तो फिर क्यों राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी ने थाल सजाकर प्याले में अपने युवराज राहुल को ये जहर पीने के लिए दिया..? सवाल ये भी उठने लगे कि क्या ये इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या की याद को ताजा कर देश की जनता के नाम एक भावुक अपील थी..? इस पर चर्चाओं का लंबा दौर चला। खैर बात आयी गयी हो गयी थी लिहाजा लोग इस बात को ये समझकर भूल गए थे कि शायद सत्ता के जहर की मदहोशी का कुछ अलग ही मजा होता है। लेकिन पांच राज्यों दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम के विधानसभा चुनाव के दौरान सोनिया गांधी ने भाजपा के लोगों को जहरीला कहकर एक बार फिर से उसी वाक्ये की याद ताजा कर दी। ऐसे में भाजपा के पीएम इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी कहां पीछे रहने वाले थे उन्होंने कांग्रेस पार्टी को ही ये कहकर सबसे जहरीली पार्टी करार दे दिया कि कांग्रेस सबसे ज्यादा वक्त तक सत्ता में रही है ऐसे में उससे जहरीली पार्टी कोई और कैसे हो सकती है..?
चुनावों में चर्चा जहर और जहरीले लोगों की हो रही है, तो ऐसे में जेहन में कई सवाल उठते हैं। मसलन, जहर तो वही पीना चाहेगा जो खुदकुशी करना चाहता हो लेकिन ये बात भी गौर करने वाली है कि खुदकुशी कोई अपनी खुशी से तो नहीं करता..! ऐसे में क्यों सोनिया ने अपने बेटे राहुल को सत्ता रूपी जहर का प्याला दिया..? क्यों राहुल ने खुशी से इस प्याले को स्वीकार किया और क्यों कांग्रेस और भाजपा दोनों एक दूसरे को जहरीला साबित करने में तुले हुए हैं। मान दोनों रहे हैं कि सत्ता जहर है और जहर राजनीतिक दलों के साथ ही उनके नेताओं में भी है लेकिन जुबानी जंग इस बात को साबित करने की हो रही है कि कौन ज्यादा जहरीला है..? भाजपा कांग्रेस को तो कांग्रेस भाजपा को ज्यादा जहरीला साबित करने पर तुली हुई है।
खास बात तो ये है कि इस जहर को हर राजनेता पीना चाहता है, लेकिन ये दुनिया जानती है कि उनके लिए ये जहर न होकर अमृत के समान है क्योंकि एक बार सत्ता मिलने पर ये अपनी कई पीढ़ियों को तारने का ऐसा इंतजाम कर लेते हैं कि ताकि फिर किसी को कुछ करने की जरूरत ही न पड़े।
जहर असल में किसी को पीना पड़ता है, उसका असर किसी को सहना पड़ता है तो वो है देश की जनता, जिसके दम पर ही ये राजनेता सत्ता हासिल करते हैं। कभी घोटालों और भ्रष्टाचार का जहर तो कभी महंगाई और सांप्रदायिक दंगों का जहर और ये सब भ्रष्ट मंत्री और नेताओं के मंथन से ही बाहर निकलता है। नेता को ऐश करते हैं लेकिन ये जहर देश की जनता का जीना मुहाल कर देता है। उम्मीद करते हैं कि देश की जनता इस बार वोट डालने से पहले सत्ता के लिए ललायित नेताओं की जहरीली फुंकार से बचने के उपाय पर भी विचार करेगी और ऐसे प्रत्याशियों को चुनेगी जो सत्ता के लिए नहीं जनता की सेवा के लिए काम करे।   


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