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शुक्रवार, 3 जून 2011

Content Is The King


Content Is The King……

मीडिया संस्थानों में कंटेट यानि की पाठकों व दर्शकों को परोसे जानी वाली विषय वस्तु को लेकर शुरू से ही सवाल उठते रहे हैं....और आज भी गाहे बगाहे कुछ संगोष्ठियों....परिचर्चांओं में मीडिया के दिग्गज बडे जोर – शोर से विषय वस्तु पर गहन मंथन करने की बात कर सफलता के लिए कंटेंट में निरंतर सुधार की बातकरते हैं....लेकिन संगोष्ठियों....परिचर्चांओं में मंच पर भाषण देने के बाद कितने लोग अपने संबंधित संस्थानों में विषय वस्तु को लेकर अपनी ही कही बातों पर अमल करते हैं.....यह बताने की जरूरत नहीं है। देखा जाए तो अखबार व टीवी भले ही दर्शकों व पाठकों के लिए पहली नजर में सिर्फ समाचार पाने का ही माध्यम है....औऱ यह काम समाचार पत्र औऱ टेलीविजन कर भी रह है....लेकिन किसी भी अखबार या चैनल की सफलता या लोकप्रिता सिर्फ समाचार को दर्शकों या पाठकों तक पहुंचा देने मात्र से नहीं बढ जाती। खबरों को पाठकों या दर्शकों को परोसने के लिए आप किस विषय वस्तु का प्रयोग कर रहे हं....यह एक बडा सवाल है। पाठक या दर्शक सिर्फ समाचार जानने के लिए ही नहीं अखबार या चैनल का रूख करते हैं....बल्कि वे विषय वस्तु पर भी उतना ही गौर करते हैं....और यही अखबार या चैनल की टीआऱपी को तय करते हैं.....जिसके लिए समाचार पत्र व टेलिविजन वाले किसी भी हद तक जाने से गुरेज नहीं करते।
....टीआऱपी के लिए नामी चैनलों से लेकर क्षेत्रिय चैनल कंटेंट के नाम पर दर्शकों को क्या परोस रहे हैं....इससे आप भली भांति परिचित हैं.....खबरों के नाम पर पाठकों व दर्शकों को डराना.....खुलेआम अश्लीलता परोसना....खबरों का पोस्टमार्टम कर वास्तविक खबर की बजाए विषय से भटकना। चैनलों में खबरों की जगह इन सब चीजों ने ले ली है....भले ही कुछ समय तक चैनल दर्शकों को खबरों के नाम पर यह सब परोसकर अपने साथ जोडे रखने में कामयाब भी हो जाएं....लेकिन इससे लंबे समय तक इससे दर्शकों को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। अब जबकि देश में साक्षरता का प्रतिशत लगातार बढ रहा है....औऱ शिक्षा का अधिकार अधिनियम के लागू होने के बाद साक्षरता दर में औऱ ईजाफा होने की बात की जा रही है....ऐसे में कंटेंट का महत्व औऱ अधिक बढ जाता है। विषय वस्तु ही वह चीज है जो दर्शकों के मन में हमारी व हमारे संस्थानों की छवि को बनाती है। किसी खबर या खास प्रोग्राम को आप सिर्फ प्रसारित कर रहे हैं.....तो शायद दर्शक उसमें रूचि न लें....लेकिन बेहतर कंटेंट के बल पर आप इन्हीं खबरों औऱ प्रोगाम के दौरान भी दर्शकों को लगातार अपने साथ बांधे रख सकते हैं।
.....बेहतर कंटेंट जहां किसी भी चैनल को सैंकडों चैनलों की भीड से अलग पहचान दिलाता है.....औऱ वहां पर काम कर रहे लोगों के लिए भी काम करने का एक अच्छा माहौल तैयार करने में मदद करता है।
कंटेंट वास्तव में अखबार व चैनल का चेहरा तय करता है....औऱ चेहरे की यही चमक अखबार या चैनल को सबसे अलग खडा करती है….इसलिए कंटेंट यानि की विषय वस्तु को राजा कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

दीपक तिवारी
09971766033
deepaktiwari555@gmail.com

सोमवार, 30 मई 2011

ये तो लोकतंत्र है


ये तो लोकतंत्र है....

.......दुनियाभर में समय समय पर ऐसे कई प्रयोग हुए जिसने विश्व के सबसे बडे लोकतंत्र भारत की राजनीति औऱ अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला....लेकिन जब बात मई के आखिरी सप्ताह से जून के पहले सप्ताह के बीच की हो रही है तो हाल ही में पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को नहीं नकारा जा सकता है। दोनों ही राज्यों में दबी – कुचली व उपेक्षित माने जाने वाली नारी ने एक बार फिर से अपनी शक्ति का एहसास करा दिया....औऱ अपनी विजयी पताका फहराते हुए राजनीति हल्कों में खलबली मचा दी।पश्चिम बंगाल में जहां 34 सालों से कायम वामपंथी सरकार को जनता ने नकार दिया...वहीं ऐसा ही कुछ तमिलनाडु में भी घटा औऱ करुणानिधी सरकार को भी जनता ने आइना दिखा दिया। पश्चिम बंगाल औऱ तमिलनाडु के विधानसभा चुनावों में जीतने वाली दोनों पार्टियों तृणमूल कांग्रेस औऱ अन्ना द्रमुक की कमान महिला के हाथ में थी.....औऱ जनता ने पुरूष की बजाए महिला नेतृत्व पर अपनी मुहर लगायी...जिसके बाद देश में दिल्ली में शीला दीक्षित औऱ उत्तर प्रदेश में मायावती के बाद चार महिला मुख्यमंत्री हो गयी हैं.....जो देश में कम से कम महिलाओं के लिहाज से एक सूकून देने वाली खबर है....औऱ इससे निश्चित ही महिलाओं में नयी ऊर्जा का संचार भी हुआ है।
.....20 साल पहले 21 मई 1991 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या भी भारतीय राजनीति के लिए किसी बडे झटके से कम नहीं थी....युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद हर कोई सकते में था.....औऱ कांग्रेस के लिए यह किसी भयंकर आघात की तरह था....खासतौर पर सोनिया गांधी के लिए.....लेकिन राजीव की हत्या के बाद देर से ही सही सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली और दूसरी राजनीतिक पार्टियों के हमलों को झेलने के बाद भी एक बार फिर से कांग्रेस को स्थयित्व प्रदान किया.....औऱ साबित कर दिया कि महिला की ताकत क्या होती है।
.....और यही काम पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने वामपंथी सरकार को परास्त करके दिखा दिया। जिसके बाद ममता ने पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल किया वहीं वह देश में 14वीं महिला मुख्यमंत्री भी बनीं.....वहीं दूसरी तरफ जयललिता ने दूसरी बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
.....सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन के जरिए जनता में अपनी पैठ बना लेने वाली ममता बनर्जी की सादगी औऱ मेहनत का ही नतीजा था कि जनता ने वाममोर्चा को नकारते हुए ममता की तृणमूल कांग्रेस पर अपना भरोसा जताया....औऱ भारी बहुमत से विजयी बनाया.....ममता ने भी वाममोर्चा सरकार को उखाड फेंकने के बाद 20 मई को शपथ लेने के तुरंत बाद सिंगूर के किसानों को 400 एकड जमीन वापस लौटाने की बात कही...जिसे वाममोर्चा सरकार ने अधिग्रहित कर लिया था.....साथ ही राज्य की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए उसी टाटा समूह को पश्चिम बंगाल में निवेश करने के लिए आमंत्रित भी किया....जिसको जमीन आवंटित करने के खिलाफ ममता ने किसानों के साथ मिलकर विरोध का झंडा बुलंद किया था।
....वहीं दूसरी बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाली जयललिता ने भी भ्रष्टाचार के समुद्र में गोते लगा रही द्रमुक सरकार के खिलाफ जनता का विश्वास जीतने में सफल रही।
.....पश्चिम बंगाल औऱ तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद निश्चित तौर पर भारत ही नहीं दुनियाभऱ की उन राजनीतिक पार्टियों व राजनेता....जो सत्ता को सिर्फ ऐशो आराम का साधन समझते हैं....उनमें यह संदेश गया कि लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र से बडी कोई ताकत नहीं है....और समय आने पर जनता लोकतंत्र के माध्यम से रही उनको जवाब भी देने में सक्षम भी है।
....पश्चिम बंगाल व तमिलनाडु में जनता ने महिला नेतृत्व पर भरोसा दिखाकर राजनीति को अपनी बपौती समझने वाले राजनेताओं को करारा जवाब भी दिया है....ऐसा नहीं है कि महिलाओं ने इसे साबित नहीं किया है.....1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की कमान संभालने वाली यूपीए अध्यक्ष  सोनिया गांधी हों.....लगातार दो बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी शीला दीक्षित हो या फिर उत्तर प्रदेश में अकेले दम पर सत्ता संबालने वाली मायावती...ये सब बखूबी अपने काम को अंजाम दे रही हैं.....औऱ इसी कडी को आगे बढाया है पश्चिम बंगाल में ममता व तमिलनाडू में जयललिता ने।
.....जब बात लोकतंत्र के वैकल्पिक मॉडल की हो रही है तो....हिंदुस्तान की बाहर की बात न कर अंदर की ही बात करें तो ये वाक्ये ....भारत ही नहीं दुनिया की राजनीति के लिए एक बडा सबक है.....औऱ निश्चित तौर पर दबी – कुचली व अबला समझी जाने वाली महिला के लिए किसी संजीवनी के कम नहीं है.....बस जरूरत है इस भरोसे को कायम रखने की।

दीपक तिवारी
09971766033
deepaktiwari555@gmail.com

पेंसिल...चांद औऱ समय


पेंसिल....चांद औऱ समय
पेंसिल....चांद औऱ समय.........इन तीनों की अगर बात करें तो समय के साथ धुंधले पड गये बचपन के वो दिन याद आते हैं......जब छत से चांद को देखते हुए मां से बडी मासूमियत से एक सवाल पूछता था....किमां दूर आसमां में दिन ढलने के साथ ही चमक बिखेरने वाला यह कौन है.....तो मां का जवाब होता था.....चंदा मामा....औऱ आज भी चांद के लिए यही अनुभूति होती है.....समय बीतता गया.....औऱ पता ही नहीं चला कि कब हाथों में पहले चॉक औऱ फिर पेंसिल ने इसकी जगह ले ली....समय बीतता गया....औऱ फिर पेंसिल से भी नाता टूटा....औऱ छठवीं कक्षा में पेंसिल की जगह ब़ॉल पैन ने ले ली.....लेकिन जिस तरह आज भी आसमान में चांद की चमक बरकरार है.....ठीक उसी तरह पहली बार पेंसिल से कागज पर लिखने की अनुभूति का एहसास होते ही जेहन में वो बात याद आ जाती है....साथ ही पेंसिल से जुडी वो कहानी याद आ जाती है....जो आज भी मुझे ऊर्जा प्रदान करती है.....
...........एक लड़का अपने पिता को कागज पर कुछ  लिखते  हुए देखकर पूछा -क्या आप मेरे लिए कहानी लिख रहे है ?
पिता ने कहा- कहानी तो लिख रहा हूँ पर उससे महत्वपूर्ण यह पेंसिल है जिससे मैं लिख रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ तुम भी बड़े होकर पेंसिल कि तरह ही बनोगे . '
लड़के ने  कहा -'इसमें क्या बात है ये तो बाकी पेन्सिल जैसा ही तो है.'
पिता ने बोला -'ये तो तुम्हारे नजरिये पर निर्भर करता है ,तुम्हे पेंसिल में कुछ नजर नहीं आ रहा है पर मुझे इसके  पांच खास गुण नजर आ रहे है जिसे अपना लो तो तुम महान बन जाओगे.'
पहला : आप महान कामों को अंजाम दे सकते है लेकिन पेंसिल की तरह यह न भूले कि आपके भी पीछे एक हाथ होता है जो आपको मार्गदर्शन देता और उस हाथ को हम ईश्वर कहते है.
दूसरा: शार्पनर पेंसिल को थोड़ी देर के लिए बहुत तकलीफ पहुचाता है पर  इसके बाद वो नुकीली होकर और भी ज्यादा अच्छा लिखती है. इसलिए तुम्हे भी दुःख और तकलीफों को सहना सीखना चाहिए क्योकि वो तुम्हे  अच्छा  व्यक्तित्व प्रदान करती  है .
तीसरा: पेंसिल इरेजर द्वारा गलतियों को मिटाने का मौका  देती है यानी गलतिया हो तो उसको सुधारना भी जरुरी है यह हमें न्याय और सज्जनता के रास्ते  पर चलने में मदद करती है .
चौथा: पेंसिल में उसकी लकड़ी से ज्यादा उसके अन्दर कि ग्रेफिट महत्वपूर्ण है,जिसके कारण उसका वजूद है. इसलिए तुम हमेशा धयान दो कि तुम्हारे अन्दर क्या भरा है?
पांचवां: पेंसिल हमेशा निशान छोड़ जाती है,तुम भी जीवन में जो कुछ करते हो वह निशान छोड़ जाती है इसलिए कोई भी काम चाहे वो कितना भी छोटा क्यों न हो बुद्धिमानी और एकाग्रता से करो.  
.....जिस तरह पेसिंल.....जिसकी अहमियत इस कहानी को सुनने से पहले आपके जेहन में भी शायद बहुत ज्यादा या यूं कहें कुछ नहीं होगी.....उसी तरह चांद.....विज्ञान से नाता न रखने वालों के लिए बचपन में सिर्फ चंदा मामा....औऱ अब शायद रात के घने अंधेरे में एक रोशनी बिखेरने का माध्यम भले हो....लेकिन यही चांद वैज्ञानिकों के लिए किसी रहस्य से कम नहीं था.....औऱ समय के साथ वैज्ञानिकों ने इसे भी पार पाने की कोशिश की....औऱ 20 जुलाई 1969 को अमेरिका को इसमें सफलता भी मिली....जब पहले अमेरिकी नील आर्म स्ट्रांग ने अपने साथी एडविन एल्ड्रिनन के साथ चांद पर पहला कदम रखा। 1969 से 1972 के बीच कुल 12 अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर उतरे और सकुशल वापस लौटे। 7 दिसंबर 1972 को अपोलो 17 मिशन के दो अंतरिक्ष यात्रियों का चंद्रमा पर अवतरण और विचरण अब तक की अंतिम समानव चंद्रयात्रा थी.....अपोलो 17 ही एकमात्र ऐसी चंद्रयात्रा थी, जिस में कोई भूवैज्ञानि (जियोलॉजिस्ट) चन्द्रमा पर उतरा था और वहां से सौ किलो से अधिक कंकड़ पत्थर और मिट्टी साथ ले आया था........उसके बाद से ही लगातार चांद के रहस्यों को सुलझाने के साथ ही कई देशों की चांद पर भी वर्चस्व जमाने की कोशिशें आज भी जारी है।
.....हम बात कर रहे थे....पेंसिल....चांद औऱ समय की.....पेंसिल औऱ चांद जिसके साथ बचपन में हमारा गहरा नाता था.....समय बीतने के साथ ही चांद पर पेंसिल की उपयोगिता भी नजर आयी....जब चांद पर गुरूत्वाकर्षण न होने के कारण पेंसिल को चंद्रमा पर लिखने के लिए उपयोग किये जाने पर भी विचार किया जाने लगा.....जिस पर औऱ भी शोध जारी हैं.....औऱ उम्मीद करते हैं कि समय के साथ ही हमारे बचपन के साथी पेंसिल और चांद का संबंध औऱ भी गहरा हो जाएगा.....क्योंकि वक्त के साथ ही नयी चीजें संभव हैं....लेकिन समय बीतने के साथ इस तरह से पेंसिल औऱ चांद का नाता जुडेगा....ऐसा शायद ही कभी सोचा था।

दीपक तिवारी
09971766033
deepaktiwari555@gmail.com