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शनिवार, 23 मार्च 2013

पहले पूछी उम्र...फिर किया बलात्कार..!


दिल्ली गैंगरेप के बाद से ही चारों तरफ महिला सुरक्षा को लेकर मंथन हो रहा है। सरकार ने भी आखिरकार नींद से जागने के बाद एंटी रेप बिल संसद में पेश किया जिस पर मुहर संसद की मुहर भी लग चुकी है लेकिन ये सवाल पहले दिन से ही जेहन में उमड़ रहा है कि क्या सिर्फ कड़े कानून बनाने से महिलाओं के खिलाफ अपराध में कमी आएगी..? क्या अपराधियों में कानून का खौफ पैदा होगा..?
इस सब के बीच यूपी के देवरिया जिले में एक एएसपी की बलात्कार पीड़िता पर की गयी टिप्पणी ने तो इन सवालों का जवाब ढूंढ़ना और भी मुश्किल कर दिया है..! दरअसल बलात्कार की शिकायत दर्ज कराने देवरिया जिले में तैनात एएसपी केसी गोस्वामी के पास पहुंची पीड़िता से केसी गोस्वामी साहब ने उसके बच्चों की उम्र पूछते हुए कहा कि इतनी उम्र की महिला के साथ कौन बलात्कार करेगा..? (जरूर पढ़ें- अबोध कन्याओं से यौन अपराध क्यों..?)
पीड़ित की शिकायत दर्ज कर आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने की बजाए जब पुलिस अधिकारी इस तरह का रवैया अपनाएंगे तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि बलात्कार की पीड़ित कितनी महिलाओं की शिकायत संबंधित थाने में दर्ज होती होंगी और कितने आरोपी सलाखों के पीछे पहुंचते होंगे। जब इंसाफ की गुहार लगाने पुलिस के पास पहुंची पीड़ित के प्रति पुलिस का ऐसा रवैया रहेगा तो क्या इससे दुष्कर्म करने वालों का हौसला नहीं बढ़ेगा..?
दुष्कर्म की शिकार होने के बाद अधिकतर पीड़ित या उनके परिजन सिर्फ इसलिए शिकायत दर्ज कराने पुलिस के पास नहीं जाते क्योंकि कहीं न कहीं उनकी शिकायत दर्ज करने की बजाए थाने में उनसे तरह तरह के सवाल पूछकर उन्हें और ज्यादा अपमानित किया जाता है..! हालांकि सौ प्रतिशत मामलों में ये बात लागू नहीं होती लेकिन दुर्भाग्य से देश के कई हिस्सों में ऐसी घटनाएं आम हैं..! (जरूर पढ़ें- बलात्कार- 1971 से लगातार..!)
सरकार एक तरफ महिलाओं के खिलाफ अपराध करने पर दोषियों के खिलाफ कड़े कानून बना रही है...उन्हें सख्त से सख्त सजा देने की दिशा में काम कर रही है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जब तक यूपी जैसे किसी राज्य के देवरिया जैसे किसी जिले में केसी गोस्वामी जैसे अधिकारी पुलिस विभाग में तैनात रहेंगे तो कैसे अपराधियों पर लगाम कसेगी..? कैसे महिलाएं बिना डर के बेझिझक होकर अपनी शिकायत दर्ज कराने थाने तक पहुंचने का साहस जुटा पाएंगी..?
हम बात करते हैं कि अबोध कन्याओं को तक अपनी हवस का शिकार बनाने वाले दरिंदों की विकृत मानसिकता की…ऐसे लोगों की सोच में मानसिकता में बदलाव लाने की लेकिन जब केसी गोस्वामी जैसी मानसिकता के लोग पुलिस विभाग में वो भी अधिकारी की कुर्सी पर बैठे होंगे तो कैसे महिलाओं के प्रति अपराधों पर...विकृत मानसिकता से ग्रसित अपराधियों पर लगाम कस पाएगी..?
यूपी पुलिस के आला अधिकारी भले ही एएसपी गोस्वामी के इस बयान पर माफी मांगते हुए एएसपी के स्पष्टीकरण मांके बाद एएसपी के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कर रहे हैं लेकिन क्या सिर्फ एक एएसपी के खिलाफ कार्रवाई से महिलाओं के खिलाफ गोस्वामी जैसे दूसरे पुलिसवालों की सोच बदल पाएगी और आगे ऐसी कोई घटना नहीं होगी..? (जरूर पढ़ें- क्या लड़की होना उसका कसूर था ?)
जाहिर है जब तक पुलिसवालों के रवैये में सुधार नहीं आता न तो महिलाओं के खिलाफ अपराध रुकेंगे और न ही अपराधियों पर लगाम कसेगी और उनके मन में पुलिस के प्रति भय पैदा होगा लेकिन पुलिस विभाग में गोस्वामी जैसे पुलिस अधिकारियों के रहते ये संभव नहीं लगता..! हम तो बस बेहतरी की उम्मीद ही कर सकते हैं लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या ये उम्मीद कभी परवान चढ़  पाएगी..?

deepaktiwari555@gmail.com

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

संजय दत्त निर्दोष हैं..!


काटजू साहब ने संजय दत्त की सजा माफ करने की अपील की है...इतना ही नहीं तरीका भी सुझा दिया है। अब काटजू साहब ठहरे पूर्व न्यायाधीश तो न्याय प्रक्रिया के तौर तरीके और उससे बचने की हर काट से तो वाकिफ ही होंगे..! लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश का जिसने जज रहते हुए जाने कितने लोगों को कानून तोड़ने पर सजा सुनाई होगी अगर वो किसी व्यक्ति की सजा माफ करने की अपील करता है तो ये बात गले नहीं उतरती..!
माना काटजू साहब भी संजय दत्त की अदाकारी के मुरीद रहे हों लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि किसी पर अपराध सिद्ध होने के बाद वे उसकी सजा माफ करने की पैरवी करें..! अकेले काटजू ही नहीं बॉलिवुड सितारों के साथ ही नेताओं की भी लंबी फेरहिस्त है जिन्हे संजय दत्त सर्वोच्च न्यायालय में जुर्म साबित होने के बाद भी निर्दोष दिखाई देते हैं..!
इन लोगों की दलील तो सुनिए ये कहते हैं कि संजय दत्त ने 20 सालों में काफी कुछ भुगता है लिहाजा संजू बाबा की सजा माफ कर दी जानी चाहिए। लेकिन इन लोगों को कौन समझाए कि हिंदुस्तान में सुस्त और लंबी न्याय प्रक्रिया के चलते लाखों लोग सालों से यही सब तो भुगत रहे हैं फिर ऐसे में क्यों न उन सबकी सजा भी माफ कर दी जाए..?
संजय दत्त एक अच्छे फिल्म अभिनेता हैं तो इसका मतलब ये तो नहीं कि उनके लिए अलग से कानून बनाया जाए। हैं तो वे इसी देश के नागरिक न फिर क्यों न अपराध करने पर दूसरे अपराधियों की तरह संजय दत्त को सजा मिले..? सुनील दत्त और नर्गिस के बेटे और फिल्म अभिनेता होने से क्या वे देश के कानून से न्यायालय से ऊपर हो जाते हैं..? ये भी दलील दी जा रही है कि संजय दत्त और उनके माता – पिता ने लंबे तक तक समाज की सेवा की है।  फिर तो चोर – डकैत करोड़ों की डकैती कर लेंगे और उस पैसे का कुछ चैरिटी में खर्च कर समाजसेवी का तमगा हासिल कर लेंगे और अपनी सजा माफ करने की अपील करेंगे..! कहेंगे- हमने तो चैरिटी करते हैं लिहाजा हमारी सजा माफ कर दो..!
आज संजय दत्त की सजा माफ होगी तो कल किसी दूसरे की सजा माफ करने से आप कैसे इंकार कर सकते हैं..? जाहिर है  ये अपराधियों का मनोबल बढ़ाने के साथ ही आम और खास आदमी के बीच न्याय प्रक्रिया में भी एक दीवार खड़ी करने का काम करेगा। संजय दत्त जैसे अभिनेता को 5 साल जेल की सजा से आम लोगों में न्यायपालिका के प्रति जो विश्वास मजबूत हुआ है उसे तो ये पलभर में ही धवस्त कर देगा।
केरल तट पर भारतीय मछुवारों को गोली मारने वाले इटली के नौसैनिकों को भारत वापस लाने के लिए आप न्याय की बातें करते हुए दुनियाभर में ढिंढोरा पीटते हैं लेकिन अपने ही देश के अंदर कानून तोड़ने वाले को सर्वोच्च न्यायालय से सजा होने के बाद भी उसकी सजा माफ करने की पैरवी करते हैं।
अपराध चाहे किसी ने भी किया हो उसे सजा मिलनी ही चाहिए फिर चाहे वो एक आम आदमी हो या फिर संजय दत्त जैसा खास।

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गुरुवार, 21 मार्च 2013

सीबीआई- फिर काम आया ब्रह्मास्त्र..!


डीएमके के समर्थन वापस लेने से संकट में घिरी सरकार के लिए सीबीआई एक बार फिर से ब्रह्मास्त्र साबित हुआ और केन्द्रीय मंत्री बेनी की तान पर सरकार को हेकड़ी दिखा रहे मुलायम सिंह की सारी हेकड़ी सीबीआई के नाम पर कुछ ही घंटों में हवा हो गयी..!
डीएमके नेता स्टालिन के घर पर सीबीआई के छापे के बाद खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भले ही छापे की टाईमिंग को लेकर हैरानी प्रकट करते हुए इसमें सरकार की किसी तरह की भमिका से इंकार कर रहे हों लेकिन पर्दे के पीछे की सच्चाई किसी से छुपी नहीं है..! (पढ़ें- सीबीआई जिंदाबाद..!)
सरकार कहती है कि सीबीआई के छापे में सरकार का किसी तरह का कोई दखल नहीं है तो फिर ये बात समझ में नहीं आती कि आखिर फिर छापे की कार्यवाही को अब क्यों रोका गया..? क्या ये सीबीआई के काम में दखल नहीं है..? अगर सीबीआई निष्पक्ष तरीक से अपना काम कर रही थी तो फिर खुद प्रधानमंत्री और सरकार में शामिल मंत्रियों को क्यों डीएमके नेता स्टालिन के घर छापे के बाद इस पर सफाई देने की जरूरत पड़ी..? करने देते सीबीआई को अपना काम...इससे आपके माथे पर चिंता की लकीरें क्यों उभर आयी..?
राजनीति में सरकार को बचाने का मैनेजमेंट भी गजब का है। सहयोगी आंखें दिखाए तो सीबीआई का सिर्फ डर दिखा दो सारा काम अपने आप हो जाएगा..! दामन तो किसी नेता का पाक साफ है नहीं कि किसी मामले में जांच से न घबराएं..! जाहिर है नेताओं का भ्रष्टाचार और बेहिसाब अर्जित की गयी संपत्ति ही उनके मन में सीबीआई का डर पैदा करते हैं, वर्ना क्यों कोई नेता सीबीआई के नाम से ही खौफ खाए..?
सीबीआई को सरकार का ब्रह्मास्त्र यूं ही नहीं कहा जाता...सीबीआई की मारक क्षमता देखिए दक्षिण में डीएमके नेता के घर छापा पड़ता है और उत्तर में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह के तेवर मिनटों में नरम पड़ जाते हैं। छापे की कार्यवाही के बाद जितनी जल्दी मुलायम के तेवर नरम पड़े इतनी देर में तो हवाई जहाज से भी दक्षिण से उत्तर तक का सफर पूरा नहीं होता है लेकिन मुलायम की कठोरता जाने में देर नहीं लगी।
ऐसा नहीं कि बात सिर्फ मुलायम तक सीमित हो...सरकार को बाहर से समर्थन दे रही बसपा सुप्रीमो मायावती को ही देख लिजिए। सीबीआई के दुरुपयोग और इसका शिकार होने की बात करती हैं लेकिन फिर भी कहती हैं कि सरकार को समर्थन देना जारी रखेंगे। डीएमके की कहानी तो अभी ताजी ही है।
बहरहाल सीबीआई के सहारे सरकार को फिर से कोई नई आफत आने तक राहत की ऑक्सीजन तो मिल ही गयी है। वैसे भी सरकार के पास सीबीआई रूपी ब्रह्मास्त्र तो है ही फिर कोई आफत आई तो उससे भी निपट लेंगे तब तक 2014 भी आ ही जाएगा..!

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संजय दत्त- द मेकिंग ऑफ रियल खलनायक..!


सर्वोच्च न्यायालय ने 20 साल पहले 12 मार्च पहले 1993 में हुए मंबई ब्लास्ट के सिलसिले में अवैध हथियार रखने का दोषी पाए जाने पर फिल्म अभिनेता संजय दत्त की 5 साल की सजा पर मुहर लगा दी है। आमतौर पर किसी को उसके किए की सजा मिलने पर हालांकि दोषी से साहनुभूति रखने वाले उसके परिजन और रिश्तेदार ही होते हैं लेकिन संजय दत्त के मामले में तस्वीर कुछ अलग दिखाई दे रही है।
फिल्म अभिनेता होने के नाते संजू बाबा से सहानुभूति रखने वालों प्रशंसकों की तादाद खासी है जिनमें से अधिकतर को अभी भी ये लगता है कि कम से कम संजय दत्त को तो सजा नहीं सुनाई जानी चाहिए थी..! हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त की सजा को 6 साल से घटाकर 5 साल कर दिया है और 18 महीने जेल में काट चुके संजू बाबा को करीब साढ़े तीन साल जेल में काटने होंगे।
कुछ ही घंटों के अंतराल में देश की आर्थिक राजधानी में 12 बम धमाके, 257 लोगों की मौत, 713 घायल और करोड़ों का नुकसान...ये कोई छोटी घटना नहीं थी। 20 सालों में बहुत कुछ बदल गया बंबई का नाम बदलकर मुंबई हो गया। इसी तरह 18 महीने जेल में बिताने के बाद संजय दत्त की जिंदगी में भी कई बदलाव देखने को मिले। संजय ने फिल्मों में वापसी के साथ ही राजनीति जुड़कर समाज की मुख्यधारा में लौटने के तमाम प्रयास भी किए जिसमें वे सफल भी होते दिखाई दिए लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर से संजय दत्त की जिंदगी सलाखों के पीछे लाकर खड़ी कर दी है। ये संजय दत्त की वो रियल लाईफ है जहां संजयद दत्त को चाहकर भी रिटेक का मौका नहीं मिलने वाला यानि कि जो गुनाह आपने किया है उसकी सजा आपको भुगतनी ही पड़ेगी।
संजय ने कई फिल्मों में बेहतरीन अभिनय किया...कभी वे पुलिसवाले के किरदार में ईमानदार अफसर की भूमिका में बदमाशों को सलाखों के पीछे धकेलते नजर आए तो कई बार खलनायक और डॉन के रूप में। कभी संजू बाबा गांधी जी के आदर्शों पर चलते हुए गांधीगिरी करते नजर आए तो कई बार मुन्नाभाई के रूप में लोगों को गुदगुदाते नजर आए लेकिन 1993 में संजय की जिंदगी में भूचाल लाने वाली मुंबई ब्लास्ट का दि एंड पांच साल जेल की सजा के साथ होगा ऐसा शायद ही संजय दत्त और उनके प्रशंसकों ने कभी सोचा होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जिस तरह संजय दत्त के अपराध की प्रकृति को गंभीर बताते हुए 5 साल सजा का फैसला सुनाया वो अपने आप में एक नजीर की तरह है।
संजू बाबा से सहानुभूति रखने वालों की तादाद में भले ही उनके प्रशंसकों के अलावा बॉलिवुड की हस्तियां और राजनीतिक लोग भी हैं जो संजय दत्त को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी बेगुनाह ठहरा रहे हैं लेकिन इस फैसले ने देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसे को और मजबूत ही किया है।
ये एक कलाकार को चाहने वालों के लिए एक बुरी खबर जरूर हो सकती है लेकिन ये न्याय की जीत है जो न्याय व्यवस्था पर लोगों के भरोसे को मजबूती प्रदान करती है। ये फैसला खासतौर पर उन कथित बड़े लोगों के लिए एक सबक है जो ये सोचते हैं कि वे कहीं भी, कभी भी, कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हैं और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता..!
लेकिन इस तस्वीर का एक अफसोसजनक और दुखद पहलू ये भी है कि इस धमाके के 20 साल बाद भी धमाकों के मास्टरमाइंड आज भी खुली हवा में सांस ले रहे हैं जो अपने आप में कई सवाल खड़े करता है..?

deepaktiwari555@gmail.com 

बुधवार, 20 मार्च 2013

स्टालिन के बहाने मुलायम पर निशाना..!


अब इसे इत्तेफाक कहें या कुछ 18 सासंदों वाली करूणानिधि की डीएमके ने केन्द्र सरकार से समर्थन क्या वापस लिया उधर सीबीआई ने विदेशी कारों से अवैध आयात के मामले में करूणानिधि के बेटे एमके स्टालिन के घर छापा मार दिया। स्टालिन पर आरोप है कि उनके प्रड्यूसर बेटे उदयनिधि ने विदेशी गाड़ी मंगवाई है लेकिन इसकी ड्यूटी नहीं चुकाई है। (पढ़ें- सपोर्ट वापस लेते ही सीबीआई ने मारी रेड)।
सीबीआई के इस छापे से एक बार फिर से कई सवाल खड़े हुए हैं जो सरकार पर सीबीआई के दुरुपयोग को लेकर लगते रहे हैं कि केन्द्र सरकार सहयोगी दलों को डराने के लिए सीबीआई का उपयोग करती रही है..!
फिलहाल तो सीबीआई ने छापा सरकार से श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर समर्थन वापस ले चुकी द्रमुक नेता और द्रमुक प्रमुख करूणानिधि के बेटे स्टालिन के घर मारा है लेकिन इसकी मार केन्द्र सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी पर पड़ने की पूरी संभावना है..! (पढ़ें- CBI का डर या राजनीति का दोगलापन !)।  
बेनी के बयान पर सरकार से पंगा ले रही 22 सांसदों वाली मुलायम की पार्टी अगर केन्द्र सरकार से समर्थन वापस ले लेती है तो निश्चित तौर पर मनमोहन सरकार अल्पमत में आ जाएगी ऐसे में द्रमुक नेता स्टालिन के घर समर्थन वापसी के दो दिन बाद सीबीआई की ये कार्यवाही केन्द्र सरकार का मुलायम के लिए एक ईशारे की तरह है कि अगर द्रमुक की राह पर चलोगे तो तुम्हारा भी कुछ ऐसा ही हश्र होगा..!
इस बात को इसलिए भी नहीं झुठलाया जा सकता क्योंकि मुलायम सिंह पूर्व में खुद इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि केन्द्र सरकार सहयोगी दलों को सीबीआई का डर दिखाती है। ऐसे में डीएमके नेता एमके स्टालिन के घर सीबीआई के छापे के बाद मुलायम केन्द्र सरकार के प्रति अपने नाम को सार्थक करने हुए कठोर से फिर से मुलायम हो जाएं तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए..!
अपने सियासी फायदे के लिए सीबीआई के दुरुपयोग के आरोप हमेशा लगते रहे हैं फिर चाहे केन्द्र में यूपीए की सरकार हो या एनडीए की..! इससे पहले बसपा सुप्रीमो मायावती 2004 के आम चुनाव से पहले यूपी में साथ मिलकर चुनाव न लड़ने पर  भाजपा पर सीबीआई के नाम पर धमकाने का आरोप लगा चुकी हैं।
यूपीए पर तो हमेशा से ही इस तरह के आरोप लगते रहे हैं फिर चाहे वो मुलायम सिंह और मायावती का मसला हो या फिर अब द्रमुक का..! (पढ़ें- माया-मुलायम के कितने मुंह ?)
समाजसेवी अन्ना हजारे, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी के साथ योगगुरु बाबा रामदेव भी सीबीआई के दुरुपयोग को लेकर केन्द्र सरकार पर निशाना साधते रहे हैं और सीबीआई की स्वायत्ता को लेकर आवाज बुलंद करते रहे हैं।
एक बार फिर से सीबीआई के बहाने केन्द्र की यूपीए सरकार फिर से सियासी दलों के निशाने पर हैं वो भी ऐसे वक्त पर जब सरकार पर अल्ममत में आने का संकट गहरा रहा है। सरकार भले ही डीएमके नेता स्टालिन के घर सीबीआई के छापे का समर्थन वपस लेने से कोई संबंध होने से इंकार करती नजर आएगी लेकिन समर्थन वापसी के दो दिन के बाद सीबीआई का छापा कहीं न कहीं सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करने के लिए काफी है ऐसे में देखना ये होगा कि सीबीआई का ये छापा केन्द्र सरकार की राह आसान करता है या फिर मुश्किल..! फिलहाल तो इस छापे ने मुलायम सिंह को केन्द्र सरकार के प्रति अपने कठोर रुख के लिए एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया होगा..!  

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