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शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

मोदी रन – आखिरी किश्त

(पढ़ें - मोदी रन PART-1)
मोदी बिहार को पार कर यूपी को रवाना हो गए, वही यूपी जिसे फतह करने की तैयारी मोदी ने सौंपी है, अपने हनुमान यानि कि अमित शाह को। जाहिर है 80 लोकसभा सीटों वाला उत्तर प्रदेश हमेशा से सबसे अहम केन्द्र रहा है और हमेशा रहेगा। लेकिन क्या इतना आसान होगा मोदी के लिए अपने हनुमान के बूते यूपी को पार पाना, उस यूपी को जहां कि राजनीति धर्म और जातिवाद के मकड़जाल में उलझी हुई है...(पूरा पढ़ें – मोदी रन पार्ट 2)

पीएम की कुर्सी के रास्ते की सबसे अहम और बड़ी अड़चन यूपी को मोदी ने कई चांस के बाद पार किया तो मोदी के सामने था तमिलनाडू, वही तमिलनाडू जो केन्द्र की सत्ता में अपना अलग स्थान रखता है। वही तमिलनाडू जिसके सामने केन्द्र की यूपीए सरकार कई बार घुटने टेकने पर मजबूर हो जाती है। वही तमिलनाडू जहां पर खाता तक खोलना भाजपा के लिए किसी सपने के सच होने जैसा है। 39 सांसदों वाले तमिलनाडू में कांग्रेस के पास 8 सांसद तो भी हैं, लेकिन भाजपा यहां पर शून्य है। डगर मुश्किल थी और कांग्रेस के साथ ही पार पाना था करूणानिधी की द्रमुक और जयललिता की अन्नाद्रमुक को। मोदी ये बात अच्छी तरह जानते भी थे लेकिन मोदी ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और तमिलनाडू को फतह करने के लिए निकल पड़े। यहां भी मोदी के पास रिटेक का ही सहारा था और कई चांस के बाद मोदी तमिलनाडू को पार कर पाए।
तमिलनाडू के बाद मोदी पहुंचे असम तो यहां भी हालात कुछ वैसे ही थे। 14 सीटों वाले असम में कांग्रेस के पास 7 सीटें थी तो मोदी की भाजपा यहां भी शून्य ही थी। तमिलनाडू की भांति मोदी यहां भी गिरते पड़ते रिटेक के सहारे इसे पार कर गए और पहुंचे मध्य प्रदेश में जहां से मोदी के साथ ही भाजपा को बड़ी उम्मीदें हैं। हो भी क्यों न मध्य प्रदेश की 29 सीटों में से 16 पर भाजपा का कब्जा है और कांग्रेस के पास सिर्फ 12 सीटें हैं। भाजपा को यहां पर विधानसभा चुनाव में भी हैट्रिक की उम्मीद है तो लोकसभा चुनाव में अपनी सीटें 16 से आगे बढ़ने की उम्मीद। मश्किलें तो मोदी को मध्य प्रदेश में भी पेश आईं लेकिन मोदी ने आखिरकार मध्य प्रदेश को पार कर ही लिया। मध्य प्रदेश के बाद इसी तरह मोदी ने दौड़ते हुए, गिरते पड़ते, कई कई रिटेक के सहारे पंजाब, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और ओडिशा समेत तमाम राज्यों को पार कर ही लिया।
खेल में तो हार जीत होती रहती है और साथ ही आपके पास खुद को बेहतर साबित करने के कई मौके भी होते हैं। सिर्फ खेल के हिसाब से सोचें तो मोदी के पास पीएम की कुर्सी तक पहुंचने के लिए हर राज्य को पार करना था, जो मोदी ने जैसे तैसे किया भी। लेकिन असल जिंदगी खेल से पूरी तरह अलग होती है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या वाकई में 2014 में भाजपा के पीएम उम्मीदवार मोदी के लिए इस कुर्सी पर काबिज होना इतना आसान है। जाहिर है असल जिंदगी में वो भी राजनीति में ये सब इतना आसान नहीं होता है, लेकिन चुनाव की रणभेरी में पीएम इन वेटिंग की पदवी संभाल कर जंग का ऐलान कर चुके मोदी के पास शायद कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है। मोदी को पीएम की कुर्सी के आस पास भी पहुंचना है तो 2014 में भाजपा के हिंदी भाषी राज्यों के अलावा इस तिलिस्म को तोड़कर दूसरे राज्यों में भी भाजपा को आगे बढ़ाना होगा जो आसान लगता नहीं। सोशल नेटवर्किंग साईट्स में मोदी छाए हुए हैं, बातें मोदी लहर की भी हो रही हैं लेकिन सवाल ये है कि क्या ये बातें करने वाले, दफ्तर या घर पर बैठकर सोशल नेटवर्किंग साईट्स में मोदी की जय जयकार करने वाले क्या मतदान के दिन अपने अपने पोलिंग बूथ तक पहुंचेंगे और पहुंचेंगे भी तो क्या भाजपा के वोट में कनवर्ट हो पाएंगे..?
बहरहाल मोदी रन में मोदी को पीएम की कुर्सी तक पहुंचाकर मोदी समर्थकों के पास खुशी की वजह तो है और वे 2014 तक कई बार मोदी को इस खेल में तो कम से कम पीएम की कुर्सी तक पहुंचा सकते हैं लेकिन देखना होगा कि असल जिंदगी में क्या मोदी पीएम की कुर्सी तक पहुंच पाएंगे क्योंकि ये नहीं भूलना चाहिए कि रियल लाईफ में न तो मौके बार बार मिलते हैं और न ही रिटेक का कोई चांस होता है।

deepaktiwari555@gmail.com

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

सचिन भारत रत्न तो ध्यानचंद और अटल क्यों नहीं..?

सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिलने पर उनके प्रशंसक फूले नहीं समा रहे हैं। क्रिकेट के शौकिनों के साथ ही सचिन के प्रशंसकों का खुश होना लाजिमी भी है क्योंकि क्रिकेट उनके लिए धर्म है तो सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के भगवान। भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न पाना किसी के लिए भी गौरव की बात है लेकिन सवाल ये है कि क्या सचिन को सही वक्त पर भारत रत्न से सम्मानित किया गया..? कहीं ये फैसला जल्दबाजी में तो नहीं लिया गया..? खेल जगत की ही अगर बात करें तो क्या सचिन के चक्कर में दूसरे खिलाड़ियों को नजरअंदाज तो नहीं किया गया जो इसके हकदार थे..?
निश्चित तौर पर भारतीय क्रिकेट के लिए सचिन के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता लेकिन सचिन के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के तुरंत बाद बिना देर किए सचिन को इस सम्मान से नवाजना गले नहीं उतरता। जिस तरह से सचिन को भारत रत्न से नवाजा गया उससे तो कम से कम भारत सरकार का ये फैसला जल्दबाजी में लिया गया लगता है..!
ये इसलिए क्योंकि सचिन के मामले में उन्हें ये सम्मान महज 42 वर्ष की आयु में प्रदान कर दिया जाता है लेकिन खेल जगत के ऐसे कई भारतीय खिलाड़ी जो अलग अलग खेलों में अपना जौहर दिखाकर भारत का नाम रोशन कर चुके हैं उन्हें इस सम्मान के लायक ही नहीं समझा गया।
फ्लॉंईंग सिख के नाम से मशहूर एथलीट मिल्खा सिंह हों या फिर हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद दोनों ने विश्व स्तर पर कई मौकों पर अपने बेहतरीन प्रदर्शन के दम पर न सिर्फ तिरंगे के सम्मान को बढ़ाया बल्कि देशवासियों को गर्व करने का मौका दिया। मिल्खा सिंह को दी गयी उड़न सिख की उपाधि और ध्यानचंद को हॉकी के जादूगर की उपाधि ये बताने के लिए काफी हैं कि अपने अपने खेल में दोनों का विश्व में कोई सानी नहीं है। ये इनके खेल की जादूगरी ही थी कि विश्वस्तर पर आज भी इनके नाम का डंका बजता है। हो सकता है सचिन के प्रशंसकों को ये बातें नागवार गुजरे लेकिन सचिन की तुलना में भारत रत्न के लिए हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद सिंह और उड़न सिख मिल्खा सिंह के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ये स्पष्ट करना चाहूंगा कि यहां विरोध सचिन को भारत रत्न दिए जाने का नहीं है बल्कि दूसरे खिलाड़ियों को नजरअंदाज करने का है कि आखिर क्यों ऐसा किया गया..?
सचिन को भारत रत्न से नवाजने के बाद एक और नाम की गूंज सुनाई देने लगी है कि आखिर क्यों भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को आज तक भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया गया। अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने की मांग न सिर्फ उनकी पार्टी के लोग कर रहे हैं बल्कि विरोधी पार्टियों के नेताओं फारुख अब्दुल्ला और नीतिश कुमार का अटल को भारत रत्न देने की मांग करना ये जाहिर करता है कि अटल बिहारी वाजपेयी की छवि एक निर्विवाद नेता की है और वे इसके हकदार भी हैं। अटल ने भारतीय राजनीति में रहते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम ऊंचा ही किया है ऐसे में उनकी दावेदारी को खारिज नहीं किया जा सकता। कांग्रेसी भले ही अटल बिहारी वाजपेयी के नाम को ये कहकर खारिज कर रहे हैं कि 2002 में गुजरात दंगों के वक्त अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुए राजधर्म का पालन नहीं किया लेकिन इस सवाल का जवाब शायद इनके पास नहीं होगा कि 1975 में देश पर आपातकाल लादकर भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को खतरे में डालने वाली इंदिरा गांधी और बफोर्स घोटाले में नाम आने वाले राजीव गांधी आखिर इसके हकदार कैसे हो गए..?
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और इंदिरा गांधी का खुद को भारत रत्न से नवाजना भी कई बातें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या भारतीय राजनीति में नेहरु – गांधी परिवार के जो सदस्य देश के पीएम बने, वे ही भारत रत्न के हकदार हैं, फिर चाहे उनके साथ कई विवाद क्यों न जुड़े हों..?  
बहरहाल सचिन को भारत रत्न मिलने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न दिए जाने की मांग और मेजर ध्यानचंद और मिल्खा सिंह नजरअंदाज क्यों के सवाल चाहे लाखों उठ रहे हो लेकिन आज का सच तो यही है कि अटल बिहारी, ध्यानचंद और मिल्खा सिंह भारत रत्न नहीं है लेकिन क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर भारत रत्न हैं और यही इतिहास के पन्नों में भी दर्ज होगा। मचाते रहो हल्ला होगा वही जो मंजूरे यूपीए सरकार होगा।
आखिर में एक सवाल और भारत रत्न सचिन को टीवी पर विज्ञापनों  में विभिन्न कंपनियों के उत्पादों का प्रचार करते देखकर आपको कैसा लग रहा है..?


deepaktiwari555@gmail.com