कहने को तो पूरा बनारस
चुनावी मौसम में इतरा रहा होगा, पूरे देश की निगाहें जो बनारस पर टिकी हैं। चारों
तरफ सिर्फ और सिर्फ काशी और काशी के लोगों की ही चर्चा है कि आखिर काशी के लोग किसे
अपना सरताज चुनेंगे। लेकिन सही मायने में शनिवार शाम 6 बजे के बाद बनारसी चैन की
सांस ले रहे होंगे। इस चुनाव में जो बनारस ने झेला, शायद ही हिंदुस्तान के किसी और
शहर ने झेला होगा। हालांकि बनारस हमेशा से सभी का दिल खोलकर स्वागत करता है, लेकिन
चुनावी मौसम में जो होड़ इस बार राजनीतिक दलों में देखने को मिली, उसकी शायद बनारस
को आदत नही है। बनारस में नामांकन के बाद से चुनाव प्रचार समाप्त होने के आखिरी
घंटे तक चले सियासी ड्रामे तक बनारस की जनता ने सिर्फ और सिर्फ तकलीफ ही झेली। कभी
भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के रोड शो ने बनारस की रफ्तार थामी तो कभी
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के रोड शो
ने। रही सही कसर पूरी कर दी आम आदमी पार्टी के संयोजक व बनारस से उम्मीदवार अरविंद
केजरीवाल और यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के रोड शो ने। अब चुनाव प्रचार थमने
के बाद बनारसी शायद चैन की नींद सो पा रहे होंगे कि कम से कम रविवार से उन्हें भरी
गर्मी मे न तो रेंगते हुए अपने काम पर जाने पर मजबूर होना पड़ेगा और न ही किसी
बेवजह के जाम में फंसकर राजनीतिक दलों की भीड़ का हिस्सा बनना पड़ेगा। इसमें कोई दो
राय नहीं कि इस चुनाव में बनारस देश की सबसे हॉट सीट बनी हुई है लेकिन इस हॉट सीट
पर कौन राज करेगा ये तो बनारस की जनता को ही तय करना है। आखिरी वक्त में अपनी पूरी
ताकत बनारस में झोंकने वाले राजनीतिक दल भले ही बनारस की हवा अपने – अपने पक्ष में
होने का दम भर रहे हैं लेकिन बनारस के दिल में क्या है ये तो 16 मई को चुनावी
नतीजों के सामने आने के बाद ही आ पाएगा। मुद्दा ये भी है कि बनारस में जो भी
जीतेगा, क्या वो अगले पांच साल तक भी बनारस की सेवा में इसी तरह तत्पर रहेगा और
बनारस की जनता के हक की बात करेगा, जिस तरह वह अभी बनारस की जनता के वोट पाने के
लिए एड़ी – चोटी का जोर लगा रहा है। उम्मीद करते हैं कि बनारस की जनता ऐसे की
व्यक्ति को चुनेगी जो जीतने के बाद भी बनारस के लिए इतनी ही चिंता करेगा, जितना की
अभी उनके वोट पाने के लिए कर रहा है। दारोमदार बनारस की जनता के हाथ में ही है,
क्योंकि अपने नेता को चुनने का अधिकार भी बनारस के पास ही है।
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