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शनिवार, 28 जून 2014

पंचशील, मोदी सरकार और गुस्ताख चीन

उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पड़ोसी देश चीन के साथ पंचशील समझौते की 60वीं वर्षगांठ मनाने चीन के दौरे पर हैं, लेकिन चीन अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अरुणाचल प्रदेश के साथ ही जम्मू कश्मीर के एक बड़े हिस्से को अपने नए नक्शे में दिखाकर चीन ने साबित कर दिया है कि वह सुधरने वाला नहीं है। चंद दिन पहले ही चीन का एक हेलिकॉप्टर उत्तराखंड के जोशीमठ में भारतीय सीमा के घुस आया था। दिल्ली में काबिज मोदी सरकार भले ही बीजिंग की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रही हो लेकिन चीन को लगता है, ये रास नहीं आ रहा है। वैसे देखा जाए तो इसमें चीन का कोई दोष नहीं है। ये तो चीन की फितरत में ही है, बस हमारी सरकार ही इसे नहीं समझ पाती। नतीजा चीन एक के बाद एक गुस्ताखी करता है और हमारी सरकार उसे नजरअंदाज करती रही है। यूपीए सरकार के वक्त भी यही हुआ था और अब दिल्ली में नई सरकार गठन के बाद भी तो यही हो रहा है। चीन की गुस्ताखियों पर हमारी सरकार का एक बयान आ जाता है, जिसमें वे इस पर कड़ी आपत्ति जताने की बात करते हुए चीन से बात करने की बात करते हैं, लेकिन चीन पर इसका कोई असर नहीं होता है।
ये सवाल इस वक्त इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि चीन के साथ पंचशील समझौते को 60 वर्ष पूरे हो चुके हैं और हमारे उपराष्ट्रपति इस 60वीं वर्षगांठ के अवसर पर चीन दौरे पर हैं। दरअसल पंचशील समझौते पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू  और उनके चीनी समकक्ष चाऊ एन लाई ने 29 अप्रेल 1954 को दस्तखत किए थे। यह समझौता मुख्य रूप से भारत और तिब्बत के व्यापारिक संबंधों पर केन्द्रित है, लेकिन इसे इसके पांच सिद्धांतों की वजह से जाना जाता है।
ये सिद्धांत हैं –
1 एक - दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना
2 एक – दूसरे के विरूद्ध आक्रमक कार्रवाई न करना
3 एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना
4 समानता और परस्पर लाभ की नीती का पालन करना और
5 शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना
  
इस समझौते के तहत भारत ने तिब्बत को चीन का एक क्षेत्र स्वीकार कर लिया। इस तरह उस समय इस संधि ने भारत और चीन के संबंधों के तनाव को काफ़ी हद तक दूर कर दिया था। भारत को 1904 की ऐंग्लो तिबतन संधि के तहत तिब्बत के संबंध में जो अधिकार मिले थे भारत ने वे सारे इस संधि के बाद छोड़ दिए, हालांकि बाद में ये भी सवाल उठे कि इसके एवज में भारत ने सीमा संबंधी सारे विवाद निपटा क्यों नहीं लिए। बहरहाल माना जाता है कि इसके पीछे भारत की मंशा भारत की चीन के प्रति मित्रता की भावना थी लेकिन चीन के मन में कुछ और ही था। इस समझौते के आठ साल बाद ही 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे कि उसके लिए पंचशील जैसे समझौतों का कोई मोल नहीं है। इसके बाद भी विस्तारवादी सोच रखने वाले चीन की नजरें हमेशा अपने पड़ोसी देशों की सीमाओं पर लगी रही। भारत के अभिन्न अंग अरुणाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में चीन अपना दावा जताता रहा और आए दिन भारतीय सीमा में घुसपैठ कर भारत को चुनौती देता रहा।
इसके उल्ट भारत एकतरफा पंचशील के सिद्धांतों पर चलता रहा और चीन पंचशील के सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाते हुए अपनी दादागिरी झाड़ता रहा। इसका इससे बड़ा ताजा उदाहरण और क्या हो सकता है कि एक तरफ भारत के उपराष्ट्रपति पंचशील समझौते की 60वीं वर्षगांठ पर चीन दौरे पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात करते हुए आपस के मतभेद दूर करने की बात करते हैं लेकिन चीन अपने नए नक्शे में अरूणाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के बड़े हिस्से पर अपना जावा जताने से बाज नहीं आता।  
बहरहाल अच्छे दिनों के वादे के साथ दिल्ली की सत्ता में मोदी सरकार काबिज हो चुकी है, जिसने देश वासियों से भारत की सीमा में घुसपैठ कर भारत को आंख दिखाने वाले  चीन की दादागिरी खत्म करने का वादा भी किया था, ऐसे में निगाहें मोदी सरकार की तरफ है, देखते हैं देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी अब चीन की दादागिरी कैसे खत्म करते हैं। उम्मीद का पहाड़ तो बहुत बड़ा हैं, देखते हैं इन उम्मीदों पर कितना खरे उतरते हैं हमारे पीएम साहब ?


deepaktiwari555@gmail.com

बुधवार, 25 जून 2014

मोदी सरकार- 30 दिन कितने अच्छे ?

अबकी बार मोदी सरकार का नारा भी साकार हुए एक महीने का वक्त पूरा हो गया। मोदी सरकार के लिए शायद ये एक महीना बहुत तेजी से बीता होगा क्योंकि ये बात मोदी भी अच्छी तरह से जानते हैं कि जो उम्मीदें सत्ता में आने से पहले उन्होंने देशवासियों में जगाई हैं, उन्हें पूरा करना आसान काम तो बिल्कुल भी नहीं है। हालांकि ये उम्मीदें कितनी पूरी होंगी या फिर कभी पूरी ही नहीं होंगी ये एक अलग बात है लेकिन इतना तो तय है कि सब 30 दिन में तो संभव नहीं था। जनता से 60 महीने मांगने वाले मोदी की सरकार का एक महीना पूरा हुआ तो उनसे भी हिसाब किताब मांगे जाना लगा है। रेल किराए और माल भाड़े का बढ़ना और दो – दो रेल हादसे कई सवाल खड़े करने के लिए काफी हैं तो चीनी के दाम बढ़ना और एलपीजी के साथ ही केरोसीन के दाम किस्तों में बढ़ाने की ख़बरें पहले ही महंगाई के बोझ तले दबी जनता को सीधे सीधे बुरे दिनों की ओर ईशारा कर रही हैं।
हालांकि मोदी सरकार इऩ कड़वे फैसलों के लिए सीधे तौर पर इसका दोष पिछली यूपीए सरकार के सिर मढ़ रही है। सरकार का साफ कहना है कि यूपीए सरकार के गलत फैसलों के चलते देश की आर्थिक स्थिति खराब है। इसमें कोई नई बात नहीं है क्योंकि ये हर क्षेत्र का नियम है, फिर ये तो राजनीति है। नया बॉस सारी गलतियों के लिए पिछले बॉस को जिम्मेदार ठहरा देता है, और यही आसानी से अपना पल्ला झाड़ने का सबसे आसान तरीका भी है। मोदी सरकार भी अभी कुछ ऐसी ही स्थिति में है। अपने हर कड़वे फैसले के लिए मोदी पिछली सरकार को दोषी ठहरा रही है फिर चाहे वो रेल किराया व माल भाड़े में ईजाफे के फैसले की बात हो या फिर देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार के और दूसरे फैसले।
सरकार के 30 दिनों में खासकर महंगाई जैसे कड़वे फैसलों के लिए विपक्ष की आलोचना झेल रहे मोदी के लिए इन पर जवाब देना भले ही असहज हो रहा हो लेकिन मोदी सरकार के कुछ फैसले सरकार की एक सधी हुई शुरुआत नजर आती है।
विदेश में जमा काले धन पर एसआईटी का गठन का फैसला हो या फिर फैसलों में तेजी लाने के लिए यूपीए काल के करीब दर्जनभर अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूहों को भंग करना ये ईशारा कर रहे थे कि मोदी सरकार जनता से किए अपने किए वादों को पूरा करने के प्रति गंभीर है। साथ ही सरकारी दफ्तरों में बाबूगिरी पर लगाम कसने की ओर कदम बढ़ाना जनता के लिए फायदेमंद जरूर साबित होगा क्योंकि जनता का पाला इन बाबूओं से ही पड़ता है और उनके काम महीनों-सालों तक लटके रहते हैं। मंत्रियों को अपने काम का रोडमैप बनाने और 100 दिन का एजेंडा तैयार करने के निर्देश देकर खुद उसकी मॉनीटरिंग करना इस ओर तो ईशारा करता है कि सरकार की नीयत काम करने की है, ये अलग बात है कि इसके दूरगामी ही सही, लेकिन परिणाम नजर आएं।
30 दिन में किसी भी सरकार के काम का आकलन करना कहीं से भी तर्क संगत तो नहीं लगता लेकिन हर कोई जानना चाहता है कि मोदी सरकार किस दिशा में आगे बढ़ रही है। क्या वाकई में अच्छे दिन आएंगे ? जो फिलहाल महंगे दिन दिखाई दे रहे हैं! क्या वाकई में सुशासन आएगा? क्या लोगों को महंगाई से निजात मिलेगी ? क्या भारत विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर होगा ? ऐसे तमाम सवालों की लंबी फेरहिस्त है क्योंकि चुनाव से पहले अबकी बार मोदी सरकार का नारा लगाते वक्त और अच्छे दिन लाने का वादा करते वक्त देश की आम जनता से किए वादों की लिस्ट की भी लंबी फेरहिस्त है।
उम्मीद करते हैं कि कुछ कड़वे फैसलों के बाद ही सही देश की जनता के अच्छे दिन आएंगे। वरना मोदी सरकार को ये नहीं भूलना चाहिए कि 59 महीने के बाद अच्छे दिन न सही देश की जनता का दिन तो आएगा ही, फिर जनता तय करेगी कि किसके अच्छे दिन आएंगे और किसके खराब !

deepaktiwari555@gmail.com