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शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

नरेन्द्र मोदी-नीतिश कुमार..क्यों है तकरार ?


2014 के लिए भाजपा ने हालांकि अभी तक पीएम की कुर्सी के लिए अपने उम्मीदवार के नाम का एलान नहीं किया है लेकिन भाजपा में मोदी के पक्ष में माहौल साफ दिखाई दे रहा है जो ईशारा कर रहा है कि भाजपा नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर दांव खेल सकती है। लेकिन मोदी के नाम पर एनडीए की सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी जद यू को मनाना भाजपा के सामने सबसे बड़ी मुश्किल है।
संभव है कि मोदी को आगे करने के बाद मोदी के नाम पर आंखे तरेरने वाला जद यू एनडीए से अपना नाता ही तोड़ ले..!
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर नरेन्द्र मोदी के नाम पर जद यू के नेता खासकर नीतिश कुमार भड़क क्यों जाते हैं..?
मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हैं और नीतिश कुमार बिहार के...इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मोदी और नीतिश दोनों ने ही अपने-अपने राज्यों में विकास के नए आयम स्थापित किए हैं।
नीतिश शायद से मानते हैं कि मोदी उनके बराबर कद के ही नेता हैं ऐसे में नीतिश को ये कैसे मंजूर हो सकता है कि नरेन्द्र मोदी एक राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी से उठकर देश का प्रधानमंत्री बनने की ओर कदम बढ़ाएं..!
नीतिश शायद नहीं चाहते कि जो व्यक्ति उनके मुताबिक...उनके कद का ही है...वो देश के पीएम पद की दौड़ में आगे निकल जाए..!
इसके अलावा एक और वजह कि क्या मोदी को गुजारत के गोधरा कांड की वजह से सांप्रदायिक मानने वाले नीतिश क्या मुस्लिम वोटों के लिए बार-बार मोदी का विरोध कर खुद को सेक्यूलर दिखाने की कोशिश करते हैं..?
2014 के आम चुनाव में बिहार में अपने सांसदों की संख्या 20 से ऊपर ले जाने की कोशिश में लगी जद यू को शायद ये भी लगता है कि अगर मोदी भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार घोषित हो गए तो कहीं बिहार में अल्पसंख्यक वोट जद यू से खिसक न जाएं और उनकी सीटों की संख्या कम न हो जाए..!
लेकिन यहां पर एक सवाल ये भी उठता है कि जब पूरी भाजपा पर ही सांप्रदायिक होने का आरोप लगता रहा है तो नीतिश को भाजपा की बजाए सिर्फ मोदी की क्यों सांप्रदायिक दिखाई देते हैं..?
फिर क्यों बिहार में जद यू ने भाजपा के साथ गठजोड़ कर सरकार बनाई और क्यों जद यू एनडीए में शामिल हुआ..?
जाहिर है सिर्फ सांप्रादायिकता का मसला मोदी और नीतिश के बीच की दरार नहीं है बल्कि मोदी की बढ़ता कद और लोकप्रियता भी कहीं न कहीं नीतिश को मोदी का विरोध करने पर मजबूर करती है..!
वैसे नीतिश का मोदी का विरोध करने के पीछे असल वजह मोदी का नीतिश से ज्यादा बढ़ता कद हो..! सांप्रदायिकता हो..! या फिर कुछ और...ये तो नीतिश कुमार ही बेहतर जानते होंगे..! लेकिन भाजपा में मची हलचल और वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य तो यही कह रहा है कि भाजपा ने अपनी सबसे बड़ी सहयोगी जद यू के विरोध की बाद भी मोदी को 2014 के लिए पीएम प्रोजेक्ट करने की पूरी तैयारी कर ली है...जो आने वाले समय में एनडीए से जद यू की विदाई का रास्ता तैयार करता दिखाई दे रहा है।

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शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

हर सपना पूरा नहीं होता !


कांग्रेस के चिंतन शिविर में राहुल गांधी ने कहा कि उनकी मां सोनिया गांधी ने रोते हुए उन्हें बताया कि सत्ता जहर की तरह है। सवाल ये है कि इसके बाद भी सोनिया ने राहुल को पार्टी उपाध्यक्ष बनाकर इस जहर को पीने के लिए क्यों आगे किया..!
हलांकि समाजसेवी अन्ना हजारे ने राहुल गांधी समेत तमाम राजनेताओं से एक सवाल के साथ ही यह भी साफ किया कि वाकई में सत्ता जहर नहीं नशा है..?
अन्ना हजारे ने सवाल किया कि अगर वाकई में सत्ता नशा है तो क्यों इसके पीछे भाग रहे हो..?
इसके लिए लालायित रहते हो..?
इसे छोड़ क्यों नहीं देते..?
ये सवाल उठना जायज भी है कि आखिर क्यों कोई जानबूझकर जहर को पाने के लिए और उसे पीने के लिए इतना बेचैन रहता है कि इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता है..?
इस सवाल का जवाब तो मिला नहीं लेकिन अन्ना हजारे ने इस पर से कुहासा हटाते हुए बताया कि सत्ता असल में जहर नहीं है...सत्ता नशा है..!
अगर गहराई से सोचा जाए तो सत्ता नशा नहीं तो और क्या है..? क्योंकि नशा चाहे किसी भी चीज का हो आदमी को मदहोश कर देता है और इस नशे का आनंद लेने के लिए इसका आदि व्यक्ति कुछ भी करने को तैयार रहता है..!
फिर चाहे इसके लिए वह कुछ गलत भी कर रहा होता है तो वह इससे गुरेज नहीं करता क्योंकि उसे तो नशे का आनंद लेना होता है..!
सत्ता रूपी नशे के लिए नेता इसलिए भी कुछ भी करने को तैयार रहते हैं क्योंकि ये नशा उन्हें ताकत भी देता है...दूसरों पर राज करने की ताकत..!
सत्ता के नशे में सत्ताधारी नेताओं की मदहोशी के उदाहरण भी हमें समय समय पर देखने को मिलते हैं चाहे किसी पर रौब झाड़ना की बात हो या फिर उन्हें कुछ गलत करने से रोकने पर देख लेने की धमकी देने की बात..!
सत्ता मे रहकर इस नशे में मदहोश नेता भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं तक पार कर जाते हैं क्योंकि उनकी मदहोशी उनकी सोचने की शक्ति का हरण कर लेती है और वे इस गुमान में रहते हैं कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा..!
हालांकि ये उनकी गलतफहमी साबित होती है और कई ऐसे उदाहरण हमारे सामने हैं जब ऐसे नेता सत्ता से बाहर होने के बाद तो कभी सत्ता में रहते हुए ही जेल की सलाखों के पीछे पहुंच जाते हैं।
लेकिन विडंबना देखिए इसके बाद भी सत्ता रूपी नशे में मदहोश होने के लिए नेता सारी हदें लांघ जाते हैं...हालांकि ये अलग बात है कि सत्ता हर किसी को नसीब नहीं होती..!   
अच्छा होता कि सत्ता रूपी नशे में मदहोश हो जाने के बाद काश नेता देशहित में सोचते...देश के विकास की सोचते...देशवासियों के विकास की सोचते...अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के विकास की सोचते...तो शायद हिंदुस्तान की तस्वीर ही आज कुछ और होती...लेकिन अफसोस हर सपना पूरा नहीं होता।

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एक प्याज की ताकत


प्याज बड़ी महत्वपूर्ण चीज है। कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्याज के बिना खाना भले ही बन जाए लेकिन प्याज के बिना सरकार नहीं बनती। प्याज सिर्फ सरकार बनाता ही नहीं है बल्कि सरकार गिराने का भी दम रखता है। प्याज के दाम जब जमीन पर होते हैं तब तो सब ठीक रहता है लेकिन अगर प्याज के दामों में ईजाफा होना शुरु हो गया तो फिर ये सबको रूलाता है।
चुनाव के आस पास अगर प्याज के दाम चढ़ने लगे फिर तो ये सबसे ज्यादा सरकार को रूलाता है क्योंकि प्याज का इतिहास सत्तारूढ़ दलों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा है।
दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीख करीब है ऐसे में प्याज की बढ़ती कीमतें शीला सरकार को क्यों न नजर आती..? सो शीला दीक्षित ने केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार को चिट्ठी लिखकर प्याज का निर्यात कम करने की अपील कर दी ताकि प्याज के बढ़ते दामों में लगाम कस सके। क्योंकि शीला जानती हैं कि प्याज के दाम इसी तरह चढ़ते रहे तो प्याज के बढ़ते शीला सरकार को दिल्ली की सत्ता से बेदखल करने की वजह बन सकते हैं।
प्याज से ठीक पहले रसोई गैस और डीजल के दाम बढ़े लेकिन शीला दीक्षित ने कभी न तो प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी और न ही पेट्रोलियम मंत्री को लेकिन प्याज के बढ़ते दामों ने शीला की नींद हराम कर दी..!
ऐसा नहीं है कि खाद्य पदार्थों में सिर्फ प्याज के दाम ही बढ़े हो...तमाम चीजों पर महंगाई असर डाल रही है और दूसरी सब्जियों के साथ ही राशन सामग्री भी महंगी हुई है लेकिन इस पर शीला ने कभी किसी को चिट्ठी नहीं लिखी...लेकिन प्याज के बढ़ते दामों ने शीला को डरा दिया..! क्योंकि शीला जानती हैं प्याज की ताकत..!
साल 1998 तो याद ही होगा आपको...ये प्याज ही था जिसने एनडीए सरकार की नींद हराम कर दी थी और इसी प्याज के सहारे कांग्रेस ने सत्ता की चाबी हासिल की थी। पाकिस्तान को सब्जियां निर्यात करने वाले कारोबारियों ने प्याज का आयात भी शुरु कर दिया था लेकिन प्याज एनडीए को रुलाकर ही माना।
2010 में भी प्याज की बढ़ती कीमतों की वजह से ही 12 साल बाद फिर से पाकिस्तान से प्याज का आयात शुरु किया गया ताकि प्याज की कीमतों पर लगाम कसी जा सके।
एक बार फिर से प्याज नए कीर्तीमान स्थापित करने की ओर बढ़ रहा है और आम आदमी के साथ ही सरकार को भी रुला रहा है।
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की बेचैनी तो शरद पवार को लिखे उनके खत से ही जाहिर हो गई है लेकिन शरद पवार के जवाब- प्याज के दाम स्थानीय कारणों से बढ़ रहे हैं ने शीला की उलझन को कम करने की बजाए बढ़ा ही दिया है।
कुल मिलाकर प्याज के आंसू आसानी से थमने के फिलहाल कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं...आम आदमी तो एक बार को बिना प्याज के गुजारा कर भी ले लेकिन प्याज खरीदने की हैसियत रखने वाले सत्तारूढ़ दल के नेताओं को जनता का ये दुख देखा नहीं जा रहा है क्योंकि उन्हें डर है कि प्याज के आसूं रो रही जनता कहीं चुनाव में इनको न रुला दे।

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भ्रष्टाचार जिंदाबाद !


केन्द्रीय कैबिनेट ने संशोधित लोकपाल पर मुहर क्या लगाई...एक बार फिर से लोकपाल पर तकरार शुरु हो गई है। सरकार कह रही है कि ये एक सशक्त लोकपाल है और इससे भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगी लेकिन लोकपाल को लेकर सरकार की नाक में दम करने वाले समाजसेवी अन्ना हजारे कहते हैं कि ये लोकपाल प्रभावी नहीं है।
अन्ना ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर वादे से मुकरने का आरोप लगाते हुए कहा कि पीएम ने उन्हें चिट्ठी लिखकर सीबीआई को लोकपाल के दायरे में रखने के साथ ही मजबूत लोकपाल लाने का वादा किया था लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
सीबीआई को लोकपाल के दायरे में न रखने पर अन्ना कहते हैं कि सीबीआई को लोकपाल के दायरे में होना बहुत जरूरी है...इसके बिना लोकपाल का कोई मतलब नहीं है।
यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी भ्रष्टाचार को कैंसर तो बताती हैं...प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार पर चिंता तो जताते हैं लेकिन भ्रष्टाचार के समूल नाश के लिए प्रभावी लोकपाल लाने की जब बारी आती है तो ये लोग कदम पीछे खींच लेते हैं।
जाहिर है इनकी कथनी और करनी में बड़ा फर्क है...शायद इसलिए ही सरकार सीबीआई और सीवीसी को लोकपाल के दायरे में नहीं लाना चाहती है..!
माना सिर्फ लोकपाल से भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म नहीं होगा लेकिन भ्रष्टाचार के समूल नाश के लिए लोकपाल एक शुरुआत तो हो सकता है लेकिन अफसोस सरकार ये शुरुआत करना ही नहीं चाहती..!
शुरुआत हो भी कैसे जब सरकार में शामिल एक दर्जन से ज्यादा मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप हों तो क्यों कोई सरकार ऐसा कानून लाना चाहेगी जो भविष्य में उसके मंत्रियों के गले की ही फांस बन सकता है..!
सरकार की मंशा अगर सशक्त लोकपाल लाने की होती जैसा अन्ना हजारे मांग कर रहे हैं तो क्या लोकपाल पर इतनी तकरार होती..?
क्या अब तक लोकपाल बिल पास नहीं हो गया होता..?
जाहिर है लोकपाल की राह में सबसे बड़ा रोड़ा सरकार ही है..! सरकार नहीं चाहती कि एक सशक्त लोकपाल आए..!
हो सकता है कि बजट सत्र में संशोधित लोकपाल बिल पास भी हो जाए क्योंकि संसद में सशक्त लोकपाल के समर्थन में आवाज उठाने वाला कोई नहीं है क्योंकि विपक्ष में बैठे लोग ये जानते हैं कि कभी न कभी वे भी सत्ता में आएंगे ऐसे में सशक्त लोकपाल एक दिन उनके गले की फांस भी बन सकता है..! तो क्यों वो इसके पक्ष में आवाज बुलंद करेंगे..?
बहरहाल लोकपाल को लेकर तकरार शुरु हो गई है...सरकार बजट सत्र में राज्यसभा में लोकपाल लाने की तैयारी कर रही है तो अन्ना हजारे ने मजबूत लोकपाल के लिए देशभर में घूम घूमकर एक बार फिर से बड़ा जनांदोलन करने की बात कही है...जो साफ ईशारा कर रहा है कि लोकपाल पर छाया कुहासा फिलहाल तो जल्द छंटने के कोई आसार नहीं हैयानि कि भ्रष्टाचार जिंदाबाद!!

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गुरुवार, 31 जनवरी 2013

विश्वरूपम पर बैन की असली वजह !


विश्वरूपम के रिलीज पर बैन से दुखी कमल हासन ने जब राजनीति का शिकार होने की बात कहते हुए देश छोड़ने की धमकी दी थी तो दुख हुआ लेकिन एक सवाल जेहन में कौंधा कि आखिर एक अभिनेता राजनीति मे कैसे फंस सकता है..? क्या वाकई में इसके पीछे कोई बड़ा राजनीतिक खेल है जो कुछ मुस्लिम संगठनों का आगे कर खेला जा रहा है..?
बीबीसी के मुताबिक कमल हासन की इस फिल्म के सैटेलाइट राइट्स का समझौता जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके से ताल्लुक रहने वाले जया टीवी से हो चुका था लेकिन जैसे ही कमल हासन ने इस फिल्म को डीटीएच पर रिलीज करने का ऐलान किया जया टीवी ने सैटेलाइट टीवी के अधिकार खरीदने से इंकार कर दिया। जया टीवी के इंकार के बाद कमल हासन ने फिल्म के सारे अधिकार स्टार विजय को बेच दिए। ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि कहीं कमल हासन जया टीवी से बगावत की सजा तो नहीं झेल रहे हैं..?
इसके साथ ही डीटीएच पर फिल्म को रिलीज करने के कमल हासन के ऐलान ने थिएटर मालिकों के कान भी खड़े कर दिए। उन्हें आशंका होने लगी कि कमल हासन की शुरु की जा रही ये परंपरा कहीं उनके धंधे को चौपट न कर दे ऐसे में थिएटर मालिक भी कमल हासन के खिलाफ हो गए। यहां ये सवाल उठता है कि कहीं थिएटर मालिकों की राजनीतिक पहुंच भी तो कहीं विश्वरुपम की राह का रोड़ा तो नहीं बनी..?
कमल हासन ने एक कार्यक्रम में न सिर्फ करूणानिधि की तारीफ की बल्कि विदेश मंत्री पी चिदंबरम की तरफ ईशारा करते हुए वे किसी धोती वाले को देश का प्रधानमंत्री देखने की बात कह बैठे। करूणानिधि और चिदंबरम से जयललिता के रिश्ते जगजाहिर है ऐसे में जाहिर है करूणानिधि और जयललिता की तारीफ करना जयललिता को नागवार तो गुजरा ही होगा। ऐसे में एक सवाल यहां भी उठता है कि क्या कमल हासन की फिल्म को बैन कर जयललिता ने कमल हासन को सबक सिखाया है..?
धुंआ उठा है तो जाहिर है कि आग कहीं न कहीं जरूर लगी होगी फिर चाहे ये कमल हासन की जया टीवी से बगावत की आग का बदला हो..! जयललिता के धुर विरोधी करूणानिधि और चिदंबरम की तारीफ करने पर लगी आग हो या फिर थिएटर मालिकों के संभावित नुकसान की आग हो..!
अगर धुंआ इन तीनों में से किसी आग का है तो आग ने बकौल फिल्म निर्माता कमल हासन रिलीज न होने से उन्हें करीब 40 से 50 करोड़ का फटका लगाकर बुरी तरह झुलसा तो दिया ही है..!
राजनीति में कुछ भी संभव है बस आपको सही समय पर अचूक चाल चलनी आनी चाहिए। अगर वाकई में कमल हासन और जयललिता के बीच अनबन की खबरें सही हैं तो फिर इसमें कोई शक नहीं कि आतंकवाद जैसे मसले पर आधारित फिल्म पर जयललिता ने मुस्लिम संगठनों को आगे कर अपनी चाल चल दी और कमल हासन को चारों खाने चित कर दिया..!
इस मसले पर एक हफ्ते बाद मीडिया के सामने आई जयललिता ने भले ही कमल हासन से कोई दुश्मनी होने या किसी कारोबारी वजह से फिल्म रिलीज पर बैन लगाने की बात से इंकार करते हुए 24 मुस्लिम संगठनों की आपत्ति और कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए अपनी सफाई पेश की हो। साथ ही फिल्म में कांट छांट के बाद फिल्म रिलीज में कोई आपत्ति न होने की बात कही हो। लेकिन एक हफ्ते तक फिल्म को रिलीज न होने देकर जयललिता ने इस फिल्म में अपना सब कुछ दांव पर लगा कर बैठे कमल हासन की न सिर्फ नींद हराम कर दी बल्कि 40-50 करोड़ का फटका भी लगा दिया और इसके बाद कमल हासन को फिल्म में कांट छांट की सलाह देकर समझौते का रास्ता भी दिखा दिया..!
ये आशंकाए इसलिए भी बलवती होती हैं क्योंकि फिल्म रिलीज के एक दिन पहले रिलीज पर 15 दिन का बैन राज्य सरकार ने लगाया जबकि सेंसर बोर्ड फिल्म को पास कर चुका था..!
बैन के खिलाफ कमल हासन जब हाईकोर्ट पहुंचे तो कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को गलत ठहराते हुए कमल हासन को राहत देते हुए फिल्म पर लगा बैन हटा लिया। लेकिन सरकार तो मानो फिल्म की रिलीज रुकवाने में तुली थी..! सरकार ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट की डबल बैंच में अपील कर दी...जिसने सिंगल बैंच के फैसले को पलटते हुए फिल्म की रिलीज पर फिर से बैन लगा दिया।
बहरहाल सच्चाई भले जो भी हो देर सबेर सामने आ ही जाएगी फिलहाल तो आज विश्वरूप नाम से हिंदी में रिलीज होने जा रही कमाल हासन की विश्वरूपम के लिए हम कमल हासन को शुभकामनाएं ही दे सकते हैं कि देश के बाकी हिस्सों में विश्वरूपविवादरूप न बने और ये फिल्म सुपर हिट हो।

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क्या विश्व देखा पाएगा “विश्वरूपम” का रूप ?


विश्वरूपम को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है और बढ़ते विवाद के चलते ही विश्वरूपम का रूप विश्व के सामने नहीं आ पा रहा है। दक्षिण के बाद अब उत्तर भारत में भी फिल्म के रिलीज पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। मामला मद्रास हाईकोर्ट में है तो इस बीच बयानबाजी के दौर भी जारी है। करूणानिधि ने इसमें भी राजनीति तलाश ली है और वे कहते हैं कि एक कार्यक्रम में कमल हासन ने पी चिदंबरम की तारीफ कर दी...बस इसी से जयललिता नाराज हो गई हैं और फिल्म की रिलीज पर बैन लगा दिया..!
हालांकि जयललिता ने आरोप लगाने वालों पर मानहानि का केस करने के साथ ही फिल्म को लेकर 24 मुस्लिम संगठनों के विरोध को दरकिनार नहीं किए जाने की सरकार की मजबूरी बताकर अपनी सफाई भी पेश कर दी है लेकिन खामियाजा न तो करूणानिधि भुगत रहे हैं और न ही जयललिता...खामियाजा भुगत रहा है एक कलाकार..! कमल हासन के मुताबिक अपना सब कुछ इस फिल्म में दांव पर लगा दिया है।
फिल्म इंडस्ट्री भी कमल हासन के समर्थन में खड़ी है...सलमान लोगों से फिल्म पर बैन के खिलाफ बगावत की अपील कर चुके हैं तो तमाम फिल्मी हस्तियां भी फिल्म में बैन के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही हैं लेकिन तमिलनाडु में विश्वरूपम में बैन का ग्रहण फिलहाल छंटता नहीं दिख रहा है..!
बकौल जयललिता सरकार राज्य में 524 थियेटरों को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकती...इसके पीछे मान लेते हैं कि सरकार की कानून व्यवस्था को लेकर अपनी मजबूरियां हैं...7 करोड़ लोगों पर सिर्फ 87 हजार का पुलिसबल है लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि एक फिल्म जो मनोरंज का साधन होने के साथ ही लोगों के लिए एक संदेश भी छोड़ कर जाती है क्या लोगों को आपस में बांट सकती है या देश की आबोहवा में जहर घोल सकती है..?
जो जानकारी है कि फिल्म अफगानिस्तान में आतंकवाद पर बनी है और भारत का उससे कोई संबंध नहीं हैं लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं निकाला जा सकता कि फिल्म में आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा होगा या फिल्म में आतंकवादी बनने का संदेश दिया जा रहा होगा या किसी धार्मिक ग्रंथ का अपमान किया गया होगा...ऐसा होता तो क्या सेंसर बोर्ड जैसी जिम्मेदार संस्था फिल्म को हरी झंडी देती..!
ऐसा होता तो क्या कमल हासन अपना सब कुछ एक फिल्म में दांव पर लगा देते..! कमल हासन एक अच्छे कलाकार हैं और लंबे अरसे से फिल्म इंडस्ट्री में है ऐसे में वे ये अच्छी तरह समझते होंगे कि ऐसा करके वे अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मारने का काम करते और शायद इसलिए कमल हासन मुस्लिमों के लिए फिल्म की अलग से स्क्रीनिंग करने को भी तैयार थे लेकिन इसके बाद भी फिल्म को लेकर कुछ मुस्लिम संगठनों का विरोध नहीं थमा और राज्य सरकार ने उनके कहने पर फिल्म की रिलिज पर बैन लगा दिया..!
बहरहाल अच्छी बात ये है कि कमल हासन फिल्म से उन दृश्यों और डॉयलाग को हटाने पर सहमत हो गए हैं जिन पर आपत्ति जतायी जा रही है और जयललिता ने भी कांटछांट होने पर फिल्म की रिलीज में आपत्ति न होने की बात कही है ऐसे में उम्मीद करते हैं कि विश्वरूपम से विवादरूपम बन चुकी कमल हासन की फिल्म का विवादों से पीछा छूटे और इस विवाद का पटाक्षेप हो और समूचा विश्व विश्वरूपम का रूप देखे।  

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बुधवार, 30 जनवरी 2013

सुपरहिट हुई विश्वरूपम !


कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम की रिलीज कानूनी पचड़े में नहीं फंसती तो पता नहीं कि ये फिल्म हिट होती या नहीं लेकिन फिल्म के रिलीज पर बवाल मचने के बाद ये तो तय है कि देर सबेर जब भी ये फिल्म बड़े पर्दे पर आएगी तो फिल्म सुपर हिट जरूर होगी। जाहिर है फिल्म को लेकर लोगों की जिज्ञासा बढ़ गई है और हर कोई फिल्म देखने के लिए ललायित होगा..!
फिल्म में कुछ दृश्यों के साथ ही डॉयलाग को लेकर विरोध हो रहा है...अच्छी बात ये है कि कमल हासन विवादित अंश को फिल्म से हटाने पर सहमत भी हो गए हैं लेकिन फिलहाल मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर से फिल्म रिलीज का मामला सोमवार तक अटक गया है।
बड़ा सवाल ये उठता है कि जब फिल्म के किसी दृश्य पर किसी डॉयलाग पर सेंसर बोर्ड ने आपत्ति नहीं जतायी और फिल्म को हरी झंडी दे दी तो फिर आखिर क्यों राज्य सरकार ने सेंसर बोर्ड के फैसले का सम्मान नहीं किया और फिल्म की रिलीज पर रोक लगा दी..?
अगर राज्य सरकार को ही सब कुछ तय करना है तो फिर सेंसर बोर्ड की जरूरत ही क्या है..?
हालांकि ऐसी फिल्मों को प्रदर्शित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जिसमें समुदाय विशेष को निशाना बनाया गया हो या फिर ऐसे दृश्य या डॉयलाग हों जो समाज के लिए खतरा हों या समाज में वैमनस्य पैदा करते हों लेकिन सेंसर बोर्ड एक जिम्मेदार संस्था है और जब वह किसी फिल्म को प्रमाणित कर रहा है तो फिर सवाल नहीं उठने चाहिए।
विश्वरूपम मेगा बजट फिल्म है और जैसा सुना है कि विश्वरूपम में करीब 100 करोड़ की लागत से बनी है ऐसे में फिल्म की रिलीज में देरी पर कमल हासन का दर्द समझा जा सकता है...वो भी तब जब कमल ने अपना घर तक फिल्म के लिए गिरवी रख दिया है।
बकौल कमल हासन वे राजनीति का शिकार हो रहे हैं और तमिलनाडु की जयललिता सरकार उन्हें राज्य से भगाना चाहती है...अगर वाकई में ऐसा है तो तमिलनाडु के लिए...इस देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता कि एक कलाकार को प्रोत्साहन देने की बजाए उसका मनोबल तोड़ने की पूरी कोशिश की जा रही है जबकि फिल्म को सेंसर बोर्ड से हरी झंडी मिल चुकी है..!
बहरहाल फिल्म कानूनी पचड़े में बुरी तरह फंस गयी है और फिलहाल ये विवाद जल्द शांत होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
उम्मीद करते हैं कि विश्वरूपम की रिलीज पर लगा ग्रहण जल्द हटेगा और फिल्म को लेकर लोगों के मन में छाया कुहासा भी रिलीज के साथ छंटेगा और वास्तविक स्थिति सबके सामने आएगी।

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मंगलवार, 29 जनवरी 2013

शाहरुख खान- दिल की बात लिखकर क्यों लाए ?


मैं न ही शाहरुख खान के खिलाफ हूं और न ही मेरा ईरादा शाहरुख की आलोचना करने का था...लेकिन पाकिस्तानी गृहमंत्री रहमान मलिक की टिप्पणी पर किंग खान की बहुत देर से आई प्रतिक्रिया पर खुद को लिखने से भी नहीं रोक सका। आपने शाहरुख खान की वो प्रतिक्रिया समाचार चैनलों में देखी और सुनी की नहीं पता नहीं और देखी और सुनी भी तो पता नहीं गौर किया की नहीं कि शाहरुख खान साहब जब अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे तो सामने रखे कागज पर पढ़कर अपनी बात बोल रहे थे।
शाहरुख ने कहा मुझे भारतीय होने पर गर्व है और बाहरी लोग सलाह न दें। हालंकि शाहरुख ने अपने लेख पर बेवजह बखेड़ा खड़ा करने का आरोप भी लगाया और भारत में अपनी सुरक्षा की चिंता नहीं होने की बात कही। रहमान मलिक के बयान पर शाहरुख से जवाब की उम्मीद थी जो उन्होंने बहुत देर से ही सही लेकिन आखिरकार दिया।
शाहरुख खान सहाब जब कागज से पढ़कर अपनी बात कह रहे थे तो देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि आखिर जो शाहरुख खान फिल्मों के डॉयलाग बिना पढ़े शानदार तरीके से बोलते हैं...और कई टीवी भी शो भी उन्होंने इसी तरह होस्ट भी किए हैं...उन्हें अपनी दिल की बात कहने के लिए कागज पर लिखकर लाना पड़ा। शाहरुख ने बहुत कुछ नहीं बोला और न ही वे कोई भाषण टाइप दे रहे थे लेकिन फिर भी आखिर क्यों लिखकर लाने की जरूरत पड़ गई और उसमें से ही पढ़कर अपनी बात शाहरुख ने कही..! मुझे तो समझ नहीं आया...आपको आया हो तो बताइएगा जरूर..!

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शाहरुख खान ने बढ़ाया रहमान मलिक का हौसला !


सीमा पार से पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक को भारतीय अभिनेता शाहरुख खान की चिंता खूब सता रहा है लेकिन क्या ये वाकई में रहमान मलिक की चिंता है या कुछ और...? ये बड़ा सवाल है।
ये सवाल इसलिए भी उठता है क्योंकि रहमान मलिक अपने मुल्क के वाशिंदों को तो सुरक्षा मुहैया कराने में नाकाम साबित हुए हैं ऐसे में उनका एक भारतीय को वो भी मुसल्मि की सुरक्षा की चिंता करना गले तो नहीं उतरता।
27 दिसंबर 2007 की तारीख तो रहमान मलिक साहब आपको याद ही होगी जब पाकिस्तान में रावलपिंडी के लियाकत बाग में पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की सरेआम हत्या कर दी गयी थी।
इतना काफी नहीं है तो रहमान मलिक साहब एक और तारीख आपको याद दिला देते हैं- 16 अक्टूबर 1951...याद है ये तारीखजब रावलपिंडी के लियाकत बाग में ही पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की हत्या कर दी गई थी। उनके हत्यारों को तो आज तक आप पकड़ नहीं पाए..!
इसके अलावा पाकिस्तान में आए दिन होने वाले बम धमाके और गोलीबारी की घटनाओं की गूंज तो रहमान मलिक साहब आपके कानों तक पहुंचती ही होगी...किस तरह हर रोज पाकिस्तान में निर्दोष लोगों को चाहे वे किसी भी जाति या धर्म के क्यों न हो मार दिया जाता है..!
न जाने कितने ही मंदिर, मस्जिद और दरगाहें तोड़ दी जाती हैं...अमन की बात करने वालों को मौत की नींद सुला दिया जाता है लेकिन आप कुछ नहीं कर पाते..!   
आप करोगे भी क्या..?
आपको तो अमन और चैन की भाषा समझ ही नहीं आती..! आप अपना घर तो संभाल नहीं पाए...चले हो दूसरों को नसीहत देने।
1999 में कारगिल में पाकिस्तानी सैनिक लड़ते हैं तो आप ये कहकर पलट जाते हो कि वे आतंकवादी थे...हमारे सैनिक नहीं थे..! ये बात अलग है कि आपकी ही सेना के एक पूर्व कमांडर बाद में आपके झूठ का पर्दाफाश करते हैं।
भारतीय सीमा पर पाकस्तानी सैनिक घुसकर भारतीय सैनिकों के साथ बर्बरता करते हैं तो आप इसको सिरे से खारिज कर देते हैं...ये बात अलग है कि एलओसी के पास भारतीय क्षेत्र में पाकिस्तानी सैनिकों की बिछाई बारुदी सुरंग सारी कहानी खुद बयां कर देती है।
मुंबई हमले का मास्टरमाइंड हाफिज सईद पाकिस्तान में बैठकर कश्मीर की लड़ाई तेज करने की बात करता है और आप कहते हो कि हाफिज के खिलाफ सबूत नहीं हैं।
कितना झूठ बोलोगे मलिक साहब...खैर इसमें आपकी भी गलती नहीं है...दरअसल ये आप जैसे अमन के दुश्मन पाकिस्तानियों के खून में ही है।
अपने मुल्क में तो आप अमन कायम कर नहीं पाते...या कहें कि करना ही नहीं चाहते लेकिन भारत में अमन और शांति आपको बर्दाश्त नहीं होती..! इसलिए ही आप भारत में आते हो तो मुंबई हमले की तुलना बाबरी विध्वंस से करते हो और पाकिस्तान में बैठकर शाहरुख खान की चिंता करते हो।
आप जितनी मर्जी कोशिश कर लो लेकिन आपके नापाक ईरादे कभी पूरे नहीं होने वाले क्योंकि ये पाकिस्तान नहीं हिंदुस्तान है मलिक साहब हिंदुस्तान..!
ये तो रही रहमान मलिक की बात लेकिन इस मामले में शाहरुख खान की चुप्पी समझ नहीं आती...क्या शाहरुख को मलिक के इस बयान का खुद जवाब नहीं देना चाहिए..?
क्या शाहरुख को वाकई में एक ऐसा इंटरव्टयू देने की जरूरत थी...जो रहमान मलिक को ऐसा बयान देने के लिए प्रेरित करता क्योंकि पाकिस्तान तो ताक में रहता है ऐसे बयानों की...जिसके सहारे वह भारत को निशाना बना सके और मुस्लिमों की भावनाओं से खिलवाड़ कर सके।
शाहरुख कहते हैं कि- मैं कभी-कभी राजनीतिज्ञों के लिए एक बेपरवाह वस्तु हो जाता हूं। वे उन सभी चीजों के लिए मुझे एक प्रतीक के रूप में लेते हैं, जिन्हें वे मुस्लिमों के बारे में गलत समझते हैं।’ 
शाहरुख साहब आपको कभी कभी ऐसे बयानों का दर्द हो रहा है लेकिन आपको भारत के 121 करोड़ लोगों को वो प्यार याद नहीं आता जो आपको हिंदुस्तान में मिलता आया है और मिल रहा है..!
आपकी एक एक झलक पाने के लिए आपके करोडों फैंस की दीवानगी आपको नजर नहीं आती खान साहब..!
कुछ तो बोलो खान साहब...देश की जनता आपको सुनना चाहती है...आपके करोड़ों फैंस रहमान मलिक की टिप्पणी पर आपका मन जानना चाहते हैं...कुछ तो बोलो..चुप रहकर तो आप हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह रहमान मलिक का हौसला ही बढ़ा रहे हो।

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सोमवार, 28 जनवरी 2013

राजनाथ- क्या धुलेगा 2009 का दाग ?


2005 में जब राजनाथ सिंह ने भाजपा की कमान संभाली थी तो भाजपा विपक्ष में थी। आम चुनाव में चार साल का वक्त था और राजनाथ सिंह के कंधे पर भाजपा को 2009 में वापस सत्ता में लाने की जिम्मेदारी थी। राजनाथ सिंह को भी पूरा भरोसा था कि वे 2009 में केन्द्र में एनडीए की सरकार बनाने में सफल होंगे लेकिन जब 2009 में चुनाव नतीजे आए तो भाजपा का सत्ता में आना तो दूर उल्टा भाजपा की सीटों की संख्या 2004 के मुकाबले कम हो गई।
2004 में जहां भाजपा ने 138 सीटों जीती थी वहीं 2009 में भाजपा की सीटों संख्या 116 रह गई यानि सत्ता में आने का ख्वाब देख रही भाजपा को 22 सीटों का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। ऐसे में एक बार फिर से राजनाथ सिंह के हाथ भाजपा की कमान है तो सवाल ये उठता है कि क्या राजनाथ सिंह 2005 से 2009 तक भाजपा अध्यक्ष रहने के दौरान उन पर 2009 के आम चुनाव में असफलता का जो दाग लगा है उसको 2014 में धो पाने में कामयाब होंगे..? वो भी जब उन्होंने पार्टी की कमान ऐसे वक्त पर संभाली है जब 2014 के आम चुनाव में तकरीबन 15 महीने का ही वक्त है और पार्टी  के सामने चुनाव जीतने से बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आखिर एनडीए की सरकार बनी तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा..?
राजनाथ सिंह भले ही पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद 2014 में एनडीए की सरकार बनने का दम भर रहे हों लेकिन राजनाथ के इस दावे की हवा 2009 के आम चुनाव में उनके नेतृत्व में ही भाजपा की करारी हार का जिक्र आते ही निकल जाती है..!
राजनाथ सिंह संघ के भरोसेमंद होने के साथ ही सबको साथ लेकर चलने वाले नेता हो सकते हैं लेकिन उनकी इस योग्यता पर 2009 का आम चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन सवाल खड़ा कर देता है..!
राजनाथ के इस कार्यकाल में उनके लिहाज से अच्छी बात ये है कि उनकी दुश्मन नंबर एक यूपीए सरकार पहले से ही अपने फैसलों को लेकर विवादों के साथ ही उनके मंत्रियों के बयानों को लेकर सवालों में भी है..!
यूपीए-2 सरकार के भ्रष्टाचार, घोटाले राजनाथ सिंह की राह आसान कर देते हैं तो सरकार के खिलाफ अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल और बाबा रामदेव के आंदोलनों से बदली देश की फिजा भी राजनाथ के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। लेकिन राजनाथ सिर्फ इन सब के भरोसा 2014 में पार्टी की नैया पार नहीं लगा सकते इसके लिए राजनाथ को पिछली गलतियों से भी सबक लेना होगा कि आखिर 2009 में ऐसी क्या चूक वे कर गए कि भाजपा को फायदा होने की बजाए 22 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा।    
राजनाथ सिंह को पार्टी के नेताओं को भरोसे में लेने के साथ ही एनडीए में भाजपा के सहयोगियों को भी साथ लेकर चलना होगा फिर चाहे वो सहयोगियों के लिए सीटें छोड़ने की बात हो या फिर नेतृत्व को लेकर उठने वाले सवाल। क्योंकि भाजपा अगर अपनी सीटों की संख्या 200 से ऊपर नहीं ले जा पाती है तो फिर ये सहयोगी ही होंगे जो केन्द्र की सत्ता के रास्ते या तो आसान कर सकते हैं या फिर राह में रोड़े अटका सकते हैं। हालांकि इस काम में वे माहिर माने जाते हैं लेकिन सरकार बनने की स्थिति में पीएम की कुर्सी को लेकर एनडीए में अंतर्कलह को थामना उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी।
इसके साथ ही राजनाथ सिंह पर अपने फायदे के लिए पार्टी हितों को बलि चढ़ाने के साथ ही जातिगत पक्षपात के भी आरोप लगते रहे हैं ऐसे में राजनाथ सिंह को पार्टी अध्यक्ष के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में इस सब से दूर रहते हुए भी खुद को साबित करना होगा।   
समय कम हैं लेकिन चुनौती बड़ी...देखते हैं राजनाथ सिंह इससे पार पा पाएंगे या नहीं..!

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रविवार, 27 जनवरी 2013

मोदी के आगे राजनाथ भी नतमस्तक !

2014 का चुनाव करीब है ऐसे में केन्द्र की सत्ता में काबिज होने को बेचैन भाजपा में ये सवाल जोरों से उठ रहा है कि अगर 2014 में एनडीए की सरकार बन गई तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा..? भाजपा के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी की भी इच्छा तो होगी ही लेकिन अफसोस उनकी ये हसरत पूरी तो होगी नहीं..! दौड़ में तो और भी बहुत नेता हैं जिनमें सुषमा स्वराज, अरुण जेटली के अलावा अब राजनाथ सिंह का नाम भी जुड़ गया है लेकिन जिस नाम का जिक्र मैंने अभी तक नहीं किया वही दौड़ में सबसे आगे दिखाई दे रहा है।
बात गुजरात के सीएम नरेन्द्र मोदी की हो रही है। भले ही वे भाजपा के राष्ट्रीय नेता न हों...गुजरात की राजनीति में सक्रिय हों लेकिन इसके बाद भी वे लोकप्रियता के मामले में भाजपा के तमाम दिग्गज राष्ट्रीय नेताओं से दो कदम आगे ही हैं। विरोधियों को छोड़िए अपनी ही पार्टी में भी वे खासा दम रखते हैं...फिर उनके सामने भले ही पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष क्यों न हो..?
नरेन्द्र मोदी दिल्ली में पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह से मिलने और उनको बधाई देने जब राजनाथ सिंह के निवास पर पहुंचे तो राजनाथ सिंह अपने निवास के बाहर मोदी के स्वागत के लिए पलकें बिछाए बैठे थे। ऐसा लग रहा था कि पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर मोदी राजनाथ सिंह को नहीं बल्कि राजनाथ सिंह मोदी को बधाई दे रहे हों।
ये पार्टी में मोदी का बढ़ता कद नहीं तो और क्या था कि उनकी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष मोदी के स्वागत के लिए अपने निवास के बाहर खड़ा था..!
क्या किसी और भाजपा शासित राज्य का मुख्यमंत्री पार्टी के नए नवेले राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलने पहुंचे तो राजनाथ सिंह इसी तरह उसका स्वागत करेंगे…उसके स्वागत में अपने निवास के बाहर खड़े मिलेंगे..? लेकिन मोदी के मामले में ऐसा हुआ क्योंकि राजनाथ सिंह ये जानते हैं कि 2009 के आम चुनाव में उनके नेतृत्व में भाजपा की हार का जो दाग उनके माथे पर लगा हैवो दाग 2014 में केन्द्र में एनडीए की सरकार बनवाकर कोई शख्स अगर मिटा सकता है तो वो शख्स कोई और नहीं नरेन्द्र मोदी ही है। ऐसे में क्यों न पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष मोदी के स्वागत में पलकें बिछाए अपने निवास के बाहर खड़ा हो। सही कहा न राजनाथ सिंह जी।

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दलित, पिछड़े सबसे भ्रष्ट..!


गणतंत्र दिवस पर समाजशास्त्री आशीष नंदी ने अपने विचारों के गणतंत्र से  नया भूचाल पैदा कर दिया। आशीष नंदी कहते हैं कि भारत में दलित और पिछड़े ही सबसे ज्यादा भ्रष्ट हैं..! नंदी साहब इसके पीछे पश्चिम बंगाल का एक उदाहरण भी देते हुए कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में पिछले 100 सालों में दलितों और पिछड़ों को सत्ता के नजदीक आने का मौका नहीं मिला इसलिए वहां पर भ्रष्टाचार कम हैं..!
आशीष नंदी साहब की बात अगर सही है फिर तो इसका एक और मतलब ये निकलता है कि भ्रष्टाचार का जीन तो दलितों और पिछड़ों के खून में है और फिर तो ये बड़ी ही खतरनाक स्थिति है..!
ऐसे में तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को तत्काल अपने मंत्रिमंडल से दलित और पिछड़े वर्ग के मंत्रियों को निकाल बाहर करना चाहिए..!
लोकसभा अध्यक्ष पद से मीरा कुमार को हटा देना चाहिए..!
सरकार को सभी सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को नौकरी से बर्खास्त कर देना चाहिए..!
सरकार को दलितों और पिछड़ों के लिए चलाई जा रही सारी योजनाओं पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा देनी चाहिए..!
आशीष नंदी साहब आपने तो कमाल कर दिया...जिस भ्रष्टाचार रूपी कैंसर को खत्म करने में बड़े-बड़े नाकाम हो गए आपने तो उसकी जड़ ही पकड़ ली..! आपकी बात पर अमल करते हुए सरकार को तो अब भ्रष्टाचार की जड़ को ही उखाड़ फेंकना चाहिए ताकि भारत से भ्रष्टाचार खत्म हो जाए..!
नंदी साहब आप तो समाजशात्री और आलोचक ठहरे...भ्रष्टाचार पर आपने चिंता की बड़ा अच्छा लगा लेकिन आपने तो दलितों और पिछड़ों पर ही सवाल खड़ा कर दिया। माना साहित्य सम्मेलन हर मुद्दे पर खुली चर्चा के लिए होता है लेकिन आपने तो अपनी जुबान कुछ ज्यादा ही खोल दी। आपने सफाई भी पेश कर दी...माफी भी मांग ली लेकिन क्या इतने भर से आपकी जुबान से छूटे दलितों और पिछड़ों के अपमान के तीर वापस हो जाएंगे..?
नंदी साहब भ्रष्टाचार किसी के खून में नहीं होता और न ही इसका किसी धर्म या जाति से कोई लेना देना है। भ्रष्टाचार तो नेता(सभी नहीं) भी करते हैं, अधिकारी- कर्मचारी(सभी नहीं) भी करते हैं, छोटे-बड़े व्यापारी(सभी नहीं) भी करते हैं, आम आदमी(सभी नहीं) भी करते हैंलेकिन आपने तो भ्रष्टाचार की जाति और वर्ग ही तय कर दिया..!
पैसे पर जिसकी नीयत खराब हो जाती है नंदी साहब वो ही भ्रष्टाचारी हो जाता है बस भ्रष्टाचार करने के तरीके अलग – अलग होते हैं...कोई ज्यादा करता है तो कोई कम करता है।
चलिए नंदी साहब आपने अपने कहे पर सफाई भी दे दी, माफी भी मांग ली, आपके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हो गई...आखिर जयपुर साहित्य सम्मेलन की सारी सुर्खियां भी तो आपने बटोर ही ली...इस बात का तो संतोष होगा ही आपको..! आजकल को ट्रेंड भी इस चीज का।

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2014- नरेन्द्र मोदी बनेंगे प्रधानमंत्री !

2014- नरेन्द्र मोदी बनेंगे प्रधानमंत्री !
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर कोई कुछ बोले लेकिन जब बात 2014 की होती है तो मोदी का जिक्र खुद ब खुद आ जाता है। कांग्रेस में राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बनाकर नंबर दो की पोजीशन में बैठा दिया जाता है तो 2014 में मोदी बनाम राहुल पर चर्चा होती है। सोशल नेटवर्किंग साईट्स से लेकर तमाम ओपिनियन पोल मोदी बनाम राहुल पर केन्द्रित दिखाई दे रहे हैं और भाजपा के लिए खुशी की वजह हो सकती है कि मोदी हर जगह राहुल गांधी पर भारी दिखाई देते हैं हालांकि कांग्रेसी इससे इत्तेफाक नहीं रखते लेकिन इससे मुंह मोड़ना कांग्रेसियों के लिए इतना आसान भी नहीं है।
ऐसे में केन्द्र की सत्ता में वापस लौटने को बेताब दिखाई दे रही भाजपा मोदी को निकट भविष्य में इलेक्शन कैंपेन कमेटी का प्रभारी नियुक्त कर दे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। ये बात सही है कि मोदी सर्वाधिक लोकप्रिय होने के बावजूद एनडीए के साथ ही भाजपा में भी फिलहाल सर्व स्वीकार्य नेता नहीं हैं लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि मोदी फिलहाल राष्ट्रीय राजनीति में न होकर भी तमाम राजनीतिक दलों के राष्ट्रीय नेताओं पर भारी पड़ते हैं।
मोदी के दामन में गोधरा का दाग जरूर है लेकिन गुजरात को बिना रूके विकास के पाथ पर आगे ले जाने का श्रेय भी मोदी के ही पास है। हालिया विधानसभा चुनाव में गुजरात की जनता ने इस पर मुहर लगाकर इस बात को साबित भी कर दिया है कि वे उसी का साथ देंगे जो विकास की बात करेगा।  
2014 के मद्देनजर मोदी को भाजपा अगर इलेक्शन कैंपेन कमेटी का प्रभारी नियुक्त करती है तो इससे न सिर्फ मोदी का कद पार्टी में और बढ़ जाएगा बल्कि ये संकेत भी होगी कि भाजपा ये मान चुकी है कि मोदी के बिना 2014 फतह करना आसान नहीं है। महंगाई, भ्रष्टाचार और घोटालों के साथ ही आर्थिक मोर्चे पर यूपीए 2 सरकार के कई फैसलों के खिलाफ जनता की नाराजगी के बावजूद भी 2014 की राह भाजपा के लिए इतनी आसान नहीं है जितनी वास्तव में दिखाई दे रही है लेकिन माना भाजपा 2014 फतह कर भी लेती है तो सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा होगा कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा..?
जाहिर है प्रधानमंत्री भाजपा का ही होगा और नरेन्द्र मोदी का नाम दूसरे नामों से बहुत आगे है लेकिन मोदी के नाम को लेकर भाजपा में अंतर्विरोध छिपा नहीं है ऐसे में एनडीए से पहले भाजपा को पूरी पार्टी को मोदी के नाम पर एकमत करना होगा जो काम आसान तो नहीं है लेकिन बहुत मुश्किल भी नहीं है मतलब मोदी के नाम पर भाजपा में सहमति बन सकती है..! लेकिन भाजपा की मुश्किल यहीं आसान नहीं हो जाती क्योंकि पार्टी के बाद एनडीए में मोदी के नाम पर सर्वसम्मति बनाना ही सबसे बड़ी चुनौती होगी।
यहां पर एनडीए का मुख्य घटक जद यू ही मोदी की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है...बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और मोदी की खटपट किसी से छिपी नहीं है ऐसे में भाजपा के लिए पीएम की कुर्सी के लिए मोदी के नाम पर जद यू को राजी करना ही होगा..!
बहरहाल 2014 में जनता किसका साथ देगी और देश का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा ये तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन तमाम ओपिनियन पोल और सोशल नेटवर्किंग साईट्स में सिर्फ दो ही नाम चर्चा में हैं...नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी। इन दोनों नामों में भी नरेन्द्र मोदी राहुल गांधी को पीछे छोड़ते नजर आ रहे हैं।   

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