रेप करिए, दूसरों की
मां- बहिन की इज्जत को तार तार करिए, लेकिन चुनाव लड़ने के बाद, बस थोड़ा सब्र
कीजिए, चुनाव हो जाने दीजिए, बस चुनाव तक शांत रहिए..! ये सब सिर्फ चुनाव
लड़ने के बाद होगा, गलती से चुनाव जीत गए तो न जाने ये नेतागण और क्या क्या
करेंगे..? महाराष्ट्र की
सत्ता में काबिज होने का ख्वाब देख रही एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के पूर्व
गृहमंत्री आर आर पाटिल न सिर्फ ऐसा सोचते हैं बल्कि दूसरे नेताओं को सलाह देने से
भी पीछे नहीं हट रहे हैं। महाराष्ट्र के सांगली में एक चुनावी सभा में आर आर पाटिल
कुछ ऐसा ही कहते पाए गए। पाटिल ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा, 'एमएनएस उम्मीदवार सुधाकर खाड़े के समर्थक मेरे पास आए और अपना समर्थन
देने की बात कही। मैंने उनसे पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो, तो उन्होंने बताया कि उनका उम्मीदवार रेप
के मामले में जेल में बंद है।'
इस पर पाटिल ने जवाब दिया कि, 'यदि सुधाकर खाड़े
चुनाव लड़ना चाहते थे, यदि वह विधायक बनना
चाहते थे, तो उन्हें चुनाव के बाद रेप करना चाहिए
था।' पढ़ें- पाटिल का बेशर्म
बयान, 'तो चुनाव बाद कर लेते रेप'।
हालांकि विवाद के
बाद पाटिल माफी मांगते हुए नजर आए और कहने लगे कि उन्होंने ये टिप्पणी मजाक में की
थी। गजब है पाटिल साहब, पहले कुछ भी बोला, फिर माफी मांग लो, बढ़िया है पाटिल साहब
बढ़िया है। नेताओं से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है, लेकिन एक ऐसा व्यक्ति से
जो महाराष्ट्र का गृह मंत्री रह चुका हो, जिसके कंधे पर राज्य की महिलाओं की
सुरक्षा की जिम्मेदारी हो, वो अगर ऐसा बोलता है तो दुख होता है। लेकिन पाटिल साहब
का क्या, उनका तो मानना है, पहले चुनाव लड़ लो, फिर करो जो मर्जी करना है।
अगर आपको याद हो तो,
ये वही पाटिल साहब हैं, जो 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले के वक्त महाराष्ट्र
के गृहमंत्री थे। उस वक्त भी पाटिल साहब के कुछ ऐसे ही बोल थे। आतंकी हमले पर ये अपने
प्रदेश की जनता के प्रति कितने संजीदा थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है
कि उस वक्त आतंकी हमले पर इनका कहना था कि “आतंकवादी तो पांच हजार लोगों को मारने की योजना बनाकर आए थे, हमने कितने कम लोगों को मरने दिया। इतने बड़े शहर में एकाध हादसा तो हो
ही जाता है।‘’
ऐसे हैं एनसीपी हमारे
पाटिल साहब, जो एक बार फिर से महाराष्ट्र की जनता की पता नहीं कैसी कैसी सेवा करने
का ख्वाब पाले बैठे हैं। शायद फिर से चुनाव जीत भी जाएं पाटिल साहब, क्योंकि ऐसा
ही तो होता आया है चुनाव में। कर्म देखकर नहीं जाति देखकर जो वोट करने की परंपरा
जो अभी भी कायम है। वैसे भी पाटिल साहब ने चुनाव से पहले तो कुछ नहीं किया, शायद
चुनाव जीतकर ही कुछ करके दिखाएं। उम्मीद तो यही करते हैं कि अब शायद जनता पाटिल
जैसे नेताओं को सबक सिखाएगी, लेकिन क्या वाकई में ऐसा होगा..?
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