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शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

रेप करिए लेकिन चुनाव के बाद !

रेप करिए, दूसरों की मां- बहिन की इज्जत को तार तार करिए, लेकिन चुनाव लड़ने के बाद, बस थोड़ा सब्र कीजिए, चुनाव हो जाने दीजिए, बस चुनाव तक शांत रहिए..! ये सब सिर्फ चुनाव लड़ने के बाद होगा, गलती से चुनाव जीत गए तो न जाने ये नेतागण और क्या क्या करेंगे..? महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज होने का ख्वाब देख रही एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री आर आर पाटिल न सिर्फ ऐसा सोचते हैं बल्कि दूसरे नेताओं को सलाह देने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं। महाराष्ट्र के सांगली में एक चुनावी सभा में आर आर पाटिल कुछ ऐसा ही कहते पाए गए। पाटिल ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा, 'एमएनएस उम्मीदवार सुधाकर खाड़े के समर्थक मेरे पास आए और अपना समर्थन देने की बात कही। मैंने उनसे पूछा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो, तो उन्होंने बताया कि उनका उम्मीदवार रेप के मामले में जेल में बंद है।'
इस पर पाटिल ने जवाब दिया कि, 'यदि सुधाकर खाड़े चुनाव लड़ना चाहते थे, यदि वह विधायक बनना चाहते थे, तो उन्हें चुनाव के बाद रेप करना चाहिए था।' पढ़ें- पाटिल का बेशर्म बयान, 'तो चुनाव बाद कर लेते रेप'
हालांकि विवाद के बाद पाटिल माफी मांगते हुए नजर आए और कहने लगे कि उन्होंने ये टिप्पणी मजाक में की थी। गजब है पाटिल साहब, पहले कुछ भी बोला, फिर माफी मांग लो, बढ़िया है पाटिल साहब बढ़िया है। नेताओं से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है, लेकिन एक ऐसा व्यक्ति से जो महाराष्ट्र का गृह मंत्री रह चुका हो, जिसके कंधे पर राज्य की महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी हो, वो अगर ऐसा बोलता है तो दुख होता है। लेकिन पाटिल साहब का क्या, उनका तो मानना है, पहले चुनाव लड़ लो, फिर करो जो मर्जी करना है।
अगर आपको याद हो तो, ये वही पाटिल साहब हैं, जो 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले के वक्त महाराष्ट्र के गृहमंत्री थे। उस वक्त भी पाटिल साहब के कुछ ऐसे ही बोल थे। आतंकी हमले पर ये अपने प्रदेश की जनता के प्रति कितने संजीदा थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस वक्त आतंकी हमले पर इनका कहना था कि आतंकवादी तो पांच हजार लोगों को मारने की योजना बनाकर आए थे,  हमने कितने कम लोगों को मरने दिया। इतने बड़े शहर में एकाध हादसा तो हो ही जाता है‘’
ऐसे हैं एनसीपी हमारे पाटिल साहब, जो एक बार फिर से महाराष्ट्र की जनता की पता नहीं कैसी कैसी सेवा करने का ख्वाब पाले बैठे हैं। शायद फिर से चुनाव जीत भी जाएं पाटिल साहब, क्योंकि ऐसा ही तो होता आया है चुनाव में। कर्म देखकर नहीं जाति देखकर जो वोट करने की परंपरा जो अभी भी कायम है। वैसे भी पाटिल साहब ने चुनाव से पहले तो कुछ नहीं किया, शायद चुनाव जीतकर ही कुछ करके दिखाएं। उम्मीद तो यही करते हैं कि अब शायद जनता पाटिल जैसे नेताओं को सबक सिखाएगी, लेकिन क्या वाकई में ऐसा होगा..?


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गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

ओम, जया और जेल

ओम प्रकाश चौटाला और जयललिता, एक हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हैं तो दूसरी तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री। दोनों भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल की हवा खा रहे हैं। लेकिन इसके बाद भी लगता है, उन्हें कानून का कोई खौफ है और न ही उनके मन में न्यायपालिका के लिए कोई सम्मान। ओम प्रकाश चौटाला साहब तो बीमारी का बहाना कर अदालत से जमानत पर बाहर हैं और अपनी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल के लिए जमकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं, तो तमिलनाडु में जयललिता की रिहाई के लिए उनकी पार्टी के कार्यकर्ता कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। उन्हें अदालत के आदेश तक की परवाह नहीं है, या कहें कि जयललिता की अंधभक्ति में वे दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में बंद जयललिता को रिहा करने जैसी बेतुकी बातें कर रहे हैं। उनके लिए कानून से बढ़कर उनकी अम्मा है और अम्मा की रिहाई के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।  
हरियाणा विधानसभा चुनाव में चौटाला जमकर चुनावी प्रचार में मशगूल हैं।  बीमारी के बहाने जमानत पाने वाले चौटाला को रोकने की शायद किसी में हिम्मत नहीं है। ख़बर सबको है, सीबीआई से लेकर चुनाव आयोग तक लेकिन चौटाला की हिमाकत के आगे सब बेबस से दिखाई पड़ रहे हैं। अदालत के नोटिस के बाद भी चौटाला पर कोई असर नहीं है, वे बेधड़क रोज चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे हैं, इनेलो प्रत्यशियों के लिए वोट मांग रहे हैं। हालांकि देर से ही सही लेकिन सीबीआई की आंखें खुली और सीबीआई की अर्जी के बाद अब कोर्ट ने चौटाला को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश दिया है।
वैसे अब चौटाला जेल चले भी जाते हैं तो क्या..? चौटाला ने अपना काम तो कर दिया। जातिवाद की राजनीति के केन्द्र हरियाणा में चौटाला ने इस दौरान चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी और अब चौटाला के फिर से जेल जाने पर भी चौटाला को इसका फायदा चुनाव में सहानुभूति के रूप में भी मिल सकता है। हरियाणा में अब तक भी तो यही होता आया है।
वहीं दूसरी तरफ जयललिता हैं, जो मुख्यमंत्री रहते हुए गिरफ्तार होने वाली शायद पहली राजनेता हैं। लेकिन जयललिता समर्थकों के लिए अदालत के फैसले का कोई असर नहीं है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता के चुने प्रतिनिधि का न्यायपालिका के प्रति असम्मान साबित करने के लिए काफी है कि हिंदुस्तान में ऐसे राजनेताओं का सिर्फ एक ही ध्येय है, वो है अपना उद्धार करना, जनता से उन्हें कोई सरोकार नहीं है। होता तो शायद ओम प्रकाश चौटाला और जयललिता आज जेल की हवा न खा रहे होते। वैसे भी ये सिर्फ भारत में ही संभव है, जहां पर भ्रष्टाचारी को सजा मिलने में 18 साल लग जाते हैं और उसके बाद भी वो खुलेआम न्यायपालिका का मखौल उड़ाता है, लेकिन इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात तो ये है कि ऐसे राजनेताओं और उनकी पार्टी के नाम पर जनता वोट देने से पीछे नहीं हटती। ये तस्वीर बदल सकती है, और इसे सिर्फ जनता ही बदल सकती है, वो भी अपने वोट की ताकत के बल पर, लेकिन क्या ऐसा कभी होगा..? उम्मीद तो यही करते हैं कि हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ही इसका शुभारंभ हो।   


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