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शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

जब लाठीचार्ज पर प्रधानमंत्री ने दिया इस्तीफा


देश की राजधानी दिल्ली में चलती बस में सरेराह एक लड़की का गैंगरेप होता है...गैंगरेप करने वाले दरिंदगी की सारी हदें पार कर जाते हैं। पीड़ित लड़की के लिए इंसाफ की मांग करने और आरोपियों की सजा दिलाने की मांग को लेकर राजपाथ पर देश का गुस्सा दिखाई देता है तो उन पर लाठियां भांजी जाती हैं...पानी की बौछार की जाती है। न ही राष्ट्रपतिन ही प्रधानमंत्री और न ही सरकार में शामिल कोई जिम्मेदार शख्स इस आक्रोश का शांत करने की कोशिश करता है। कोशिश करती है दिल्ली पुलिस लाठियां भांज कर, पानी की बौछार कर। ये सब क्यों हुआ इसकी जिम्मेदारी कोई भी जिम्मेदार शख्स नहीं लेता है..!
देशभर में समय – समय पर केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के कई फैसलों के खिलाफ देश के अलग- अलग हिस्सों में लोगों का गुस्सा फूटता है...अपने हक की मांग को लेकर लोग सड़कों पर उतर कर अपना विरोध जताते हैं...लेकिन यहां भी लोगों को मिलती हैं पुलिस की लाठियां..! यहां भी कोई जिम्मेदारी लेने के लिए आगे नहीं आता..!
इसी बीच देश के किसी हिस्से से रेल दुर्घटना की ख़बर आती है...सैंकड़ों यात्रियों का सफर उनका आखिरी सफर साबित होता है...मुआवजे का मरहम लगाकर जख्मों को भरने का काम शुरु हो जाता है लेकिन जिम्मेदारी कोई नहीं लेता..! सरकार चाहे किसी भी दल की हो लेकिन हर कोई सिर्फ सत्ता सुख में डूबे रहना चाहता है। फिर चाहे देश की किसी बेटी के साथ गैंगरेप हो...पुलिस प्रदर्शनकारियों पर लाठियां भांजे या फिर किसी रेल दुर्घटना में सैंकड़ों यात्री मारे जाएं लेकिन आगे आकर जिम्मेदारी लेकर कुर्सी छोड़ने का साहस किसी में नहीं है।
21 फरवरी को आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में एक के बाद एक दो धमाके होते हैं...असमय ही 16 लोग मारे जाते हैं सैंकड़ों लोग घायल हो जाते हैं लेकिन इसकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता।
खास बात तो ये है कि देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे धमाके के बाद खुद कहते हैं कि सरकार के पास सूचना थी कि धमाके हो सकते हैं लेकिन इसके बाद भी धमाके हो जाते हैं...लेकिन कोई इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता। केन्द्र और राज्य सरकार के बीच एक दूसरे के पाले में जिम्मेदारी लेने की गेंद फेंकने का काम शुरु हो जाता है।
नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले राजनीतिक दलों की नैतिकता उस वक्त गायब हो जाती है जब बारी किसी घटना की जिम्मेदारी लेने की आती है। उस वक्त ये नैतिकता भूल अपनी – अपनी कुर्सी बचाने के जुगत में लग जाते हैं। ये कहानी है 121 करोड़ की आबादी वाले देश भारत की जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है।
एक और कहानी है करीब साढ़े सात करोड़ की आबादी वाले यूरोपीय संघ के सबसे गरीब देश बुल्गारिया की...इस कहानी की जिक्र इसलिए कर रहा हूं क्योंकि ये कहानी हैदराबाद धमाके से एक दिन पहले की है और ये कहानी दूसरों को नैतिकता का पाठ पढाने वाले हमारे देश के नेताओं के लिए एक सबक है। हैदराबाद धमाके से एक दिन पहले बुल्गारिया के प्रधानमंत्री बोयके बोरिसोव ने सिर्फ इसलिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया क्योंकि बुल्गारिया की राजधानी सोफिया में वहां की पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया था। बोरिसोव का कहना था कि जिस देश में प्रदर्शनकारियों को पुलिस पीटती हो वहां की सरकार का मुखिया मैं नहीं रह सकता। दरअसल वहां के लोग बिजली की बढ़ी हुई बिजली की दरों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे...इस लाठीचार्ज में 14 लोग घायल हो गए थे।
ये फर्क है सोच का...नैतिकता की बात करने और वक्त आने पर नैतिकता दिखाने का...लेकिन अफसोस इस सब का हमारे देश में नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता...उन्हें फर्क पड़ता है तो कुर्सी जाने पर इसलिए वे कुर्सी बचाने के लिए कुछ भी करने से पीछे नहीं हटते।

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शिंदे साहब 2012 में 2 नहीं 241 बम धमाके हुए


हैदराबाद धमाकों के बाद गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने राज्यसभा में बयान दिया कि 2008 में देश में 10 आतंकवादी हमले हुए तो 2010 में 5 बार आतंकवादी हमले हुए जबकि 2011 में 4 आतंकी हमले हुए तो 2012 में सिर्फ दो आतंकवादी हमले हुए। शिंदे ने सदन को ये भी भरोसा दिलाया कि आतंकवादी हमलों के 2012 के फिगर के बाद फरवरी 2013 में हैदराबाद में हुए धमाके आखिरी आतंकवादी हमला भी हो सकता है..!
सभी देशवासी भी यही उम्मीद करेंगे कि शिंदे का ये भरोसा सच साबित हो और हैदराबाद के बाद भविष्य में अब कोई आतंकवादी हमला भारत में न और निर्दोष लोग मौत के मुंह में न समाएं लेकिन सवाल ये है कि क्या ये इतना आसान है जितनी आसानी से गृहमंत्री ने राज्यसभा में बोला..?
आतंकवादी जिस तरह से कभी मुंबई में, कभी दिल्ली में, कभी पुणे में, कभी बनारस नें तो हैदराबाद में जिस तरह से बेखौफ होकर एक के बाद एक धमाके कर खून की होली खेलते हैं उससे आतंकवादी हमलों मुक्त भारत का सपना साकार होता तो बिल्कुल भी नहीं लगता..!
कई बार खुफिया तंत्र की नाकामी तो कई बार खुफिया एजेंसियों में आपस में तालमेल की कमी न सिर्फ आतंकवादियों की राह आसान करती है बल्कि उनका हौसला भी बुलंद करती है। खुफिया तंत्र को धमाकों से पहले आतंकवादियों की गतिविधियों की जानकारी मिल भी जाती है तो उस पर केन्द्र और राज्य सरकार का ढुलमुल रवैया रही सही कसर पूरी कर देता है। (पढें- सरकार गरजती है आतंकी बरसते हैं..!)
ऐसे में कैसे सुशील कुमार शिंदे के इस भरोसे के यकीन में बदलने पर विश्वास किया जा सकता है कि हैदराबाद के बाद भविष्य में देश में कोई आतंकवादी हमला नहीं होगा..? शिंदे 2012 में हुए सिर्फ दो धमाकों के आधार पर ऐसा कैसे कह सकते हैं..? 2008 के बाद आतंकवादी हमलों में संख्यावार कमी होने का ये तो मतलब नहीं है कि एक दिन ये संख्या शून्य में पहुंच जाएगी..! और शिंदे तो हैदराबाद धमाके के बाद ही ये मतलब निकालकर खुद के साथ ही देश को संतुष्ट करने की कोशिश करने में लगे हैं बजाए इसके की दोषियों को पकड़ा जाए और आतंकवादियों के खिलाफ अभियान शुरु किया जाए..!
एबीटी में प्रकाशित एक खबर के बाद इसमें एक पेंच और ये जुड़ जाता है जो राज्यसभा में बीते सालों में हुए आतंकवादी धमाकों के आंकड़ों पर सवाल खड़ा करता है। एनबीटी की खबर(2012 में मणिपुर में हुए सबसे ज्यादा बम धमाके ) के मुताबिक नेश्नल सिक्यूरिटी गार्ड(एनएसजी) के बम डाटा सेंटर का कहना है कि आतंकवादियों ने 2012 में देशभर में 241 बम धमाके किए। इनमें सबसे ज्यादा 69 बम धमाके मणिपुर में हुए और दूसरे नंबर पर असम का नंबर है जहा पर 26 धमाके हुए। सिर्फ मणिपुर और असम में हुए धमाकों में 113 लोगों की मौत हुए जिसमें 65 जवान थे तो 48 आम लोग थे जबकि कुल 158 लोग इन धमाकों में घायल हुए।
शिंदे ने राज्यसभा में जो आंकड़ा दिया कि 2012 में कुल दो धमाके हुए वो बड़े धमाकों का आंकड़ा था लेकिन इसके अलावा जो 239 धमाके हुए उसे शिंदे छुपा ले गए। ये बात अलग है कि इनमें से कई धमाके नक्सलियों ने किए तो कई अलगाववादियों ने लेकिन निर्दोष लोगों की जान तो इसमें गई। क्या इसके लिए गृह मंत्रालय की कोई जिम्मेदारी नहीं है..? क्या इन धमाकों के लिए जिम्मेदार लोग देश के दुश्मन नहीं हैं..? फिर 2012 में गृह मंत्रालय को सिर्फ दो धमाके ही क्यों नजर आए..?
उम्मीद करते हैं कि गृह मंत्रालय को मणिपुर और असम के साथ ही दूसरे राज्यों में धमाकों में शहीद हो रहे जवान और आम आदमी दिखाई देंगे और उनके खिलाफ भी जांच और कार्रवाई में सरकार उतनी ही तेजी दिखाएगी जितनी की दिल्ली, मुंबई, पुणे, हैदराबाद जैसे आतंकी धमाकों के बाद दिखाई देती है।

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शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

आम आदमी जाए भाड़ में..!



हैदराबाद धमाके की ख़बर आई तो भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी की भी जान पर बन आई..! नकवी साहब को याद आ गया कि उन्हें कुछ दिनों से लगातार जान से मारने की धमकी मिल रही हैं। अब नकवी साहब को सुरक्षा चाहिए...अरे भई क्या पता आतंकियों को आज हैदराबाद में विस्फोट किया है...क्या पता कल..? (सरकार गरजती है आतंकी बरसते हैं..!)
खैर नकवी साहब ने गृहमंत्री को चिट्ठी लिखकर सुरक्षा की मांग की है लेकिन देश की 121 करोड़ लोगों ने मुंबई, दिल्ली, पुणे, अहमदाबाद, अजमेर और हैदराबाद जैसे जाने कितने धमाकों के बाद आज तक सुरक्षा नहीं मांगी। नकवी साहब को सुरक्षा मिल भी जाएगी...कुछ और पुलिसवाले नेताओं की सुरक्षा में दिन रात उनके घर के बाहर तैनात रहेंगे लेकिन दिलसुखनगर जैसी किसी जगह पर पुलिसवाले तैनात नहीं रहेंगे..! उन्हें नेताओं की सुरक्षा जो करनी है...अरे लश्कर जैसे आतंकी संगठन ने जान से मारने की धमकी जो दी है...ये नेता कोई आम आदमी थोड़े ही हैं जो मरने के लिए छोड़ दिए जाएं..!
वैसे भी नेताओं के आगे आम आदमी की क्या औकात..?
आखिर आम आदमी है कौन..? आम आदमी वो है जिसकी जेब का पैसा घोटालों में हैलिकॉप्टर की तरह उड़ा दिया जाता है..! आम आदमी वो है जिसकी महीने की तनख्वाह महंगाई डायन खा जाती है..! आम आदमी वो है जिसकी बहू- बेटियों की ईज्जत लूट ली जाती है..! आम आदमी वो है जिसके कब, कहां किसी धमाके में परखच्चे उड़ जाएं कोई नहीं जानता..!
जानते भी तो क्या कर लेते..! हैदराबाद धमाके से पहले  सरकार के पास खुफिया एजेंसियों के हवाले से जानकारी थी की देश के कुछ शहरों में धमाके भी हो सकते हैं...जिसमें हैदराबाद भी शामिल है। लेकिन क्या धमाकों को टालने के लिए कुछ किया गया..! हमारे गृहमंत्री बयान बदलते रहे...पहले कहते रहे अलर्ट जारी किया गया था..फिर बोले रूटीन अलर्ट था...! ऐसा ही कुछ हमारे गृहमंत्री साहब ने हिंदू आतंकवाद पर भी किया था...पहले बोले तथ्यों के आधार पर बोल रहे हैं...बवाल मचा तो माफी मांग ली और कहने लगे कि कोई आधार नहीं था। (गृहमंत्री रहने लायक नहीं शिंदे !)
देखिएगा कुछ दिनों में नकवी साहब जैसे नेताओं को वे सुरक्षा उपलब्ध करा देंगे..पहले ही हजारों नेताओं की सुरक्षा में पुलिस को तैनात कर रखा है...अरे साहब आम आदमी की सुरक्षा से जरूरी नेताओं की सुरक्षा है न..! आखिर इन नेताओं को देश जो चलाना है..! आम आदमी की मेहनत की कमाई को घोटाले में जो उड़ाना है...आम आदमी की महीने की तनख्वाह महंगाई डायन के खाने का इंतजाम जो करना है। और फिर धमाके होंगे तो कुछ लोगों की जान भी तो जानी चाहिए...वो लोग कौन होंगे अरे भई आम आदमी ही होंगे न...फिर क्यों आम आदमी की सुरक्षा की चिंता की जाए...आज नकवी साहब को धमकी मिली है उन्हें सुरक्षा दे दो...कल किसी और नेता तो दे देना। आम आदमी जाए भाड़ में..!

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गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

सरकार गरजती है आतंकी बरसते हैं..!


गृहमंत्री आतंकवाद को जाति और धर्म से जोड़ते हैं तो विपक्ष बवाल मचाता है...विपक्ष के हंगामा पर सरकार भी बैकफुट पर आ जाती है और जो गृहमंत्री एक दिन पहले तक तथ्यों के आधार पर हिंदू आतंकवाद की बात करते हैं वे अपना बयान वापस ले लेते हैं(गृहमंत्री रहने लायक नहीं शिंदे !)। सरकार और विपक्ष आपस में ही उलझते रही लेकिन आतंकवादी न तो डरे और न ही उन्होंने अपने मंसूबे बदले और पूरी रणनीति के साथ एक के बाद एक दो धमाके कर हैदराबाद ही नहीं पूरे देश को दहला दिया।
12 लोग मारे जाते हैं 80 से ज्यादा लोग घायल हो जाते हैं...कितनों के अरमान धमाकों की गूंज में डूब जाते हैं तो कितने जीवनभर के लिए अपाहिज हो जाते हैं लेकिन धमाके नहीं रुकते हैं..! मुआवजे के मरहम से कभी न भरने वाले जख्मों को भरने का काम किया जाता है लेकिन धमाके नहीं रूकते हैं..!
धमाकों के बाद अक्सर खामोश रहने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चुप्पी टूटती है और एक पहले से तैयार स्क्रिप्ट को मनमोहन सिंह पढ़ देते हैं। प्रधानमंत्री हमेशा की तरह कहते हैं कि दोषी बख्शे नहीं जाएंगे...देश की आवाम शांति बनाए रखे लेकिन धमाके नहीं रूकते हैं..!
गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को इंटेलिजेंस और अपने तथ्यों पर पूरा भरोसा है...वे कहते हैं कि दो दिन पहले सरकार को आशंका थी कि धमाके हो सकते हैं और इसकी जानकारी सभी राज्यों को दे भी दी गई थी लेकिन इसके बाद भी धमाके क्यों हुए इसका जवाब शिंदे के पास नहीं है..?
केन्द्र सरकार के साथ ही राज्य सरकार और पुलिस अलर्ट होती तो क्या ये धमाके रोके नहीं जा सकते थे..?  क्या बेमौत मारे गए निर्दोष लोगों की जान बचाई नहीं जा सकती थी..? लेकिन अफसोस सारी मुस्तैदी हर बार धमाके हो जाने के बाद...निर्दोष लोगों के मारे जाने के बाद ही नजर आती है..!
एनबीटी के मुताबिक(IM की करतूत? काफी पहले से थी ब्लास्ट की तैयारी) 26 अक्तूबर 2012 को दिल्ली पुलिस ने एक प्रेस रिलीज जारी की थी जिसमें बताया गया है कि पुणे ब्लास्ट की साजिश में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किए गए मकबूल और इमरान ने पुलिस को बताया था कि उन्होंने बाइक से दिलसुख नगर और दो अन्य इलाकों की रेकी की थी। आतंकवादियों को हिम्मत देखिए इसके बाद भी आतंकवादी बम प्लांट करने के लिए दिलसुखनगर को ही चुनते हैं और अपने नापाक मंसूबों में कामयाब भी होते हैं..!
आतंकियों को बिल्कुल भी डर नहीं है कि वे पकड़े जाएंगे..! आतंकी भी शायद अब ये समझ चुके हैं कि गरजने वाले बादल बरसते नहीं..! हर धमाके के बाद सरकार में शामिल जिम्मेदार लोग रटी रटाई स्क्रिप्ट पढ़ते हुए दोषियों को न बख्शने की बात दोहराती है लेकिन धमाके नहीं रूकते..!
धमाकों के बाद जांच शुरु होती है..! धरपकड़ शुरु होती है.. ! अगर दोषी पकड़ लिए जाते हैं तो निर्दोष लोगों की हत्या के सारे सबूत होने के बाद भी उन पर मुकदमा चलता है..! आतंकियों को बकायदा वकील मुहैया कराया जाता है..! सालों तक उसकी सुरक्षा पर लाखों रूपए खर्च किया जाता है..! अदालत फांसी की सजा सुनाती है तो दया याचिका दाखिल करने का अवसर दिया जाता है..! सालों तक अर्जी राष्ट्रपति भवन से गृह मंत्रालय के बीच घूमती रहती है..! लेकिन फांसी नहीं होती..! जैसे तैसे गुपचुप फांसी दे दी जाती है तो उस पर भी हल्ला मचाने वालों के कमी नहीं है...! कहीं दूर से अंजाम भुगतने की धमकी आती है और फिर अचानक देश के किसी कोने से धमाके की ख़बर आती है...फिर से निर्दोष लोग मारे जाते हैं और सरकार कहती है कि धमाके होने की आशंका दो दिन पहले मिल गई थी लेकिन धमाकों को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए इसका जवाब किसी के पास नहीं होता..!
ये सिलसिला सालों से चला आ रहा है अब तक हजारों निर्दोष इसकी भेंट चढ़ चुके हैं लेकिन सरकार हार बार यही कहती है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। प्रधानमंत्री जी, गृहमंत्री जी आप धमाके के बाद दोषियों को न बख्शने की बात करते हो और आतंकवादी करके दिखा देते हैं। कब तक गरजने वाले बादल बने रहोगे...अब बरसने का वक्त है वरना आप गरजते ही रहोगे और आतंकवादी बरसते रहेंगे और निर्दोष भारतवासी मौत के आगोश में समाते रहेंगे।  

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बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

गृहमंत्री रहने लायक नहीं शिंदे !


30 दिन पहले की बात है जब 19 जनवरी को देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने जयपुर में हिंदू आतंकवाद शब्द को जन्म देकर विवाद खड़ा कर दिया था। शिंदे यहीं नहीं रुके थे उन्होंने भाजपा और आरएसएस के कैंपों में हिंद आतंकवाद की ट्रेनिंग दिए जाने की भी बात भी कही थी। शिंदे ने इसके पीछे बकायदा इंटेलिजेंस की रिपोर्टों का हवाला देकर बड़े ही विश्वास के साथ ये बातें कही थी। आतंकवाद को धर्म औऱ जाति से जोड़ने पर गृहमंत्री शिंदे की जमकर आलोचना हुई। भाजपा ने सड़क से लेकर संसद तक शिंदे का बहिष्कार करने का एलान कर दिया। बयान पर आलोचना के बीच 30 दिन बाद शिंदे अपना बयान वापस लेते हुए माफी मांग लेते हैं।
गौर कीजिए देश के गृहमंत्री इंटेलिजेंस की रिपोर्टों का हवाला देते हुए 19 जनवरी को ये बात कहते है...इंटेलिजेंस की रिपोर्टों का हवाला देता है लेकिन 30 दिन बाद अपना बयान वापस लेते हुए खेद प्रकट करते हैं और कहते हैं कि जयपुर में दिए मेरे बयान का कोई आधार ही नहीं था। इसका सीधा मतलब तो ये निकलता है कि या तो शिंदे 19 जनवरी को झूठ बोल रहे थे या फिर शिंदे 20 फरवरी को झूठ बोल रहे हैं।
जाहिर है 20 फरवरी को वे अपने बयान पर माफी मांग रहे हैं तो फिर वे 19 जनवरी को झूठ बोल रहे थे...जो शिंदे के माफी मांगने के बाद पुष्ट भी हो गया है।
एक ऐसा व्यक्ति जो गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठकर आतंकवाद को धर्म और जाति से जोड़ता है...वो भी झूठ बोलकर (नहीं चाहते दलित गृहमंत्री..!) क्या गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लायक है...?
देश का गृहमंत्री जिस पर देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी है वो हिंदू आतंकवाद शब्द को जन्म देकर सीमा पार बैठे आतंकियों का हौसला बढ़ाता है(आतंकवादी राष्ट्र है भारत !) क्या वो गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लायक है..?
देश का गृहमंत्री जिसे अपने पद और गरिमा की ख्याल नहीं है और वो अपने सियासी फायदे के लिए झूठ बोलता है...इंटेलिजेंस की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है क्या उसे गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठने का कोई अधिकार है..?
गृहमंत्री जैसे पद पर रहते हुए कोई इतना गैर जिम्मेदार और स्वार्थी कैसे हो सकता है कि वो अपने सियासी फायदे के लिए कहीं भी कुछ भी बोले..?
19 जनवरी 2013 से 20 फरवरी 2013 के बीच इन 30 दिनों में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने न सिर्फ अपनी साख गंवाई है बल्कि गृहमंत्री जैसे महत्वपूर्ण और जिम्मेदार पद की गरिमा को भी तार तार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी..! इसके साथ ही शिंदे ने न सिर्फ करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं से खिलवाड़ किया बल्कि सीमा पार बैठे आतंकियों की भी हौसला अफजाई की..!
कुर्सी मिलने के बाद शिंदे जैसे नेता जब सियासी फायदे के लिए अपने पद और गरिमा का ही ख्याल न रखते हुए किसी भी हद तक जा सकते हैं वो देश का और देश की जनता का क्या भला करेंगे..? शायद यही इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है..!

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जलियांवाला बाग नरसंहार- माफी क्यों भई..?


13 अप्रेल को 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुआ नरसंहार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे जघन्य हत्याकांड था। जलियांवाला नरसंहार में ब्रिटिश हुकूमत ने निहत्थे लोगों को चारों तरफ से घेर कर जिस तरीके से उन पर फायरिंग की उसकी जितनी निंदा की जाए उतनी कम है।
आज न तो 13 अप्रेल है, न ही इस घटना के वक्त ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर मायकल ओ डायर को मारने वाले शहीद ऊधम सिंह का जन्मदिन या पुण्यतिथि। आज 15 अगस्त भी नहीं है और 26 जनवरी भी नहीं लेकिन फिर भी अमृतसर के जलियांवाला बाद नरहंसार की गूंज सुनाई दे रही है। दरअसल जिस ब्रिटिश हुकूमत में ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने इस नरसंहार को अंजाम दिया था उसी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन आज अमृतसर के ऐतिहासिक जलियांवाला बाग पहुंचे थे।
घटना को 94 साल हो गए हैं लेकिन अभी तक ब्रिटेन की ओर से किसी ने इस नरसंहार के लिए माफी नहीं मांगी है। कैमरन के जलियांवाला बाग पहुंचने से पहले ये मांग जोर पकड़ने लगी थी कि कैमरन को इस नरसंहार के लिए माफी मांगनी चाहिए लेकिन कैमरन ने ब्रिटेन की तरफ से इस घटना के लिए माफी मांगना जरूरी नहीं समझा।
ये बात अलग  है कि जब ये नरसंहार हुआ था उस वक्त कैमरन पैदा भी नहीं हुए थे...लेकिन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री होने के नाते कैमरन अगर माफी मांगते तो शहीदों के परिजनों का दर्द तो कम नहीं होता लेकिन उनके दिल को सुकून जरूर मिलता। वैसे भी कैमरेन अगर माफी मांग भी लेते तो वे छोटे नहीं हो जाते लेकिन उनका माफी न मांगना कहीं न कहीं ये जाहिर करता है कि जलियांबाला बाग पहुंचकर उनका शहीदों को श्रद्धांजली अर्पित करना क्या सिर्फ एक दिखावा नहीं है..?
ब्रिटिश पीएम नरसंहार को शर्मनाक बताते हुए इसे कभी न भूलने वाली घटना कहते हैं लेकिन माफी मांगने से पीछे हट जाते हैं क्यों..?
माफी मांगने से कैमरन छोटे तो नहीं हो जाते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया..! क्या उनका व्यवहार ये जाहिर नहीं करता कि 94 साल पहले ब्रिटिश हुकूमत में हुए इस नरसंहार पर माफी न मांगना कहीं न कहीं इस नरसंहार को सही ठहराता है..! ठीक उसी तरह जब नरसंहार के बाद ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर के इस कदम को तत्कालीन ब्रिटिश लेफ्टिनेंट गवर्नर मायकल ओ डायर ने सही ठहराते हुए जनरल ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर की पीठ ठोंकी थी।
वास्तव में अगर कैमरेन इस नरसंहार के लिए शर्मिंदा होते तो उन्हें 94 साल पहले ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुए इस नरसंहार पर माफी मांगने से गुरेज नहीं होना चाहिए था लेकिन कैमरेन ने ऐसा न करके उन शहीदों के परिजनों का अपमान ही किया है लेकिन विडंबना देखिए जिस जलियांवाला बाग में ब्रिटिश हुकूमत ने हजारों निहत्थे भारतीयों पर गोली चलाई थी उसी धरती पर आने पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए चार हजार से ज्यादा जवान तैनात किए गए थे।

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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

अग्निवेश- सियासी चाल तो नहीं..!


स्वामी अग्निवेश एक बार फिर से सुर्खियों में हैं...एक बार फिर से अग्निवेश ने मुंह खोला तो विवाद शुरू हो गया है। इस बार स्वामी जी कुछ ज्यादा ही बोल गए और कुछ ऐसा बोल गए जिससे उनके ऊपर तक सवाल उठने लगे हैं और उनके दावे की सत्यता पर संदेह हो रहा है...हालांकि ये अलग बात है कि स्वामी हमेशा ही सवालों के घेरे में ही रहे हैं..!
दरअसल स्वामी अग्निवेश ने समाजसेवी अन्ना हजारे के अगस्त 2011 में जंतर मंतर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ और लोकपाल के समर्थन में अनशन के संबंध में अपना मुंह खोला है। स्वामी जी का कहना है कि तत्कालीन टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल चाहते थे कि अन्ना हजारे अपना अनशन न तोड़ें और अनशन करते हुए अन्ना हजारे की मौत हो जाए ताकि लोकपाल के समर्थन में भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके आंदोलन और मजबूत हो जाता।
हालांकि अरविंद केजरीवाल ने अग्निवेश के आरोपों को बेतुका बताते हुए उल्टा सवाल किया है कि अगर ऐसा था तो अग्निवेश ने दो साल बाद क्यों मुंह खोला और अग्निवेश के पास इस बात के प्रमाण हैं तो वो प्रमाण पेश करें।
अन्ना हजारे ने भी अग्निवेश के बयान को हवा हवाई बताते हुए कहा कि कुछ लोग सनसनीखेज बातें करने के लिए ऐसा कह रहे हैं।
अगर माना कि अग्निवेश सच बोल रहे हैं तो फिर क्यों अब तक अग्निवेश इस महत्वपूर्ण मसले को दिल में दबाकर बैठे थे..? क्यों नहीं उस वक्त ही अग्निवेश ने केजरीवाल की ऐसी नीयत का भंडाफोड़ किया..? उस वक्त तो अग्निवेश बकायदा टीम अन्ना के सदस्य भी थे। अब जबकि अग्निवेश के साथ ही अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल की भी राहें अलग- अलग हैं तो इस बात को करने का क्या औचित्य है..?
लंबे समय से मीडिया की सुर्खियों से दूर रहे अग्निवेश ने क्या सिर्फ मीडिया की सुर्खियों के लिए इस तरह का सनसनीखेज बयान दिया है..? या फिर अग्निवेश का बयान अरविंद केजरीवाल को बदनाम करने के लिए किसी सियासी चाल का हिस्सा हो सकता है..! ऐसा इसलिए क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के जरिए केन्द्र सरकार के साथ ही दिल्ली की शीला सरकार के भ्रष्टाचार और घोटालों के खिलाफ न सिर्फ मोर्चा खोल रखा है बल्कि सरकार की नींद भी हराम कर रखी है।
जाहिर है दिल्ली के विधानसभा चुनाव और फिर 2014 के आम चुनाव में केजरीवाल का सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिल्ली सरकार के साथ ही केन्द्र सरकार की दोबारा सत्ता हासिल करने की राह में रोड़ा बन सकता है। तो कहीं सरकार में शामिल कुछ लोगों का अग्निवेश के मुंह से अन्ना हजारे के बहाने एक सियासी दांव खेलकर अरविंद केजरीवाल को बदनाम करके आम आदमी पार्टी के प्रति लोगों का रूझान खत्म करने की तो कोशिश नहीं है..?
वैसे भी राजनीति में सब कुछ जायज है और राजनीति का इतिहास भी कहता है कि अपने फायदे के लिए राजनेता किसी भी हद तक जा सकते हैं तो फिर केजरीवाल को बदनाम करने के लिए नेताओं का अग्निवेश के सहारे एक सियासी चाल खेलना कौन सी बड़ी बात है..!
कभी हरियाणा के शिक्षा मंत्री रहे स्वामी अग्निवेश वैसे भी शुरु से ही एक विवादित हस्ती रहे हैं...कुछ लोग उन्हें हिंदू विरोधी कहते हैं तो कुछ नक्सलियों के मददगार। अग्निवेश ने तो एक बार पश्चिम बंगाल के विश्व भारती हास्टल वार्डन का लड़की को खुद का पेशाब पीने की बात को तक जायज ठहरा दिया था जिस पर काफी बवाल मचा था। टीम अन्ना से भी उन्हें अंदर की खबर सरकार तक पहुंचाने के आरोप में ही टीम से बाहर का रास्ता दिखाया था और केजरीवाल से तो  अग्निवेश का शुरु से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है।
बहरहाल अग्निवेश के सनसनीखेज खुलासे के बाद चर्चाओं का बाजार गर्म है...अब अग्निवेश के दावे में कितनी सच्चाई है ये अग्निवेश और केजरीवाल से बेहतर और कौन जानता होगा लेकिन इतना जरूर है कि इस बयान के बाद अग्निवेश जरूर लंबे वक्त के बाद सुर्खियों में छा गए हैं...जो शायद वे चाहते भी होंगे..!

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सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

काटजू से क्यों डरी भाजपा..?


राजनीतिक गलियारों में हेलिकॉप्टर डील के हल्ले और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरूण जेटली की जासूसी की खबरों के बीच प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चैयरमैन मार्कंडेय काटजू और अरूण जेटली की तीखी तकरार की गूंज भी खूब सुनाई दे रही है। झगड़े की वजह है वर्तमान में भारतीय राजनीति के सबसे चर्चित चेहरे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी। दरअसल काटजू ने एक लेख में न सिर्फ नरेन्द्र मोदी की जमकर आलोचना की थी बल्कि गुजरात में हुए दंगों के लिए भी मोदी को ही जिम्मेदार ठहराया था।
बस फिर क्या था मोदी के नाम के सहारे 2014 में अपनी नैया पार लगाने की जुगत में लगी भाजपा को मोदी की ये आलोचना बर्दाश्त नहीं हुई और भाजपा ने काटजू पर कांग्रेसी होने का आरोप लगाते हुए जमकर हमला बोला और काटजू से प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन की कुर्सी से इस्तीफा देने की मांग कर डाली। काटजू भी कहां चुप रहने वाले थे उन्होंने उनके इस्तीफे की मांग करने वाले भाजपा नेता जेटली को राजनीति के लिए अनफिट करार देते हुए संन्यास लेने की सलाह दे डाली।
सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश काटजू पहली बार किसी विवाद में नहीं घिरे हैं इससे पहले भी कभी 90 प्रतिशत भारतीयों को बेवकूफ कहने पर तो कभी मीडिया की खुली आलोचना तो कभी फूलन देवी के नाम पर टिप्पणी को लेकर काटजू सुर्खियों में रहे हैं।
दरअसल इस बार काटजू ने अपने लेख में भाजपा की दुखती रग पर हाथ रख दिया। काटजू ने मोदी के नकारात्मक पक्ष गुजरात के गोधरा में 2002 में हुए दंगों के लिए मोदी को जिम्मेदार ठहराकर भाजपा में खलबली मचा दी। दरअसल भाजपा 2014 में नरेन्द्र मोदी को पीएम प्रोजेक्ट करने की लगभग पूरी तैयारी कर चुकी है...ऐसे वक्त में गुजरात दंगों को लेकर मोदी की आलोचना भाजपा कैसे बर्दाश्त करती..! काटजू के लेख पर भाजपा का रिएक्शन सबके सामने है।  
भाजपा ने काटजू को कांग्रेसी साबित करने के लिए तमाम तरह के आरोपों की बौछार काटजू पर कर दी लेकिन काटजू कहते हैं कि उन्होंने ये लेख एक आम आदमी होने के नाते लिखा है न कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का चेयरमैन होने के नाते।
मोदी के नाम पर काटजू और अरुण जेटली की तीखी तकरार अपने आप में कई सवाल भी खड़े करती है। मोदी की तारीफ के बीच जब गुजरात दंगों को लेकर समय समय पर मोदी पर तमाम राजनीतिक दल सवाल उठाते हैं तो भाजपा का कोई नेता इतना आक्रामक नहीं होता है जितना कि काटजू की टिप्पणी पर दिखाई दे रहा है आखिर इसके पीछे की क्या वजह हो सकती है..?
क्या भाजपा को काटजू की टिप्पणी से ये डर सता रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रहे एक व्यक्ति की आलोचना कहीं लोगों के एक बड़े वर्ग को मोदी और भाजपा के खिलाफ सोचने पर मजबूर कर सकती है जिसका नुकसान भाजपा को 2014 में न उठाना पड़े..?
क्या भाजपा को ये डर सता रहा है कि गोधरा के दाग को लोगों के जेहन से मिटाने की कोशिश में लगे मोदी और भाजपा की इस मुहिम पर काटजू का ये बयान पानी फेर सकता है और इसलिए ही भाजपा काटजू के मोदी के आलोचना भरे लेख से उन्हें कांग्रेसी साबित करने पर तुली है ताकि लोग इस बयान को ज्यादा गंभीरता से न लें..?
मोदी की आलोचना से शुरू हुई ये तकरार सवाल सिर्फ भाजपा पर ही नहीं उठाती बल्कि इस तकरार को जन्म देने वाले काटजू पर भी सवाल खड़ा होता है कि क्या प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन की कुर्सी पर रहते हुए काटजू को इस तरह की राजनीतिक टिप्पणी करनी चाहिए वो भी ऐसे वक्त में जब 2014 का चुनाव अब बहुत ज्यादा दूर नहीं है..?
बहरहाल वर्तमान समय में राजनीति के सबसे चर्चित चेहरे मोदी के नाम पर काटजू और जेटली में तकरार जारी है...जेटली के साथ पूरी भाजपा ने काटजू के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है तो काटजू को भी जाने माने न्यायविद फली एस नरीमन के साथ ही कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का भी साथ मिल गया है...ऐसे में ये देखना रोचक होगा कि ये तकरार आगे आखिर कहां जाकर थमती है।

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रविवार, 17 फ़रवरी 2013

चुनाव- क्या कभी ऐसा होगा..?


हमारे देश में चुनाव कोई भी हो हमारे नेतागण चुनाव जीतने के लिए किसी भी हथकंडे को अपनाने से नहीं चूकते और इसके लिए लाखों रूपए पानी की तरह बहाने में भी ये लोग गुरेज नहीं करते...ये अलग बात है कि चुनाव में पैसा खर्च करने की एक सीमा है लेकिन नेताओं को इससे फर्क नहीं पड़ता। चुनाव में हुए खर्च का ब्यौरा भी प्रत्याशियों को चुनाव आयोग को देना होता है लेकिन इसके बाद भी ये लोग मतदाताओं को लुभाने के लिए जमकर पैसा उड़ाते हैं क्योंकि इनका एक ही मकसद होता है किसी भी तरह चुनाव जीतना और चुनाव जीतने के बाद पैसा कमाना..!
ऐसा नहीं है तो क्यों चुनाव में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है जाहिर है नेतागण यही सोचकर पैसा खर्च करते हैं ताकि अगर चुनाव जीत गए तो फिर तो वारे – न्यारे हैं और खर्च रकम को पलभर में ही वसूल कर ही लेंगे साथ ही अपनी तिजोरियां भी भर लेंगे..! ऐसे कई उदाहरण समय समय पर हमारे सामने आते रहे हैं..!
ऐसे ही नेताओं से संबंधित एक ख़बर पढ़ी तो दिल को सुकून मिला। खबर ये है कि चुनाव आयोग ने तय समय सीमा में चुनाव खर्च का ब्यौरा फाइल न करने वाले 2 हजार 171 प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहरा दिया है। ये लोग अगले तीन साल तक किसी भी तरह का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। इस सूची में सबसे ज्यादा 260 प्रत्याशी महाराष्ट्र के हैं तो दूसरे नंबर पर 259 प्रत्याशियों के साथ  छत्तीसगढ़ का नंबर है। इसी तरह 187 प्रत्याशी हरियाणा के हैं तो ओडिशा के 188 उम्मीदवार हैं जबकि मध्य प्रदेश के 179, उत्तर प्रदेश के 159, झारखंड के 118 और तमिलनाडु के 97 प्रत्याशी हैं। चुनाव आयोग ने ऐसा ही कदम सितंबर 2009 में भी उठाया था जब 3 हजार 275 प्रत्याशियों को अयोग्य घोषित कर दिया था।
चुनाव आयोग का ये कदम स्वागत योग्य है लेकिन चुनाव आयोग से एक और गुजारिश ये थी कि कुछ ऐसी भी व्यवस्था बनाई जाए...ऐसे नियम बनाने की ओर कदम बढ़ाए जाएं कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग चुनाव न लड़ पाएं क्योंकि हमारे देश में दुर्भाग्य से कहें कि जेल में बंद आपराधी भी चुनाव लड़ने के लिए आजाद है और मजे की बात तो ये है कि कई बार ऐसे अपराधी किस्म के लोग जेल में रहते हुए भी चुनाव आसानी से जीत जाते हैं। जाहिर है ऐसे लोग धनबल और बाहुबल के आधार पर ही चुनाव जीतते हैं लेकिन ऐसा व्यवस्था हो जाए कि ये चुनाव लड़ ही न सकें तो कम से कम आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग विधानसभा या संसद तक पहुंचने का रास्ता तो बंद हो जाएगा..!
हालांकि ये बात कहने और पढ़ने में जितनी अच्छी और आसान लग रही है वास्तव में इसका संभव होना इतना ही मुश्किल है क्योंकि हमारी सरकारें ऐसा कभी नहीं चाहेंगी क्योंकि दुर्भाग्य से सरकार में भी खुद ऐसे लोग भी तो शामिल हैं जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं..! और ऐसा करने की ओर कदम बढ़ाकर वे खुद अपने पैर में कुल्हाड़ी क्यों मारेंगे भला..?
फिर भी उम्मीद तो की ही जा सकती है क्योंकि उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है इसी उम्मीद में कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि ऐसी व्यवस्था होगी कि आपराधिक पृष्ठभूमि के लोग चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहरा दिए जाएं...चुनाव आयोग को 2 हजार 171 प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने से अयोग्य ठहराने के फैसले के लिए बधाई।

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राहुल गांधी का डर !


दिल्ली में कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, प्रदेश अध्यक्षों और विधायक दल के नेताओं के साथ बैठक में 2014 के लिए प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी के सवाल पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने न सिर्फ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को फटकार लगायी बल्कि दोबारा पीएम की उम्मीदवारी को लेकर सवाल न उठाने की हिदायत भी सभी कांग्रेसियों को दे दी। ये चाटुकार कांग्रेसियों के लिए सबक तो था ही लेकिन राहुल का इस तरह फटकार लगाना कुछ और भी ईशारा कर रहा था।
हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में राहुल गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगे लेकिन इसके बाद भी राहुल का बार बार पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर इंकार करना बहुत कुछ कहता है..!
यूपीए 2 सरकार का कार्यकाल भ्रष्टाचार, घोटाले से घिरा हुआ है तो लगातार बढ़ती महंगाई और आर्थिक मोर्चे पर सरकार के फैसलों ने देश की जनता को निराश ही किया है। ऐसे में राहुल गांधी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि 2014 में यूपीए की हैट्रिक की राह आसान तो बिल्कुल नहीं है।
इन स्थितियों में अगर राहुल गांधी चुनाव पूर्व पीएम पद की उम्मीदवारी के लिए तैयार हो जाते हैं और माना इसके बाद कांग्रेस को 2014 में मात मिलती है तो ये हार सिर्फ कांग्रेस की ही नहीं होगी बल्कि ये हार राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता की भी होगी..! साथ ही राहुल गांधी को लेकर ये सवाल भी पुरजोर तरीके से उठेगा कि देश की जनता ने देश के प्रधानमंत्री के रूप में राहुल गांधी को नकार दिया है और राजनीतिक लिहाज से ये राहुल की बड़ी हार होगी..!
वर्तमान परिस्थितियों को देखकर राहुल गांधी को शायद इस बात का आभास भी होगा इसलिए ही राहुल ने पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर उठाए गए सवाल पर न सिर्फ बहुगुणा को झिड़क दिया बल्कि लगे हाथों कांग्रेसियों को आगे से इस मुद्दे पर बात न करने की हिदायत दे डाली।
बिहार, उत्तर प्रदेश और गुजरात में पार्टी की नैया पार लगाने में विफल रहे राहुल गांधी अब अपने राजनीतिक जीवन में विफलता का एक और चैप्टर कभी भी शामिल नहीं करना चाहेंगे और इसलिए ही राहुल ने 2014 में कांग्रेस की चुनावी नैया पार लगाने की पुरजोर कोशिश तो शुरू कर दी है लेकिन पीएम पद की उम्मीदवारी से दूरी बनाकर..!
बहरहाल 2014 में केन्द्र की सत्ता हासिल करने के लिए दौड़ शुरु हो चुकी है। सभी राजनीतिक दल हर हाल में मंजिल पाना चाहते हैं लेकिन एक बार फिर से भाजपा और कांग्रेस ही दौड़ में सबसे आगे हैं ऐसे में देखना ये होगा कि जनता एक बार फिर से कांग्रेस पर भरोसा करती है या इस बार केन्द्र में होगा सत्ता परिवर्तन..!

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