9 फरवरी 2013 को संसद पर हमले
के दोषी अफजल की फांसी के बाद से एक राष्ट्र “हिंदुस्तान” की सामने आ रही अलग – अलग तस्वीरें किसी
के भी मन में सवाल खड़े करने के लिए काफी है। ये तस्वीरें दिल्ली से इस्लामाबाद तक
की हैं तो कश्मीर से अलीगढ़ तक। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तस्वीर
तो बड़ी उलझन पैदा कर रही है..!
पहली तस्वीर 9 फरवरी 2013 की
सुबह की है जब दिल्ली की तिहाड़ जेल में संसद हमले के दोषी को फांसी दी जाती है।
साथ ही आतंकवादियों को ये संदेश की आतंक का अंजाम मौत ही होता है।
दूसरी तस्वीर उन शहीदों के
परिजनों का है जिनके अपने 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले में शहीद हुए थे। इन
लोगों के चेहरे पर खुशी और सुकून था। इनके साथ ही घर पर टीवी पर अफजल की फांसी की
खबर देखकर उन करोड़ों भारतवासियों के चेहरे पर भी खुशी और सुकून था जो चाहते हैं
कि आतंकवाद का खात्मा हो क्योंकि उनके मन में कहीं न कहीं ये डर है कि कहीं भविष्य
में किसी ऐसी ही आतंकी घटना में वे किसी अपने को न खो दें।
तीसरी तस्वीर कश्मीर की है जहां
पर एहतियातन कर्फ्यू लगा दिया गया था और वहां के कुछ इलाकों में अफजल की फांसी के
खिलाफ हिंसक झड़पें हुई। इसके साथ ही जम्मू- कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला
का एक बयान आता है कि केन्द्र सरकार अफजल की फांसी पर अपनी नीयत साफ करे। उमर अबदुल्ला
का ये बयान फांसी पर उमर की नाराजगी भी साफ जाहिर करता है। राज्य की मुख्य विपक्षी
दल पीडीपी का बयान भी फांसी को लेकर नाराजगी भरा आता है।
चौथी तस्वीर इस्लामाबाद की है
जहां पर अफजल की फांसी के विरोध में प्रदर्शन में मुंबई हमले के मास्टरंमाइंड
हाफिज सईद के साथ मंच साधा करते जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट(जेकेएलएफ) के नेता
यासीन मलिक दिखाई देते हैं।
पहली तस्वीर दिल्ली की तिहाड़
जेल में सिर्फ अफजल की फांसी की नहीं थी बल्कि ये दर्शाती है कि ये अंजाम है आतंक
का...ये अंत है आतंकी का। अफजल ही क्यों..? अफजल की जगह कोई भी होता चाहे फिर वो
कश्मीर का हो या फिर देश के किसी राज्य का...शहर का या किसी दूसरे देश का...उसका
अंजाम भी यही होना था। कसाब का अंजाम तो याद ही होगा आपको।
दूसरी तस्वीर दर्शाती है कि
किसी अपने को खोने का गम क्या होता है..? जो शहीद हो गए वो लौट कर तो नहीं आ सकते
लेकिन उनके गुनहगारों को सजा दिल को सुकून तो दे ही सकती है। अफजल की फांसी पर शहीदों
के परिजनों के चेहरों पर झलकती खुशी तो यही बयां कर रही है।
तीसरी तस्वीर में एक डर दिखाई
देता है कि कहीं अफजल की फांसी पर अपने निजि हितों को साधने के लिए उपजे विरोध के
स्वर धीरे धीरे शांति और समृद्धि की ओर कदम बढ़ा रहे कश्मीर को फिर से आतंक की
धधकती आग में न धकेल दे..! इसके साथ ही अफजल की फांसी पर राज्य में एक निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री
उमर अबदुल्ला का नाराजगी भरा बयान हैरत में डालता है कि उमर अबदुल्ला कश्मीर में आतंकवाद
को बढ़ावा देना चाहते हैं या फिर आतंकियों के साथ खड़े हैं..!
उमर साहब देश की
संसद पर हमले के दोषी के लिए आप सहानुभूति कैसे प्रकट कर सकते हैं..? आप काल्पनिक
परिस्थितियों को जन कर कैसे कश्मीर के लोगों का मानस पढ़ सकते हैं..? निश्चित ही एक
मुख्यमंत्री की ऐसी सोच कश्मीर के हित में...कश्मीर की युवा पीढ़ी के हक में तो
नहीं कही जा सकती है..! ये सोच जाहिर करती है कि राजनेता वोटबैंक के लिए किस हद तक जा सकते हैं...वे
काल्पनिक परिस्थितियों को जन कर धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं को भड़काने से भी
पीछे नहीं हटते..!
चौथी तस्वीर देश को सोचने पर
मजबूर कर रही है...जिसमें कश्मीर की जेकेएलएफ का नेता यासीन मलिक भारत के दुश्मन
नंबर एक और मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के साथ अफजल की फांसी के विरोध
में एक प्रदर्शन में मंच साझा करते दिखाई दे रहा है..! ये वही हाफिज है
जो मुंबई में 166 लोगों की मौत का जिम्मेदार है..! ये वही हाफिज है जो एलओसी पर पाक सैनिकों
को भारतीय सैनिकों के सिर काटने के लिए उकसाता है..! ये वही हाफिज है जो पाकिस्तान में बैठकर
खुलेआम कहता है कि वे भारत से कश्मीर को हासिल करके रहेगा..!
लेकिन हिंदुस्तान
का दुर्भाग्य देखिए यासीन मलिक हाफिज के साथ बैठा है और अपने देश के संसद पर हुए
हमले के दोषी अफजल की फांसी के विरोध में आवाज बुलंद कर रहा है..! अंदाजा लगाया जा
सकता है कि कश्मीर में रहकर यासीन मलिक क्या कुछ गुल नहीं खिला रहा होगा..! कश्मीर में रहकर
मलिक अफजल की तरह किसी आतंकी घटना को अंजाम देने की साजिश नहीं रच रहा होगा..!
एक और तस्वीर उभर कर सामने आई
है जो न सिर्फ चौंकाती है बल्कि एक चेतावनी भी है कि कश्मीर की युवा पीढ़ी किस तरफ
जा रही है..! अफजल की फांसी के
बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों का जनाजे की नमाज अदा
करना...उसके बाद अफजल की फांसी के विरोध में प्रदर्शन करना जाहिर करता है कि
कश्मीर का युवाओं पर कहीं न कहीं अलगाववादी ताकतों का गहरा असर है..!
वैसे हो भी क्यों न
जब जम्मू कश्मीर के युवा मुख्यमंत्री पर इसका असर दिखाई दे रहा है तो वहां की नौजवान
पीढ़ी पर इसका असर क्यों न हो..?
एक लोकतांत्रिक
सरकार के मुखिया को अलगाववादी ताकतों का विरोध करना चाहिए और नौजवान पीढ़ी को एक
नई राह दिखाई चाहिए लेकिन ऐसे लगता है कि उमर अबदुल्ला को वहां की नौजवान पीढ़ी को
सही राह दिखाने से ज्यादा अपने वोटबैंक की चिंता ज्यादा सताती है..!
बहरहाल जिस अफजल की
फांसी का मुद्दा उसको दफनाने के साथ ही दफन हो जाना चाहिए था दुर्भाग्य से वो
मुद्दा अभी भी जिंदा है...और न सिर्फ जिंदा है बल्कि कुछ लोग अपने निजी हितों के
लिए लोगों के दिलों की नफरत भरने का काम कर रहे
हैं...जो न सिर्फ कश्मीर के लिए घातक है बल्कि देश की सुरक्षा के लिए आने
वाले वक्त में एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं..!
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