उत्तराखंड में
कुदरती आफत में सेना की राहत के बीच एक कौम ऐसी भी है जिसके लिए मानवीय संवेदनाएं
कोई मायने नहीं रखती। उनके लिए आपदा भी एक पर्यटन सीजन की तरह है जिसमें वे अपना
चेहरा चमकाने का कोई मौका नहीं छोड़ते..!
उत्तराखंड में भीषण
त्रासदी के बाद से बीते कुछ दिनों में कुछ ऐसा हुआ जो किसी का भी सिर शर्म से
झुकाने के लिए काफी है लेकिन खुद को जनता के कर्णधार बताने वाले इस कौम के लोगों
को शर्म नहीं आती..! ये विपदा में घिरे
इंसानों के हालातों पर भी अपनी नेतागिरी चमकाने का कोई मौका नहीं छोड़ते और लाशों
पर भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने से गुरेज नहीं करते..!
शुरुआत जैसे तैसे
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा से ही करें तो याद आता है कि किस तरह
आपदा के बाद मुख्यमंत्री महोदय देहरादून से रुद्रप्रयाग पहुंचने के बाद वहां से
सीधे दिल्ली के लिए उड़ गए। जिस बहुगुणा को लोगों को अपने चौपर से उतरकर लोगों के
बीच जाकर उनका हौसला बढ़ाना था वो चाटुकारिता की सारी हदें पार करते हुए
प्रभावितों को उनके हाल पर छोड़कर अपने आकाओं के पास दिल्ली के लिए उड़ गए..!
लौट कर वापस आए तो
अपने आकाओं के साथ जिनके चक्कर में कई घंटे तक राहत एवं बचाव कार्य रोकना पड़ा...वजह
बताई गई सुरक्षा..! लेकिन इस बात का
जवाब किसी के पास नहीं था कि मौत के मुंह में फंसे करीब 80 हजार लोगों की जिंदगी की
क्या कोई कीमत नहीं है..?
हवाई सैर को तरसने
वाले उत्तराखंड सरकार के मंत्रियों, विधायकों के लिए तो मानो आपदा ने उनकी मन की
मुराद पूरी कर दी। दे दनादन एक के बाद एक आपदा प्रभावित क्षेत्रों के दौरे के नाम
पर मननीय खूब हवाई सैर कर रहे हैं। सरकार के एक कद्दावर मंत्री हरक सिंह रावत ने
तो आपदा राहत सामग्री ले जाने की तैयारी में हैलिपेड में खड़े एक हेलिकॉप्टर से
अपनी हवाई सैर के लिए राहत सामग्री तक उतरवा दी। अब इनके दौरों से आपदा प्रभावितों
को कितना फायदा हुआ..? आपदा में फंसे कितने लोगों की जान इन्होंने बचाई ये जगजाहिर है..!
अक्सर चर्चाओं में
रहने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी साहब का उत्तराखंड दौरा बहुगुणा
सरकार के साथ ही केन्द्र सरकार को भी खल गया तो उन्होंने किसी भी वीआईपी को आपदा प्रभावित क्षेत्रों में
जाने पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया लेकिन मजबूत पीआर वाले सीएम साहब ने 15
हजार गुजरातियों को बचाकर अपने साथ ले जाने का दावा कर सबकी नींद उड़ा दी...ये बात
अलग है कि अब उस पर पार्टी की तरफ से सफाई पेश करने का दौर शुरु हो चुका है..!
अपने नेता के लिए
अपने ही आदेश को पलटने वाले केन्द्रीय गृहंमंत्री सुशील कुमार शिंदे और बहुगुणा
फिर विवादों में घिरे जब राहुल गांधी को तो उत्तराखंड के आपदा प्रभावित क्षेत्रों
का दौरा करने की ईजाजत दे दी गयी जबकि दूसरे नेताओं को नहीं..!
ये छोड़िए अपदा के
बीच अचानक से राहत सामग्री के ट्रकों को हरी झंडी दिखाते हुए दिल्ली में अपनी मां
सोनिया गांधी के साथ प्रकट हुए राहुल गांधी ने जिन ट्रकों को प्रभावितों की मदद के
लिए रवाना किया था उनके पहिए ऋषिकेश में जाकर थम गए...ख़बर है कि ट्रकों में आगे
बढ़ने के लिए न तो डीजल है और न ही ट्रक ड्राईवरों के पास खाने के लिए पैसे..! अब इन ट्रकों को
राहुल के उत्तराखंड दौरे की भूमिका तैयार करने के लिए और फोटो खिंचवाने के लिए रवाना
किया गया था या फिर वास्तव में मदद का जज्बा था ये तो कांग्रेसी ही बेहतर जानते
होंगे..! मैं तो कहता हूं कि
एक बार इन ट्रकों का तिरपाल हटाकर भी देख लेना चाहिए कि ट्रकों में वाकई में राहत
सामग्री है भी कि नहीं..!
वहीं उत्तराखंड
पहुंचने में जिन राज्यों के मुख्यमंत्री पीछे रह गए वे धड़ाधड़ उत्तराखंड पहुंचने
लगे और अपने अपने राज्यों के लोगों के बीच उनके रहनुमा बनने की कोई कसर नहीं छोड़ी।
देहरादून के जौलीग्रांट
एयरपोर्ट पर आंध्र प्रदेश से कांग्रेस सांसद हनुमंत राव और टीडीपी सांसद रमेश राठौड़
की हरकतों ने तो शर्म को भी शर्म से पानी पानी कर दिया। वोटबैंक की राजनीति के
लिए...खुद को आंध्र के लोगों का हिमायती दिखाने के लिए आपस में ही गुत्थम गुत्था
हो गए।
भीषण आपदा के बीच
लोगों को जान के लाले पड़े हुए थे...लोग भूख- प्यास से दम तोड़ रहे थे लेकिन नेता
इसमें भी अपना अपना वोटबैंक तलाश रहे थे। ये सब पूरे देश की जनता के सामने हुआ
लेकिन अफसोस इसके बाद भी ये नेता फिर से विधानसभा और संसद तक पहुंचेंगे..! हर बार यही तो होता
आया है...क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि अब जागेगी देश की जनता..? और ऐसे नेताओं को
सबक सिखाएगी..!
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