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शनिवार, 12 जनवरी 2013

39 वर्ष का "बड़ा" जीवन


सिर्फ 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन का छोटा सा जीवन लेकिन कद इतना बड़ा की विश्व में करोड़ों लोग स्वामी विवेकानंद को न सिर्फ अपना आदर्श मानते हैं बल्कि उनके दिखाए मार्ग पर चलते हैं। मनुष्य अपनी आयु पूरी करे तो भी उसे लगता है कि ये जीवन छोटा है। अपने जीवनकाल में मनुष्य सिर्फ अपनी व अपने परिवार की परेशानियों में ही उलझा रहता है कि समाज से उसे कुछ लेना देना नहीं होता है, लेकिन स्वामी विवेकानंद ने इस सब से परे न सिर्फ भारतवासियों के मन में भारत की गौरवशाली परंपरा और संस्कृति के प्रति आत्मविश्वास और आत्मसम्मान का संचार किया बल्कि समूचे विश्व में भारतीय आध्यात्म का परचम भी लहराया। भले ही आजादी से 45 साल पहले सन 1902 में ही स्वामी विवेकानंद का निधन हो गया लेकिन आजादी की लड़ाई में स्वामी विवेकानंद के योगदान को कोई कैसे भूल सकता है। वे विवेकानंद ही थे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में भारत वासियों में एक नई ऊर्जा का संचार किया। समाज को स्वाभिमान, साहस और कर्म की प्रेरणा देने वाले स्वामी विवेकानंद के मंत्र से ही मूर्छित समाज में नई ऊर्जा का संचार हुआ।
उठो जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य को प्राप्त न कर लो कहने वाले स्वामी जी ने 25 वर्ष की आयु में संन्यास लेने के बाद सिर्फ 14 वर्षों में ही बिना किसी साधन औऱ सुविधा के सिर्फ एक महान संकल्प के बल पर भारत का मान बढ़ाया। विवेकानंद का जीवन बताता है कि कैसे बिना किसी साधन और सुविधा के सिर्फ एक संकल्प के बल पर युवा समाज की देश की सोच बदल सकते हैं।
आज भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा हैं। 70 फीसदी भारतीय 35 साल से कम के हैं। युवाओं के दम पर ही विश्व में भारत के सर्वशक्तिमान बनने की बातें की जाती हैं लेकिन ये बातें तब तक साकार रूप नहीं लेंगी जब तक भारत की युवा आबादी नई सोच और सकारात्मक ऊर्जा से भरी नहीं होगी। आज जरूरत है युवाओं को...युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक सोच और दिशा देने की। आज जरूरत है युवाओं को एक ऐसे नेतृत्व की जो स्वामी विवेकानंद की तरह ऊर्जावान हो और सबसे बड़ी बात कि सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर हो। लेकिन ये देश का दुर्भाग्य ही है कि युवा आबादी आज नेतृत्व विहिन है।
देश के जो युवा नेता नेतृत्व देने की स्थिति में हैं भी वे भी अपने निजि हितों को साधने के काम में लगे हुए हैं। बीते कुछ सालों में मुझे ऐसा कोई मौका याद नहीं आता चुनाव को छोड़कर जब इन कथित युवा नेताओं ने युवाओं के लिए कुछ करने की बात की हो या युवा शक्ति के बल पर कुछ करने की ठानी हो। ज्यादा पीछे न भी जाएं तो दिल्ली गैंगरेप के बाद राजपथ पर युवाओं के आंदोलन को ही देख लें। राजपथ पर युवाओं का गुस्सा चरम पर था और जरूरत थी ऐसे वक्त पर एक युवा नेतृत्व की जो सकारात्मक सोच के साथ आंदोलन को सही दिशा की ओर लेकर जाए लेकिन यहां भी हमें ऐसा देखने को नहीं मिला। देश के किसी भी कथित युवा नेता ने निजि स्वार्थों से ऊपर उठकर, पार्टी लाइन से ऊपर उठकर इंसाफ की लड़ाई के लिए शुरु हुए युवाओं के इस आंदोलन को नेतृत्व प्रदान करना तो दूर वहां पहुंचने की हिम्मत नहीं दिखाई। ऐसे वक्त पर एक सक्षम, ऊर्जावान और नेतृत्व की कमी साफ झलकती है और लगता है कि काश एक बार फिर से हमारे बीच पैदा हों एक और स्वामी विवेकानंद। स्वामी जी की 150वीं जयंती पर कोटि कोटि नमन।

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बलात्कार- 1971 से लगातार..!


हिंदुस्तान में जैसे जैसे लोग साक्षर होते गए...देश की साक्षरता दर बढ़ती गई वैसे वैसे भारत में अपराधों का ग्राफ भी चढ़ता गया। 15 अगस्त 1947 को आजादी के वक्त भारत की सक्षरता दर करीब 12 फीसदी थी जो 2011 में बढ़कर 74.04 फीसदी तक पहुंच गई है। जबकि देश में अलग-अलग अपराधों का ग्राफ 193.8 फीसदी से लेकर 873.3 फीसदी तक बढ़ा है। साक्षरता दर और अपराधों का बढ़ता ग्राफ ये दोनों ही आंकड़ें सरकारी हैं इसलिए आप इसे नकार नहीं सकते।
साक्षरता दर में जहां सरकारी कर्मचारियों ने जनगणना के दौरान घर - घर जाकर पूरा डाटा तैयार किया है...तो अपराधों के ग्राफ का ये वो आंकड़ा है, जिसे एनसीआरबी यानि राष्ट्रीय अपराध नियंत्रण ब्यूरो देशभर से एकत्र करता है और इसमें वही अपराध की घटनाएं शामिल हैं, जिनकी शिकायत देश के किसी न किसी पुलिस थाने में कभी न कभी दर्ज हुई है, यानि कि इसमें हजारों – लाखों अपराधों की वो लंबी फेरहिस्त शामिल नहीं है, जिन मामलों की शिकायत अपराध होने के बाद थाने तक पहुंचते ही नहीं या यूं कहें कि उन्हें पहुंचने ही नहीं दिया जाता या अगर किसी तरह पहुंच गए तो थाने के रजिस्टर में वे शिकायत दर्ज की नहीं की जाती..!
दिल्ली गैंगरेप के बाद बलात्कार को लेकर हो हल्ला मचा है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या इस घटना से पहले किसी के साथ कोई बलात्कार नहीं हुआ..? या किसी महिला की अस्मत इससे पहले नहीं लूटी गई..?  आजादी के बाद से देश में किसी एक अपराध के ग्राफ में 800 फीसदी का ईजाफा हुआ है, तो वो बलात्कार है।
एनसीआरबी के 1953 से लेकर 2011 तक के अपराध के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। 1953 के बाद से चोरी के मामलों में करीब 193.8 फीसदी का ईजाफा दर्ज किया गया तो हत्या के मामले 250 फीसदी तक बढ़े। इसके साथ ही देशभर में दंगे भड़कने की घटनाएं 233.7 फीसदी तक बढ़ी तो अपहरण और बहला फुसला कर भगा ले जाने की घटनाओं में 749 फीसदी का ईजाफा दर्ज किया गया। एनसीआरबी 1953 से देशभर में अपराधों का रिकार्ड एकत्र कर रहा है, लेकिन एनसीआरबी ने बलात्कार के आंकड़ें 1971 से एकत्र करना शुरु किया। 1971 के बाद से देश में बलात्कार की घटनाएं 873.3 फीसदी तक बढ़ी हैं। 1971 में जहां देशभर में 2 हजार 487 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए...वहीं 2011 में 24 हजार 206 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। इसके अलावा उन मामलों की फेरहिस्त भी काफी लंबी है जिनकी शिकायत थाने तक पहुंचने ही नहीं या पहुंचने ही नहीं दी गई..! बलात्कार 1971 से पहले भी होते थे और आजादी से पहले भी...उसका भले ही कोई पूर्ण आधिकारिक आंकड़ा एक जगह नहीं हो लेकिन सच तो ये है कि महिला की अस्मत पहले भी लूटी जाती थी और आज भी तार तार होती है।
बलात्कार के मामलों  में 40 साल में करीब 800 फीसदी तक का ईजाफा हैरान करने वाला है और कई सवाल खड़े करता है..! हम कैसे लोगों के बीच रह रहे हैं..? हम कैसे समाज में रह रहे हैं..? क्या ऐसे वातावरण में हमारी मां, बहन, बेटियां सुरक्षित हैं..? क्या वे बेखौफ होकर अकेले घर से बाहर निकल सकती हैं..? इसका जवाब है- नहीं..! आज भले ही हम सभ्य और साक्षर समाज में रहने की बात करते हों, लेकिन सच्चाई तो यही है कि महिलाएं देश के किसी भी कोने में सुरक्षित नहीं हैं फिर चाहे वो देश की राजधानी दिल्ली हो या फिर किसी राज्य का कोई छोटा सा गांव या कस्बा..! बलात्कार जैसे अपराध को अंजाम देने वाले मानसिक विकृति से ग्रसित लोग हर जगह मौजूद हैं और अपनी हवस को पूरी करने के लिए महिलाओं की ईज्जत को तार – तार करने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
सबसे बड़ी बात ये है कि बलात्कार करने वाले सिर्फ अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोग ही नहीं हैं बल्कि शिक्षित लोग(सभी शामिल नहीं) भी बलात्कार की घटनाओं को खूब अंजाम दे रहे हैं। जाहिर है...अपराध...वो भी बलात्कार जैसा अपराध करने वाला शख्स स्वस्थ मानसिकता का तो नहीं हो सकता। वो एक गंभीर मानसिक विकृति का शिकार होता है फिर चाहे वो कितना ही पढ़ - लिख क्यों न ले लेकिन महिलाओं के प्रति उसकी सोच नहीं बदलती। समाज में रह रहे ऐसे शख्स किसी न किसी रूप में कभी न कभी मौका मिलने पर ऐसा अपराध करते हैं। साक्षरता को अपराध से जोड़ने का मेरा मंतव्य ये था कि अगर सभी लोग साक्षर हो भी जाएं तो भी ऐसा नहीं है कि अपराध खासकर बलात्कार जैसे अपराध रूक जाएंगे या कम हो जाएंगे।
जरूरत है सोच बदलने की...जब तक व्यक्ति की सोच नहीं बदलेगी महिलाओं के लिए उसके दिल में अपनी मां, बहन, बेटी जैसा प्यार और सम्मान नहीं पैदा होगा तब तक बलात्कार जैसी घटनाएं कम नहीं होंगी। इसके लिए जरूरत है एक स्वस्थ समाज के निर्माण की और इसकी शुरुआत हमें अपने घर से...अपने दफ्तर से...अपने गली-मोहल्ले, शहर से करनी होगी और अपने आस पास एक ऐसा वातावरण तैयार करना होगा जहां महिलाएं बेखौफ होकर घर से बाहर निकल सकें...सभी से मिल सकें...आईए संकल्प लें ऐसे स्वस्थ समाज के निर्माण का।

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गुरुवार, 10 जनवरी 2013

बलात्कार की ये कौन सी सभ्यता ?


बलात्कार एक बड़ा और संवेदनशील मुद्दा है...बलात्कारियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिए लेकिन दिल्ली गैंगरेप के 6 आरोपियों ने चलती बस में जिस हैवानियत का खेल खेला उसके बाद से बलात्कार औऱ बलात्कारियों को सजा को लेकर एक बहस छिड़ गई है। इस बहस के बीच में कुछ ऐसे बयान भी सामने आए जिनका इस बहस से कोई लेना देना नहीं था लेकिन ये बयान फिर भी सुर्खियां बटोरते रहे क्योंकि ये बयान उन नेताओं या लोगों के थे जिनकी हमारे समाज में एक पहचान है(भले ही किसी भी कारण से हो)। इस कड़ी में कई नाम शामिल हैं लेकिन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बलात्कार की घटनाओं को भारत और इंडिया से जोड़कर एक नई बहस को जन्म दे दिया। मोहन भागवत कहते हैं कि बलात्कार की घटनाएं ग्रामीण क्षेत्रों(भारत) की बजाए शहरी क्षेत्रों(इंडिया) में अधिक होती हैं। भागवत साहब ने ये कह तो दिया लेकिन क्या कभी ऐसा होता है कि अपराधी बलात्कार छोड़िए किसी भी अपराध को करने से पहले ये देखता है कि वो अपराध शहर में कर रहा है या गांव में..! मैंने तो ऐसे कभी न देखा न सुना कि अपराधी अपराध के लिए गांव की बजाए शहर को मुफीद जगह समझता है। अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति घटिया मानसिकता का व्यक्ति अपने घर में भी अपराध करता है..और घर से बाहर भी। घटिया मानसिकता या घटिया सोच जगह की मोहताज नहीं होती...वो आदमी के दिमाग में होती है चाहे वो आदमी गांव में रह रहा हो या फिर शहर में...ऐसे में भागवत साहब का ये बयान तो किसी भी दृष्टि से तर्कसंगत नहीं लगता।
जहां तक बात है कि शहरी क्षेत्रों में (जिसे भागवत साहब इंडिया कहते हैं) संस्कार और परंपरा और उनके मूल्य समाप्ति की ओर अग्रसर हैं...तो हम ये नहीं कह सकते कि शहरी क्षेत्रों में रहने वाले सभी लोग संस्कारों और परंपराओं को त्याग चुके हैं...या उनमें ये नहीं बचे हैं क्योंकि शहरी क्षेत्रों में भी ऐसे लोग ऐसे परिवार मौजूद हैं(सभी शामिल नहीं) जिनमें आपको परंपराएं और संस्कार साफ दिखाई दे जाएंगे। जबकि इसके विपरित आप गांवों में चले जाईए तो हैरानी होगी की गांवों में जहां कहा जाता है कि संस्कार और परंपराएं निभाई जाती हैं उनका मूल्य समझा जाता है वहां पर कई लोगों में कई परिवारों में(सभी शामिल नहीं) आपको ये चीजें नगण्य मिलेंगी यानि मेरा कहने का आशय है कि व्यक्ति के रहने के स्थान से किसी चीज को लेकर हम न तो अनुमान लगा सकते हैं और न किसी तरह का कोई दावा कर सकते हैं। मानने वाले लोग समझने वाले लोग चाहे वो शहर में रह रहे हों या फिर गांवों में परंपराओं और संस्कारों का मूल्य समझते हैं और उनको निभाते भी हैं।
मुझे लगता है कि मोहन भागवत ने बलात्कार के संदर्भ में भारत और इंडिया का जिक्र कर कहीं न कहीं पश्चिमी सभ्यता का...वहां के रहन सहन का...तौर तरीकों पर विरोध प्रकट किया है लेकिन भागवत साहब ने उदाहरण गलत पेश कर दिया इससे न सिर्फ उनका बयान सुर्खियां बना बल्कि उन पर भारत और इंडिया के नाम पर देश को दो हिस्सों नें बांटने तक का आरोप लगा और उनकी जमकर आलोचना हो रही है जो होनी भी चाहिए क्योंकि तर्कसंगत तो उनका बयान कहीं से नहीं लगता।
ये कहना कि महिलाओं के पहनावे और पश्चिमी सभ्यता के कारण बलात्कार की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं...ये मेरी समझ से तो परे है। इसके पीछे पहला उदाहरण तो क्रिमिनिल लॉ जर्नल में प्रकाशित आंकड़ों का ही देना चाहूंगा जो आंकड़ें बताते हैं कि हाई कोर्ट में 80 फीसदी और सुप्रीम कोर्ट में 75 फीसदी रेप केस ग्रामीण इलाकों से दर्ज थे जबकि वहीं गैंग रेप के मामलों में ये फीसदी 75 और 68 है। दूसरा अगर वाकई में ऐसा होता कि महिलाओं के पहनावे और पश्चिमी सभ्यता के कारण बलात्कार की घटनाएं बढ़ रही हैं तो फिर ग्रामीण इलाकों में तो बलात्कार की एक भी घटना नहीं होनी चाहिए जबकि अनाधिकारिक तौर पर पुलिस थानों तक नहीं पहुंचने वाली बलात्कार के मामलों की तादाद दर्ज मामलों की तादाद में कहीं ज्यादा है। शहरों में तो कम से कम जागरूक महिलाएं शिकायत दर्ज कराने की लड़ने की हिम्मत जुटा लेती हैं लेकिन ग्रामीण इलाकों में ऐसा देखने को नहीं मिलता क्योंकि ऐसा करने पर बलात्कार करने वाले उन्हें डरा धमकाकर रखते हैं और पुलिस का रवैया भी वहां पर पीड़ित के प्रति बहुत सहयोगात्मक नहीं रहता है...ऐसे तमाम उदाहरण समय समय पर उजागर भी होते आए हैं। इसके साथ ही ग्रामीण और शहरी इलाकों में घरों में होने वाले बलात्कार के मामले न तो थाने तक पहुंचते हैं और न ही मीडिया की सुर्खियां बनते हैं क्योंकि बलात्कार करने वाले कई बार पीड़ित का पिता होता है...तो कई बार चाचा-ताऊ या भाई और मामा या फिर कोई और रिश्तेदार। अब इन्हें कौन सभ्यता का माना जाए गांव की...शहर की या फिर विदेशी सभ्यता। कुल मिलाकर अपराधी हर जगह अपराध करता है चाहे वो बलात्कार कर रहा हो या फिर कोई और अपराध...अब जहां घटिया मानसिकता के लोग...विकृत मानसिकता के लोग ज्यादा तादाद में होंगे जाहिर है वहां ये अपराध ज्यादा होंगे फिर चाहे वो शहर हो या फिर गांव...वहां महिलाएं कैसे कपड़े पहनती हैं या फिर वहां किस सभ्यता का बोलबाला है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

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बुधवार, 9 जनवरी 2013

मनमोहन को जगाओ, देश बचाओ !


देश की राजधानी दिल्ली में में दिल दहला देने वाले गैंगरेप की घटना...देश के आधा दर्जन राज्यों में बेखौफ नक्सलियों का आंतक और देश की सीमा पर पाकिस्तान का अमानवीय चेहरा...लेकिन हमारी सरकार खामोश है। गैंगरेप पर सरकार कहती है कि कड़े कानून बनाए जाएंगे ताकि दोबारा से ऐसी घटना न हो लेकिन दिल्ली गैंगरेप के तुरंत बाद देशभर से गैंगरेप और महिलाओं की हत्या की खबर आती है। झारखंड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा समेत तमाम राज्यों में नक्सली आए दिन उत्पात मचाते हैं और निर्दोष आदिवासियों के साथ ही भारतीय जवानों के खून की होली खेलते हैं लेकिन सरकार कहती है कि नक्सली हमारे ही बीच के लोग हैं और हम शांति से बातचीत से कोई हल निकालने का प्रयास करेंगे। पाकिस्तान सारी हदें पार कर भारत की सीमा में घुसकर भारतीय जवानों की हत्या कर उनके शव के साथ अमानवीय कृत्य करते हैं और हमारी सरकार पाकिस्तान से जवाब मांगती है और मामले की जांच की मांग करती है। सरकार पाकिस्तान से उम्मीद करती है कि पाकिस्तान इस घटना को लेकर गंभीरता दिखाएगा और सकारात्मक रवैया दिखाएगा। प्रधानमंत्री जी कब तक सोते रहोगे..? कब तक पकिस्तान से जवाब मांगते रहोगे..? पाकिस्तान लगातार कुछ समय के अंतराल पर अपनी नापाक ईरादों को जाहिर कर हमारे जवानों की हत्या करता आ रहा है और आप पाकिस्तान से जवाब मांग रहे हो..? अरे महाराज ये वक्त जवाब मांगने का नहीं है...ये वक्त है मुंहतोड़ जवाब देने का..! वरना आप जवाब ही मांगते रह जाओगे और वे एक – एक कर हमारे जवानों को हमारे घर में घुसकर मारते रहेंगे..! क्या आज तक ऐसा नहीं होता आया है..? क्या इससे पहले पाकिस्तान ने हमारे सैनिकों की हत्या कर उनके साथ अमानवीय व्यवहार नहीं किया है..? कारगिल युद्ध के शहीद कैप्टन सौरभ कालिया का केस तो आपको याद ही होगा...सुप्रीम कोर्ट को उस पर सरकार से जवाब तलब भी कर चुका है। सौरभ कालिया केस के बाद ही अगर सरकार चेत गई होती तो शायद पाक सैनिक अपने नापाक ईरादे दोहराने से पहले सौ बार सोचते...लेकिन अफसोस न तो उस वक्त सरकार जागी और न ही इस बार सरकार बहुत ज्यादा गंभीर दिखाई दे रही है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ सीमा पर ही पाक के नापाक ईरादे उजागर होते रहे हैं। मुंबई हमला हो या देश में होने वाली दूसरी आतंकी घटनाएं...इनको अंजाम देने वाले कहां से आए..? ये कौन थे..? ये किसी से छिपा नहीं है फिर भी आप बार – बार पाकिस्तान से जवाब मांगते हो..! उनके विदेश मंत्री हमारे देश में आकर हम पर ही सवाल खड़ा करके चले जाते हैं और आप फिर भी कुछ नहीं बोलते। महाराज ये वक्त है पाकिस्तान को उसके घर में घुसकर सबक सिखाने का है वरना प्रधानमंत्री जी आप सोते रह जाओगे और पहले पाकिस्तान और उसके बाद चीन अपने नापाक ईरादों में कामयाब हो जाएगा। वैसे आपसे बहुत ज्यादा उम्मीद तो है नहीं क्योंकि आपको तो कुछ बोलने से पहले और कुछ बोलने के बाद भी पूछते हो “”ठीक है

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मंगलवार, 8 जनवरी 2013

कुर्सी की दौड़ में पिछड़ा झारखंड..!


एक राज्य...12 साल में 8 सरकारें और 8 मुख्यमंत्री...10 बार सत्ता परिवर्तन...2 बार राष्ट्रपति शासन और एक बार फिर से कुर्सी की लड़ाई में वही सब...शायद यही अब झारखंड की नियति बन गई है। एक बार फिर से नेताओं की कुर्सी की लालसा राज्य के लोगों के सपनों पर भारी पड़ गई और कुर्सी न मिली तो झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अर्जुन मुंडा सरकार से समर्थन वापस ले लिया। दरअसल जेएमएम की दलील है कि उसने राज्य की भाजपा सरकार को इस शर्त पर समर्थन दिया था कि 5 साल के कार्यकाल में 28 महीने भाजपा का मुख्यमंत्री रहेगा और 28 महीने जेएमएम का लेकिन भाजपा ने 28 माह पूरे होने के बाद सीएम की कुर्सी खाली करने से इंकार कर दिया जबकि भाजपा का जेएमएम के साथ ऐसे किसी समझौते से इंकार कर रही है। जो भी हो ये वाक्या ये बताने के लिए काफी है कि झारखंड के नेता सिर्फ राजनीति पर ही विश्वास करते हैं उन्हें राज्य से राज्य की जनता के सरोकारों से कोई सरोकार नहीं है। झारखंड में नेता सिर्फ कुर्सी के लिए चुनाव लड़ते हैं और चुनाव जीतने के बाद कुर्सी के लिए मारामारी का खेल झारखंड में राज्य गठन के बाद से ही चल रहा है। ये झारखंड का दुर्भाग्य ही है कि राज्य गठन के बाद से कोई सरकार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। अलग राज्य गठन के बाद जिस झारखंड का सपना वहां के लोगों ने देखा था वो 12 साल बाद भी साकार नहीं हो पाया। सपना था झारखंड को विकास के पथ पर ले जाने का...झारखंड में बेरोजगारी को दूर करने का...सपना था आदिवासियों के विकास का...सपना था अपने संसाधनों के बल पर झारखंड को समृद्ध राज्य बनाने का लेकिन झारखंड के कथित भाग्य विधाताओं ने अपनी सृमद्धि की कहानी तो लिखी लेकिन जिस राज्य की जनता के बल पर वे यहां तक पहुंचे उन्हें वे कुर्सी के नशे में भूल गए। झारखंड में या कहें देश में मधु कोड़ा से बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है जो निर्दलीय विधायक होने के बाद सीएम की कुर्सी तक पहुंचा लेकिन कुर्सी मिलने के बाद मधु कोड़ा ने झारखंड के इतिहास में ऐसा काला अध्याय जोड़ा जिसने आम जनता के रहे सहे भरोसे को भी तोड़ दिया। मधु कोड़ा ने जनता के उस भरोसे का भी खून किया जो राष्ट्रीय और क्षेत्रिय दलों से निराश होने के बाद जनता अपने बीच के किसी शख्स पर कर सकती थी। झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता के लिए देखा जाए तो कई कारक जिम्मेदार हैं। अलग राज्य बनने के बाद भी प्रदेश की जनता ने न तो पूरी तरह से राष्ट्रीय दलों का ही हाथ थामा और न ही क्षेत्रीय दलों का दामन। नतीजा ये हुआ कि अपनी अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक – दूसरे की नाव पर सवार राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी इसका भरपूर फायदा उठाया। राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के बाद एक बार फिर से झारखंड उसी मुहाने पर खड़ा है...जिसने 12 सालों में झारखंड को विकास के पथ पर ले जाने की बजाए कई कदम पीछे धकेल दिया। राज्य में फिर से चुनाव होते हैं तो जनता के पास एक बार फिर से मौका होगा अपने नए निजाम को चुनने का...अपने भाग्य विधाताओं को चुनने का...झारखंड के भाग्य विधाता को चुनने का..! ऐसे में झारखंड की जनता को अबकी बार ये तय करना होगा कि क्या वे फिर से झारखंड में 12 सालों के इतिहास को दोहराते हुए देखना चाहेंगे..? या फिर चाहेंगे कि झारखंड को ऐसे हाथों में सौंपे जो सिर्फ कुर्सी की रेस में नहीं झारखंड को विकास की रेस में आगे लेकर जाने का सपना देखता हो। उम्मीद करते हैं कि जिस मकसद के लिए एक अलग राज्य का गठन 12 साल पहले हुए था उस मकसद के लिए झारखंड की जनता अबकी बार सुरक्षित हाथों में झारखंड का भविष्य सौंपेगी लेकिन ये उम्मीद उस वक्त धुंधली पड़ जाती है जब आभास होता है कि जनता का पाला तो हर बार की तरह फिर से ऐसे ही नेताओं की जमात से पलने वाला है जिनका सपना सिर्फ कुर्सी तक ही सीमित है।

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सोमवार, 7 जनवरी 2013

दिल्ली गैंगरेप- “राम-राम” आसाराम !


नाम है आसाराम बापू लेकिन बापू जी को शर्म नहीं आती। आसाराम जी अपने नाम के साथ जुड़े राम शब्द का ही मान रख लेते...आपने तो ऐसा बोल दिया कि लोग राम-राम करने लगे हैं। नशे में धुत छह शैतान अपने खौफनाक ईरादे लिए बस में सवार होकर दिल्ली की सड़कों पर अपनी हैवानियत को अंजाम देने के लिए घूम रहे होते हैं और मौका मिलते ही एक हंसती खेलती लड़की का जीवन तबाह कर देते हैं। 13 दिनों तक असहनीय दर्द को झेलने के बाद मासूम दुनिया को अलविदा कह देती है...और आप कहते हैं कि ताली एक हाथ से नहीं बजती..! अरे महाराज आप तो हाईटेक बाबा हो आपको इतना तो पता ही होगा कि बस में एक हाथ नहीं 12 हाथ 6 शैतानी दिमाग के ईशारे पर हैवानियत का खेल खेल रहे थे। उन्हें ये होश नहीं था कि वे क्या कर रहे हैं..? किसके साथ कर रहे हैं..? इसका अंजाम क्या होगा..? और आप कहते हैं कि पीड़ित लड़की किसी एक शैतान को अपना भाई बना लेती..! खुद के अबला होने का हवाला देकर इस खौफनाक वाक्ये को होने से रोक सकती थी। गजब करते हो महाराज हर कोई व्यक्ति आप की तरह साधु तो होता नहीं कि किसी ने सामने हाथ जोड़ लिए और कर दिया उसे माफ..! आप तो खुद को संत कहते हो...महात्मा कहते हो...लोगों को सत्कर्म की सीख देते हो...आप से तो इस तरह के बोल की उम्मीद नहीं थी...लेकिन लगता है कि आपने भी इसे दूसरे बयानवीर नेताओं की तरह जल्द सुर्खियों में छाने की बहती गंगा समझ लिया और विवादित बयान देकर धो डाले अपने हाथ..! पूरा देश चलती बस में हैवानियत का खेल खेलने वाले शैतानों को फांसी देने की मांग कर रहा है और आप कहते हो कि दिल्ली गैंगरेप घटना के लिए पीड़ित भी जिम्मेदार है..! अरे महाराज किसी के दुख में उसके सहभागी न बन सको न सही लेकिन किसी के जख्मों को कुरेदो तो मत। एक तरफ पीड़ित को ही घटना के लिए जिम्मेदार ठहरा देते हो और दूसरी तरफ पीड़ित के परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हो। ये कैसा आपका दोहरा चरित्र है कि आप एक जघन्य अपराध के लिए अपराधियों की बजाए उल्टा पीड़ित को ही दोषी ठहरा रहे हो। देश बलात्कार के खिलाफ कड़े कानून की मांग कर रहा है और आप ये कहकर बलात्कारियों का मनोबल बढ़ा रहे हो कि कड़े कानून मर्दों के लिए मुसीबत बन जाएगा...महिलाएं इसका दुरुपयोग करेंगी। गजब करते हो महाराज अभी तो कानून बना भी नहीं कि आपने इस पर सवाल खड़े कर दिए..! ऐसे में तो बन गया कानून और रूक गए बलात्कार..! आसाराम जी प्रवचन और बयानबाजी से न बलात्कार रूकते हैं और न अपराध...आपके आश्रम में तो खुद कई बार बच्चों को रहस्यमयी मौत और बच्चों को प्रताड़ित करने की खबरें सुर्खियां बनती रही हैं..! आपके आश्रम में तो झाड़-फूंक और जादू-टोना तक होने तक की खबरें उछलती रही हैं..! जब आपके आश्रम में ये सब हुआ उस वक्त तो आप चुप थे लेकिन 6 दरिंदे एक मासूम के साथ हैवानियत का खेल खेलते हैं तो आप दूसरों को नसीहत दे रहे हैं..! दूसरों पर कीचड़ उछालने से पहले अपने गिरेबां में भी झांक लीजिए। एसी गाडियों में घूमने और एसी चैंबर में बैठकर दूसरों को सादगी का प्रवचन देने से कुछ नहीं होता महाराज..! जब गैंगरेप के खिलाफ देश में आक्रोश था...आरोपियों को फांसी की मांग को लेकर लोग सड़कों पर आवाज बुलंद कर रहे थे उस वक्त तो आप कहीं नजर नहीं आए और आज कहते हो कि ताली एक हाथ से नहीं बजती..! इससे अच्छा तो था कि आप चुप ही रहते...वैसे भी नेताओं और बाबाओं से देश के लोगों को बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं लेकिन अफसोस फिर भी इनकी बातों में देश की जनता आ ही जाती है..!

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रविवार, 6 जनवरी 2013

धोनी ने करवाया सहवाग को बाहर..?


पहले टेस्ट सीरीज में घर में अंग्रेजों ने धोया...उसके बाद चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान ने नए साल में घर में घुसकर वन डे सीरीज में रही सही कसर पूरी कर दी लेकिन भारतीय चयनकर्ताओं को फिर भी अपने कप्तान और खिलाड़ियों पर पूरा भरोसा है। अंग्रेजों के खिलाफ 11 जनवरी से शुरु हो रही 5 वन डे मैचों की सीरीज के लिए भारतीय क्रिकेट टीम के ऐलान से पहले लग रहा था कि शायद इस बार भारतीय चयनकर्ता कुछ साहस दिखाएंगे और टीम में अपना स्थान पक्का समझने वाले खिलाड़ियों को टीम से बाहर का रास्ता दिखाकर ये संदेश देने की कोशिश करेंगे कि अच्छा प्रदर्शन करने वाला ही टीम में बना रहेगा लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ और एक बार फिर से चयनकर्ताओं ने सिर्फ टीम चयन की औपचारिकता निभाई। हालांकि चयनकर्ताओं ने बड़ी ही चालाकी से ये औपचारिकता न लगे इसके लिए सिर्फ एक खिलाड़ी वीरेन्द्र सहवाग को टीम से बाहर का रास्ता जरूर दिखा दिया। इसके साथ ही अंग्रेजों के खिलाफ टेस्ट सीरीज में और घरेलू क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन करने वाले चेतेश्वर पुजारा के साथ अमित मिश्रा को पहले 3 वन डे के लिए टीम में शामिल किया गया। सहवाग और धोनी के बीच की तनातनी जग जाहिर है ऐसे में सिर्फ सहवाग को टीम से बाहर करना अपने आप में कई सवाल खड़े कर गया। क्या एक बार फिर से कप्तान धोनी के दबाव में धोनी को टीम से बाहर का रास्ता दिखाया गया है..? या फिर पिछले मैचों में प्रदर्शन के आधार पर सहवाग की टीम से छुट्टी की गयी है..? अगर धोनी के दबाव में सहवाग को बाहर नहीं किया गया है तो फिर प्रदर्शन के आधार पर बाकी खिलाड़ियों पर चयनकर्ताओं ने आशीर्वाद क्यों बरसाया..? ज्यादा पीछे नहीं जाते हैं तो सिर्फ पाकिस्तान के खिलाफ खत्म हुई तीन वन डे मैचों की सीरीज पर ही नजर डाल लें तो तस्वीर साफ हो जाती है कि चयनकर्ताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ जिस टीम का चयन किया है उसमें खिलाड़ियों के पिछले प्रदर्शन को कितनी तरजीह दी है। सबसे पहले सहवाग की ही अगर बात करें तो सहवाग ने 2 मैचों में (4+31)35 रन बनाए, गंभीर ने तीन मैचों में सिर्फ 34(8+11+15) रन बनाए तो युवराज ने 3 मैचों में (2+9+23)34 रन और कोहली ने 3 मैचों में सिर्फ 13(0+6+7) रन ही बनाए जबकि रैना ने तीन मैचों में (43+18+31)92 रन तो धोनी ने 3 मैचों में सर्वाधिक (113+54+36)213 रन बनाए और रोहित शर्मा ने 1 मैच में सिर्फ 4 रन ही बनाए। खिलाड़ियों के प्रदर्शन को ही पैमाना माना गया होता तो धोनी और कुछ हद तक सुरैश रैना के अलावा कोई तीसरा खिलाड़ी अंग्रेजों के खिलाफ टीम में रहने का हकदार नहीं होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सिर्फ सहवाग को बाहर कर चयनकर्ताओं ने चयन की औपचारिकता पूरी कर ली। माना चयनकर्ता पूरी टीम को एक बार में नहीं बदल सकते और ऐसा होना भी नहीं चाहिए लेकिन जो खिलाड़ी लगातार खुद को मैदान में साबित नहीं कर पा रहा है कम से कम उसे टीम से बाहर करने का साहस तो चयनकर्ताओं को दिखाना ही चाहिए। कागजों में मजबूत टीम की बजाए जरूरत है ऐसे खिलाड़ियों से भरी टीम की जो युवा हों और देश के लिए खेलें और अपने प्रदर्शन के दम पर भारत को विजयपथ पर वापस लेकर आएं। भुवनेश्वर कुमार और शमी अहमद ने न के बराबर अंतर्राष्ट्रीय मैचों का अऩुभव होने के बाद भी दवाब से भरपूर मैच में 167 रनों के एक छोटे से स्कोर को बचाने के लिए जो जी जान लगाई उससे कहीं से ये नहीं लग रहा था कि युवा खिलाड़ी दबाव में बिखर जाते हैं या अंतर्राष्ट्रीय मैचों का कम अनुभव उनके प्रदर्शन के आड़े आता है। ऐसे खिलाड़ियों को बस इंतजार रहता है एक मौके का जो दुर्भाग्य से भारत में युवा खिलाड़ियों को बहुत ज्यादा नहीं मिलता। हां सीनियर खिलाड़ियों को चयनकर्ता खूब मौके देते हैं फिर चाहे उनका प्रदर्शन कैसा भी रहा हो। ऐसा तो नहीं है कि हिंदुस्तान में जहां क्रिकेट धर्म से कम नहीं है वहां पर आपके पास बढ़िया युवा खिलाड़ी नहीं है लेकिन उन्हें देश के लिए खेलने का मौका नहीं मिलता या कहें कि नहीं दिया जाता..! खैर सहवाग पर अविश्वास और दूसरी खिलाड़ियों का चयनकर्ताओं का विश्वास क्या रंग लाता है ये तो 11 जनवरी से शुरु होने वाले भारत – इंग्लैंड वनडे सीरीज में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन की तय करेगा। हम तो यही उम्मीद करेंगे कि भारत वन डे सरीज पर 5-0 से कब्जा कर टेस्ट में मिली करारी हार का बदला लेकर 2013 में नए जोश से आगे बढ़े।

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सोच बदल लो वर्ना बन जाओगे इतिहास !


राजनीति जो न कराए वो कम है...अपनी राजनीति चमकाने के लिए वर्ग विशेष के वोटबैंक को साधने के लिए नेता किस हद तक जा सकते हैं ये मनसे प्रमुख राज ठाकरे के बयान से एक बार फिर से जाहिर हो गया। कहीं का तार कहीं जोड़कर कैसे वोटबैंक को साधा जाए ये कोई राज ठाकरे से सीखे। मराठियों का हिमायती होने का दावा करने वाले राज ठाकरे ने दिल्ली गैंगरेप जैसे मुद्दे पर भी अपना सियासी फायदा खोज ही लिया और एक बार फिर से निशाना लगाया बिहारियों पर। गैंगरेप की घटना दिल्ली में होती है...लेकिन राज ठाकरे मुंबई में बैठकर ये कहकर बवाल खड़ा कर देते हैं कि इस घटना को अंजाम देने वाले लोग बिहारी थे। बिहारियों पर राज ठाकरे पहले भी निशाना साधते रहे हैं...मुंबई में बिहार से आकर रहने वाले बिहारियों का मसला हो या फिर 13 जुलाई 2001 को मुंबई में हुए सिलसिलेवार हमलों के सिलसिले में बिहार से कुछ संदिग्धों की गिरफ्तारी का मामला। राज ठाकरे ने हमेशा ही मराठियों के कंधों पर बंदूक रखकर बिहारियों पर निशाना साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दिल्ली गैंगरेप के मुद्दे पर जहां सारा देश सड़कों पर उतर आरोपियों को फांसी की मांग कर रहा है तो राज ठाकरे यहां भी राजनीति की बिसात पर बिहारी राग अलाप पर अपनी घटिया मानसिकता दर्शाते हुए नजर आ रहे हैं। राज ठाकरे साहब दिल्ली की घटना को बिहार के आरोपियों को महाराष्ट्र में बैठकर जोड़ने से आप क्या हासिल करना चाहते हैं..? इस घटना के खिलाफ देश भर में गुस्सा दिखा...देशभर में लोग एकजुट होकर आरोपियों को फांसी की मांग के साथ ही महिलाओं की सुरक्षा के मसले पर अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं...लेकिन आपने यहां पर भी लोगों को बांटने का खेल शुरु कर दिया..! ये तो वक्त था राजनीति से ऊपर उठकर आम आदमी की आवाज को और बुलंद करने का ताकि न सिर्फ दिल्ली गैंगरेप को अंजाम देने वाले हैवानों को मौत की सजा मिले बल्कि समाज में महिलाएं सुरक्षित रह सकें और भविष्य में कोई शख्स किसी महिला के साथ बलात्कार करना तो दूर ऐसे सोचने से भी घबराए। लेकिन अफसोस आपको इस सब से कोई सरोकार नहीं है क्योंकि आपको तो यहां भी बिहारियों को गलिया के मराठियों को साधने का मौका दिखाई दे रहा है। आप एक देश में दो राज्यों के लोगों को अलग – अलग नजरों से देखकर क्या साबित करना चाहते हैं..? क्या महाराष्ट्र भारत का हिस्सा नहीं हैं या फिर बिहार भारत का हिस्सा नहीं है..? माना आप मुंबई में बैठकर क्षेत्रिय राजनीति में सक्रिय हैं लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि मराठियों के हितों के आगे आप दूसरे लोगों के हितों पर अतिक्रमण करें..! ठाकरे साहब आपको तो महाराष्ट्र में रहने वाले सभी लोगों को साथ लेकर चलना चाहिए क्योंकि महाराष्ट्र भी तो भारत का ही अभिन्न अंग है और उतना ही अभिन्न अंग बिहार भी भारत का है। दूसरे राज्यों के लोग महाराष्ट्र में रह रहे हैं तो क्या महाराष्ट्र के लोग दूसरे राज्यों में नहीं रह रहे हैं..? व्यक्ति किसी भी राज्य का हो लेकिन आखिर में वो है तो भारतीय ही...फिर चाहे वो मराठी हो या बिहारी हो या फिर किसी और राज्य से ताल्लुक रखता हो। आप दिल्ली गैंगरेप के आरोपियों के बिहारी होने की बात कर क्या साबित करना चाहते हैं...? ठाकरे साहब अपराधी की कोई जाति नहीं होती और न ही वो किसी राज्य या देश का होता है। अपराधी सिर्फ अपराधी होता है क्योंकि वो अपराध करने से पहले ये नहीं देखता कि वो जिसके साथ अपराध कर रहा है वो कौन है..? जिस जगह अपराध कर रहा है वो जगह उसके गली मोहल्ले में है या देश के किसी दूसरे कोने में। ठाकरे साहब अपराधी अपने परिवार में भी अपराध करता है...अपने गली मोहल्ले में भी...अपने शहर और राज्य में भी और जहां वो उस वक्त मौजूद है वहां पर भी चाहे वह किसी भी देश में क्यों न हो। ऐसे में आप ये कैसे कह सकते हो कि दिल्ली गैंगरेप के आरोपी बिहार से हैं ये सबको जानना जरूरी है। क्या महाराष्ट्र के लोग अपराध नहीं करते या फिर महाराष्ट्र में अपराध नहीं होते..? ठाकरे साहब वोट बढ़ाने के लिए बांटों और राज करो की राजनीति का इतिहास भले ही सफल दिखाई देता हो लेकिन अब वक्त बदल चुका है और लोग राज ठाकरे टाइप लोगों की सोच को भी पहचान गए हैं इसलिए अभी भी वक्त है अपनी सोच बदल लो वरना कहीं ऐसा न हो कि वक्त के साथ जनता आपकी राजनीति का गणित - भूगोल सब बिगाड़ दे और आपको राजनीति में इतिहास का हिस्सा बनने पर मजबूर कर दे। ।।जय भारत।।

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