किसी फैक्ट्री या
मिल में कर्मचारियों के साथ ज्यादती होती या फिर उसका उत्पीडन होता है तो फैक्ट्री/मिल के सभी कर्मचारी
भी प्रबंधन के इस फैसले के खिलाफ आवाज उठाते हैं..! व्यापारियों को लगता है कि सरकार उनके हित में
फैसले नहीं ले रही है तो व्यापारी भी एक दिन का सांकेतिक बंद या फिर चक्का जाम कर
अपनी आवाज उठाते हैं..! सरकारी कर्मचारी अपनी मांगों के लिए हड़ताल का रास्ता अख्तियार करते हैं..!
ये छोड़िए हमारे
नेतागण तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ भी आवाज उठाने से गुरेज नहीं करते
क्योंकि उन्हें लगता है कि कोर्ट के फैसले उनकी राजनीति का कहीं बंटाधार न हो
जाए..! इस सब के बीच मीडिया
की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि मीडिया ही एक ऐसा माध्यम है जो
फैक्ट्री या मिल के कर्मचारियों के साथ ही सरकारी कर्मचारियों और व्यापारियों के
साथ ही अपने हक की लड़ाई के लिए लड़ रहे लोगों के लिए सरकार तक पहुंचने का एक माध्यम
बनता है..!
सरकार और शोषित के
बीच पुल का कार्य करने वाले पत्रकार शोषित जनता को उनका हक दिलवाने का दम भरते हैं
लेकिन बात जब खुद के शोषण/उत्पीडन के खिलाफ आवाज उठाने की आती है तो यही पत्रकार चुप्पी साध कर बैठ जाते
हैं, जैसे इन्होंने कोई गुनाह किया हो और ये लोग इस गुनाह की सजा भुगत रहे हों..! आपको जानकर हैरत
होगी कि दूसरों के हक की आवाज उठाने वाले पत्रकार ही सबसे ज्यादा शोषण का शिकार हैं..! कई मीडिया
संस्थान दो – दो महीने तक अपने
कर्मचारियों को वेतन नहीं देते हैं तो कई संस्थानों में कब, किस दिन किसी पत्रकार
को अगले दिन से बिना कोई कारण बताए नौकरी में न आने का नोटिस थमा दिया जाए ये कोई
नहीं जानता..?
एक बार फिर ऐसा ही
हुआ है, देश के सबसे बड़े पूंजीपतियों में से मुकेश अंबानी ने नेटवर्क 18 समूह से
करीब 300 से ज्यादा मीडियाकर्मियों को नौकरी से चलता कर दिया है..! लेकिन हैरत की बात
है कि मीडिया की अब तक की सबसे बड़ी छंटनी के खिलाफ पत्रकार खामोश हैं..! दूसरों के हक के
लिए सरकार को कठघरे में खड़े करने वाली पत्रकार बिरादरी पूंजीपति के आगे नतमस्तक
है और कोई भी नेटवर्क 18 प्रबंधन के इस फैसले के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं
जुटा पा रहा है..! दुख की बात तो ये है
कि इन चैनलों के संपादक की कुर्सी पर बैठे तथाकथित बड़े-बड़े पत्रकार आशुतोष और
राजदीप सरदेसाई भी अपने कर्मचारियों के साथ खड़े नहीं दिखाई दे रहे हैं..!
इन संस्थानों के इस
फैसले के खिलाफ पत्रकार बिरादरी में जबरदस्त गुस्सा तो है लेकिन अंबानी जैसे
पूंजीपति के इस कत्लेआम के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत शायद किसी में नहीं है..!
सोशल मीडिया में एक छोटी
सी मुहिम जारी भी है लेकिन इसमें भी खुलकर अपनी बात कहने वाले पत्रकार गिने चुने
ही हैं..! भाई लोग ये जानते हैं कि आज ये कत्लेआम एक संस्थान
में हुआ है और कल उनके बारी भी आ सकती है लेकिन इसके बाद भी इस कत्लेआम का विरोध
करने का दम शायद किसी में नहीं है..! आज नहीं तो कल ये होगा और छंटनी के नाम पर पत्रकारों को नौकरी
से निकाल भी दिया जाएगा लेकिन पत्रकार कुछ नहीं बोलेंगे क्योंकि इन्हें शायद अपनी
लड़ाई लड़नी ही नहीं आती क्योंकि या तो हम इसके आदि हो गए हैं या फिर हमने इसी को
अपनी नियति मान लिया है..!
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