कुल पेज दृश्य

शनिवार, 18 जुलाई 2015

क्यों मनमोहन सिंह बनने लगे हैं मोदी ?

हमारे देश के अब तक के प्रधानमंत्रियों में मौनी बाबा नाम का पेटेंट तो मनमोहन सिंह के पास ही था लेकिन कुछ मामलों में अब मनमोहन सिंह के पेटेंट पर खतरा मंडराने लगा है। इस अनचाहे पेटेंट से तो मनमोहन सिंह क्या कोई भी बचना चाहेगा, ऐसे में इस पेटेंट को चुनौती मिलती देख खुश तो मनमोहन सिंह भी बहुत होंगे। आखिर कोई तो मिला जो इस मामले में उनकी बराबरी पर खड़ा दिखाई देने लगा है।
बात मनमोहन सिंह के बाद देश की पीएम कि कुर्सी पर विराजमान नरेन्द्र दामोदर दास मोदी की हो रही है। एक साल में मोदी सरकार ने जनता से किए कितने वादे पूरे किए ये तो बाद की बात है। सवाल अब कुछ मामलों में मोदी की रहस्यमयी चुप्पी पर उठने लगे हैं। ऐसे नहीं है कि दहाड़ मारने वाले नरेन्द्र मोदी अब मनमोहन सिंह हो गए हैं। लेकिन जब सवाल उनके मंत्रिमंडल सहयोगी, पार्टी के विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री या पार्टी नेताओं पर उठते हैं तो उन पर पीएम मोदी की चुप्पी खलती है।
बात ललित मोदी से रिश्तों को लेकर घिरी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की हो, फर्जी डिग्री विवाद में घिरी मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की हो, ललित मोदी से ही रिश्तों को लेकर सुर्खियों में आई राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे हो या फिर खूनी घोटाले के नाम से विख्यात हो चुके व्यापंम घोटाले में घिरे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कथित चावल घोटाले में सवालों में आए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह की हों। पीएम मोदी इन मामलो में मौन ही रहे।
इन मामलों में मोदी की मौनी इमेज सोचने पर मजबूर करते हैं कि आखिर क्यों विपक्ष पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ने वाले मोदी, जनता से मन की बातकरने वाले पीएम मोदी इन पर क्यों मौन हो जाते हैं।  
ऐसा नहीं है कि पीएम बनने के बाद मोदी ने चुप्पी साध ली है। पीएम मोदी खूब दहाड़ रहे हैं, देश से लेकर विदेश में उनकी गूंज सुनाई दे रही है। लेकिन अहम ओहदे पर बैठी सुषमा, स्मृति, वसुंधरा, शिवराज और रमन सिंह के मामलों में पीएम चुप्पी साधे हुए हैं।
पीएम मोदी को हो सकता है अपने सहयोगियों पर जरूरत से ज्यादा भरोसा हो, विपक्ष के आरोप राजनीति से प्रेरित लगते हों, लेकिन सवाल यही कि फिर वे इन पर खामोश क्यों हैं ? प्रधानमंत्री होने के नाते इन सब पर उनकी सोच सार्वजनिक होना तो बनता ही है।
इन मुद्दों पर मोदी क्यों खामोश हैं, ये तो वे ही बेहतर जानते होंगे लेकिन मोदी की ये खामोशी अब चुभने लगी है, कुछ मामलों में मोदी को मनमोहन सिंह बनाने में लगी है।

deepaktiwari555@gmail.com

मंगलवार, 14 जुलाई 2015

सूप तो सूप, छलनी भी बोले जिसमें 72 छेद !

उत्तर प्रदेश में आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर के लिए मुलायम का दिल कठोर हो गया। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह आईपीएस अधिकारी को कथित तौर पर धमकाते हैं, सुधर जाने की हिदायत देते हैं लेकिन मुलायम पुत्र और सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस कथित धमकी को नेता दी की सलाह समझकर भूल जाने की हिदायत देते हैं। कहते हैं नेता जी हमें भी तो सलाह देते हैं, इसमें क्या गलत है।
अखिलेश जी नेता जी का आपको सलाह देने समझ में भी आता है। खुद सीएम की कुर्सी पर बैठने की बजाए पुत्र को सीएम बनाने के बाद सरकार कैसे चलानी है, इसकी सलाह तो अब पिता और चाचा लोग ही देंगे ना। सो वे कर रहे हैं, लेकिन एक आईपीएस अधिकारी को फोन पर धमकाना कहां तक जायज है ?
आखिर पिता के बोल हैं तो फिर कैसे पुत्र इसे गलत ठहरा दे, सो अखिलेश का ये कहना कहीं से भी हैरानी भरा नहीं लगता। लेकिन राजनीति के जिस पड़ाव में मुलायम सिंह यादव पहुंच चुके हैं, वहां पर मुलायम का एक अधिकारी के लिए इस तरह कठोर होना सोचने पर मजबूर करता है।
हैरानी इसलिए भी होती है कि मुलायम सिंह अमिताभ ठाकुर को 2006 में घटित फिरोजाबाद के जसराना की एक घटना की याद दिलाते हुए ठाकुर का उससे भी बुरा हश्र करने की बात कहते हैं। कथित ऑडियो टेप में मुलायम कहते हैं कि उन्होंने ही अमिताभ ठाकुर को सपा कार्यकर्ताओं से बचाया था।
दरअसल ये घटना 2006 की है, तब अमिताभ ठाकुर फिरोजाबाद में एसपी थे और सूबे की कमान मुलायम सिंह यादव के हाथ में थी। उसी दौरान एसपी विधायक और मुलायम सिंह यादव के समधी रामवीर सिंह ने शिवपाल सिंह यादव को जसराना के एक कार्यक्रम में बुलाया था। कार्यक्रम स्थल पर एसपी कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच बदइंतजामी को लेकर विवाद हुआ और पुलिसकर्मियों को पीटा गया। एसपी अमिताभ ठाकुर मौके पर पहुंचे तो उनके साथ भी हाथापाई हुई और कार्यकर्ता उन्हें स्कूल परिसर में खींच ले गए। इसकी जानकारी मिलते ही तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने समर्थकों को समझा-बुझा कर एसपी अमिताभ ठाकुर को छुड़वाया और उनसे मामले की रिपोर्ट न दर्ज करने की हिदायत दी।
ये घटना ये भी बताती है कि सपा राज में मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए कैसे सपा कार्यकर्ताओं में इतनी हिम्मत थी कि वे पुलिसकर्मियों की पिटाई करने के साथ ही एक आईपीएस अधिकारी पर भी हमला करने से नहीं हिचकिचाए।
मतलब साफ है कि सपा राज में सपा नेताओं में कानून का कोई खौफ नहीं है। होता तो शायद जसराना में अमिताभ ठाकुर के साथ ये सब घटित न होता और न मुलायम उसकी मिसाल दे रहे होते।
वैसे भी ये वही मुलायम सिंह हैं जो रेप की घटनाओं पर कहते सुनाई देते हैं कि लड़कों से गलती हो जाती है।
ये वही मुलायम सिंह हैं, जो यूपी में पुलिस अधिकारी जिया उल हक समेत तीन लोगों की मौत पर विपक्षी पार्टी बसपा के यूपी में जंगलराज और गुंडाराज होने की बात पर जवाब देते हैं कि- “सूप बोले तो बोले, छलनी भी बोले जिसमें बहत्तर छेद। मायावती की सरकार के कई मंत्री और विधायक रेप, भ्रष्टाचार जैसे मामलों में जेल की सजा काट रहे हैं, ऐसे में उन्हें सपा सरकार के बारे में बोलने का कोई हक नहीं है (पढ़ें- छलनी भी बोले जिसमें 72 छेद..!)
अब अमिताभ ठाकुर जब मुलायम सिंह के खिलाफ लखनऊ के हजरतगंज थाने में शिकायत दर्ज कराते हैं तो अगले ही दिन ठाकुर के खिलाफ रेप की एफआईआर दर्ज हो जाती है। साथ ही यूपी सरकार ठाकुर को अनुशासनहीनता के आरोप में सस्पेंड कर देती है। लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मुलायम के कठोर दिल की कहानी को सलाह समझकर भूल जाने की हिदायत देते नजर आते हैं।
सत्ता हाथ में है तो सब जायज है, वही यूपी में हो रहा है, लेकिन मुलायम और अखिलेश समेत सपाईयों को ये नहीं भूलना चाहिए कि जनता सब देख रही है और 2017 के विधानसभा चुनाव में भी अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है।  

deepaktiwari555@gmail.com

रविवार, 12 जुलाई 2015

“खूनी व्यापम”- कैसे हो सीबीआई पर भरोसा ?

मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले से खूनी व्यापम बनने की इस रहस्यमयी कहानी की परतें खंगालने का जिम्मा मध्य प्रदेश एसआईटी के पास था। एक तरफ एसआईटी जांच कर रही थी दूसरी तरफ व्यापम से जुड़े लोगों की रहस्यमयी मौतों का सिलसिला अनवरत जारी था। ऐसे में मध्य प्रदेश एसआईटी पर संदेह के बादल गहराने लाजिमी थे।
मध्य प्रदेश में भी अपना राजनीतिक वजूद तलाशने में लगी कांग्रेस को शिवराज सरकार पर वार करने का सुनहरा अवसर हाथ आया तो कांग्रेस कैसे इसे छोड़ती। वैसे भी राजनीति में लाशों पर सियासत की पुरानी रीत रही है। ये रीत किसी खास राजनीतिक दल की नहीं बल्कि ये निर्भर करती है कि सत्ता में कौन है और विपक्ष में कौन ?
महाघोटाले का तमगा हासिल कर चुके व्यापम में किस की शह पर धड़ल्ले से फर्जीवाड़ा हुआ ये तो जांच का विषय है। लेकिन सियासत, जांच रिपोर्ट का कहां इंतजार करती है। लिहाजा शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे के साथ ही इस महाघोटाले की सीबीआई जांच की मांग उठने लगी। आरोप ये कि एसआईटी पर किसी को भरोसा नहीं है और एसआईटी राज्य सरकार के इशारे पर काम कर रही है।
देर से जागे शिवराज सिंह चौहान के पास विपक्ष के हमलों से बचने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था लिहाजा मामले की जांच हाईकोर्ट औऱ सुप्रीम कोर्ट के रास्ते सीबीआई के पास पहुंच चुकी है। सीबीआई ने मामले की जांच शुरु तो कर दी है, लेकिन सवाल ये उठता है कि सुप्रीम कोर्ट से तोते की संज्ञा पा चुकी सीबीआई की जांच पर भरोसा किया जा सकता है ?
ये सवाल उठना इसलिए भी लाजिमी है क्योंकि सीबीआई पर केन्द्र सरकार के दबाव में काम करने के आरोप आज के नहीं बरसों पुराने हैं। ये आरोप कितने सही हैं, कहा नहीं जा सकता लेकिन इन आरोपों के चलते सीबीआई की विश्वसनीयता हमेशा सवालों के घेरे में रही है।
केन्द्र में यूपीए सरकार थी तो विपक्षी दल सरकार पर सीबीआई को अपने सियासी फायदे के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाते रहे हैं। अब एनडीए सरकार है तो सत्ता से विपक्ष में आई पार्टियां भी इस सुर में बात करने लगी हैं।
अगर दो साल, पांच साल, दस साल में सीबीआई व्यापम घोटाले की जांच पूरी कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचती है तो क्या गारंटी है कि सीबीआई पर फिर सवाल नहीं उठाए जाएंगे ? जाहिर है मामले की सीबीआई जांच की मांग करने वाले लोग ही उस वक्त उनके मन माफिक जांच रिपोर्ट न आने पर सीबीआई की विश्वसनीयता पर फिर से सवाल खड़े करेंगे।
ये होता आया है और पूरी उम्मीद भी है कि ये फिर से होगा, लेकिन इसके बाद भी किसी भी मामले की निष्पक्ष जांच के लिए नाम सिर्फ सीबीआई का ही लिया जाता है। साथ ही सीबीआई पर केन्द्र सरकार के ईशारे पर काम करने का भी आरोप भी लगाया जाता है। राजनीतिक दलों की ये दोगुली भाषा अपनी समझ से तो बाहर है।
बहरहाल हम तो यही उम्मीद करते हैं कि विश्वसनीयता के संकट से जूझ रही सीबीआई व्यापम घोटालों की एक-एक परत को पूरी निष्पक्षता से खोलेगी और इससे जुड़े लोगों की मौत के राज पर से पर्दा उठेगा। ताकि खूनी व्यापम से सने हाथों के पीछे के असली चेहरे बेनकाब हों।


deepaktiwari555@gmail.com