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गुरुवार, 27 जून 2013

उतराखंड आपदा - एक कौम ऐसी भी..!

उत्तराखंड में कुदरती आफत में सेना की राहत के बीच एक कौम ऐसी भी है जिसके लिए मानवीय संवेदनाएं कोई मायने नहीं रखती। उनके लिए आपदा भी एक पर्यटन सीजन की तरह है जिसमें वे अपना चेहरा चमकाने का कोई मौका नहीं छोड़ते..!
उत्तराखंड में भीषण त्रासदी के बाद से बीते कुछ दिनों में कुछ ऐसा हुआ जो किसी का भी सिर शर्म से झुकाने के लिए काफी है लेकिन खुद को जनता के कर्णधार बताने वाले इस कौम के लोगों को शर्म नहीं आती..! ये विपदा में घिरे इंसानों के हालातों पर भी अपनी नेतागिरी चमकाने का कोई मौका नहीं छोड़ते और लाशों पर भी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने से गुरेज नहीं करते..!
शुरुआत जैसे तैसे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा से ही करें तो याद आता है कि किस तरह आपदा के बाद मुख्यमंत्री महोदय देहरादून से रुद्रप्रयाग पहुंचने के बाद वहां से सीधे दिल्ली के लिए उड़ गए। जिस बहुगुणा को लोगों को अपने चौपर से उतरकर लोगों के बीच जाकर उनका हौसला बढ़ाना था वो चाटुकारिता की सारी हदें पार करते हुए प्रभावितों को उनके हाल पर छोड़कर अपने आकाओं के पास दिल्ली के लिए उड़ गए..!
लौट कर वापस आए तो अपने आकाओं के साथ जिनके चक्कर में कई घंटे तक राहत एवं बचाव कार्य रोकना पड़ा...वजह बताई गई सुरक्षा..! लेकिन इस बात का जवाब किसी के पास नहीं था कि मौत के मुंह में फंसे करीब 80 हजार लोगों की जिंदगी की क्या कोई कीमत नहीं है..?
हवाई सैर को तरसने वाले उत्तराखंड सरकार के मंत्रियों, विधायकों के लिए तो मानो आपदा ने उनकी मन की मुराद पूरी कर दी। दे दनादन एक के बाद एक आपदा प्रभावित क्षेत्रों के दौरे के नाम पर मननीय खूब हवाई सैर कर रहे हैं। सरकार के एक कद्दावर मंत्री हरक सिंह रावत ने तो आपदा राहत सामग्री ले जाने की तैयारी में हैलिपेड में खड़े एक हेलिकॉप्टर से अपनी हवाई सैर के लिए राहत सामग्री तक उतरवा दी। अब इनके दौरों से आपदा प्रभावितों को कितना फायदा हुआ..? आपदा में फंसे कितने लोगों की जान इन्होंने बचाई ये  जगजाहिर है..!
अक्सर चर्चाओं में रहने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी साहब का उत्तराखंड दौरा बहुगुणा सरकार के साथ ही केन्द्र सरकार को भी खल गया तो उन्होंने  किसी भी वीआईपी को आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जाने पर रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया लेकिन मजबूत पीआर वाले सीएम साहब ने 15 हजार गुजरातियों को बचाकर अपने साथ ले जाने का दावा कर सबकी नींद उड़ा दी...ये बात अलग है कि अब उस पर पार्टी की तरफ से सफाई पेश करने का दौर शुरु हो चुका है..!
अपने नेता के लिए अपने ही आदेश को पलटने वाले केन्द्रीय गृहंमंत्री सुशील कुमार शिंदे और बहुगुणा फिर विवादों में घिरे जब राहुल गांधी को तो उत्तराखंड के आपदा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने की ईजाजत दे दी गयी जबकि दूसरे नेताओं को नहीं..!
ये छोड़िए अपदा के बीच अचानक से राहत सामग्री के ट्रकों को हरी झंडी दिखाते हुए दिल्ली में अपनी मां सोनिया गांधी के साथ प्रकट हुए राहुल गांधी ने जिन ट्रकों को प्रभावितों की मदद के लिए रवाना किया था उनके पहिए ऋषिकेश में जाकर थम गए...ख़बर है कि ट्रकों में आगे बढ़ने के लिए न तो डीजल है और न ही ट्रक ड्राईवरों के पास खाने के लिए पैसे..! अब इन ट्रकों को राहुल के उत्तराखंड दौरे की भूमिका तैयार करने के लिए और फोटो खिंचवाने के लिए रवाना किया गया था या फिर वास्तव में मदद का जज्बा था ये तो कांग्रेसी ही बेहतर जानते होंगे..! मैं तो कहता हूं कि एक बार इन ट्रकों का तिरपाल हटाकर भी देख लेना चाहिए कि ट्रकों में वाकई में राहत सामग्री है भी कि नहीं..!
वहीं उत्तराखंड पहुंचने में जिन राज्यों के मुख्यमंत्री पीछे रह गए वे धड़ाधड़ उत्तराखंड पहुंचने लगे और अपने अपने राज्यों के लोगों के बीच उनके रहनुमा बनने की कोई कसर नहीं छोड़ी।
देहरादून के जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर आंध्र प्रदेश से कांग्रेस सांसद हनुमंत राव और टीडीपी सांसद रमेश राठौड़ की हरकतों ने तो शर्म को भी शर्म से पानी पानी कर दिया। वोटबैंक की राजनीति के लिए...खुद को आंध्र के लोगों का हिमायती दिखाने के लिए आपस में ही गुत्थम गुत्था हो गए।
भीषण आपदा के बीच लोगों को जान के लाले पड़े हुए थे...लोग भूख- प्यास से दम तोड़ रहे थे लेकिन नेता इसमें भी अपना अपना वोटबैंक तलाश रहे थे। ये सब पूरे देश की जनता के सामने हुआ लेकिन अफसोस इसके बाद भी ये नेता फिर से विधानसभा और संसद तक पहुंचेंगे..! हर बार यही तो होता आया है...क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि अब जागेगी देश की जनता..? और ऐसे नेताओं को सबक सिखाएगी..!

deepaktiwari555@gmail.com

मंगलवार, 25 जून 2013

वाह बहुगुणा ! हजारों मर गए, अब याद आया कर्तव्य..!

उत्तराखंड की बहुगुणा सरकार प्रदेश में आपदा प्रबंधन को लेकर कितनी तैयार थी इसकी पोल रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, और पिथौरागढ़ जिले में तबाही के बाद सबके सामने खुल ही चुकी है। शुक्र है सेना के जवानों का जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए हजारों लोगों को मौत के मुंह से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। कैग की रिपोर्ट पहले ही आपदा प्रबंधन की जमीनी हकीकत को बेपर्दा कर चुकी है कि किस तरह 2007 में स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट ऑथोरिटी की आज तक कोई बैठक ही नहीं हुई है। ये छोडिए इस ऑथोरिटी ने आपदा से निपटने के लिए न कोई नियम कानून बनाए और न ही कोई दिशा निर्देश जारी किए। ऐसे में अब उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैशी ने भी आपदा प्रबंधन के मोर्चें पर फेल बताया है। राज्यपाल ने कहा है कि उत्तराखंड की चार धाम यात्रा अव्यवस्थाओं से भरी पड़ी थी और आपदा आने पर इसके प्रबंधन की सरकार की कोई तैयारी नहीं थी।
राज्यपाल का चार धाम यात्रा की तैयारी और आपदा प्रबंधन को लेकर सरकार पर सवाल खड़ा करना अपने आप में बड़ी बात है। ये सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि बीते साल मई माह में उत्तराखंड का राज्यपाल नियुक्त होने के बाद अजीज कुरैशी ने सड़क मार्ग से बदरीनाथ धाम की यात्रा की थी। बदरीनाथ की यात्रा से लौटने के बाद राजभवन में राज्यपाल अजीज कुरैशी के आधे घंटे के साक्षात्कार के दौरान मैंने जब राज्यपाल से चार धाम यात्रा को लेकर सवाल किए तो राज्यपाल अजीज कुरैशी ने चार धाम यात्रा मार्ग में अव्यवस्थाओं को लेकर सरकार के खिलाफ खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी। इतना ही नहीं राज्यपाल ने चारों धामों के लिए डेवलेपमेंट ऑथोरिटी बनाए जाने की भी वकालत की थी। इसके लिए राज्य सरकार को पत्र लिखकर निर्देशित भी किया था लेकिन बहुगुणा सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। (जरुर पढ़ें- उत्तराखंड के वो दिल्ली वाले मुख्यमंत्री..!)
आपदा प्रबंधन के मोर्चे पर पूरी तरह फेल होने के बाद भी राज्य के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा साहब को शर्म नहीं है..! बहुगुणा सरकार अखबारों और समाचार चैनलों में आपदा राहत कार्य के दौरान हजारों लोगों को बचाने का दावा करने वाले बड़े बड़े विज्ञापनों के जरिए वाहवाही लूटने में लगी है लेकिन सरकार के किसी नुमाईंदे के पास इस बात का जवाब नहीं है कि आखिर क्यों समय रहते आपदा प्रबंधन को लेकर सरकार ने कोई कदम क्यों नहीं उठाया..?
अखबारों औऱ टीवी चैनलों में लाखों रुपए के इन विज्ञापनों के जरिए विजय बहुगुणा के नाम से एक संदेश जारी किया गया है। संदेश हैं – प्रत्येक जीवन अमूल्य है- उसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है- विजय बहुगुणा, मुख्यमंत्री उत्तराखंड।
मुख्यमंत्री साहब से सवाल करना चाहूंगा कि आपके इस कर्तव्य की याद आपको हजारों लोगों की मौत के बाद ही क्यों आई..?  हर साल उत्तराखंड में हजारों लोग आपदा की भेंट चढ़ते हैं लेकिन तब सरकार को...आपको अपना कर्तव्य याद क्यों नहीं आता..?
माना आप पिछले साल ही जैसे तैसे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने हैं (जरुर पढ़ें- विजय बहुगुणा कैसे बने मुख्यमंत्री ?) लेकिन आपके कुर्सी संभालने के बाद बीते साल उत्तरकाशी में आपदा ने सैंकड़ों लोगों को लील लिया था लेकिन तब भी आपको अपने इस कर्तव्य की याद नहीं आयी जिसे आप आज लाखों रुपए खर्च कर अखबारों और टीवी चैनलों में विज्ञापन के जरिए लोगों को बता रहे हैं कि आपका कर्तव्य क्या है..?
बीते साल तो आपदा प्रबंधन का खामियों का ठीकरा आपने पिछली भाजपा सरकार पर फोड़ दिया था लेकिन अब क्यों आपके पास कोई जवाब नहीं है..? सेना के जवान अपनी जान को जोखिम में डालकर लोगों की जान बचा रहे हैं और आप अखबारों में टीवी चैनलों को विज्ञापन जारी कर अपना चेहरा चमका रहे हैं। बहुगुणा साहब अखबारों, समाचार चैनलों में विज्ञापन के बजाए इस पैसे का इस्तेमाल आपदा प्रभावितों को राहत पहुंचाने में करते तो शायद आपदा पीड़ितों का दर्द कुछ कम होता लेकिन आपके लिए तो सरकारी पैसे से विज्ञापन जारी कर अपनी फोटो छपवाकर सरकार की छवि को सुधारने की ज्यादा चिंता है लेकिन ये मत भूलिए बहुगुण साहब की जनता को अब आप इतनी आसानी से नहीं बरगला सकते।


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सोमवार, 24 जून 2013

जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर

जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर, जान देने की रुत रोज आती नहीं...ये पंक्तियां मानो भारतीय सैनिकों के लिए ही रची गयी। सीमा पर दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब देना हो या फिर देश के भीतर आयी कोई भीषण आपदा या विपदा सहारा सिर्फ और सिर्फ भारत के वीर सैनिकों का ही है। भारत के वीर जवानों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे विपरित परिस्थितियों में भी किसी भी मुश्किल हालात का सामना कर सकते हैं। फिर चाहे सीमा पर दुश्मन की गोलियों का जवाब देना हो या फिर उत्तराखंड जैसे किसी राज्य में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे आपदा में फंसे हजारों लोगों को खतरों से भरे दुर्गम पहाड़ी इलाकों से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना हो।
उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली के दुर्गम पहाड़ी इलाकों में जहां एक तरफ पहाड़ों से मौत के रुप में पत्थर और विशालकाय बोल्डर बरस रहे हों और दूसरी तरफ पूरे उफान पर नदियों में मौत बह रही हो...ऐसे रास्तों से आपदा में फंसे हजारों लोगों को सुरक्षित निकालना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है लेकिन भारतीय सेना के वीर जवानों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर दिन रात एक करके हजारों लोगों की जिंदगी की उम्मीद को जिंदा रखा।
राहत एवं बचाव कार्य में लगे सभी जवानों का जोश और जज्बा देखने लायक है। खुद को मौत के मुंह में झोंक पर दूसरे की जान बचाना कोई इनसे सीखे।
अपने कंधों पर खतरों से भरे रास्ते पर उन श्रद्धालुओं को उठाकर पहाड़ों पर चढ़ना...जहां पर एक गलत कदम उन्हें पूरे उफान पर मौत के रुप में बहती नदियों में झोंक सकता है...वाकई में रोंगटे खड़े कर देता है लेकिन सेना के इन वीर जवानों के चेहरे पर इसके बाद भी कोई शिकन नहीं है। एक श्रद्धालु को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाकर वे दूसरे श्रद्धालु की जान बचाने में जी जान से जुट जाते हैं।
आईटीबीपी की आठवीं बटालियन के कमांडिग ऑफिसर जी एस चौहान कहते हैं कि आपदा के बाद कई जवानों ने तो पहले से स्वीकृत अपनी छुट्टियों पर जाने से खुद ही मना कर दिया और जो जवान छुट्टी पर थे भी वे लोग भी आपदा के बाद मुश्किल में फंसे लोगों की मदद करने के लिए वापस आ गए। सलाम है ऐसे वीर जवानों को।
तस्वीर का एक पहलू और देखिए एक तरफ ये जवान हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचा रहे हैं और दूसरी तरफ हैं उत्तराखंड के वो दिल्ली वाले मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा जो आपदा के बाद आपदाग्रस्त क्षेत्रों में कैंप कर प्रभावितों का हौसला बढ़ाने की बजाए अपने उडनखटोले को दिल्ली की ओर मोड़ लेते हैं और जब वापस आते भी हैं तो देहरादून में बैठकर सुबह शाम प्रेस कांफ्रेंस कर इस आपदा को प्रकृति का कहर बताते हुए अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाडने का कोई मौका नहीं छोड़ते..! वैसे भी जिस व्यक्ति ने पहाड़ को, पहाड़ के लोगों की पीड़ा को कभी समझा ही नहीं उससे और क्या उम्मीद की जा सकती है..?

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रविवार, 23 जून 2013

15 हजार तक पहुंच सकता है मौत का आंकड़ा..!!!

केदारनाथ में प्रलय के बाद जैसे जैसे दिन गुजर रहे हैं वैसे वैसे मौत का आंकड़ा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। तबाही थमने के बाद मौत का जो आंकड़ा पहले 15 से 20 लोगों का बताया जा रहा था अगले दिन वो संख्या 60 पर पहुंच गयी। इसी तरह मृतकों की संख्या इसके बाद 100 फिर 200 और फिर साढ़े पांच सौ से 700 तक बतायी जा रही है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा तो अब इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि ये संख्या एक हजार के करीब हो सकती है।
बहुगुणा भले ही एक हजार की संख्या में अटके हों लेकिन उत्तराखंड में खासकर केदारनाथ, रामबाड़ा और गौरीकुंड में हुई तबाही की तस्वीरें कुछ और ही कहानी बयां कर रही हैं। केदारनाथ के कपाट साल में सिर्फ छह माह के लिए खुलते हैं ऐसे में हर कोई इन छह माह में केदारनाथ के दर्शन कर धन्य हो जाना चाहता है। खासकर मई – जून में मैदानों में भीषण गर्मी और छुट्टियों का समय होने के कारण भी इस वक्त श्रद्धालु चार धाम यात्रा के लिए उत्तराखंड का रुख करते हैं। 14 किलोमीटर की खड़ी पैदल चढ़ाई होने के कारण चारों धामों में केदारनाथ धाम की यात्रा सबसे कठिन मानी जाती है।
गौरीकुंड से केदारनाथ की पैदल यात्रा शुरु होती है ऐसे में गौराकुंड केदारनाथ यात्रा का पहला और सबसे अहम पड़ाव है। दोपहर बाद या शाम के वक्त गौरीकुंड पहुंचने वाले अधिकतर यात्री गौरीकुंड में रात्रिविश्राम करते हैं और दूसरे दिन सुबह 14 किलोमीटर तक पैदल चढ़ाई शुरु करते हैं। बीते साल अप्रेल में केदारनाथ यात्रा पर हमारा पहला पड़ाव भी गौरीकुंड ही था और उस वक्त वहां के सभी होटल, धर्मशाला और लॉज यात्रियों से खचाखच भरे हुए थे। गौरीकुंड मे ही करीब 100 से ज्यादा छोटे बड़े होटल, धर्मशाला और लॉज हैं औऱ यात्रा सीजन में सारे होटल, धर्मशाला और लॉज फुल रहते हैं। अनुमान के मुताबिक यहां पर एक बार में 8 से 10 हजार यात्री रुकते हैं।
इसके बाद आधे रास्ते पर यानि 7 किलोमीटर पर रामबाड़ा पर यात्रा का अगला पड़ाव है और यहां पर भी बड़ी संख्या में अंधेरा घिरने पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु रात्रि विश्राम करते हैं। हालांकि यहां पर बड़े पक्के निर्माण नहीं है लेकिन इसके बाद भी यात्रियों के खाने पीने के साथ ही ठहरने के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं रहती हैं। यहां पर भी श्रद्धालुओं की ये संख्या करीब 4 से 5 हजार रहती है।
रामबाड़ा के बाद 7 किलोमीटर की यात्रा के बाद श्रद्धालु केदारनाथ धाम पहुंचते हैं। रात घिरने पर श्रद्धालु केदारनाथ में रात्रि विश्राम करते हैं और सुबह केदार बाबा के दर्शन के बाद श्रद्धालु केदारनाथ से वापस लौटते हैं। केदारनाथ में एक दिन में कम से कम 10 हजार श्रद्धालु मौजूद रहते हैं। साथ ही यहां के पुजारियों, पंडों और दुकान, होटल, लॉज, धर्मशाला संचालकों की संख्या करीब 5 हजार से ज्यादा रहती है। केदारनाथ पहुंचने के बाद हमने एक रात केदारनाथ में गुजारी थी और इस दौरान हमने देखा था कि सभी होटल, लॉज, धर्मशाला, गेस्ट हाउस पूरी तरह श्रद्धालुओं से भरे हुए थे।
इसके साथ ही केदारनाथ से रामबाड़ा और रामबाड़ा से गौरीकुंड के बीच के रास्ते में भी हजारों यात्री बिना रुके आ जा रहे होते हैं। चूंकि केदारनाथ में मौत का सैलाब सुबह करीब 8 बजे के आस पास आया था ऐसे में ज्यादातर यात्री धर्मशाला, होटल और लॉज के अदंर ही थे। मौत के इस सैलाब में जहां केदारनाथ, रामबाड़ा और गौरीकुंड के सभी होटल, लॉज और धर्मशालाओं जमींदोज हो गयी हैं तो ऐसे में अंजादा लगाया जा सकता है कि सिर्फ इन तीनों स्थानों पर ही कितने यात्रियों की मौत हुई होगी..?
उत्तराखंड सरकार ये आंकड़ा भले ही एक हजार के करीब होने का अनुमान लगा रही हो लेकिन वास्तव में मौत का ये आंकड़ा 15 हजार से भी बहुत ज्यादा है। इसके साथ ही बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब, गंगोत्री और यमुनोत्री के साथ आपदा प्रभावित दूसरे इलाकों में हुई मौतों का आंकड़ा अलग से है।
हम तो यही उम्मीद करेंगे कि मौत का आंकड़ा कम से कम हो लेकिन तबाही का ये मंजर और हालात तो कुछ और ही बयां कर रहे हैं..!
शासन प्रशासन तो बहुत कुछ नहीं कर पाया हालांकि इनसे बहुत ज्यादा उम्मीद भी नहीं थी लेकिन भारतीय सेना के उन सभी जवानों को सलाम है जिन्होंने दुर्गम पहाड़ी इलाकों में विपरित परिस्थितियों में न सिर्फ हजारों लोगों की जान बचाई बल्कि बिना रुके वे लगातार अपने लोगों की जिंदगियों को बचा रहे हैं।


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