कुल पेज दृश्य

शनिवार, 17 मई 2014

अच्छे दिन आने वाले हैं..!



हसरतें तो बहुत से लोगों की थी, हसरतें हो भी क्यों न, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मुखिया कौन नहीं बनना चाहेगा, लेकिन लोकतंत्र का राजा वही बनता है, जिसे जनता चुनती है। हसरतें तो माया और मुलायम की भी थी, हसरतें जयललिता और ममता बनर्जी की भी थी, शरद पवार और लालू प्रसाद यादव को हम कैसे भूल सकते हैं। हसरत न सिर्फ किंग बनने की थी बल्कि हसरत ये भी थी कि किंग न बन सके तो किंगमेकर की भूमिका में तो आ ही जाएंगे। पर्दे के पीछे से आए बिना किंगमेकर क्या गुल खिला सकता है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल तो जरा भी नहीं है। लेकिन 16 मई को जब जनता ने अपना फैसला सुनाया तो क्या मुलायम सिंह, क्या मायावती  क्या करूणानिधि क्या नीतिश कुमार, क्या शरद पवार और क्या लालू प्रसाद यादव सब सिर्फ हाथ ही मलते रह गए। केन्द्र की कुर्सी का रास्ता तैयार करने वाले उत्तर प्रदेश में अपने गढ़ में मायावती का हाथी एक कदम भी नहीं चल पाया तो मुलायम कि साईकिल सिर्फ 5 कदम चलकर ही पंचर हो गई। तमिलनाडु में करूणानिधि अपना खाता भी नहीं खोल सके तो बिहार में इतराने वाले नीतिश कुमार सिर्फ 2 कदम चलकर ही लड़खड़ा गए।   
हालांकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडू में जयललिता का जादू जरूर चला लेकिन किंगमेकर बनकर इतराने की इनकी हसरत भी मोदी की सुनामी में बह गई। ममता और जयललिता पश्चिम बंगाल और तमिलनाडू में अपने दमदार प्रदर्शन से खुश जरूर होंगी लेकिन उनकी ये खुशी वहीं तक सीमित रह गई। मोदी की सुनामी ने इन सब के लिए दिल्ली के रास्ते मानो अगले 5 साल तक तो बंद ही कर दिए। नतीजों के बाद इतरा तो नमो नमो जपने वाले भी खूब रहे हैं, लेकिन इन्हें ये याद रखना होगा कि निर्वाचित सरकार का कार्यकाल पांच वर्ष का ही होता है, सत्ता में रहते हुए समय कितनी तेजी से बीतता है, इसे सत्तारुढ़ दल से बेहतर और कौन समझ सकता है। जाहिर है चुनौतियां बहुत ज्यादा हैं, और देश की जनता से किए वादों को पूरा करने के लिए समय बहुत कम। जनादेश 2014 के साथ ही नरेन्द्र मोदी और भाजपा के अच्छे दिन तो आ ही गए हैं लेकिन सवाल ये है कि क्या वास्तव में देश की जनता के भी अच्छे दिन आएंगे।


deepaktiwari555@gmail.com