तारीख बदल गयी...मौसम भी बदल गया लेकिन
नहीं बदले तो हालात...नहीं बदली तो लोगों की सोच और नहीं बदली दिल्ली की तस्वीर...नहीं
बदली देश की तस्वीर..! 16 दिसंबर 2012 की वो तारीख आज भी नहीं
भूलती...! उस दिन को याद करते हुए आंखें आज भी डबडबा
जाती हैं...शब्द आसूंओं में डूब जाते हैं..!
आंसुओं से तरबतर घटना
के बाद के वो दिन भले ही एक हंसती खेलती जिंदगी को इस क्रूर दुनिया से बहुत बहुत
दूर लेकर चले गए हों लेकिन अपने पीछे कई सवाल भी खड़े करके चले गए..? (जरूर पढ़ें- क्या लड़की होना उसका कसूर था ?)
सड़कों पर देश का गुस्सा और कुछ भी कर
गुजरने को तैयार बैठे युवाओं के आक्रोश के बाद नींद से जागी सरकार ने महिलाओं की
सुरक्षा के लिए बड़े बड़े वादे औऱ दावे करते हुए भले ही कड़े कदम उठाने की कवायद
शुरु कर दी हो लेकिन इन वादों और दावों का सच एक बार फिर से छलावा साबित हुआ..! (जरूर पढ़ें- दिल्ली गैंगरेप- यार ये लड़की ही
ऐसी होगी !)
दो दिन पहले ही दिलदार दिल्ली का खिताब
हासिल कर इतराने वाली दिल्ली एक बार फिर से सबको शर्मशार कर गयी। नवरात्र में एक
तरफ घर-घर में कन्याओं के पैर धोए जा रहे थे...कन्याओं का पूजन किया जा रहा था
दूसरी तरफ दिल्ली के गांधीनगर में विकृत मानसिकता एक पांच साल की मासूम की जिंदगी
को रौंद रहा था..! विकृत
मानसिकता ने एक बार फिर से दिखा दिया कि उनके लिए उनकी हवस की भूख के आगे कोई
मायने नहीं रखता फिर चाहे वह पांच साल की मासूम हो या फिर कोई और..? (जरूर पढ़ें- पहले पूछी उम्र...फिर किया
बलात्कार..!)
उनके लिए घर- परिवार, रिश्ते नाते, समाज
कुछ भी मायने नहीं रखते उनके लिए मायने रखती है तो किसी भी कीमत पर अपनी हवस की
भूख को शांत करना..!
विकृत मानसिकता का कोई ईलाज नहीं है लेकिन
दिल्ली पुलिस को क्या हो गया..? क्या उनकी सोच भी इतनी विकृत हो गयी है कि
वे 16 दिसंबर की दिल दहला देने वाले घटना के बाद भी किसी मासूम के गुम होने पर उसे
तलाश करना तो दूर एफआईआर तक दर्ज नहीं करते हैं..? अलग-अलग मामलों में पीड़ित के परिजनों की एफाईआर
दर्ज न करने के लिए तो पुलिस पहले ही बदनाम है..! यहां तक तो समझ में
भी आता है लेकिन 5 साल की मासूम के साथ बल्ताकार और हैवानियत का पता चलने के बाद
आरोपी को गिरफ्तार करने की बजाए पीड़ित के परिजनों को दो हजार रूपए की पेशकश करके
चुप होने की बात करना क्या दर्शाता है..? जाहिर है दिल्ली पुलिस की ये हरकतें किसी
विकृत मानसिकता वाले व्यक्ति से अलग तो नहीं है..! फर्क सिर्फ इतना
है कि एक हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए मासूम की जिंदगी को नर्क से भी बदतर
बना देता है और दूसरा उसका साथ देता है..! (जरूर पढ़ें- अबोध कन्याओं से यौन अपराध क्यों..?)
16 दिसंबर 2013 के बाद भी न रुकने वाली हैवानियत
भरी बलात्कार की घटनाएं और अब पांच साल की मासूम के साथ दरिंदगी ये साबित करने के
लिए काफी है कि महिलाएं और बच्चियां न तो तब सुरक्षित थी और न ही अब..! (जरूर पढ़ें- बलात्कार- 1971 से लगातार..!)
माना हम विकृत मानसिकता को नहीं बदल सकते...ऐसे
लोगों की सोच को नहीं बदल सकते लेकिन ऐसा तो नहीं कि इस तरह की घटनाओं को कम भी
नहीं किया जा सकता..? एक भी बच्ची को ऐसे लोगों की हवस का
शिकार बनने से नहीं रोका जा सकता..? शिकायत मिलने पर पुलिस की सख्ती और त्वरित
कार्रवाई के बाद दोषियों के मामले के निपटारे के लिए फास्ट ट्रेक कोर्ट की स्थापना
और तय समय सीमा के अंदर दोषियों को मौत की सजा क्या ऐसे लोगों के मन में खौफ पैदा
नहीं करेगा..? जाहिर है ऐसी घटनाओं को पूरी तरह नहीं भी
रोका जा सकता तो इन में कमी तो आ सकती है लेकिन ऐसा तब होगा न जब की पुलिस शिकायत
मिलने पर त्वरित कार्रवाई करे और फास्ट ट्रेक कोर्ट दोषियों को मौत की सजा सुनाए..!
एक बार फिर से महिला सुरक्षा को लेकर बहस
शुरु हो गयी है और दोषियों को मौत की सजा देने की वकालत भी होने लगी है लेकिन एक
सुलगता सवाल जेहन में बार-बार उठ रहा है कि क्या अब बदलेगी दिल्ली पुलिस..? क्या अब बदलेगी दिल्ली की तस्वीर..?
क्या अब बदलेगी देश
की तस्वीर..? क्या अब सुरक्षित रहेंगी महिलाएं और बच्चियां..? या फिर कुछ दिनों या महीनों बाद फिर से आएगी एक ऐसी ही दर्द भरी तारीख..! जिसका एहसास भर ही डरा देता है।
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