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बुधवार, 22 जुलाई 2015

जीते कोई, हार तो जनता की ही होगी !

सवालों में मोदी सरकार के मंत्री हैं, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री है, ऐसे में संसद के मानसून सत्र पर हंगामे के बादल तो गहराने ही थे। लेकिन ये बादल अब जमकर बरसने भी लगे हैं। लोकसभा और राज्यसभा हंगामे की बाढ़ में सरकार की नाव भी अब डगमगाने लगी है। सरकार चर्चा के लिए तैयार है लेकिन विपक्ष पहले विवादित मंत्रियों के इस्तीफे की मांग पर अड़ा हुआ है।
सत्र न चलने देने के लिए सरकार विपक्ष के सिर ठीकरा फोड़ रही है लेकिन सत्ता पक्ष ये भूल रहा है कि ये रवायत तो पुरानी है, जिसे विपक्ष में रहते वे भी बखूबी निभाते आए हैं। ऐसे में अब खुद पर बन आई है, तो सरकार का विपक्ष के सिर ठीकरा फोड़ कर खुद को बेबस दिखाना गले नहीं उतरता। विपक्ष भी क्या करे, सरकार के खिलाफ हाथ आए इन मुद्दों को कैसे आसानी से अपने हाथ से निकल जाने दे। लिहाजा संसद में गतिरोध जारी है। फिलहाल इसके आसानी से टूटने के आसार भी नहीं दिखाई दे रहे हैं।
इसकी भेंट चढ़ रही है तो आम जनता की गाढ़ी कमाई, आखिर संसद की एक दिन की कार्यवाही पर खर्च होने वाले लाखों रूपए टैक्स के रूप में जनता की जेब से ही निकलते हैं। हमारे सांसदों के खाने पर पहले ही सब्सिडी के रूप में साल का लाखों रूपए खर्च हो रहे हैं। वो पैसे भी तो आखिर जनता की जेब से टैक्स के रूप में निकाला जाता है।  
सवाल वहीं खड़ा है कि आखिर कौन सही है और कौन गलत ? जाहिर है सदन में हंगामे से किसी को कुछ हासिल होने वाला नहीं है। ना सत्ता पक्ष को और ना ही विपक्ष को। चर्चा से ही हल निकलता है और चीजें स्पष्ट होती हैं, चर्चा से ही बारीक से बारीक चीजें भी सामने निकल कर आती हैं। मतलब साफ है कि हंगामा नहीं चर्चा ही इसका एकमात्र हल है। लेकिन चर्चा विपक्ष कभी नहीं चाहता, चर्चा करने से आसान है, शायद हंगामा करना, फिर चाहे वो कांग्रेस हो भाजपा हो या फिर कोई और राजनीतिक दल।
वैसे भाजपा और कांग्रेस की ये लड़ाई अब थोड़ी और रोचक होती दिख रही है। यूपीए सरकार में कोयला राज्य मंत्री रहे संतोष बागडोरिया के पास्पोर्ट को लेकर सुषमा स्वराज के एक ट्वीट और उत्तराखंड के सीएम हरीश रावत के निज सचिव मो. शाहिद के खिलाफ सामने आए एक कथित स्टिंग के बाद रक्षात्मक दिखाई दे रही भाजपा आक्रमक हो गयी है। वहीं सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल कर बैठी कांग्रेस बैकफुट पर आती दिखाई दे रही है। भाजपा को भले ही खुश होने का एक मौका मिल गया है, लेकिन आरोप-प्रत्यारोप के इस पलड़े पर अभी भी कांग्रेस की तरफ झुका नजर आ रहा है। किसके आरोपों में कितना दम है, ये तो जांच के बाद ही सामने आ पाएगा। बहरहाल मानसून सत्र पर हंगामे की बाढ़ ने संसद के दो दिनों को लील लिया है, लेकिन सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही आरोप-प्रत्यारोप के साहारे एक दूसरे का चीर हरण करने में पूरी शिद्दत से जुटे हुए हैं। इस लड़ाई में जीत चाहे किसी की भी हो लेकिन हार तो हर हाल में जनता की ही होनी है।


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