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शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

विजय बहुगुणा कैसे बने मुख्यमंत्री ?


विजय बहुगुणा...इन्हें तो जानते ही होंगे आप...जनाब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हैं। ये बात अलग है कि 2012 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने से पहले तक राजनीति में बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं थे और न ही सीएम की कुर्सी के दूर दूर तक दावेदार थे। उत्तराखंड में सीएम की कुर्सी को लेकर खींचतान जोरों पर थी हरिद्वार सांसद और केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत से लेकर नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत और वरिष्ठ कांग्रेसी इंदिरा हृद्येश तक अपनी – अपनी जुगत में लगे हुए थे लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ कि सबको सांप सूंघ गया। दस जनपथ ने सबको दरकिनार कर विजय बहुगुणा को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री घोषित कर दिया।
विजय बहुगुणा की बहन पुरानी कांग्रेसी हैं...नाम है रीता बहुगुणा जोशी...दस जनपथ में इनकी अच्छी पहुंच है...अब तो आप समझ ही गए होंगे कि उत्तराखंड में तमाम दिग्गजों को पछाड़कर कैसे विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री की कुर्सी पा गए..!
ये तो थी पुरानी बात चलिए मुद्दे की बात पर लौटते हैं कि आखिर आज ये पुरानी बातें क्यों दोहरानी पड़ी। दरअसल दिल्ली में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, प्रदेश अध्यक्षों और विधायक दल के नेताओं की बैठक ले रहे थे। 2014 के आम चुनाव के साथ ही संगठन को मजबूत करने पर कांग्रेसियों से चर्चा कर रहे थे।  
बारी जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की आई तो बहुगुणा साहब लगे राहुल गांधी की तारीफ के पुल बांधने...कहने लगे- आप प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालनी चाहिए। लगे हाथों वहां मौजूद दूसरे कांग्रेसियों ने भी बहुगुणा की हां में हां मिलानी शुरू कर दी। चाटुकारिता का इससे अच्छा मौका और कहां मिल सकता था..! लेकिन राहुल कुछ दूसरे ही मूड में थे।
चाटुकारिता का चटका लगता देख राहुल ने बहुगुणा को जोरदार तरीके से झिड़क दिया। राहुल बोले- मुझे जो जिम्मेदारी मिली है...वो मैं निभा रहा हूं...आप भी उस जिम्मेदारी को निभाने पर ध्यान दीजिए जो आपको दी गई है। राहुल ने कहा कि मनमोहन सिंह काफी अच्छा काम कर रहे हैं और मैं दोबारा इस तरह की बात नहीं सुनना चाहता।
अब क्या था दूसरे कांग्रेसी भी राहुल गांधी के तेवर देख चुप्पी साध गए लेकिन बहुगुणा साहब को तब तक राहुल ने समझा दिया था कि चाटुकारिता छोड़कर कुछ काम भी कर लें..!  
इस वाक्ये के बाद शायद आप और बेहतर तरीके से समझ गए होंगे कि विजय बहुगुणा आखिर कैसे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हुए होंगे..!

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अखिलेश यादव- तकदीर पर ग्रहण !


2012 में पूर्ण बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी को पटखनी देकर जब समाजवादी पार्टी ने जीत का परचम लहराया तो जनता के इस फैसले से साफ हो गया था कि मायावती जनता की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पाई और जनता ने एक बार फिर से समाजवादी पार्टी पर भरोसा जताया है। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जब मुलायम सिंह यादव ने खुद बैठने की बजाए अखिलेश यादव को प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी तो लगा था कि एक युवा नेता युवा सोच के साथ उत्तर प्रदेश में कुछ अलग करेगा।
युवा कंधों पर देश के सबसे बड़े प्रदेश की बागडोर संभालने वाले अखिलेश यादव से प्रदेशवासियों को खासकर युवाओं को बड़ी उम्मीद थी। अपराध, भ्रष्टाचार, घोटालों, गरीबी और बेरोजगारी के मकड़जाल में घिरे उत्तर प्रदेश को इस सब से निजात दिलाने की जिम्मेदारी अखिलेश के कंधों पर थी। प्रदेशवासियों को उम्मीद थी कि इस बार कुछ ऐसा होगा जिसका उत्तर प्रदेश को लंबे समय से इंतजार था लेकिन अफसोस अखिलेश लोगों का भरोसा कायम नहीं रख पाए और लोगों का ये भ्रम बहुत जल्द ही टूट गया जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल ही में मंत्रिमंडल विस्तार में अपनी टीम में दागियों को जगह दी।
गोंडा के तत्कालीन सीएमओ को जबरन घर से उठाकर उनकी पिटाई करने वाले...अपराधियों को शरण देने और मारपीट के आरोपों में लिप्त विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह हों या जान से मारने की धमकी और मारपीट के मामलों में लिप्त गायत्री प्रसाद प्रजापति..!
दबंगई दिखाने के साथ मारपीट और हत्या जैसे तमाम मामलों में लिप्त राममूर्ति सिंह वर्मा हों या फिर हत्या, दंगे भड़काने, मारपीट और जान से मारने की धमकी के आरोपों में घिरे तेज नारायण पांडेय उर्फ पवन पांडेयइन सब को मंत्रिमंडल में शामिल करने के बाद अखिलेश यादव अब उसी जमात में शामिल होने वाले नेता बनते दिखाई दे रहे हैं जो दबंगों के बलबूते सत्ता चलाने में विश्वास रखते हैं..!
उत्तर प्रदेश में लगातार बढ़ रहा अपराध का ग्राफ और सपाइयों की दबंगई पहले ही अखिलेश सरकार पर सवालिया निशान लगा रहा था ऐसे में मंत्रिमंडल में दागियों को शामिल करना उन तमाम अपेक्षाओं को व्यर्थ साबित करता दिखाई दे रहा है जो मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के साथ ही प्रदेशवासी अखिलेश से करने लगे थे।
अखिलेश यादव और उनकी पार्टी भले ही इसके पीछे क्षेत्रिय और जातीय संतुलन स्थापित करने का कदम करार दे रही हो लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या क्षेत्रिय और जातीय संतुलन स्थापित करने के लिए अखिलेश यादव को उन क्षेत्रों से स्वच्छ छवि को कोई सपा नेता ही नहीं मिला..? या फिर इन क्षेत्रों में सभी सपा नेता किसी न किसी आपराधिक मामले में फंसे हुए हैं..! और अगर ऐसा है फिर तो ये सबसे बड़ा सवाल है कि जब सपा के अधिकतर नेता आपराधिक मामलों में घिरे हैं तो प्रदेश में लगातार बढ़ रहा अपराधों का ग्राफ कैसे नीचे आएगा..?
अखिलेश यादव के ये फैसले कहीं न कहीं ये जाहिर करते हैं कि इन फैसलों के पीछे उनकी स्वतंत्रता नहीं है और पिता जी के आदेशों का पालन करना कहीं न कहीं अखिलेश की मजबूरी भी है क्योंकि मुलायम सिंह शायद अपने विश्वासपात्र लोगों को अखिलेश यादव के इर्द गिर्द रखना चाहते हैं फिर चाहे वे दागी ही क्यों न हों..? लेकिन पिता के आदेशों का पालन करना अखिलेश को भविष्य में भारी पड़ सकता है।
उत्तर प्रदेश की तकदीर बदलने के सपने को लेकर आगे बढ़ रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव न सिर्फ दागियों के सहारे प्रदेश की तकदीर पर अपराध और भ्रष्टाचार का बदनुमा दाग लगा रहे हैं बल्कि खुद की तकदीर पर भी ग्रहण लगा रहे हैं..!
बहरहाल उम्मीद पर दुनिया कायम हैं ऐसे में हम तो यही उम्मीद करते हैं कि उत्तर प्रदेश का सबसे युवा मुख्यमंत्री अपनी जोश और ऊर्जा का सही इस्तेमाल करते हुए सकारात्मक सोच के साथ उत्तर प्रदेश की तकदीर बदलेगा।

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गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

शर्मनाक- व्यालार रवि का महिला पत्रकार से सवाल !


कभी कभी गुस्सा आ ही जाता है। आखिर किसी चीज से बचा जाए भी तो कहां तक..? आखिर चुप्पी भी साधी जाए तो कहां तक..? दिल का गुबार तो बाहर आ ही जाता है फिर चाहे सामने कैमरा ही क्यों न हो..! बात यूपीए सरकार में प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री व्यालार रवि की हो रही है। एक महिला पत्रकार का सवाल पूछना मंत्री महोदय को इतना नागवार गुजरा कि मंत्री साहब ने जवाब देने की बजाए उल्टा सवाल दाग दिया। सवाल भी ऐसा कि किसी को बताने में भी शर्म आए लेकिन मंत्री जी को शर्म नहीं आई..! केरल के 17 साल पुराने बहुचर्चित सूर्यनेल्ली गैंगरेप मामले में आरोपों से घिरे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन की भूमिका पर केरल की महिला पत्रकार ने जब व्यालार रवि से जब सवाल पूछा तो मंत्री साहब बोले- उसे कुछ नहीं होगा...क्या आपको कुरियन से कोई निजि दुश्मनी है..? क्या आपके और उनके बीच भी पहले कुछ हुआ है..?
हालांकि मंत्री जी को अपनी गलती का एहसास हो गया और मंत्री महोदय ने महिला पत्रकार से माफी भी मांग ली लेकिन क्या बात यहीं खत्म हो जाती है..?
पहले आप सरेआम किसी को बेईज्जत कर दो उसके बाद अपने बयान पर खेद जताकर माफी मांग लो। आप महिलाओं की सुरक्षा की बात करते हो। आप महिलाओं के उत्पीड़न रोकने के लिए कड़े कानून बनाने की बात करते हो लेकिन एक महिला वो भी पत्रकार के साथ कैमरे के सामने आप इस तरह का व्यवहार करते हो। वो भी एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जो गैंगरेप जैसे गंभीर आरोप से घिरा हो।
वैसे गलती आपकी भी नहीं है यूपीए 2 के कार्यकाल के दौरान एक के बाद एक भ्रष्टाचार और घोटालों के साथ ही सरकार के फैसलों को लेकर उठ रहे सवालों पर कदम कदम पर जवाब देना पहले ही सरकार में शामिल लोगों के लिए मुश्किल साबित हो रहा था ऐसे में बजट सत्र से पहले कुरियन पर गैंगरेप के गंभीर आरोप के सवालों की बौछार...आखिर कब तक कोई धैर्य रखेगा। किसी न किसी के सब्र का पैमाना तो छलकना ही था। व्यालार रवि के साथ भी शायद ऐसा ही हुआ होगा..! लेकिन ऐसी टिप्पणी तो किसी को भी शोभा नहीं देती और खासकर केन्द्रीय मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति को तो बिल्कुल भी नहीं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा के उपसभापति कुरियन पर गैंगरेप का गंभीर आरोप है और कुरियन ही संसद के बजट सत्र में महिला सुरक्षा बिल पेश करेंगे...इसी को लेकर कुरियन का ज्यादा विरोध हो रहा है और कुरियन के इस्तीफे की भी मांग उठ रही है।
एक तरफ कुरियन कभी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को पत्र लिखकर सफाई दे रहे हैं तो कभी दस जनपथ पर हाजिरी लगाकर अपना पक्ष रख रहे हैं...वहीं दूसरी तरफ केन्द्रीय मंत्री व्यालार रवि जैसे उनके कांग्रेसी सहयोगी उनका खुल कर बचाव कर रहे हैं...ऐसे में देखना ये होगा कि बजट सत्र से पहले गैंगरेप के गंभीर आरोपों से घिरे पीजे कुरियन की कुर्सी बचेगी या नहीं..!
बहरहाल हम तो यही उम्मीद करेंगे कि गैंगरेप जैसे गंभीर आरोप से घिरा एक व्यक्ति कम से कम संसद में महिला सुरक्षा बिल पेश न ही करे तो अच्छा है क्योंकि अगर कुरियन महिला सुरक्षा बिल पेश करते हैं तो देश की महिलाओं के साथ इससे बड़ा मजाक और क्या होगा..? उम्मीद है एक महिला होने के नाते सोनिया गांधी इस चीज को समझेंगी।

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बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

दलाली का इटली कनेक्शन !


यूपीए सरकार को एक और बधाई। एक और घोटाला जो सामने आया है भई..! वीवीआईपी के लिए 3600 करोड़ में 12 अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर खरीदने के सौदे में करीब 360 करोड़ की दलाली जो हुई है। सरकार की तेजी देखिए इटली में फिनमेकानिका कंपनी के सीईओ जेसेपी ओरसी की गिरफ्तारी होती है और इधर सरकार सीबीआई जांच के आदेश दे देती है। लेकिन एक साल पहले जब इस मामले में दलाली की खबरें आती हैं तो हमारी सरकार चुप्पी साध कर बैठ जाती है..!
3600 करोड़ के इस रक्षा सौदे में अगर 360 करोड़ की दलाली हुई है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस सौदे में भारत को अति सुरक्षित हेलिकॉप्टरों के नाम पर कितना चूना लगाया गया होगा। इसमें एक और चीज गौर करने वाली है कि बोफोर्स के बाद वीवीआईपी हेलिकॉप्टरों की खरीद का ये मामला भी इटली से ही जुड़ा हुआ है और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी भी इटली की ही मूल निवासी हैं..! घोटाले के इस इटली कनेक्शन को अब सिर्फ एक इत्तेफाक माना जाए या कुछ और लेकिन मतलब निकालने वाले तो इटली कनेक्शन के मन माफिक मतलब निकाल रहे हैं..!
कुल मिलाकर इटली की कंपनी को इस डील में अच्छा खासा मुनाफा हुआ है और अति सुरक्षित हेलिकॉप्टरों के नाम पर भारत का खजाना खाली हुआ है। इसके बाद भी इटली इस सौदे में हुए भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर है और बकायदा इसकी जांच के बाद फिनमेकानिका कंपनी के सीईओ की गिरफ्तारी तक की जाती है जबकि फिनमेकानिका की सहायक कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड के प्रमुख ब्रूनो स्प्रेगनेलनी को नजरबंद कर दिया जाता है लेकिन भारत सरकार इस दलाली की जानकारी एक साल पहले लगने पर भी कोई गंभीरता नहीं दिखाती है और इटली सरकार से जानकारी मांगने की बात कहकर मामले को दबाने की कोशिश करती है।  
जाहिर है अगर घोटाला उजागर होता तो न सिर्फ सरकार की किरकिरी होती बल्कि सरकार की बैडबुक में एक और पन्ना जुड़ जाता जिसका जवाब देना सरकार को भारी पड़ता और चुनावों के लिए विपक्ष को एक और मुद्दा मिल जाता। शायद इसलिए ही एक साल पहले दलाली की खबर लगने के बाद भी सरकार ने इस सौदे की परतें खोलने में दिलचस्पी नहीं दिखाई..!
लेकिन इटली में फिनमेकानिका कंपनी के सीईओ की गिरफ्तारी के बाद मजबूरन भारत सरकार को भी आनन फानन में मामले की सीबीआई जांच के आदेश देने पड़े जिसके बाद इस पूरी डील पर ही अब संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
हालांकि सीबीआई जांच पर विपक्ष के साथ ही लोगों को पूरी सच्चाई सामने आने का भरोसा तो नहीं है...इसके पीछे वजह सीबीआई की विश्वसनीयता को लेकर लगातार उठ रहे सवाल भी हैं। बीत कुछ समय में सीबीआई पर इतने आरोप लग चुके हैं कि आम लोगों के मानस में भी अब ये सवाल बैठ गया है कि क्या सीबीआई वाकई में सरकार के हाथ की कठपुतली है..?
बहरहाल इस रक्षा सौदे की एक जांच इटली में चल रही है तो एक भारत में...ऐसे में कम से कम ये भरोसा तो किया ही जा सकता है कि इस मामले में चाहकर भी सच पर पर्दा डालने की सरकार की कोशिशें सफल नहीं हो पाएंगी यानि इटली के रास्ते ही सही लेकिन वो नाम  देर सबेर देश के सामने जरूर आएगा जिसने 3600 करोड़ के इस सौदे में 360 करोड़ की दलाली खाई है।

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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

अफज़ल फांसी- एक राष्ट्र…पांच तस्वीरें !


9 फरवरी 2013 को संसद पर हमले के दोषी अफजल की फांसी के बाद से एक राष्ट्र हिंदुस्तान की सामने आ रही अलग – अलग तस्वीरें किसी के भी मन में सवाल खड़े करने के लिए काफी है। ये तस्वीरें दिल्ली से इस्लामाबाद तक की हैं तो कश्मीर से अलीगढ़ तक। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तस्वीर तो बड़ी उलझन पैदा कर रही है..!
पहली तस्वीर 9 फरवरी 2013 की सुबह की है जब दिल्ली की तिहाड़ जेल में संसद हमले के दोषी को फांसी दी जाती है। साथ ही आतंकवादियों को ये संदेश की आतंक का अंजाम मौत ही होता है।
दूसरी तस्वीर उन शहीदों के परिजनों का है जिनके अपने 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले में शहीद हुए थे। इन लोगों के चेहरे पर खुशी और सुकून था। इनके साथ ही घर पर टीवी पर अफजल की फांसी की खबर देखकर उन करोड़ों भारतवासियों के चेहरे पर भी खुशी और सुकून था जो चाहते हैं कि आतंकवाद का खात्मा हो क्योंकि उनके मन में कहीं न कहीं ये डर है कि कहीं भविष्य में किसी ऐसी ही आतंकी घटना में वे किसी अपने को न खो दें।
तीसरी तस्वीर कश्मीर की है जहां पर एहतियातन कर्फ्यू लगा दिया गया था और वहां के कुछ इलाकों में अफजल की फांसी के खिलाफ हिंसक झड़पें हुई। इसके साथ ही जम्मू- कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला का एक बयान आता है कि केन्द्र सरकार अफजल की फांसी पर अपनी नीयत साफ करे। उमर अबदुल्ला का ये बयान फांसी पर उमर की नाराजगी भी साफ जाहिर करता है। राज्य की मुख्य विपक्षी दल पीडीपी का बयान भी फांसी को लेकर नाराजगी भरा आता है।
चौथी तस्वीर इस्लामाबाद की है जहां पर अफजल की फांसी के विरोध में प्रदर्शन में मुंबई हमले के मास्टरंमाइंड हाफिज सईद के साथ मंच साधा करते जम्मू कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट(जेकेएलएफ) के नेता यासीन मलिक दिखाई देते हैं।
पहली तस्वीर दिल्ली की तिहाड़ जेल में सिर्फ अफजल की फांसी की नहीं थी बल्कि ये दर्शाती है कि ये अंजाम है आतंक का...ये अंत है आतंकी का। अफजल ही क्यों..? अफजल की जगह कोई भी होता चाहे फिर वो कश्मीर का हो या फिर देश के किसी राज्य का...शहर का या किसी दूसरे देश का...उसका अंजाम भी यही होना था। कसाब का अंजाम तो याद ही होगा आपको।
दूसरी तस्वीर दर्शाती है कि किसी अपने को खोने का गम क्या होता है..? जो शहीद हो गए वो लौट कर तो नहीं आ सकते लेकिन उनके गुनहगारों को सजा दिल को सुकून तो दे ही सकती है। अफजल की फांसी पर शहीदों के परिजनों के चेहरों पर झलकती खुशी तो यही बयां कर रही है।  
तीसरी तस्वीर में एक डर दिखाई देता है कि कहीं अफजल की फांसी पर अपने निजि हितों को साधने के लिए उपजे विरोध के स्वर धीरे धीरे शांति और समृद्धि की ओर कदम बढ़ा रहे कश्मीर को फिर से आतंक की धधकती आग में न धकेल दे..! इसके साथ ही अफजल की फांसी पर राज्य में एक निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला का नाराजगी भरा बयान हैरत में डालता है कि उमर अबदुल्ला कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देना चाहते हैं या फिर आतंकियों के साथ खड़े हैं..!
उमर साहब देश की संसद पर हमले के दोषी के लिए आप सहानुभूति कैसे प्रकट कर सकते हैं..? आप काल्पनिक परिस्थितियों को जन कर कैसे कश्मीर के लोगों का मानस पढ़ सकते हैं..? निश्चित ही एक मुख्यमंत्री की ऐसी सोच कश्मीर के हित में...कश्मीर की युवा पीढ़ी के हक में तो नहीं कही जा सकती है..! ये सोच जाहिर करती है कि राजनेता वोटबैंक के लिए किस हद तक जा सकते हैं...वे काल्पनिक परिस्थितियों को जन कर धर्म के नाम पर लोगों की भावनाओं को भड़काने से भी पीछे नहीं हटते..!
चौथी तस्वीर देश को सोचने पर मजबूर कर रही है...जिसमें कश्मीर की जेकेएलएफ का नेता यासीन मलिक भारत के दुश्मन नंबर एक और मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के साथ अफजल की फांसी के विरोध में एक प्रदर्शन में मंच साझा करते दिखाई दे रहा है..! ये वही हाफिज है जो मुंबई में 166 लोगों की मौत का जिम्मेदार है..! ये वही हाफिज है जो एलओसी पर पाक सैनिकों को भारतीय सैनिकों के सिर काटने के लिए उकसाता है..! ये वही हाफिज है जो पाकिस्तान में बैठकर खुलेआम कहता है कि वे भारत से कश्मीर को हासिल करके रहेगा..!
लेकिन हिंदुस्तान का दुर्भाग्य देखिए यासीन मलिक हाफिज के साथ बैठा है और अपने देश के संसद पर हुए हमले के दोषी अफजल की फांसी के विरोध में आवाज बुलंद कर रहा है..! अंदाजा लगाया जा सकता है कि कश्मीर में रहकर यासीन मलिक क्या कुछ गुल नहीं खिला रहा होगा..! कश्मीर में रहकर मलिक अफजल की तरह किसी आतंकी घटना को अंजाम देने की साजिश नहीं रच रहा होगा..!  
एक और तस्वीर उभर कर सामने आई है जो न सिर्फ चौंकाती है बल्कि एक चेतावनी भी है कि कश्मीर की युवा पीढ़ी किस तरफ जा रही है..! अफजल की फांसी के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों का जनाजे की नमाज अदा करना...उसके बाद अफजल की फांसी के विरोध में प्रदर्शन करना जाहिर करता है कि कश्मीर का युवाओं पर कहीं न कहीं अलगाववादी ताकतों का गहरा असर है..!
वैसे हो भी क्यों न जब जम्मू कश्मीर के युवा मुख्यमंत्री पर इसका असर दिखाई दे रहा है तो वहां की नौजवान पीढ़ी पर इसका असर क्यों न हो..?
एक लोकतांत्रिक सरकार के मुखिया को अलगाववादी ताकतों का विरोध करना चाहिए और नौजवान पीढ़ी को एक नई राह दिखाई चाहिए लेकिन ऐसे लगता है कि उमर अबदुल्ला को वहां की नौजवान पीढ़ी को सही राह दिखाने से ज्यादा अपने वोटबैंक की चिंता ज्यादा सताती है..!
बहरहाल जिस अफजल की फांसी का मुद्दा उसको दफनाने के साथ ही दफन हो जाना चाहिए था दुर्भाग्य से वो मुद्दा अभी भी जिंदा है...और न सिर्फ जिंदा है बल्कि कुछ लोग अपने निजी हितों के लिए लोगों के दिलों की नफरत भरने का काम कर रहे  हैं...जो न सिर्फ कश्मीर के लिए घातक है बल्कि देश की सुरक्षा के लिए आने वाले वक्त में एक बड़ी चुनौती बन सकते हैं..!

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सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

महिलाएं क्यों पैर की जूती समझी जाएं..?



वर्तमान समय में महिला सुरक्षा को लेकर बहस छिड़ी है...महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े कानून बनाने के साथ ही उन्हें समान अधिकार दिलाने की मांग उठ रही है। एक आवाज इसके पक्ष में उठ रही है तो एक इसके विरोध में। विरोध में उठने वाले स्वर कह रहे हैं कि महिलाओं के लिए अधिकारियों और स्वतंत्रता की मांग करना उन्हें पुरुषों के अधीन घोषित करता है..! समाज में महिलाओं की स्थिति की अगर बात करें तो ये इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि महिलाओं ने समाज के बेडियों को तोड़कर विश्व जगत में अपना परचम फरहाया है।
महिलाओं ने अंतरिक्ष से माउंट एवरेस्ट तक परचम फहराया है तो राजनीति से लेकर कॉरपरेट सेक्टर में महिलाएं पुरुषों से लोहा ले रही हैं। लेकिन इसके बाद भी औसतन महिलाओं की स्थिति समाज में आज भी दयनीय है। महिलाओं का नाम कमाना और समाज की बेड़ियों को तोड़कर आगे बढ़कर पुरुषों को चुनौती देना सिक्के का सिर्फ एक पहलू है
सिक्के का दूसरा पहलू वो कड़वा सच है जिसे हम चाहकर भी नहीं नकार सकते। महिलाओं को आज भी घर में रखा एक सामान ही समझा जाता है जो घर का सारा कामकाज करे, परिवार को खाना बनाकर खिलाए और अपने पति की सेवा कर..! सिर्फ इतना ही होता तो ठीक था लेकिन महिलाओं के सबसे चिंताजनक चीज ये है कि इस सब के बाद भी वे घरेलु हिंसा का सर्वाधिक शिकार होती हैं..! शराबी पति की मार हो या फिर दहेज के लिए उसे जला देना...ये घटनाएं आए दिन अखबारों और समाचार चैनलों की सुर्खियां बनती रहती हैं..!
महिलाएं अपराधियों के लिए आज भी सॉफ्ट टारगेट है और अपनी हवस की भूख मिटाने के लिए अपराधी महिलाओं को ही निशाना बनाते हैं जो महिला के जीवन को नर्क बना देता है। साल 2011 में हुई बालात्कार की 24 हजार 206 घटनाएं इस हकीकत पर से पर्दा उठाने के लिए काफी हैं।
घर से लेकर दफ्तर तक महिलाएं उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं ऐसे में अगर महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता की मांग उठ रही है तो क्या गलत है..! महिलाएं तो पहले से ही पुरुषों के अधीन समझी जाती हैं ऐसे में उनके अधिकारों और स्वतंत्रता की मांग उन्हें पुरुषों के अधीन कैसे घोषित कर सकती है..? महिलाओं पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर चल जरूर रही हैं लेकिन इनकी संख्या है कितनी..?   
पुरुषों का ये पक्ष की वे महिलाओं के अधिकारों की बात इसलिए करते हैं क्योंकि वे महिलाओं को दमित वातावरण से मुक्ति दिलाना चाहते हैं ये समाज में बड़ी संख्या में महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखते हुए तो ठीक कहा जा सकता है लेकिन सवाल ये है कि क्या इस बात को कहने वाला हर पुरुष इसकी शुरुआत खुद से कर रहा है..?
क्या वो खुद महिलाओं को उत्पीड़न तो नही कर रहा है..?
क्या उसके घर में या उसके पड़ोस में उसके आस-पास किसी महिला का उत्पीड़न या शोषण तो नहीं हो रहा है..?
क्या उसने इसकी शुरुआत अपने घर से अपने पास- पड़ोस से की है..?
जाहिर है महिलाओं को दमित वातावरण से मुक्ति दिलाने का पुरूषों के तर्क सही तभी ठहराए जा सकते हैं जब वे खुद अपने पास-पड़ोस से इसकी शुरुआत कर चुके हों।   
इसके पीछे एक और तर्क दिया जा रहा है कि महिलाएं समानता नहीं सम्मान की चाह रखती हैं। जाहिर है सम्मान की चाह हर किसी के मन में होती है चाहे वो पुरूष हो या महिला...चाहे वो सर्वोच्च पद पर बैठा हुआ व्यक्ति हो या फिर अंतिम पंक्ति में खड़ा हुआ कोई शख्स। हर कोई चाहता है कि उस पूरा सम्मान मिले। ऐसे में महिलाएं अगर सम्मान की चाह रख रही हैं तो क्या गलत है...? महिलाएं क्यों अपमान सहें..? महिलाएं क्यों पुरूषों के पैर की जूती समझी जाए..?
जहां तक समानता की बात है तो सदियों से महिला और पुरूष की अलग अलग भूमिका तय है जो हम देखते आए हैं। ऐसे में अगर कोई महिला समय के साथ पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है तो उसमें समानता की चाह जरूर उत्पन्न होगी...चाहे वो घर हो या फिर कार्यक्षेत्र।

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रविवार, 10 फ़रवरी 2013

क्या अफजल के साथ नाइंसाफी हुई ?


संसद पर हमले के दोषी अफजल की फांसी पर मुझे नहीं लगता  कि आतंकियों और अफजल के परिजनों को छोड़कर किसी और को अफजल से सहानुभूति होनी चाहिए...लेकिन जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला फांसी से नाराज़ हैं।
बीबीसी के मुताबिक उमर अब्दुल्ला ने कहा कि इससे घाटी की नौजवान पीढ़ी में नाइंसाफी और अलगाव का एहसास बढ़ेगा। उमर अबदुल्ला ये भी कहते हैं कि भले ही आप इसे पसंद करें या न करें अफ़ज़ल को फांसी दिए जाने से कश्मीरियों का यह एहसास और पुख्ता होगा कि यहां उनके लिए इंसाफ नहीं है और मुझे यह बात सुरक्षा के मोर्चे पर पड़ने वाले तात्कालिक प्रभाव की वजह से ज्यादा परेशान कर रही है।
उमर अबदुल्ला के बयान से तो ये लगता है कि जैसे वे पाक अधिकृत कश्मीर के मुख्यमंत्री के तौर पर बात कर रहे हैं..! जैसे उमर अबदुल्ला ये चाहते हैं कि आतंकियों का मनोबल बढ़े और वे फिर से कभी देश की संसद पर तो कभी मुंबई जैसे हमलों को अंजाम देते रहें और सैंकड़ों निर्दोष लोगों रोज मरते रहें..!
उमर दलील देते हैं कि फांसी से घाटी की नौजवान पीढ़ी में नाइंसाफी और अलगाव का एहसास बढ़ेगा...उमर के इस बयान से तो ये जाहिर हो रहा है कि अफजल के साथ नाइंसाफी हुई है..!
देश की संसद पर सुनियोजित तरीके से किए गए हमले में दस लोग मारे जाते हैं। आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब हो जाते तो जाने कितने लोगों की जान जाती...लेकिन उमर साहब आप कह रहे हो कि अफजल की फांसी से घाटी के नौजवानों में नाइंसाफी और अलगाव का एहसास बढ़ेगा। यानि कि आप पहले से ही ये मान कर बैठे हो कि घाटी के सभी युवा अफजल जैसी सोच रखते हैं और उनके मंसूबे देश के लिए खतरनाक हैं..!
उमर साहब संसद हमले में दस लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा...उनके परिजनों के दर्द का तो एहसास आपको है नहीं लेकिन काल्पनिक परिस्थितियों की पहले से भविष्यवाणी करते हुए आप अफजल की फांसी को गलत ठहरा देते हैं..! जिनकी इस हमले में मौत हुई वो भी तो किसी का पिता, बेटा या भाई रहा होगा लेकिन उनकी परवाह आपको नहीं है..! आतंकी हमलों में आए दिन मारे जाने वाले निर्दोष लोगों के पीछे रोते बिलखते उनके परिजन आपको नहीं दिखाई देते...लेकिन आपको चिंता है आतंक के आकाओं की..!
आप तो एक निर्वाचित सरकार के मुखिया हो और आपके कंधे पर जम्मू कश्मीर को आगे ले जाने की जिम्मेदारी है। आपके कंधे पर वहां के नौजवानों को सही राह पर ले जाने की जिम्मेदारी है। आपके कंधे पर आतंकवाद को खत्म करने की भी जिम्मेदारी है लेकिन अफजल की फांसी पर आपकी प्रतिक्रिया से तो नहीं लगता का आप इन जिम्मेदारियों को सही से निभा पा रहे हैं..! आपको शायद अंदर ही अंदर अब ये डर खाए जा रहा है कि अफजल की फांसी आगामी चुनाव में आपकी सत्ता की राह में रोड़ा न बन जाए..! जाहिर है आपने अपनी जिम्मेदारियां सही से निभाई होती तो आप ऐसा सोचते ही नहीं..!
माना ये काम मुश्किल है लेकिन मुख्यमंत्री रहते हुए आपको ऐसा बयान तो कहीं से भी शोभा नहीं देता..!
आपको तो इस अफजल की फांसी के जरिए आतंकवादियों को ये संदेश देने की कोशिश करनी चाहिए थी कि आतंक का अंजाम सिर्फ और सिर्फ मौत ही है। आपको तो घाटी के नौजवानों को ये संदेश देने की कोशिश करनी चाहिए कि देश के दुश्मनों का साथ देने वालों के लिए किसी तरह की कोई सहानुभूति नहीं है और इसका अंजाम भी सिर्फ और सिर्फ मौत है लेकिन आप तो आतंकी अफजल की फांसी पर अपने राजनीतिक गुणा - भाग में व्यस्त हैं..! आपका ये गुणा – भाग आपको एक बार फिर से सत्ता तक भले ही पहुंचा दे लेकिन जाने अनजाने आप न सिर्फ आतंकियों को मनोबल बढ़ा रहे हो बल्कि अपने लिए ही गड्ढ़ा भी खोद रहे हो...जिसमें एक दिन आप खुद को गिरने से भी नहीं बचा पाओगे..! दुर्भाग्य ये है कि राज्य के दोनों प्रमुख दल जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस(जेकेएन) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी(पीडीपी) ऐसी ही सोच रखते हैं..!

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