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शनिवार, 20 अप्रैल 2013

सिर्फ तारीख बदली...तस्वीर नहीं...!


तारीख बदल गयी...मौसम भी बदल गया लेकिन नहीं बदले तो हालात...नहीं बदली तो लोगों की सोच और नहीं बदली दिल्ली की तस्वीर...नहीं बदली देश की तस्वीर..! 16 दिसंबर 2012 की वो तारीख आज भी नहीं भूलती...! उस दिन को याद करते हुए आंखें आज भी डबडबा जाती हैं...शब्द आसूंओं में डूब जाते हैं..! आंसुओं से तरबतर घटना के बाद के वो दिन भले ही एक हंसती खेलती जिंदगी को इस क्रूर दुनिया से बहुत बहुत दूर लेकर चले गए हों लेकिन अपने पीछे कई सवाल भी खड़े करके चले गए..? (जरूर पढ़ें- क्या लड़की होना उसका कसूर था ?)
सड़कों पर देश का गुस्सा और कुछ भी कर गुजरने को तैयार बैठे युवाओं के आक्रोश के बाद नींद से जागी सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए बड़े बड़े वादे औऱ दावे करते हुए भले ही कड़े कदम उठाने की कवायद शुरु कर दी हो लेकिन इन वादों और दावों का सच एक बार फिर से छलावा साबित हुआ..! (जरूर पढ़ें- दिल्ली गैंगरेप- यार ये लड़की ही ऐसी होगी !)
दो दिन पहले ही दिलदार दिल्ली का खिताब हासिल कर इतराने वाली दिल्ली एक बार फिर से सबको शर्मशार कर गयी। नवरात्र में एक तरफ घर-घर में कन्याओं के पैर धोए जा रहे थे...कन्याओं का पूजन किया जा रहा था दूसरी तरफ दिल्ली के गांधीनगर में विकृत मानसिकता एक पांच साल की मासूम की जिंदगी को रौंद रहा था..!  विकृत मानसिकता ने एक बार फिर से दिखा दिया कि उनके लिए उनकी हवस की भूख के आगे कोई मायने नहीं रखता फिर चाहे वह पांच साल की मासूम हो या फिर कोई और..? (जरूर पढ़ें- पहले पूछी उम्र...फिर किया बलात्कार..!)
उनके लिए घर- परिवार, रिश्ते नाते, समाज कुछ भी मायने नहीं रखते उनके लिए मायने रखती है तो किसी भी कीमत पर अपनी हवस की भूख को शांत करना..!
विकृत मानसिकता का कोई ईलाज नहीं है लेकिन दिल्ली पुलिस को क्या हो गया..? क्या उनकी सोच भी इतनी विकृत हो गयी है कि वे 16 दिसंबर की दिल दहला देने वाले घटना के बाद भी किसी मासूम के गुम होने पर उसे तलाश करना तो दूर एफआईआर तक दर्ज नहीं करते हैं..?  अलग-अलग मामलों में पीड़ित के परिजनों की एफाईआर दर्ज न करने के लिए तो पुलिस पहले ही बदनाम है..! यहां तक तो समझ में भी आता है लेकिन 5 साल की मासूम के साथ बल्ताकार और हैवानियत का पता चलने के बाद आरोपी को गिरफ्तार करने की बजाए पीड़ित के परिजनों को दो हजार रूपए की पेशकश करके चुप होने की बात करना क्या दर्शाता है..? जाहिर है दिल्ली पुलिस की ये हरकतें किसी विकृत मानसिकता वाले व्यक्ति से अलग तो नहीं है..! फर्क सिर्फ इतना है कि एक हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए मासूम की जिंदगी को नर्क से भी बदतर बना देता है और दूसरा उसका साथ देता है..! (जरूर पढ़ें- अबोध कन्याओं से यौन अपराध क्यों..?)
16 दिसंबर 2013 के बाद भी न रुकने वाली हैवानियत भरी बलात्कार की घटनाएं और अब पांच साल की मासूम के साथ दरिंदगी ये साबित करने के लिए काफी है कि महिलाएं और बच्चियां न तो तब सुरक्षित थी और न ही अब..! (जरूर पढ़ें- बलात्कार- 1971 से लगातार..!)
माना हम विकृत मानसिकता को नहीं बदल सकते...ऐसे लोगों की सोच को नहीं बदल सकते लेकिन ऐसा तो नहीं कि इस तरह की घटनाओं को कम भी नहीं किया जा सकता..? एक भी बच्ची को ऐसे लोगों की हवस का शिकार बनने से नहीं रोका जा सकता..? शिकायत मिलने पर पुलिस की सख्ती और त्वरित कार्रवाई के बाद दोषियों के मामले के निपटारे के लिए फास्ट ट्रेक कोर्ट की स्थापना और तय समय सीमा के अंदर दोषियों को मौत की सजा क्या ऐसे लोगों के मन में खौफ पैदा नहीं करेगा..? जाहिर है ऐसी घटनाओं को पूरी तरह नहीं भी रोका जा सकता तो इन में कमी तो आ सकती है लेकिन ऐसा तब होगा न जब की पुलिस शिकायत मिलने पर त्वरित कार्रवाई करे और फास्ट ट्रेक कोर्ट दोषियों को मौत की सजा सुनाए..!
एक बार फिर से महिला सुरक्षा को लेकर बहस शुरु हो गयी है और दोषियों को मौत की सजा देने की वकालत भी होने लगी है लेकिन एक सुलगता सवाल जेहन में बार-बार उठ रहा है कि क्या अब बदलेगी दिल्ली पुलिस..? क्या अब बदलेगी दिल्ली की तस्वीर..? क्या अब बदलेगी देश की तस्वीर..? क्या अब सुरक्षित रहेंगी महिलाएं और बच्चियां..? या फिर कुछ दिनों या महीनों बाद फिर से आएगी एक ऐसी ही दर्द भरी तारीख..! जिसका एहसास भर ही डरा देता है।

deepaktiwari555@gmail.com

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

IPL और IPL का फर्क...!


भारत में IPL के रोमांच के बीच आयी वर्ल्ड बैंक की एक ताजा रिपोर्ट ने IPL को एक नयी परिभाषा दे दी है। ये रिपोर्ट एक बार फिर से भारत के उस सच को उजागर कर रही है जिसे स्वीकार करने में हमारी देश की सरकार में शामिल जिम्मेदार लोग कतराते रहे हैं..!
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट- गरीबों की स्थिति: कहां है गरीब, कहां है सबसे गरीबकहती है कि दुनिया में 1.2 अरब लोग अभी भी बेहद गरीबी के हालत में हैं। रिपोर्ट ये भी कहती है कि दुनिया के गरीबों में से एक तिहाई गरीब भारत में हैं जो रोजाना 1.25 डॉलर यानि कि करीब 65 रुपए से कम में अपना गुजारा करते हैं।  
भारत के योजना आयोग के लिए ये रिपोर्ट बकवास हो सकती है क्योंकि योजना आयोग के लिए तो गरीबी की परिभाषा कुछ अलग ही है। योजना आयोग का गरीबी का वो आंकलन को याद ही होगा आपको जिसमें योजना आयोग के मुताबिक शहर में रोजाना 32 रूपए खर्च करने वाले और गांव में 26 रुपए खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। योजना आयोग के आंकलन को देखें और वर्ल्ड बैंस की इस रिपोर्ट को देखें तो फिर योजना आयोग के हिसाब से भारत में कोई शख्स गरीब है ही नहीं..! ये बात अलग है कि इसी योजना आयोग के दफ्तर में 35 लाख रुपए टॉयलेट के निर्माण में खर्च कर दिए जाते हैं..!
योजना आयोग ही नहीं दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का वो बयान भी यहां पर याद आता है जिसमें वे कहती हैं कि 5 लोगों के परिवार के एक महीने के खाने के खर्च के लिए 600 रुपए काफी हैं..! लेकिन देश की राजधानी दिल्ली में हर हफ्ते भूख से एक व्यक्ति क्यों दम तोड़ता है उसकी जवाब शायद शीला दीक्षित के पास नहीं है..? (जरूर पढ़ें- शीला जी दिल्ली में भूख से क्यों होती है मौत ?)  
आप भी सोच रहे होंगे कि पूरा देश Indian Premier League का लुत्फ उठा रहा है और ये पड़ गए गरीबों और भूखों की चर्चा में..! वैसे भी जब पैसों की बरसात वाले खेल Indian Premier League में पैसों के साथ ही छक्कों की बरसात हो रही हो तो गरीबों और भूखों की Indian Poor League पर कौन चर्चा करना चाहेगा..?
लेकिन जनाब IPL के इन तीन शब्दों में से भी सिर्फ एक शब्द का फर्क तो देखते जाइऐ...एक तरफ Indian Premier League का खूब प्रमोशन हो रहा है। करोड़ों रूपए पानी की तरह बहाए जा रहे हैंलोगों के पास पीने के लिए पानी नहीं है लेकिन पिच को तैयार करने के लिए पानी बरसाया जा रहा है दूसरी तरफ भारत में निवास करने वाली विश्व की एक तिहाई आबादी यानि कि Indian Poor League की चिंता किसी को नहीं है..! जब बारी इन पर बात करने की आती है...इनके प्रमोशन की आती है तो योजना आयोग का सिर के ऊपर से निकल जाने वाला आंकलन और नेताओं के श्रीमुख से दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की तरह सिर्फ बेतुके बोल ही सुनाई देते हैं जो Indian Poor League का उत्थान नहीं सिर्फ उपहास उड़ाती है..!
हैरत की बात तो ये है कि चुनाव के वक्त पर हमारे देश के राजनेताओं को Indian Poor League की खूब याद आती है। नेताओं पर Indian Poor League का ऐसा खुमार चढ़ता है कि चुनाव में राजनेता Indian Poor League के दरवाजे पर दस्तक देकर इनके उत्थान की बड़ी बड़ी बातें और वादें इनसे करते हैं लेकिन चुनाव जीत जाने के बाद Indian Poor League को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने और इनके बेहतर जीवन स्तर की बात आने पर ये इन्हें गरीब मानने से ही इंकार कर देते है..! इनको सस्ता  भोजन मुहैया कराने के साथ ही इनके उत्थान के नाम पर जो योजनाएं संचालित की भी जाती हैं उनमें भी भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट अधिकारियों का गठजोड़ इनके हक पर डाका मारने का कोई मौका नहीं छोड़ता..!
है न बड़ा फर्क IPL (Indian Premier League) और IPL (Indian Poor League) में लेकिन बेहतर होता जब ये फर्क हमारी देश के नेताओं को नजर आता जो Indian Poor League के उत्थान के नाम पर सत्ता की चाबी तो हासिल कर लेते हैं लेकिन बारी जब वोट का कर्ज उतारने की आती है तो इनका उपहास उड़ाते हैं..!

deepaktiwari555@gmail.com

गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

क्यों मोदी के खिलाफ हैं नीतीश..?


2014 में एनडीए की सरकार बनने का तो कुछ पता नहीं लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी को लेकर तकरार चरम पर पहुंच गयी है। एनडीए का कुनबा बिखरने को है लेकिन पीएम की कुर्सी को लेकर रार में कोई कमी नहीं है..! यहां तक तो ठीक था लेकिन अब गड़े मुर्दे उखाड़कर एक दूसरे के सिर आरोप मढ़ने का खेल शुरु हो गया है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा की तरफ से संभावित पीएम के उम्मीदवार हैं लेकिन एनडीए का 17 साल पुराने घटक दल जनता दल यूनाइटेड को भाजपा की तरफ से पीएम की उम्मीदवारी के लिए एक धर्मनिरपेक्ष चेहरा चाहिए क्योंकि जद यू मोदी को 2002 के गुजरात दंगों की वजह से सांप्रदायिक मानती है..!
जद यू को मोदी के मुस्लिम टोपी न पहनने पर भी ऐतराज है और जदयू ने फिलहाल साफ कर दिया है कि मोदी उनको बिल्कुल भी मंजूर नहीं है। भाजपा के कुछ नेताओं को मोदी के खिलाफ जदयू नेताओं की बयानबाजी रास नहीं आ रही है ऐसे में भाजपा ने नीतिश कुमार को ही गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। भाजपा नेता कहते हैं कि नीतीश कुमार तत्कालीन रेल मंत्री थी ऐसे में रेल मंत्री गोधरा में हुए साबरमती ट्रेन अग्निकांड रोक देते तो गुजरात दंगे नहीं होते।
नीतीश कहां चुप रहने वाले थे वे पलटवार करते हुए कहते हैं कि उन्होंने साबरमती ट्रेन अग्निकांड की रिपोर्ट संसद में पेश की थी और दंगे रोकने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की थी न की उनकी।
कुल मिलाकर भाजपा और जदयू के बीच तकरार लगातार बढ़ती ही जा रही है जो साफ इशारा कर रही है कि निकट भविष्य में एनडीए के कुनबे में जदयू के दिखाई देने की उम्मीद कम ही है..! (जरूर पढ़ें- नरेन्द्र मोदी-नीतिश कुमार...क्यों है तकरार ?)
मोदी को सांप्रदायिक बताने वाले बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार की एक बात समझ में नहीं आती..? नीतीश कहते हैं कि वे ऐसे नेता का नाम भाजपा से पीएम की उम्मीदवारी के लिए स्वीकार करेंगे जो जरूर पड़ने पर टोपी भी पहने और तिलक लगाने से भी जिसे कोई ऐतराज न हो..!
नीतीश को अगर मोदी सांप्रदायिक लगते हैं तो फिर 2002 में एनडीए सरकार में रेल मंत्री रहे नीतीश कुमार ने गुजरात में दंगों के बाद क्यों खुद की पार्टी को एनडीए से अलग नहीं किया..? उस वक्त क्यों नीतीश ने रेल मंत्री की कुर्सी से इस्तीफा देकर अपने रास्ते अलग कर लिए..?
क्यों नीतीश कुमार ने उसके बाद बिहार में भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा और अपनी सरकार बनाने के लिए भाजपा का समर्थन लिया..?
जाहिर है 2002 में नीतीश रेल मंत्री की कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पाए और उसके बाद बिहार में सत्ता के मोह में नीतीश बंधे रहे और भाजपा के साथ मिलकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर सरकार चलाते रहे..!
2002 से 2012 तक जिस नीतीश को मोदी सांप्रदायिक नहीं दिखाई दिए वो मोदी अब अचानक से नीतीश की आंख की किरकिरी बन गए हैं..! नीतीश को जब लगा कि उनकी ही तरह एक राज्य का मुख्यमंत्री पीएम की कुर्सी की दौड़ में शामिल होने की ओर बढ़ रहा है तो नीतीश को 10 साल पुराने 2002 के गुजरात दंगों की भी याद आ गयी..!
जाहिर है पीएम की कुर्सी की महत्वकांक्षा तो नीतीश भी रखते होंगे ऐसे में कैसे नीतीश जिस मोदी को वे खुद के बराबर के कद का नेता मानते हैं उन्हें पीएम की कुर्सी की दौड़ में इतनी आसानी से आगे निकल जाने देंगे..! (जरूर पढ़ें- मोदी, नीतीश और शिवराज..!)
राजनीति में कुछ भी संभव है ऐसे में इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जदयू का मोदी का विरोध करना सिर्फ जदयू का ही विरोध है या फिर इसके पीछे कुछ भाजपा के ऐसे नेता है जो जदयू के सहारे मोदी के नाम पर विरोध की लकीर को लंबी करना चाहते हैं ताकि मोदी पीएम की उम्मीदवारी की दौड़ से बाहर हो जाएं और एनडीए की सरकार बनने की स्थिति में पीएम की कुर्सी के लिए वे दावेदारी कर सकें..!
बहरहाल तकरार अपने चरम पर है ऐसे में ये देखना रोचक होगा कि 17 साल पुरानी भाजपा और जदयू की दोस्ती टूटने से एनडीए का कुनबा बिखरेगा या फिर जदयू की 17 साल पुरानी दोस्ती की खातिर भाजपा मोदी के पीएम की कुर्सी के अरमानों पर पानी फेर देगी..!

deepaktiwari555@gmail.com

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

असरदार ब्लॉग@Makemytrip.com

ख़बर का असर तो आपने सुना और देखा होगा लेकिन क्या बलॉग का असर सुना है। मेरे साथ तो कुछ ऐसा ही हुआ। Makemytrip.com का अपना एक कटु बस यात्रा का अनुभव कल आप सभी लोगों के साथ साझा किया था। (जरूर पढ़ें- अनुभव@Makemytrip.com)। रवि मिश्रा जी ने नवभारत टाइम्स के मेरे ब्लॉग को अपने ट्विटर अकाउंट पर Share किया था जिस पर Makemytrip.com की Customer Care Team की भी नजरें पड़ गयी और मेरा ये अनुभव Makemytrip.com के लोगों तक  तक भी पहुंच गया। आज शाम 3 बजकर 54 मिनट पर Makemytrip.com से किन्हीं सलमान अहमद का फोन आया था और उन्होंने मुझसे पूरी घटना की जानकारी ली और अपने स्तर पर भी इसकी जांच कराने की बात कही।

4 बजकर 20 मिनट पर फिर से सलमान अहमद साहब का फोन आता है और मुझे हुई असुविधा के लिए Makemytrip.com की तरफ से माफी मांगते हुए यात्रा का पूरा पैसा रिफंड करने की बात कहते हैं। साथ ही संबंधित बस ऑपरेटर International Tourist Centre को तत्काल Blacklist किए जाने की भी मुझे जानकारी दी। ऐसा नहीं है कि यात्रा का अनुभव या इसकी शिकायत मैंने Makemytrip.com से नहीं की थी लेकिन ईमेल और फोन से फीडबैक देने के बाद Makemytrip.com से कोई जवाब नहीं मिला।
खैर ब्लॉग के माध्यम से देर से ही सही Makemytrip.com की सकारात्मक प्रतिक्रिया आयी तो अच्छा लगा। लेकिन Makemytrip.com किसी शिकायत के आने से पहले ही यात्री सुविधाओं से कोई समझौता न करते हुए पहले ही बेहतर सर्विस देने वाले बस ऑपरेटर्स से समझौता करता तो ज्यादा अच्छा लगता।
फिलहाल तो Makemytrip.com का सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया। उम्मीद करता हूं कि भविष्य में किसी का मेरी तरह इस कटु अनुभव से सामना न हो। 

deepaktiwari555@gmail.com


काश मैं भी संजय दत्त होता..!



फिल्म अभिनेता संजय दत्त के लिए राहत भरी खबर है...अरे भई सुप्रीम कोर्ट से सरेंडर करने के लिए चार सप्ताह की मोहलत जो मिल गई है। पांच साल की सजा के बचे हुए साढ़े तीन साल के लिए जेल में सजा काटनी थी...ऐसे में चार सप्ताह की मोहलत के बहाने साढ़े तीन साल की एडवांस कमाई करने का मौका जो मिल गया..! संजय दत्त ने भी तो यही दलील दी थी कि बॉलिवुड का 278 करोड़ रूपया उनकी फिल्मों में लगा है लिहाजा फिल्मों को पूरा करने के लिए उन्हें 6 माह की मोहलत दी जाए। हालांकि कोर्ट ने संजय दत्त को 6 माह की तो नहीं लेकिन एक माह की मोहलत तो दे ही दी है। (जरूर पढ़ें- तो 35 साल हो बालिग होने की उम्र..!)
एक दिन पहले ही कोर्ट ने जैबुनिस्सा अनवर काजी की अर्जी खारिज कर दी लेकिन संजय दत्त को 4 सप्ताह की मोहलत दे दी। हालांकि संजय को मोहलत मिलने की उम्मीद कम ही जतायी जा रही थी लेकिन कोर्ट का फैसला सबके सामने है। वैसे ये सिर्फ हिंदुस्तान में ही हो सकता है कि एक व्यक्ति को उसकी व्यवसायिक जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए सरेंडर करने के लिए 4 सप्ताह की मोहलत दे दी जाती है जबकि अलग-अलग मामलों में सजा पाए लोगों को एक घंटे की भी मोहलत नहीं दी जाती..!
हिंदुस्तान में विभिन्न अपराधों में जेल में बंद अपराधियों की भी व्यवसायिक जिम्मेदारियां होती होंगी..? व्यवसायिक न सही पारिवारिक जिम्मेदारियां तो होंगी ही..? कईयों की हालत तो ऐसी होती है कि उनके घर में परिवार के मुखिया के या किसी कमाऊ सदस्य के जेल जाने पर परिवार के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो जाता है..! बच्चों की स्कूल की फीस जमा करने की कोई व्यवस्था नहीं होती है..! जवान हो रही लड़की की शादी के इंतजाम के लिए पैसा उनके पास नहीं होता है लेकिन किसी को अपनी इन जिम्मेदारियों को पूरा करने की मोहलत नहीं मिलती है..!
संजय दत्त व्यवसायिक जिम्मेदारियों का हवाला देते हैं। बॉलिवुड की 278 करोड़ की फिल्मों का काम अधूरा रहने की दलील देते हैं और उन्हें पैसा कमाने के लिए 4 सप्ताह की मोहलत मिल जाती है। एक तरह से देखें तो साढ़े तीन साल जेल में रहते हुए भी संजय दत्त की फिल्में रीलीज हो रही होंगी..! वे अपनी फिल्मों से जेल में रहते हुए भी पैसा कमा रहे होंगे और जेल से निकलने के बाद उनके पास कम से कम पैसे की तो कोई कमी नहीं होगी..! लेकिन लाखों लोग जो जेल में बंद रहते हैं तो उनके परिवार की क्या हालत होती होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है..! वे भी आज यही सोच रहे होंगे कि काश हम भी संजय दत्त की तरह फिल्म अभिनेता होते..बड़े आदमी होते तो हमें भी अपनी व्यवसायिक या पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने की मोहलत मिल जाती..! वे सोच रहे होंगे कि हमारे लिए भी कोई जस्टिस काटजू राष्ट्रपति के पास हमारी सजा माफ करने की अपील करते..! लेकिन अफसोस ये लाखों लोग न तो संजय दत्त हैं और न ही जस्टिस काटजू जैसे कोई सज्जन उनकी सजा माफी के लिए राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखने वाले हैं..! (जरूर पढ़ें- संजय दत्त निर्दोष हैं..!)
मैं न तो संजय दत्त को सरेंडर करने की मोहलत दिए जाने के समर्थन में हूं और न ही जेल में बंद लाखों अपराधियों के लिए मेरे मन में कोई नरम भाव है लेकिन एक ही देश में कानून के अलग-अलग रूप कम से कम मुझे तो समझ में नहीं आते..! कानून सबके लिए समान होना चाहिए फिर चाहे वो कोई फिल्म अभिनेता संजय दत्त हो...कोई राजनेता हो...कोई उद्योगपति हो या फिर कोई दूसरा अपराधी..!

deepaktiwari555@gmail.com

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

बेनी न हुए पाकिस्तान हो गए..!


भारत और पाकिस्तान का एक रूप आजकल भारतीय राजनीति में देखने को मिल रहा है। हालांकि इस तरह के रूप भारतीय राजनीति में कोई नयी बात नहीं है लेकिन केन्द्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के बीच वाकुयुद्ध को देखकर बेनी को अगर पाकिस्तान और मुलायम को अगर भारत की संज्ञा दे दी जाए तो गलत नहीं होगा..! हालांकि बेनी पाकिस्तान की संज्ञा पाने के मजबूत दावेदार इसलिए भी हैं क्योंकि बेनी की फितरत कुछ-कुछ पाकिस्तान की तरह है और वे जब चाहे मुलायम या अपने दूसरे विरोधियों पर जुबानी बम फोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते..! लेकिन मुलायम भारत की संज्ञा से कहीं आगे जाते दिखाई देते हैं..! ऐसा इसलिए कि सीमा पर पाकिस्तान के आए दिन सीज फायर के उल्लंघन पर भारत की हमेशा से सुस्त प्रतिक्रिया रही है जबकि बेनी के जुबानी बम पर मुलायम और उनकी पूरी ब्रिगेड जवाबी हमला करने में कोई कसर नहीं छोड़ती..! 
कुछ दिनों से बेनी बाबू और मुलायम सिंह के बीच सीज फायर सी स्थिति थी लेकिन बेनी बाबू ने एक बार फिर से मुलायम पर जुबानी बम फोड़ दिए और मुलायम को मुसलमानों का सबसे बड़ा दुश्मन बता डाला। इतना ही नहीं बेनी बाबू ने बाबरी विध्वंस मामले में नया बखेड़ा करते हुए मुलायम पर आडवाणी संग सोची समझी साजिश के तहत विवादित ढ़ांचे को गिराने का आरोप मढ़ डाला..! हालांकि मुलायम पर बेनी की भीषण बम वर्षा के बाद कांग्रेस आलाकमान ने बेनी को सीज फायर की हिदायत दी थी लेकिन बेनी बाबू मौन ज्यादा जिन तक धारण नहीं कर सके..! वैसे भी बेनी बाबू हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह तो ठहरे नहीं कि मौन धारण कर लें..!
वैसे भी बेनी बाबू की जुबान से फूलों की वर्षा होती है तो सिर्फ कांग्रेस युवराज राहुल गांधी के लिए और जुबानी बाण निकलते हैं तो सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह को निशाना बनाकर..! राहुल गांधी के लिए चाटुकारिता भरी फूलों की वर्षा का भी कोई मौका बेनी बाबू नहीं छोड़ते और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की तो बेनी ठान कर बैठे हैं। अब चाटुकारिता भरी फूलों की वर्षा होगी तो साथ में जुबानी बाण भी तो निकलेंगे ही...सो फिर से लगा दिया बेनी बाबू ने मुलायम सिंह पर निशाना..!
लोग भले ही इसे बेनी का बड़बोड़ापन या बेनी बाबू पर उनकी उम्र का असर कहें लेकिन पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और ही है..! जाहिर है बेनी कांग्रेस आलाकमान की हिदायत के बाद भी इस तरह के जुबानी तीर छोड़ रहे हैं तो इसके पीछे कुछ तो पक रहा है..? 2012 के यूपी के विधानसभा चुनाव में सपा ने यूपी में परचम फहराते हुए पूर्ण बहुमत हासिल किया था...ऐसे में कांग्रेस ये बात अच्छी तरह जानती है कि सपा के पक्ष में बनी हवा यूपी में 2014 में कांग्रेस की सीटें बढ़ाने की राह में रोड़ा बन सकती है और सपा एक बार फिर से इस हवा के झोंके में 2014 में अपनी सीटों की संख्या को बढ़ा सकती है..!
लिहाजा कांग्रेस आलाकमान के आशीर्वाद से बेनी मुलायम के खिलाफ बयानबाजी कर मुसलमानों की नजरों में मुलायम और उनकी पार्टी को विलेन बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में मुसलमानों को कांग्रेस की तरफ मोड़ सके और केन्द्र की सत्ता का रास्ता कहे जाने वाले यूपी में अपनी सीटों की संख्या बढ़ा सके..!
सीबीआई के डर से केन्द्र सरकार को समर्थन दे रहे मुलायम आंखे दिखाते हैं तो कांग्रेस आलाकमान बेनी को हिदायत देकर बयानबाजी न करने को कहता है और पीठ पीछे बेनी की पीठ ठोकता है..! वर्ना किसी नेता में इतनी हिम्मत कि कांग्रेस आलाकमान के आदेश का उल्लंघन करे लेकिन बेनी ऐसा बार-बार करते हैं..!
बहरहाल सियासी खेल में बेनी ने जुबानी बम फोड़े हैं तो इसकी गूंज मुलायम एंड कंपनी के कानों को तो भाएगी नहीं...ऐसे में देखना ये होगा कि मुलायम अब बेनी के इस हमले का जवाब किस तरह देते हैं..?

deepaktiwari555@gmail.com

अनुभव@Makemytrip.com


Make My Trip ये नाम तो सुना ही होगा आपने...टीवी पर विज्ञापन भी आपने देखे ही होंगे। कंपनी दावा करती है कि Make My Trip के अनुभव इतना शानदार रहता है कि आप चाहकर भी इसे भूल नहीं पाएंगे। अब कंपनी इतने विश्वास से दावा करती है तो मैंने भी सोचा की Make My Trip की सेवाएं ले ली जाएं। 11 अप्रैल की बात है दिल्ली से हल्दवानी (नैनीताल) जाना था। ट्रेन में वेटिंग कन्फर्म नहीं हुई तो मैंने Make My Trip कंपनी की वेबसाइट में हल्दवानी के लिए ऑनलाइन बसों का खोज की तो कई सारे बस ऑपरेटर की बसें दिखाई दी।
आन्नद विहार आईएसबीटी के पास स्थित बस ऑपरेटर International Tourist Centre की रात साढ़े दस बजे की (2x2 Push Back Seat) बस का ऑनलाइन टिकट मैंने Make My Trip की वेबसाइट से बुक कराया। टिकट बहुत ही आसानी से बुक हो गया। मैं निश्चिंत था कि चलो हल्दवानी पहुंचने का इंतजाम तो हो गया। सवा दस बजे मैं International Tourist Centre के दफ्तर पहुंच गया। बस ऑपरेटर के दफ्तर में बैठे युवक से मैंने बस के बारे में पूछताछ की तो उसने मुझे 5 मिनट में बस के आने की बात कह कर दफ्तर में ही बैठने के लिए कहा। करीब 11 बजे एक बस वहां पहुंची तो युवक ने मुझे बस में बैठने के लिए कहा।
बस की हालत देखकर समझ में आ गया था कि सफर कैसा गुजरने वाला है। खैर में बस में चढ़ा तो बस खचाखच भरी हुई थी। अंदर एक युवक जो शायद परिचालक था उससे सीट को लेकर पहले ही कई यात्री उलझ रहे थे। 21 नंबर की मेरी सीट पर पहले से ही कोई और यात्री बैठा हुआ था। मैंने बस में मौजूद उस युवक को अपनी टिकट देते हुए अपनी सीट खाली कराने की बात कही तो वो साहब मुझे बस की सबसे आखिरी सीट पर बैठने का इशारा करने लगे। मैंने आखिरी सीट पर बैठने से इंकार करते हुए अपनी सीट पर बैठने की बात की तो मुझ पर ही चिल्लाने लगा कि आखिरी सीट पर बैठना है तो बैठ जाओ। युवक के अऩुसार ये बस International Tourist Centre की नहीं थी ऐसे में उसने मुझे बुक सीट देने से साफ इंकार कर दिया। काफी तकरार के बाद भी जब वो मुझे सीट देने को तैयार नहीं हुआ तो मैं बस से बाहर आ गया। International Tourist Centre के दफ्तर में मौजूद युवक से मैंने बात की तो मुझे बातों में उलझाने लगा और इधर उधर की बात कहकर घुमाने लगा। खैर मुझे लेकर वो बस में पहुंचा और जैसे तैसे उसने मुझे 6 नंबर की सीट पर बैठाया। सीट की हालत बस की तरह ही खस्ता थी लेकिन यात्रा करना जरूरी था इसलिए मैं सीट पर बैठ गया। पूरी रात मैंने कैसे यात्रा की ये तो मैं ही जानता हूं। Make My Trip की वेबसाइट के अनुसार साढ़े दस बजे की जिस बस में मैंने टिकट बुक कराया था वो बस ऑपरेटर International Tourist Centre की थी लेकिन वास्तव में वो बस किसी और कंपनी की थी। इसी तरह बस की खस्ता हालत भी कंपनी की सेवाओं पर सवाल खड़े करने के लिए काफी हैं..!
यात्रा के दौरान और यात्रा के बाद मुझे Make My Trip का वो विज्ञापन जरूर याद आ रहा था जिसमें दिखाया जाता है कि Make My Trip का अनुभव कितना शानदार रहता है। मेरा अनुभव तो इतना शानदार था कि मैं लोगों से Make My Trip की चर्चा किए बिना नहीं रह पा रहा हूं। लेकिन फर्क इतना है कि अपने मित्रों से Make My Trip की सेवाएं लेने से पहले सौ बार सोचने की सलाह दे रहा हूं। अपने इस अनुभव को शब्दों में उकेर कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की भी यही वजह है।
एक बात और Make My Trip कंपनी अपने ग्राहकों का कितना ख्याल रखती है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ऑनलाइन बस टिकट बुक करने के बाद तुरंत मुझे एक SMS और EMAIL आया जिसमें कंपनी ने मुझ से यात्रा का अनुभव पूछा था। मैंने भी बिना देरी किए अपना ये अनुभव Make My Trip के साथ साझा किया लेकिन इसके बाद Make My Trip की तरफ से न तो कोई SMS आया और न ही कोई EMAIL आया। अपने ग्राहकों को बेहतर सेवा देने का दावा करने वाली कंपनी के किसी प्रतिनिधि ने तक फोन कर फीडबैक का कोई जवाब नहीं दिया।
कुल मिलाकर मैंने जो महसूस किया कि कंपनी सिर्फ विज्ञापन के जरिए झूठे वादे कर लोगों को बेवकूफ बना रही है और पैसा बना रही है। कंपनी के वादों और दावों का फर्क तो मैंने देख लिया जिसके बाद भविष्य में Make My Trip की सेवाएं तो मैं शायद ही लूंगा।

deepaktiwari555@gmail.com

रविवार, 14 अप्रैल 2013

मोदी, नीतीश और शिवराज..!


2014 के आम चुनाव से पहले देश के तीन बड़े राज्य सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। देश के अन्य राज्यों के साथ ही इन तीनों राज्यों में विकास भी खूब हुआ है लेकिन इन तीनों राज्यों में से चर्चा सिर्फ एक ही राज्य की ज्यादा हो रही है और वो राज्य है गुजरात..! गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात के विकास की बातों के सहारे देश की तकदीर बदलने की बात करते हैं। बकौल मोदी जितना विकास गुजरात में हुआ है...उतनी तरक्की देश के किसी राज्य ने नहीं की है। मोदी गुजरात के विकास मॉडल की तारीफ करते नहीं थकते और गुजरात के विकास मॉडल को सर्वश्रेष्ठ ठहराते हैं। मोदी की नजरें 2014 में पीएम की कुर्सी पर है और इसके लिए मोदी हवा को अपने पक्ष में करने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं।
विकास के मुद्दे पर चर्चा में पीछे छूट रहा हिंदुस्तान का हृद्य प्रदेश मध्य प्रदेश चर्चा में भले ही गुजरात से पीछे हो लेकिन विकास की दौड़ में मध्य प्रदेश वास्तव में पीछे नहीं है लेकिन जितनी बातें गुजरात के विकास की होती हैं उतनी बातें मध्य प्रदेश की नहीं होती..! ये बात मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी शायद कचोटती होगी..! गुजरात और मध्य प्रदेश दोनों ही राज्यों में भाजपा की सरकार है ऐसे में शिवराज सिंह चाहकर भी गुजरात के विकास के दावों पर सवाल तो नहीं उठा सकते..! शायद इसलिए ही कई मौकों पर विकास के मुद्दे पर गुजरात का जिक्र आने पर शिवराज सिंह मध्य प्रदेश के विकास की कहानियां सुनाने लगते हैं और दोनों ही प्रदेशों की स्थितियों की चर्चा करते हुए मध्य प्रदेश की 19 प्रतिशत की रिकार्ड कृषि विकास दर और 12 प्रतिशत की विकास दर का जिक्र करना नहीं भूलते हैं। प्रधानमंत्री के पद को लेकर मोदी की उम्मीदवारी पर वे किसी के नाम नहीं लेते तो किसी के नाम पर हामी भी नहीं भरते। खुद की उम्मीदवारी पर मन में किसी हसरत के बिना काम करने की बात कहना शिवराज नहीं भूलते हैं।
भाजपा शासित राज्यों मोदी के गुजरात और शिवराज के मध्य प्रदेश के अलावा भाजपा समर्थित नीतीश कुमार का बिहार भी विकास के मुद्दे पर चर्चा में गुजरात के आगे नहीं ठहरता लेकिन इस बात को नहीं नकारा जा सकता कि नीतीश के राज में बिहार में तरक्की ने रफ्तार पकड़ी है..!
विकास के मुद्दे पर चर्चा में गुजरात से पीछे छूट जाने की तकलीफ तो नीतीश को भी होती होगी..! तभी तो नीतीश बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर कभी दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन करते हुए मोदी की लोकप्रियता को टक्कर देने की कोशिश करते हैं तो कभी सांप्रदायिकता के बहाने ही सही मोदी के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए अपनी इस तकलीफ को जाहिर भी करते हैं..! नीतिश भले ही भाजपा से परहेज न करने की बात करते हुए सिर्फ मोदी से परहेज करने की बात करते हों लेकिन इसके पीछे सिर्फ धर्मनिरपेक्षता का ही मुद्दा है ये बात आसानी से हजम नहीं होती क्योंकि एक व्यक्ति विशेष को सांप्रदायिक कहते हुए आप विरोध का झंडा बुलंद करने में देर नहीं करते लेकिन उस व्यक्ति की पार्टी जिस पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगता है उसे आप स्वीकार कर लेते हो..!(जरूर पढ़ें- नरेन्द्र मोदी-नीतिश कुमार...क्यों है तकरार?)
जाहिर है विकास के नाम सिर्फ गुजरात की चर्चा होने पर शिवराज और नीतीश के पेट में भी दर्द होता होगा जो मानव स्वाभाव के अनुसार लाजिमी भी है..! मोदी और शिवराज की पार्टी एक होने के नाते शिवराज का मोदी को नीचा दिखाकर अपनी नाक ऊंचा न कर पाना भले ही उनकी राजनीतिक मजबूरी हो सकती है लेकिन नीतीश कुमार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। इससे नीतीश न सिर्फ खुद को सेक्यूलर दिखाकर खुद को अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा हिमायती दिखाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं बल्कि ये भी लोगों को बताने का पूरा जतन कर रहे हैं कि विकास सिर्फ गुजरात में नहीं हुआ है वरन बिहार में भी विकास की गंगा बह रही है..! टोपी पहनने और टीका लगाने के नीतीश के बोल तो कम से कम इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
बहरहाल मोदी की निगाहें पीएम की कुर्सी पर हैं तो नीतीश की कोशिश पीएम की कुर्सी मोदी से दूर रखने की है ऐसे में देखना ये होगा कि नीतीश की कोशिश कामयाब होती है या फिर चलता है मोदी का जादू..? फिलहाल तो 2014 के करीब आने के साथ - साथ ये लड़ाई और भी रोचक होनी की पूरी उम्मीद है..!

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