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शनिवार, 3 नवंबर 2012

पापा का सपना पूरा करेगा सीएम बेटा !


केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा वैसे तो अपने अजीबो गरीब बयान के लिए चर्चा में ज्यादा रहते हैं...लेकिन इस बार बेनी बाबू ने जो बोला उस पर सहसा विश्वास नहीं होता कि बेनी प्रसाद वर्मा ऐसा भी सोचते हैं। बेनी प्रसाद वर्मा ने उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार के फैसलों पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सपा सरकार मुसलमानों के वोटों के लिए उत्तर प्रदेश में सिर्फ मुसलमानों में कृपा बरसा रहा है। दरअसल बेनी बाबू को अखिलेश सरकार के उस फैसले पर एतराज है जिसमें सपा सरकार ने राज्य के मुसलमान परिवार की बेटियों के विवाह और पढ़ाई के लिए 30 – 30 हजार रूपए बांट रही है। बेनी बाबू का कहना है कि क्या सिर्फ मुसलमान ही गरीब हैं ? बेनी साहब ये भी कहते हैं कि अगर 70 फीसदी मुसलमान गरीब हैं तो फिर 95 फीसदी अनुसूचित जाति, 25 फीसदी पिछड़े और 10 फीसदी सामान्य वर्ग के लोग भी बेहद गरीबी का जीवन जी रहे हैं...ऐसे में सरकार सिर्फ मुसलमानों पर ही नेमत क्यों बरसा रही है। उत्तर प्रदेश की सपा सरकार के फैसले पर ऊंगली उठाने वाले ये वही बेनी बाबू हैं जो कुछ दिन पहले तक सपा सरकार को सौ में से सौ नंबर दे चुके हैं। वैसे मंत्री जी के सपा सरकार को 100 नंबर देने पर ज्यादा अचरज नहीं हुआ था...क्योंकि बेनी बाबू के श्रीमुख से ऐसे ही बयानों की उम्मीद की जाती रही है। लेकिन मुसलमानों के साथ ही दूसरे वर्ग के गरीबों पर बेनी बाबू की चिंता ने बहस का नया विषय तो खड़ा कर ही दिया है। लेकिन देखने वाली बात ये है कि क्या ये सिर्फ बेनी प्रसाद वर्मा जी का सिर्फ एक बयान है या फिर 2014 के आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए दिया गया बयान। बेनी बाबू कांग्रेस से ताल्लुक रखते हैं और हालिया विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस युवराज राहुल गांधी के पूरी ताकत झोंकने के बाद भी कांग्रेस की हालत किसी से छुपी नहीं है...ऐसे में विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों को साधने में नाकाम रही कांग्रेस कहीं 2014 में अन्य वर्ग के वोटों को साधने की तैयारी में तो नहीं है...! मंत्री जी का बयान इस ओर भी ईशारा करता दिखाई दे रहा है। बहरहाल मुद्दे की अगर बात करें तो मुद्दा बेहद गंभीर है और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश क्या देशभर में मुसलमानों के अलावा भी जो आबादी है उसका भी एक बहुत बड़ा वर्ग बेहद गरीब है...ऐसे उत्तर प्रदेश के लिहाज से ही अगर बात करें तो यहां पर स्थिति वाकई में गंभीर है और सिर्फ मुसलमानों के अलावा भी बड़ा वर्ग गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहा है। ऐसे में अगर अखिलेश सरकार सिर्फ मुसलमानों को फायदा पहुंचाती है या कोई योजना शुरु करती है तो सवाल खड़े उठने लाजिमी है। वैसे सपा सरकार के इस फैसले के पीछे की वजह खोजने की कोशिश की जाए तो स्पष्ट होता है कि सपा की निगाहें भी 2014 के आम चुनाव पर ही है...और देश की राजनीति तय करने वाले सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश के रास्ते दिल्ली की सत्ता में तीसरे मोर्चे के सहारे काबिज होने का मुलायम सिंह का पुराना सपना साफ नजर आता है...और हालिया घटनाक्रमों के बाद इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि मुलायम सिंह इसमें कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते। कांग्रेस इस पर इसलिए भी सवाल उठा रही है कि वो अच्छी तरह जानती है कि उसे केन्द्र की सत्ता में तीसरी बार काबिज होना है कि उत्तर प्रदेश में अपनी स्थ्ति सुधारनी होगी। बहरहाल विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को सिर आंखों में बैठाने वाली उत्तर प्रदेश की जनता 2014 में प्रस्तावित केन्द्र की सत्ता की लड़ाई की चाबी सौंपने लायक किसे बनाएगी ये तो भविष्य के गर्भ में है...लेकिन इस चाबी को हासिल करने के लिए सियासी जंग शुरु  जरुर हो चुकी है और जो खासी रोचक होने की भी पूरी उम्मीद है।


शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

क्या राहुल गांधी बुद्धू हैं ?


कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जिन्हें कांग्रेस देश का भावी प्रधानमंत्री कहती है क्या वे बुद्धू हैं ?  जनता दल के अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी के राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर आरोप के बाद...राहुल ने मानहानि का मुकदमा करने की जो धमकी स्वामी को दी...उसके बाद स्वामी का ट्विट तो यही कहता है कि राहुल गांधी बुद्धू हैं। स्वामी के इस ट्विट के बाद सियासी गलियारों में भी ये चर्चाएं गर्म हैं कि राहुल गांधी कहीं सच में बुद्धू तो नहीं! अगर इसका जवाब हां में है तो फिर कांग्रेसियों को राहुल गांधी के बारे में अब आगे से बहुत सोच समझकर बोलना चाहिए। स्वामी के इस बयान के बाद खुद की एक गंभीर युवा नेता की छवि पेश करने की कोशिश करने वाले राहुल गांधी को झटका जरुर लगा होगा। राहुल ने शायद ही ये कभी सोचा होगा कि कोई उनको बुद्धू तक की उपाधि दे सकता है। वैसे राहुल ने जिस तेजी से स्वामी के आरोपों पर पलटवार करते हुए कानूनी कार्रवाई करने के साथ ही मानहानि की धमकी दी थी...उससे तो यही लगा था कि राहुल गांधी खुद की छवि पर दूसरे कांग्रेसियों की तरह कोई दाग नहीं लगने देना चाहते...लेकिन जिन दस्तावेजी सबूतों के साथ स्वामी ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी की घेराबंदी की है...उससे इन आरोपों से पाक साफ बच निकलना फिलहाल राहुल और सोनिया के लिए आसान तो नहीं दिखाई दे रहा। और अब जबकि कांग्रेस ने इस बात को स्वीकार कर लिया है कि कांग्रेस ने नेश्नल हेराल्ड और कौमी आवाज़ आखबार निकालने वाली कंपनी एसोसिएट जर्नल्स (एजीपीएल) को 90 करोड़ रूपए बिना ब्याज पर कर्ज दिया था...ऐसे में स्वामी के आरोप औऱ मजबूत होते दिखाई दे रहे हैं। हालांकि कांग्रेस ये कहते हुए अपना पल्ला बचाने की कोशिश कर रही है कि नेशनल हेराल्ड ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी...ऐसे में नेशनल हेराल्ड को कर्ज देना कांग्रेस के लिए गर्व की बात है...लेकिन नियम कहते हैं कि राजनीतिक पार्टी राजनीतिक उद्देश्यों के लिए जुटाए धन को किसी कंपनी को कर्ज नहीं दे सकती...ऐसे में स्वामी के आरोप अब सोनिया और राहुल की गले की फांस बनते जा रहे हैं...और समूचे विपक्ष ने इसको लेकर सोनिया और राहुल को घेरना शुरु कर दिया है। बहरहाल हालात देखकर तो फिलहाल यही लगता है कि कांग्रेस के साथ ही गांधी खानदान के सितारे भी गर्दिश में चल रहे हैं। पहले सरकार में एक के बाद एक घोटाले उजागर होते हैं...प्रधानमंत्री समेत तमाम मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं...उसके बाद गांधी खानदान के दामद राबर्ट वाड्रा पर ऊंगलिया उठती हैं और अब गांधी परिवार की मुखिया सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी पर भ्रष्टाचार के आरोप लग गए हैं...यानि कि गांधी परिवार फिलहाल तो मुश्किल में नजर आ रहा है। अब देखना ये होगा कि एक के बाद एक आरोपों की बौछार से गांधी परिवार खुद को कैसे बचाता है और पाक साफ साबित करता है। वैसे सोनिया गांधी ने भ्रष्टाचार में घिरे अपने मंत्री की तो पीठ थपथपाकर उन्हें प्रमोशन दे दिया लेकिन खुद के दामन में लगे दाग पर सोनिया क्या कदम उठाती हैं...ये देखने वाली बात होगी...साथ ही स्वामी से बुद्धू की उपाधि पाए राहुल कैसे साबित करेंगे कि वे बुद्धू नहीं हैं...ये देखना भी रोचक होगा।
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गुरुवार, 1 नवंबर 2012

अब जनता फोड़ेगी भ्रष्टाचार का घड़ा


सोनिया गांधी की कृपा से प्रमोशन पाकर कानून मंत्री से विदेश बनने वाले सलमान खुर्शीद के घर फर्रुखाबाद में अरविंद केजरीवाल की रैली ने कुछ हो न हो खुर्शीद की नींद तो जरुर उड़ा दी होगी। खुर्शीद भले ही इस रैली को नजरअंदाज करनी की कोशिश कर रहे हों...लेकिन जिस तेवर के साथ खुर्शीद ने कानून मंत्री रहते हुए केजरीवाल को फर्रुखाबाद आकर वहां से सही सलामत लौटने की चेतावनी दी थी...उससे तो ये उसी दिन साफ हो गया था कि खुर्शीद केजरीवाल की रैली को लेकर बेचैन भी थे और खुद के घर में अपनी घेराबंदी से परेशान भी...हालांकि खुर्शीद के चंद समर्थकों ने केजरीवाल एंड कंपनी को रोकने की पूरी कोशिश भी कि लेकिन उनके मंसूबे कामयाब नहीं हो पाए और केजरीवाल ने न सिर्फ खुर्शीद के घर फर्रुखाबाद में उनकी और उनके एनजीओ की कारगुजारियों की पोल खोली बल्कि मंच से खुलकर चुनौती भी दी...लेकिन खुर्शीद और उनके समर्थक मन ही मन केजरीवाल को कोसने के अलावा कुछ और नहीं कर पाए। केजीरवाल ने खुर्शीद के खिलाफ हल्ला बोलते हुए वहां की जनता से अगले चुनाव में खुर्शीद को सबक सिखाने की अपील तो की है...लेकिन हैरानी होती है कि भ्रष्चाचार के खिलाफ बोलने वाली सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह उनको संरक्षण देते नजर आते हैं। भ्रष्टाचार पर बोलते हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में जनसभा में सोनिया ने भाजपा पर भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न करने का आरोप तो लगाया...लेकिन सोनिया गांधी ये कैसे भूल गई कि वे खुद भ्रष्टाचार के सांपों को अपने आस्तीन में पाल रही हैं...न सिर्फ पाल रही हैं बल्कि उन्हें खूब दूध भी पिला रही हैं। बात सलमान खुर्शीद की ही हो रही है...जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगने के बाद सोनिया उन्हें प्रमोशन दे देती हैं। हालांकि इसके पीछे एक तर्क नजर आता है कि सोनिया गांधी को वफादार लोग शायद ज्यादा पसंद हैं। भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद सलमान खुर्शीद का एक बयान याद आता है जब वे कहते हैं कि वे सोनिया गांधी के लिए जान तक दे सकते हैं...सोनिया को इससे बढ़िया वफादार कहां मिल सकता था...जो सिर्फ उनकी ही सुने...उनकी ही बात करे...तो सोनिया ने भी खुर्शीद को तत्काल ईनाम दे डाला और कानून मंत्री से प्रमोशन देकर बना डाला विदश मंत्री। ऐसे में खुर्शीद और उन जैसे सोनिया के वफादार नेताओं पर भ्रष्टाचार के कितने ही आरोप क्यों न लग जाएं...उकी कुर्सी तो उनसे कोई नहीं छीन सकता। हालांकि केजरीवाल ने खुर्शीद और उन जैसे भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ लड़ाई जारी रखने का ऐलान किया है...ऐसे में उम्मीद करते हैं देर सबेर ही सही इन नेताओं का...इनको संरक्षण देने वालों के भ्रष्टाचार का घड़ा एक दिन जरुर फूटेगा...और देश की जनता से बेहतर इस काम को कोई और नहीं कर सकता।

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राहुल को गुस्सा क्यों आता है ?


राहुल गांधी कोई इन्हें कांग्रेस का युवराज कहता है तो कोई देश का भावी प्रधानमंत्री...कांग्रेसी नेताओं के लिए राहुल ही सबकुछ हैं...और इनके मुताबिक तो राहुल ही प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालकर देश का कल्याण कर सकते हैं। हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी लगता है कि राहुल उनकी टीम का हिस्सा बनेंगे तो ही देश का उद्धार हो पाएगा। मनमोहन सिंह कह कहकर थक गए लेकिन राहुल गांधी कैबिनेट में शामिल नहीं हुए तो नहीं हुए। राहुल गांधी ने कई राज्यों में कांग्रेस की नैया पार लगाने की कोशिश की लेकिन असफल ही रहे। इस दौरान कभी भी राहुल गांधी को गुस्से में नहीं देखा...वे हर बार कभी दलित के घर खाना खाकर जमीन से जुड़े होने का एहसास जनता को कराते रहे तो कभी हिंसा पीड़ितों से मुलाकात करते हुए दिखाई दिए। आमतौर पर चुनावी जनसभाओं में राहुल के तेवर थोड़े उग्र जरुर दिखाई दिए...अब 31 अक्टूबर की उनकी हिमाचल प्रदेश में जनसभा ही देख लें...राहुल भाजपा पर जमकर बरसे। लेकिन 01 नवंबर को जनता दल के अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी की प्रेस कांफ्रेंस ने राहुल को आग बबूला कर दिया। राहुल ने स्वामी को न सिर्फ कानूनी कार्रवाई करने की धमकी दी बल्कि ये तक कह डाला की ये अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग है। राहुल गांधी को इतने गुस्से में तो पहले कभी नहीं देखा था...लेकिन स्वामी के शब्द बाण लगता है राहुल के दिल पर गहरा असर कर गए। वैसे राहुल गुस्सा करें भी क्यों न केन्द्र सरकार के पीछे पहले से ही पड़े स्वामी ने इस बार राहुल के साथ ही राहुल की मां सोनिया गांधी पर जो निशाना साधा। स्वामी ने न सिर्फ राहुल के नाम बेनामी संपत्ति होने का आऱोप लगाया बल्कि कहा कि यंग इंडिया नामक कंपनी में राहुल और सोनिया के 76 फीसदी शेयर हैं और दोनों का कंपनी पर मालिकाना हक है लेकिन राहुल गांधी ने चुनाव आयोग को कभी इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी। राहुल गांधी और उनकी मां पर सीधा तीर स्वामी ने छोड़ा था तो राहुल कहां चुप रहने वाले थे...राहुल का गुस्सा फूट पड़ा। आमतौर पर शालीन दिखने वाले राहुल गांधी स्वामी के आरोपों पर क्यों इतने तिलमिला उठे ये सोचने वाली बात है। राहुल की बात करें तो राहुल पर सीधे इस तरह के आरोप पहले कभी नहीं लगे और राहुल अपनी एक अलग छवि बनाकर सक्रिय राजनीति से थोड़ी दूरी बनाकर अपना काम करते देखे गए हैं। हां राहुल ऐसे किसी मौके पर चूकते हुए भी नहीं दिखाई दिए जहां से उन्हें लोगों से सीधे जुड़ने का मौका मिलता हो...लेकिन इस सब के बाद भी राहुल का करिश्मा कांग्रेस के लिए बहुत ज्यादा काम करता नहीं दिखाई दिया। राहुल की उपस्थिति भले ही लोगों की भीड़ को इकट्ठा करती दिखाई दी हो लेकिन ये भीड़ कभी भी राहुल से प्रभावित नहीं दिखी...ऐसा होता तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और बिहार जैसे राज्यों में कांग्रेस की स्थिति कुछ और ही होती। आरोप लगने पर राहुल का गुस्सा कहीं न कहीं ये ईशारा भी करती है कि कहीं ये राहुल की खीज तो नहीं जो उनकी बेदाग छवि (जैसा कांग्रेसी बखान करते हैं) पर आरोप लगने के बाद गुस्से के रूप में बाहर आई है। और शायद एक वजह ये भी कि स्वामी ने राहुल के साथ ही उनकी मां सोनिया गांधी को भी आरोपों के घेरे में ला खड़ा किया। बहरहाल वजह चाहे जो भी हो लेकिन स्वामी के आरोपों पर राहुल के तेवर से ये साफ हो गया है कि राहुल अब राजनीति के छात्र नहीं रहे बल्कि राजनीति की पाठशाला से बाहर निकलकर राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हो गए हैं...वैसे हो भी क्यों न कांग्रेसियों ने पूरी तैयारी जो कर ली है राहुल गांधी को मनमोहन सिंह के बाद देश का अगला प्रधानमंत्री बनाने के लिए...लेकिन ये सवाल अपनी जगह है कि आखिर राहुल का नंबर कब आएगा ?

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कौन सुनेगा...किसको सुनाएं ?


कौन सुनेगा...किसको सुनाए...इसलिए चुप रहते हैं...किशोर कुमार का ये मशहूर गाना आपने जरुर सुना होगा...ये गाना बिल्कुल फिट बैठता है हमारे देश के मतदाताओं पर जो राजनेताओं के झूठे वादों से त्रस्त आकर चुनाव से पहले एक रहस्यमयी चुप्पी साधने लगे हैं। हिमाचल प्रदेश विधानसभा के लिए 04 नवंबर 2012 को मतदान होना है...ऐसे में ऐसा ही कुछ हाल आजकल हिमाचल प्रदेश के मतदाताओं का भी है। मतदान में चंद दिन शेष रह गए हैं...मतदाताओं को रिझाने के लिए प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक दी है...लेकिन मतदाता एकदम खामोश है। मानो मन ही मन ये गाना गुनगुना रहे होंकौन सुनेगा किसको सुनाए…इसलिए चुप रहते हैंकिशोर कुमार की ये पंक्तियां इस लिहाज से भी मतदाताओं पर सटीक बैठती हैं क्योंकि इससे पहले के चुनावों पर नज़र डाल लें तो सामने आता है कि चुनाव से पहले राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में जनता से बड़े-बड़े वादे तो करते हैं और उन्हें पूरा करने का दम भी भरते हैं...लेकिन चुनाव जीतने के बाद या सत्ता में आ जाने के बाद उनके ये दावे सिर्फ दावे ही रह जाते हैं। मतदान करने के बाद जनता ठगी रह जाती है और नेता ये समझते हैं कि उन्हें पांच साल का लाईसेंस जनता ने दिया है लूट खसोट मचाने के लिए...जो हम देखते भी आए हैं। वैसे देखें तो अपने जनप्रतिनिधि से जनता की अपेक्षाएं क्या होती हैं...? सिर्फ इतना ही कि उसके क्षेत्र का समुचित विकास हो...उसे बिजली मिले...पानी मिले और उसके इलाके की सड़कें दुरुस्त हो...जिन पर से होकर वो रोज दफ्तार जाता है, व्यापार करने जाता है या बाजार जाता है। मुझे नहीं लगता इससे ज्यादा कोई अपेक्षा जनता की अपने जनप्रतिनिधि से रहती हैं। लेकिन हमारे राजनेता चुनाव जीतने के बाद शायद ये भूल जाते हैं कि उसे जनता ने सेवा करने के लिए चुना है मेवा खाने के लिए नहीं...लेकिन नेता जी मेवा खाने में ही इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें अपने क्षेत्र की जनता की परवाह ही नहीं रहती। एक फिल्म का दृश्य मेरे जेहन में ताजा हो रहा है, जो इस प्रकार है...एक व्यक्ति अपनी समस्या लेकर अपने क्षेत्र के विधायक के पास पहुंचता है...वहां का नजारा कुछ इस प्रकार है- नेता जी का मुंह पान से लाल है...दो चेले नेता जी की सेवा में लगे हैं...और नेता जी पान चबाते चबाते किसी को फोन पर गलिया रहे हैं। वह व्यक्ति नेता जी के कान से फोन हटते ही अपनी समस्या रखता है कि उसके बेटे को पुलिस ने गलत आरोप में पकड़ लिया है...तो वे उसकी मदद करें और चलकर पुलिसवालों से बात करें...लेकिन नेता जी व्यक्ति को ये कहकर दुत्कार देते हैं कि उसके बेटा चोर होगा...व्यक्ति एक बार फिर से नेता जी से आग्रह करता है कि उसने उनको वोट दिया है...ऐसे में अपने क्षेत्र की जनता के साथ उनको देना चाहिए...इतना सुनते ही नेता जी का पारा चढ़ जाता है और वे उस व्यक्ति को गलियाते हुए कहते हैं कि- मुझे वोट दिया है तो क्या मैं तेरे घर पर आकर झाडू लगाउं। उस व्यक्ति के पास इस बात का कोई जवाब नहीं होता है...और इसके बाद वह व्यक्ति निराश होकर वहां से लौट जाता है। ये फिल्म का दृश्य हमारे आजकल के अधिकतर नेताओं के चरित्र से मेल खाता दिखाई देता है। नेता जी आपको चुनने वाला आपसे ये कतई नहीं चाहता कि आप उसके घर पर आकर झाड़ू लगाएं...लेकिन इतना जरूर चाहता है कि उसकी हर परेशानी में तो कम से कम आप उसके साथ खड़े रहें...क्या आपको ऐसा नहीं लगता...नेता जी इसका जवाब अगर नहीं है तो आपको बधाई...आप राजनीति के रंग में पूरी तरह रंग गए हैं औऱ एक पक्के राजनीतिज्ञ बन गए हैं। हिमाचल की जनता की खामोशी भी आजकल शायद कुछ ऐसा ही कह रही है...शायद इसलिए मतदान से चंद दिन पहले हिमाचल में एक खामोशी सी पसरी हुई है। ऐसे में देखना ये होगा कि मतदाताओं की ये खामोशी हिमाचल में क्या गुल खिलाती है। हिमाचल की रवायत की अगर बात करें तो वहां की रवायत सत्ता परिवर्तन की है...और हर पांच साल में जनता सत्ता परिवर्तन कर देती है...लेकिन इस बार मतदान से पहले की मतदाताओं की रहस्यमयी खामोशी कुछ और ही कहानी बयां कर रही है...और साफ ईशारा कर रही है कि हिमाचल में इस बार कुछ नया होगा...और आसानी से किसी को भी हिमाचल की सत्ता में राज करने का मौका नहीं मिलने वाला...चाहे वो सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी हो या फिर हिमाचल की रवायत के सहारे सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बैठी कांग्रेस पार्टी। बहरहाल ये चुप्पी 04 नवंबर को टूट जाएगी...और 20 दिसंबर को ईवीएम खुलने के साथ ही साफ हो जाएगा कि ये चुप्पी क्या राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ थी या फिर केन्द्र में काबिज होते हुए भ्रष्टाचार औऱ घोटालों के कई आरोपों से घिरी कांग्रेस के खिलाफ। फिलहाल तो मतदाता खामोश है...और चुनाव लड़ रहे विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशी बेचैन।
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सोनिया कहती नहीं...करके दिखाती हैं


हिमाचल प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए एक सप्ताह में सोनिया गांधी दो बार पहुंची...पहली बार मंडी और दूसरी बार शिमला और कांगड़ा...सोनिया के पास कहने के लिए कुछ नया नहीं था...ऐसे में सोनिया दोनों ही बार मंच से ये कहती जरूर सुनाई दी कि राज्य की धूमल सरकार ने केन्द्र के पैसे का दुरुपयोग किया है...साथ ही ये कि भाजपा भ्रष्टाचार के बाद चुप बैठ जाती है और भ्रष्टाचार करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती। गौर कीजिए ये बात यूपीए अध्यक्ष सोनिया कह रही हैं...जिनकी यूपीए सरकार के करीब एक दर्जन से ज्यादा मंत्री गंभीर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं...जिनके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर खुद कोयला घोटाले में लिप्त होने का आरोप लगा है। सोनिया जी ये नहीं बताती कि उन्होंने उनकी सरकार में शामिल भ्रष्टाचारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की अलबत्ता वो करके दिखाती हैं भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे सलमान खुर्शीद जैसे मंत्री का प्रमोशन करके। मैं कोई भाजपा की विचारधारा से प्रभावित शख्स नहीं हूं और न ही कांग्रेस का विरोधी...लेकिन शिमला में सोनिया गांधी का ये बयान सुनने के बाद लिखे बिना रहा भी ही गया। खैर ये तो राजनेताओं को चरित्र है...खुद पर आरोप लगे तो कोई दिक्कत नहीं...विपक्षी पर आरोप लगे तो उसे घेरने का कोई मौका मत छोड़ो। सोनिया भी शायद ऐसा ही कुछ कर रही हैं। सोनिया ने शिमला में एक और मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ी...जो शायद इस वक्त कांग्रेस की नैया डुबाने में सबसे बड़ी भूमिका निभा सकता है। वो मुद्दा है महंगाई का...सोनिया शायद उत्तराखंड का टिहरी उपचुनाव और पश्चिम बंगाल का जंगीपुर उपचुनाव नहीं भूली होंगी...टिहरी उपचुनाव में जहां कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी और मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के बेटे साकेत बहुगुणा को करारी हार का सामना करना पड़ा और जंगीपुर में 2009 में कराब सवा लाख की जीत का वोटों का अंतर ढाई हजार में सिमट कर रह गया था...और राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के बेटे अभीजीत मुखर्जी बमुश्किल अपनी हार टाल पाए थे। इन दो उपचुनाव के नतीजे शायद सोनिया को महंगाई पर मुहं खोलने के लिए मजबूर कर गए। हालांकि सोनिया यहां भी सिर्फ महंगाई के मुद्दे पर चिंता जताते हुए इस पर विचार करने की बात कहकर ही लोगों को आश्वासन ही देती दिखाई दीं। खैर सोनिया गांधी भी ये बात तो अच्छी तरह समझती होंगी कि महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दे पर सिर्फ आश्वासन से तो कम से कम जनता का काम चलने वाला नहीं है...यानि कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में सोनिया अगर सोच रही हैं कि महंगाई पर चिंता जताकर या इस पर सरकार के गंभीर होने की बात कहकर वे कांग्रेस की नैया हिमाचल में पार लगाने में सफल होंगी तो शायद ये सोनिया और कांग्रेस दोनों की गलतफहमी ही होगी। बहरहाल दामन हिमाचल में कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंदि भाजपा का भी पाक साफ नहीं है और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के साथ ही राज्य की धूमल सरकार पर भी भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे हैं...यानि की हिमाचल में राह भाजपा और कांग्रेस दोनों की आसान नहीं है।

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रविवार, 28 अक्तूबर 2012

‘हिंदी’ में बोले मनमोहन सिंह



हिमाचल में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार चरम पर है...ऐसे में राज्य के दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा ने 2014 के आम चुनाव से पहले का सेमिफाइनल माने जा रहे इस चुनाव में जीत के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। 28 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कांग्रेस के लिए वोट मांगने हिमाचल प्रदेश के ऊना पहुंचे। मनमोहन सिंह के पहुंचने के बाद उनकी जनसभा में सुखद एहसास ये रहा कि मनमोहन सिंह साहब हिंदी में बोले। इसे सुखद एहसास इसलिए था क्योंकि हमारे पीएम साहब साल में दो ही बार हिंदी बोलते हैं...या तो 15 अगस्त को या फिर 26 जनवरी को...ऐसे में मौका न तो स्वतंत्रता दिवस का था और न ही गणतंत्र दिवस का...फिर भी पीएम साहब की हिंदी सुनकर सुखद एहसास तो होना ही था। मनमोहन सिंह ने हिमाचल प्रदेश में विकास की रफ्तार थमने की बात कहते हुए राज्य की भाजपा सरकार पर जमकर निशाना साधा। जिस समय देश के पीएम मनमोहन सिंह भाजपा को कोस रहे थे...ठीक उसी वक्त ऊना में ही एक और पीएमइन वेटिंग की उपाधि से सजे भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी हिमाचल में विकास की बयार बहाने पर मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की पीठ ठोंक रहे थे। आडवाणी ने केन्द्र की कांग्रेस सरकार को कोसते हुए यहां तक कहा कि 2014 का चुनाव वक्त से पहले होगा और भाजपा की सत्ता की राह हिमाचल से ही प्रशस्त होगी। हिमाचल में जहां भाजपा के लिए अपनी सत्ता बचाने की चुनौती है तो कांग्रेस के लिए हिमाचल की सत्ता में वापसी करने की चुनौती। वैसे हिमाचल की रवायत है कि यहां पर हर पांच साल में यहां की जनता सरकार बदल देती है...लेकिन इस बार देश के हालात कुछ ज्यादा ही जुदा है...और सत्ता में वापसी का ख्वाब संजोए बैठी कांग्रेस भी शायद ये अच्छी तरह से जानती है कि केन्द सरकार के फैसलों से जनता की नाराजगी उसे भारी पड़ सकती है...लिहाजा कांग्रेस ने इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी है। सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी हिमाचल में जनसभाएं कर चुके हैं तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मैदान में उतर गए हैं...भाजपा की अगर बात करें तो हिमाचल और गुजरात के रास्ते केन्द्र की सत्ता की चाबी हासिल करने का ख्वाब देख रही भाजपा भी हर हाल में इन राज्यों में अपनी सत्ता को खोना नहीं चाहती...लिहाजा भाजपा से भी नितिन गडकरी से लेकर सुषमा स्वराज और अरूण जेटली तक राज्य में सभाएं कर चुके हैं...यानि मुकाबला कांटे हैं। कांटे के इस मुकाबले का फैसला भी जनता ने ही करना है...ऐसे में देखना ये होगा कि जनता हिमाचल में एक बार फिर से कमल लहराती है...या फिर हाथ का साथ देती है।