कोशिश तो पूरी
की...टोटके भी आजमा कर देख लिए लेकिन कुर्सी फिर भी नहीं बची..! जी हां बात वर्तमान
के सबसे चर्चित दो चेहरे अश्विनी कुमार और पवन बंसल की हो रही है। दोनों ने
कारनामे भी तो गजब किए थे..! एक साहब ने कानून मंत्री रहते हुए कोयला घोटाले पर सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट
को ही बदल डाला तो दूसरे साहब ने रेल मंत्री रहते हुए अपने भांजे को भ्रष्टाचार की
रेल चलाने की खुली छूट दे दी..! (जरुर पढ़ें- भांजा चला रहा मामा की रेल..!, भ्रष्टाचार का लाइसेंस..!)
जब कारनामों का
खुलासा हुआ तो नैतिक जिम्मेदारी लेना तो दूर की बात है दोनों महानुभावों ने बेशर्मी
की भी सारी हदें पार कर दी..! सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी न तो कानून मंत्री ने इस्तीफा दिया और न ही
भांजे के कारनामे पर रेल मंत्री मामा पवन बंसल को शर्म आयी..! बंसल साहब ने तो इस्तीफा
देने की बजाए भांजे से रिश्ता खत्म करना ज्यादा बेहतर समझा..! गलत भी क्या किया..? आखिर कुर्सी बार बार
थोड़े न मिलती है..! अश्विनी कुमार की तो
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी इस्तीफा न देने की वजह समझ में आती है...अरे भई
अश्विनी कुमार ने खुद से तो सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट में बदलाव किए नहीं...वो तो
बस ऊपरी आदेश का पालन कर रहे थे...ऐसे में इस्तीफा सिर्फ अकेले वे ही क्यों दें..? (जरूर पढ़ें- क्यों दें कानून मंत्री इस्तीफा..?)
सरकार और पार्टी ने
भी आरोप लगने के बाद पहले दोनों का खूब साथ दिया लेकिन जब लगने लगा कि फजीहत कुछ
ज्यादा ही हो गयी तो ले लिया दोनों से इस्तीफा..! आखिर आम चुनाव करीब हैं जनता के सामने भ्रष्टाचार
और घोटालों के सवाल पर जवाब देने के लिए कुछ तो पास में होना चाहिए..! अब कम से कम ये तो
कहने को रहा कि हमने भ्रष्टाचार, घोटाले और गडबड़ी करने वाले मंत्रियों की कुर्सी
छीन ली..!
आपको याद हो तो
उत्तर प्रदेश में मायावती ने भी तो विधानसभा चुनाव से पहले कुछ ऐसा ही किया था
लेकिन उसके बाद यूपी के विधानसभा चुनाव में क्या हुआ ये सबके सामने है..!
खुद ही सवालों के
घेरे में घिरे सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह साहब अश्विनि कुमार और बंसल प्रकरण पर
त्वरित फैसला लेते हुए दोनों से तत्काल इस्तीफा ले लेते तो शायद उनकी सरकार की
इतनी फजीहत नहीं होती लेकिन मनमोहन सिंह बेचारे भी क्या करते..? काश वे वास्तव में
देश के प्रधानमंत्री होते..!
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