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शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

बिहार विस चुनाव : 100+100+40+3= 243

बिहार का चुनाव में इस बार जो ना हो वो कम है, 2014 के आम चुनाव में मोदी की आंधी में बिहार से सूपड़ा साफ होने की कगार पर पहुंचने के बाद नीतीश कुमार की जदयू और लालू प्रसाद यादव की राजद के साथ ही कांग्रेस भी एक मंच पर आ चुकी है। बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर तीनों ही पार्टियों के बीच सीटों का बंटवारा भी हो चुका है। जदयू और राजद 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो कांग्रेस सिर्फ 40 सीटों पर ही मैदान में उतरेगी। चुनाव पूर्व गठबंधन में सीटों का बंटवारा कोई नई बात नहीं है लेकिन जिस तरह बिहार में हो रहा है, वो बिहार की राजनीति के लिए नया जरूर है।
अब इसे हार का डर कहें या फिर खुद पर विश्वास की कमी, बिहार की सबसे लोकप्रिय राजनीतिक दल राजद और जदयू का सिर्फ 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ना हैरान जरूर करता है।
इतना ही नहीं देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का 243 सीटों में से सिर्फ 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारना साफ करता है कि कांग्रेस 2014 के हार के सदमे से अभी तक उबर नहीं पाई है।
ये तीनों वो पार्टियां हैं, जो बिहार पर लंबे समय तक राज कर चुकी हैं। बिहार की जनता का भरोसा पहले भी जीत चुकी हैं, लेकिन 2014 के आम चुनाव के बाद से कथित तौर पर सांप्रदायिक ताकतों को राकने का नारा बुलंद करके अब इन तीनों ही दलों ने हाथ मिलाने में देर नहीं की।
जाहिर है अपने दम पर बिहार का फतह करना का भरोसा इन पार्टी के नेताओं के पास नहीं रहा, ऐसे में अपने धुर विरोधियों से हाथ मिलाकर लड़ने में ही इन्होंने अपनी भलाई समझी, ताकि 2014 जैसी स्थिति से बचा जा सके।
वहीं बिहार में 2014 लोकसभा चुनाव की तस्वीर फिर दोहराने का सपना देख रही भाजपा के लिए भी बिहार फतह करना आसान नहीं होगा, वो भी ऐसे वक्त पर जब एक साल पूरा कर चुकी भाजपी नीत एनडीए सरकार से धीरे-धीरे लोगों का मोह भंग होने लगा है।
राजद, जदयू और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से निश्चित तौर पर भाजपा के सामने बिहार में चुनौती कठिन हो गई है। जाहिर है तीनों ही पार्टियां अपने अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में ही फोकस कर मिलकर चुनाव लड़ेंगी तो उनको इसका फायदा ही मिलेगा। लेकिन ये फायदा किस हद तक मिलेगा और कितनी सीटों पर मिलेगा ये तो चुनाव परिणाम ही तय करेंगे।
वैसे भी वक्त अब बदल चुका है, जनता सोच समझ कर अपने मताधिकार का प्रयोग करती है। ऐसे में जदयू, राजद और कांग्रेस की ये दोस्ती जनता को कितना लुभा पाएगी और मोदी का जादू कितना सिर चढ़कर बोलेगा या नहीं बोलेगा, ये कहना अभी जल्दबाजी होगी।
फिलहाल तो बिहार में डीएनए की चर्चा और पार्टियों के नामकरण का दौर शुरु हो चुका है। मतदान तक न जाने किस किस की किस किस चीज की चर्चा अभी और होगी, ये तो सत्ता के लिए किसी भी हद तक जाने वाले सियासतदान ही बता सकते हैं। फिर जल्दी क्या है मजा लिजिए बिहार की सियासी जंग का !

deepaktiwari555@gmail.com

रविवार, 9 अगस्त 2015

बिहार चुनाव- सत्ता के लिए कुछ भी करेंगे !

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजद और जदयू के हाथ मिलाने की कहानी ये बताने के लिए काफी थी कि लालू प्रसाद यादव और नीतिश कुमार के सामने अगामी विधानसभा चुनाव में अपना राजनीतिक वजूद बचाए रखने का संकट नजर आने लगा है। लेकिन इस बीच तस्वीर बदली मोदी लहर का असर हवा होता नजर आया। लिहाजा बिहार की जिस चुनावी जंग में कुछ महीने पहले भाजपा का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा था, वहां अब मुकाबला लगभग बराबरी पर आकर अटक गया गया है।
राजद और जदयू के सामने एक और संकट था कि हाथ मिलाने के बाद किस चेहरे पर दांव खेला जाए। नीतीश कुमार का नाम मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में घोषित हुआ तो ना चाहते हुए भी लालू के मुंह से निकल पड़ा कि मोदी रथ रोकने के लिए वे जहर का प्याला तक पीने को तैयार हैं। जाहिर है ईशारा अपने धुर विरोधी नीतिश कुमार की तरफ था। लेकिन सवाल राजनीतिक वजूद को बचाए रखने का था, लिहाजा दोनों न चाहते हुए भी साथ- साथ हैं।
अब जबकि बिहार में अघोषित तौर पर चुनावी बिगुल बज चुका है तो आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरुआत से ही अपने चरम पर है। नीतीश कुमार के डीएनए पर सवाल उठाकर मोदी इसकी शुरुआत कर चुके थे। ऐसे में तिलमिलाए नीतीश कुमार एंड कंपनी इसे बिहारियों का अपमान बताकर अब इसे मुद्दा बनाकर मोदी को घेरने की तैयारी में लगे हुए हैं।
गया में तो नरेन्द्र मोदी के मुंह से निकला एक  एक शब्द नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के दिल में तीर की तरह चुभा होगा।
जदयू और राजद के नामकरण की बात हो या जहर के प्याले की बात ! बिहार में जंगलराज की बात हो या फिर लालू की जेल यात्रा का जिक्र ! बिहार को बीमारू राज्य कहने की बात हो या फिर जंगलराज पार्ट टू की बात। मोदी ने गया में भाजपा के लिए माहौल तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
ट्विटर वार से चुनावी रैली तक कोई भी एक दूसरे को घेरने का एक भी मौका जाया नहीं होने दे रहा है। नीतीश कमार मोदी सरकार को ट्विर सरकार का तमगा दे रहे हैं तो कभी अपराधियों को टिकट न देने का चैलेंज। मोदी ने जदयू का जनता का दमन और उत्पीड़न का तमगा दिया तो नीतीश बीजेपी को "बड़का झुट्ठा पार्टी" कहने से पीछे नहीं हटे। तिलमिलाए लालू ने तो अजीबोगरीब सवाल पूछ लिया कि कभी पीएम मोदी ने अपने पूर्वजों का पिंडदान किया है ? लालू यहीं नहीं रूके, लालू ने तो पीएम मोदी के मानसिक स्थिति पर ही सवाल उठा दिया!  
मकसद सबका सिर्फ एक ही है, कैसे भी जनमत को अपने पक्ष में किया जाए। हालांकि बिहार चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी नहीं हुआ है लेकिन उससे पहले ही बिहार की चुनावी जंग रोचक हो चली है।
वैसे भी अब चुनौती लालू और नीतीश के सामने ही नहीं है बल्कि भाजपा के सामने भी है। गया में मोदी के चुनावी शंखनाद के बाद ये साफ भी हो चुका है कि भाजपा बिहार में किसी भी  सूरत में भगवा लहराकर अपने विरोधियों को ये संदेश देना चाहती है कि केन्द्र की मोदी सरकार से जनता का अभी मोहभंग नहीं हुआ है। लेकिन मोदी इस बात को बेहतर समझते होंगे कि राजनीति की हवा का रुख बदलते देर नहीं लगती।
बहरहाल बिहार की जनता किसे चुनेगी ये तो चुनाव परिणाम के बाद ही सामने आएगा लेकिन इतना तो तय है कि बिहार की चुनावी जंग इस बार पहले से कहीं ज्यादा रोचक होने वाली है।