कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

मोदी रन – पार्ट 2


(जरुर पढ़ें - मोदी रन PART-1)
कर्नाटक में भ्रष्टाचार के कुहासे में कहीं गुम हो गई भाजपा की साख को खोजते खोजते मोदी ने कर्नाटक को पार तो कर लिया लेकिन कर्नाटक के आगे की राह मोदी के लिए और भी कांटों भरी थी क्योंकि कर्नाटक के बाद मोदी की गाड़ी आंध्र प्रदेश में जो प्रवेश कर रही है। आंध्र प्रदेश, जहां की 42 लोकसभा सीटों में से 33 पर कांग्रेस का कब्जा है, वहां पर हाल ही में जेल से छूटे वाईएसआर कांग्रेस के जगनमोहन रेड्डी को साथ लेकर अपनी नैया पार लगाने की कोशिश में लगी भाजपा को पार लगाने में भी मोदी को पसीने छूट रहे हैं। मोदी रन में आंध्र प्रदेश को डिजाईन भी कुछ इस तरह किया गया है कि मोदी आसानी से आंध्र का किला फतह न कर पाएं लेकिन यहां मोदी समर्थकों को निराश होने की बिल्कुल भी जरुरत नहीं है, क्योंकि यहां तो रीटेक के कई मौके हैं और एक बार गिर पड़े तो फिर से उसी रास्ते पर चल पड़ो, यहां कौन रोकने वाला है। हां इतना जरूर है कि इस बार यहां पर तेलंगाना का मसला भी नए गुल खिलाने की ओर संकेत दे रहा है। अब ये क्या रंग लाएगा ये तो वक्त ही बताएगा फिलहाल तो रीटेक के साथ गिरते पड़ते मोदी ने आंध्र को भी पार कर ही लिया है।
आंध्र के बाद मोदी रन ने बिहार में एंट्री मारी है, वही बिहार जिसकी 40 लोकसभा सीटों में से 20 पर जदयू का कब्जा है तो 12 सीटें भाजपा के भी पास हैं और कांग्रेस सिर्फ 2 पर ही सिमटी हुई है। वही बिहार जो केन्द्र की राजनीति की दशा और दिशा तय करता है। वही बिहार जहां भाजपा के मुताबिक उसे राजनीति में बेवफाई मिली है, वही बिहार जिसके मुख्यमंत्री को मोदी फूटी आंख नहीं सुहाते, वही बिहार जहां मोदी का स्वागत धमाकों के साथ होता है, वही बिहार जिसके मुखिया मोदी की बातों को झूठा साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। जाहिर है ऐसे में बिहार को पार पाना आसान तो बिल्कुल नहीं है और बिहार के मामले पर तो पूरे देश की निगाहें भी टिकी हैं कि आखिर जनता अपनी अदालत में किसे बेवफाई की सजा देगी मोदी की भाजपा को या फिर नीतिश की जदयू को।
मोदी रन में तो मोदी को बिहार में बहुत ज्यादा दिक्कत पेश आती नहीं दिखाई दी और एक – आद रीटेक के बाद मोदी बिहार को पार कर यूपी को रवाना हो गए, वही यूपी जिसे फतह करने की तैयारी मोदी ने सौंपी है, अपने हनुमान यानि कि अमित शाह को। जाहिर है 80 लोकसभा सीटों वाला उत्तर प्रदेश हमेशा से सबसे अहम केन्द्र रहा है और हमेशा रहेगा। लेकिन क्या इतना आसान होगा मोदी के लिए अपने हनुमान के बूते यूपी को पार पाना, उस यूपी को जहां कि राजनीति धर्म और जातिवाद के मकड़जाल में उलझी हुई है। जो कभी समाजवादी पार्टी की साईकिल में सवार होने से गुरेज नहीं करती तो बसपा के हाथी की सवारी से भी उसे परहेज नहीं है। खास बात तो ये है कि कांग्रेस का हाथ भी इन्हें अपना सा लगने लगता है, तो कमल खिलाने में भी यहां के लोग नहीं हिचकिचाते। 2009 में सपा की 23, कांग्रेस की 21, बसपा की 20 और भाजपा की 10 सीटें भी तो कुछ इसी ओर ईशारा कर रही हैं। लेकिन इस बार तस्वीर कुछ बदली बदली सी है। ऐसे में कौन यूपी के दम पर केन्द्रीय सत्ता में अपना दबदबा बनाएगा ये तो वक्त ही तय करेगा। मोदी भी जब यूपी में पहुंचे तो मानो उनकी राह में कांटों की फसल लहलहा रही थी लेकिन मोदी ने कई रीटेक के बाद ही सही यूपी को आखिर पार कर ही लिया। जारी है...

मोदी रन का सफर अभी बाकी है, तमिलनाडु, असम, मध्य प्रदेश, पंजाब, वेस्ट बंगाल, हरियाणा, ओडिशा जैसे तमाम राज्य से मोदी रन को तो अभी गुजरना है...मिलते हैं बहुत जल्द मोदी रन कि आखिरी किश्त के साथ।

deepaktiwari555@gmail.com

सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

धमाके, शिंदे और “रज्जो”


पटना दहल रहा था लेकिन हमारे माननीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे मुंबई में फिल्म रज्जो के म्यूजिक एलबन रीलीज के कार्यक्रम में जाने की तैयारी कर रहे थे। धमाके के घायल अस्पताल में कराह रहे थे लेकिन शिंदे साहब मंच पर फिल्म अभिनेत्री कंगना राणावत के साथ खिलखिला रहा थे। पूरा देश जानना चाहता था कि आखिर क्यों इन धमाकों की कोई भनक तक केन्द्र व राज्य सरकार के साथ ही खुफिया एजेंसियों को नहीं लग पायी लेकिन शिंदे के लिए शायद रज्जो ज्यादा जरूरी थी। कितनी जरूरी इस बात का अंदाजा शिंदे के उस बयान से लगाया जा सकता है जब वे कार्यक्रम के बाद मीडिया के सवालों का जवाब दे रहे थे। (जरूर पढ़ें- क्यों पड़े हो शिंदे के पीछे..?)
बकौल शिंदे समय न होने के बाद भी वे इस कार्यक्रम में पहुंचे थेक्योंकि उनका इस कार्यक्रम में पहुंचने की दिली ख्वाहिश थी। लेकिन घटनास्थल पर जाने का, पटना के अस्पताल में भर्ती घायलों से मिलने का, जांच एजेंसियों के साथ ही पुलिस दोषियों की धरपकड़ के लिए क्या कदम उठा रही है, इसको जानने का शिंदे के पास वक्त नहीं था। गृहमंत्री शिंदे की प्राथमिक्ता में रज्जो के म्यूजिक लॉंचिंग का कार्यक्रम सबसे ऊपर था जबकि धमाकों की पूरी जानकारी लेना शायद उनकी प्राथमिक्ता में नहीं था। शायद इसलिए ही धमाकों के घंटों बाद तक गृहमंत्री साहब के पास धमाकों से संबंधित पुख्ता जानकारी तक नहीं थी।
याद दिलाना चाहूंगा कि ये वही सुशील कुमार शिंदे हैं, जो कोयला घोटाले पर ये कहते हैं कि लोगों की याददाश्त कमजोर होती है और बफोर्स की तरह लोग इसे भी भूल जाएंगे। शायद पटना धमाकों पर भी गृहमंत्री शिंदे कुछ ऐसा ही सोच रहे होंगे इसलिए ही उन्होंने अपनी पटना पहुंचने की बजाए मुंबई वाले कार्यक्रम को ज्यादा तरजीह दी। (पढ़ें - नहीं चाहते दलित गृहमंत्री..!)    
वैसे एक वाजिब वजह और दिखाई देती है देश के गृहमंत्री शिंदे की इस आचरण के पीछे। बात ज्यादा दिन पुरानी नहीं है, जब राहुल गांधी ने एक रैली में कहा था कि खुफिया एजेंसी के एक अधिकारी ने उन्हें बताया कि यूपी के मुजफ्फरनगर में दंगों के बाद से वहां के कुछ मुस्लिम युवकों से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई संपर्क करने की कोशिश कर रही है। जब देश की खुफिया एजेंसिया गृहमंत्री की बजाए एक सासंद को देश की सुरक्षा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दे रही है तो फिर शिंदे क्यों न बेफिक्र होंगे। शायद खुफिया एजेंसियों के लिए गृहमंत्री से ज्यादा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ज्यादा महत्वपूर्ण होंगे। अब ये क्यों होंगे इसे लिखने की शायद जरुरत नहीं है।

रविवार, 27 अक्तूबर 2013

सुरक्षा में कोई चूक नहीं !

निशाने पर पटना, 7 धमाके, 5 लोगों की मौत, 100 के करीब घायल लेकिन बकौल बिहार मुखिया नीतिश कुमार सुरक्षा में कोई चूक नहीं हुई। धमाके के बाद मीडिया से मुखातिब नीतिश कुमार ने सुरक्षा में चूक की बात से साफ इंकार कर दिया। सुरक्षा में चूक का सवाल शुरु से लेकर आखिर तक कई कई बार नीतिश के सामने आया लेकिन नीतिश ने एक बार भी चूक की बात को स्वीकार नहीं किया।
नीतिश कहते हैं कि किसी भी तरह की ऐसी कोई घटना होने के कोई पूर्व सूचना या अलर्ट किसी भी एजेंसी ने जारी नहीं किया था। इसका मतलब तो ये हुआ नीतिश बाबू की जब आपकी सरकार के पास, खुफिया एजेंसियों के पास किसी तरह की अनहोनी की पूर्व सूचना होगी या इस पर अलर्ट जारी हुआ होगा तो ही सुरक्षा में चूक की बात को स्वीकार किया जा सकता है। लेकिन ये बात समझ में नहीं आयी कि अगर खुफिया एजेंसियों को किसी तरह के धमाके या हमले की पूर्व सूचना मिल जाती है तो फिर क्यों धमाके या आतंकी हमले होते हैं, ऐसे केस में तो किसी भी तरह की अनहोनी कभी होनी ही नहीं चाहिए।
नीतिश जी आप बार बार इसी बात को दोहरा रहे थे कि सुरक्षा में कोई चूक नहीं हुई, चलिए आपकी बात को हम स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन ये बताईए कि आखिर कैसे बिहार की राजधानी पटना निर्दोष लोगों के खून से लाल हो गई..?
कैसे पटना के गांधी मैदान में धमाके कैसे हो गए..?
कैसे रैली स्थल तक विस्फोटक सामग्री पहुंच गई..?
ये खुफिया तंत्र की बड़ी नाकामी तो है ही, लेकिन सवाल नीतिश जी आप पर भी उठते हैं क्योंकि आप बिहार के मुख्यमंत्री हैं। जिम्मेदारी आप की भी बनती है। आप ये कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते कि खुफिया एजेंसियों ने किसी तरह का कोई अलर्ट जारी नहीं किया था और ऐसा बिहार में पहली बार हुआ है। ये सवाल और भी गंभीर इसलिए हो जाते हैं क्योंकि आप सात धमाकों में 5 लोगों की मौत के बाद भी यही कहते हैं कि सुरक्षा में किसी तरह की कोई चूक नहीं हुई है। वो भी ऐसे वक्त पर जब एक दिन पहले ही देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी पटना में मौजूद थे, ऐसे में तो सुरक्षा व्यवस्था इतनी ताक चौबंद होनी चाहिए थी कि सात धमाके क्या एक पटाखा भी नहीं फूटना चाहिए था।
नीतिश जी आपको सुरक्षा में चूक नहीं दिखाई देती, आपके मुताबिक सुरक्षा चाक चौबंद थी। लेकिन अगर हिम्मत है तो उन लोगों के परिजनों से आंख में आंखें डालकर ये बात कहिए जिन्होंने अपनों को इन धमाकों में खोया है। सुरक्षा में चूक न होती तो नीतिश जी मारे गए निर्दोष 5 लोग आज रैली के बाद अपने घर पहुंचते लेकिन घर पहुंची तो उनकी मौत की ख़बर।
उम्मीद करते हैं नीतिश जी कि अब जांच में और कोई चूक नहीं होगी और मानवता के दुश्मन, 5 निर्दोष लोगों की मौत के गुनहगार जल्द सलाखों के पीछे होंगे।


deepaktiwari555@gmail.com

मोदी रन PART-1

2014 के भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र दामोदर दास मोदी दौड़ रहे हैं, बेतहाशा दौड़ रहे हैं, बिना रूके दौड़ रहे हैं, गिर कर संभल रहे हैं फिर दौड़ रहे हैं, ये छोड़िए मौका मिलते ही उड़ने से भी परहेज नहीं करते। बस हर हाल में मंजिल पा लेना चाहते हैं, प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच जाना चाहते हैं। आखिर मोदी कहां दौड़ रहे हैं, कहां गिर रहे हैं और कहां उड़ रहे हैं, इस पर बात करने से पहले मोदी के चाहने वालों को जिक्र करना चाहूंगा जो किसी भी सूरत में मोदी को देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।
मोदी के चाहने वालों को लगता है कि मोदी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे तो देश की सारी समस्याओं को चुटकी बजाते ही हल कर देंगे। फिर चाहे वो गिरते रुपए को थामने की बात हो, अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की बात हो, महंगाई को कम करने की बात हो, बेरोजगारी का मसला हो, अपराध मुक्त समाज की बात हो या फिर अपने धूर्त पड़ोसी पाकिस्तान और चीन से सख्ती से निपटने की बात हो। मोदी के चाहने वालों को ये लगने लगा है कि ये सब सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के बूते की ही बात है। जाहिर है ये सब इतना आसान तो है नहीं जितना कि मोदी समर्थक समझ रहे हैं और दूसरों को समझा रहे हैं।   
खैर मोदी की दौड़ जारी है और मोदी के चाहने वाले भी मोदी को खूब दौड़ा रहे हैं और जिस तेजी से ये दौड़ चल रही है, उसे देखकर तो ऐसा लगता है कि मोदी समर्थकों का बस चले तो वे मनमोहन सिंह को हटाकर मोदी को आज ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दें। दरअसल प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए मोदी रन का सफर जारी है। मोदी के गढ़ गुजरात से शुरू हुई मोदी रन देश के सभी राज्यों से होकर गुजर रही है लेकिन मोदी रनगैर भाजपा शासित राज्यों के साथ ही उन राज्यों में मोदी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है, जहां पर भाजपा के पास या तो गिनी चुनी सीटें हैं या फिर उन राज्यों में भाजपा की झोली सूनी ही रही है।
मैंने सोचा क्यों न मोदी रन में अपने भी हाथ आजमाएं जाएं। गुजरात से मोदी रन शुरु करते हुए मैंने भी आज मोदी को दौड़ना में कोई कसर नहीं छोड़ी, पहले गुजरात, फिर महाराष्ट्र, फिर उत्तराखंड, नरेन्द्र मोदी को एक पल के लिए भी आराम करने का मौका नहीं दिया। बस दौड़ाते रहा, दौड़ाते रहा, लेकिन ये क्या जैसे ही राजस्थान आया मोदी की तो मानो रफ्तार ही थम गयी। दो कदम दौड़ते ही मोदी धड़ाम से नीचे गिर जाते। समझ में नहीं आया कि आखिर राजस्थान का किला फतह करने में क्यों मोदी को पसीने आ रहे हैं। 2009 के आम चुनाव के नतीजे उठाकर देखा तो समझ में आया कि यहां तो 25 में से 20 लोकसभा सीटें कांग्रेस के कब्जे में हैं, जबकि भाजपा के पास सिर्फ 4 लोकसभा सीटें है और एक बची हुई सीट निर्दलीय के कब्जे में है। जाहिर है 4 से 25 न सही 20 में भी अगर पहुंचना है तो दम तो लगाना ही पड़ेगा और ये राह इतनी आसान भी नहीं, शायद इसीलिए ही मोदी को राजस्थान पार करने में पसीना आ रहा है।
मैंने सोचा ऐसे तो मोदी प्रधानमंत्री कैसे बन पाएंगे, कैसे अपने पीएम इन वेटिंग के टिकट को कनफर्म कर पाएंगे। अभी तो राजस्थान में ही एंट्री की है, इसके बाद तो आंध्र प्रदेश है, बिहार है, उत्तर प्रदेश है, कर्नाटक है, तमिलनाडु है और न जाने कितने ऐसे राज्य जहां की डगर मोदी के लिए आसान तो बिल्कुल भी नहीं रहने वाली।
खैर गिरते – पड़ते मोदी ने आखिरकार राजस्थान का किला भी फतह कर ही लिया। राजस्थान के बाद मोदी पहुंचे केरला लेकिन यहां तो हालात और भी मुश्किल निकले। मुश्किल होते भी क्यों न यहां की 20 लोकसभा सीटों में भाजपा शून्य जो है, जबकि कांग्रेस 13 सीटों की मालिक है। गिर कर उठने के फिर से दौड़ में शामिल होने के कई मौके थे, लिहाजा ये पड़ाव भी पार हो गया लेकिन इसके बाद आया भाजपा का दक्षिण का वो किला जिसे भाजपा ने बमुश्किल फतह किया था लेकिन अब वो बीते जमाने की बात हो गयी है। वर्तमान में भले ही भाजपा के पास कुल 28 में से 19 सीटें हों और कांग्रेस 6 सीटों की मालिक हो, लेकिन इसी साल कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे जो भाजपा को 2008 की 110 विधानसभा सीटों से 40 सीटों पर ले आए, ये बताने के लिए काफी हैं कि 2014 में भाजपा के लिए 2009 का इतिहास दोहराना बिल्कुल भी आसान नहीं होगा। जारी है...

मोदी रन में आज तो फिलहाल में कर्नाटक तक ही पहुंच पाया, अभी तो कई राज्य बाकी हैं, जल्द लौटता हूं मोदी रन PART -2” के साथ।


deepaktiwari555@gmail.com