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शनिवार, 2 जून 2012

साढ़े पांच रूपये महंगा हुआ पेट्रोल !

साढ़े पांच रूपये महंगा हुआ पेट्रोल !

23 मई को पेट्रोल की कीमत में साढ़े सात रूपये का ईजाफा होता है...तो खूब हो हल्ला मचता है...मानव स्वभाव भी है कि किसी भी चीज का असर हमारे दिमाग में 24 से 48 घंटे तक रहता है। यहां भी ऐसा ही हुआ था...अगले ही दिन राजनीतिक दलों के साथ आम लोग भी सड़कों में उतर आए और पेट्रोल की कीमतों में हुई साढ़े सात रूपये की बेतहाशा बढ़ोतरी को वापस लेने की मांग उठी...लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया...ये गुस्सा कम होता गया। 31 मई को एनडीए के भारत बंद ने एक बार फिर से लोगों को इसकी याद दिला दी। इसकी याद भी उसके अगले ही दिन धुंधली पड़ गयी...ऐसे में पेट्रोल की कीमतों पर भारी दबाव झेल रही केन्द्र सरकार के दबाव का असर कहें या फिर कच्चे तेल की कीमतों में कमी होना...तेल कंपनियों ने पेट्रोल 2 रूपये सस्ता करने का ऐलान कर दिया। साढ़े सात रूपये की बढ़ोतरी के बाद दो रूपये की कमी ऊंट के मुंह में जीरे के समान है...लेकिन लोग ये सोच कर खुश हैं कि पेट्रोल सस्ता हो गया है। ये तेल कंपनियों का सोचा समझा एजेंडा था कि पहले पेट्रेल की कीमत में जरूरत से ज्यादा ईजाफा कर दो और फिर उसमें मामूली कटौती कर दो या फिर वाकई में कच्चे तेल की कीमत का असर है...ये तो बहस का मुद्दा है। लेकिन अगर वाकई में दो रूपये की कटौती कच्चे तेल की कीमतों में कमी का असर है तो इससे पहले जब कच्चे तेल की कीमत में आयी थी...तो तब तेल कंपनियों ने क्यों नहीं पेट्रोल की कीमतें कम की थी। इसका सीधा मतलब ये निकलता है कि पहले कीमतों में मोटा ईजाफा कर दो...औऱ जब इस पर लोग हो हल्ला मचाने लगे तो मलहम के नाम पर अपने ऐजेंडे के तहत कीमतों में मामूली कटौती कर दो...ताकि लोग बढ़ी हुई कीमत को आसानी स्वीकार कर लें...औऱ इस पर हो हल्ला न मचे...जो कि इस बार तेल कंपनियों ने किया है। बहरहाल सरकार भले ही इस सब का दोष तेल कंपनियों के सिर मढ़ रही हो...लेकिन पर्दे की पीछे की सच्चाई किसी से छिपी नहीं है। ऐसा नहीं है कि पेट्रोल की कीमत में बढ़ोतरी के कुछ दिन उसमें कमी करने का ये खेल पहली बार खेला गया है...जब – जब पेट्रोल की कीमतें बढ़ी हैं...तब - तब ये सब होता आया है...पहले और इस बार में फर्क सिर्फ इतना है कि इससे पहले पेट्रोल के दामों में ईजाफा इस हद तक कभी नहीं हुआ था। दो रूपये की कटौती होने के बाद पेट्रोल साढ़े पांच रूपये अभी भी महंगा है...जो भी बीते कई सालों के हिसाब से अच्छी खासी बढ़ोतरी है। लोग हर बार मान जाते हैं...और चीजों को भूल जाते हैं...शायद यही चीज तेल कंपनियों और हमारी सरकार की ताकत बन जाती है...और महंगाई बढ़ने का सिलसिला कभी नहीं रूकता। हालांकि समय – समय पर हुए चुनाव में जनता ने ऐसे लोगों को अपनी ताकत का एहसास कर उन्हें सत्ता से बेदखल कर आईना भी दिखाया है...लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या सरकार में बैठे लोगों की ये जिम्मेदारी नहीं बनती कि आमजन से जुड़े मुद्दों पर राजनीति से ऊपर उठकर काम किया जाए।








दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com

शुक्रवार, 1 जून 2012

बहगुणा का गुणा - भाग


  बहगुणा का गुणा - भाग

सियासत की गुणा भाग कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए विजय बहुगुणा ये अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी असली अग्निपरीक्षा यानि कि उपचुनाव जीतना अभी बाकी है...तभी वे राजनीतिक औऱ संवैधानिक रूप से इस कुर्सी पर बने रह पाएंगे। ऐसे में उपचुनाव से पहले बहुगुणा उपचुनाव में अपनी विजय सुनिश्चित करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसकी बानगी पहले हरिद्वार में और उसके बाद विधानसभा के बजट सत्र में देखने को मिली जब बहुगुणा ने भीषण गर्मी में बिजली कटौती की मार झेल रहे प्रदेशवासियों को बिजली कटौती से निजात दिलाने का ऐलान किया था...और 24 घंटे बिजली सप्लाई की बात कही थी...लेकिन अगले ही दिन मुख्यमंत्री की इस घोषणा की हवा तब निकल गई जब राजधानी में ही तीन घंटे तक बत्ती गुल हो गयी। ये पहली बार नहीं हुआ...इसके बाद लगातार बत्ती गुल होने का सिलसिला जारी है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब प्रदेश की राजधानी में मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद बिजली का ये हाल है तो प्रदेश के दूसरे हिस्सों में हालात क्या होंगे। यूपीसीएल की वेबसाइट कहती है कि हरिद्वार औऱ ऊधम सिंह नगर के ग्रामीण इलाकों में 6 घंटा 10 मिनट तक बिजली कटौती हो रही है तो कोटद्वार, नैनीताल और मसूरी को छोड़कर प्रदेश के सभी पहाड़ी इलाकों में दो – दो घंटे तक बिजली कटौती हो रही है। ये हाल तब है जब कि ऊर्जा विभाग खुद मुख्यमंत्री के पास है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या मुख्यमंत्री को प्रदेश में ऊर्जा की वास्तविक आपूर्ति और खपत के बारे में जानकारी नहीं है...या फिर सिर्फ वाहवाही लूटने के लिए बहुगुणा साहब खुले मंचों से ये ऐसी घोषणा कर रहे हैं। यूपीसीएल की वेबसाईट ये भी कहती है कि प्रदेश में ऊर्जा की उपलब्धता 33.63 मिलियन यूनिट है जब्कि खपत 35.53 मिलियन यूनिट है..औऱ वर्तमान में प्रदेश में 1.90 मिलियन यूनिट की रोस्टिंग यानि की कटौती की जा रही है। मुख्यमंत्री के जेहन में भले ही उपचुनाव का जिन्न घूम रहा हो...और बहुगुणा किसी भी सूरत में उपचुनाव में विजय हासिल करना चाहते हों...लेकिन भीषण गर्मी में बिजली की गुणा – भाग मुख्यमंत्री के लिए उपचुनाव विजय की डगर मुश्किल बना सकती है। शायद उत्तराखंड के नए नवेले सीएम साहब को ये नहीं पता कि उनके श्रीमुख से निकला एक – एक शब्द जहां किरण मंडल मामले में पहले से ही खार खाए बैठी भाजपा को उपचुनाव के लिए नया मुद्दा दे रहा है वहीं बहुगुणा की उपचुनाव विजय की उम्मीदों पर भी ग्रहण लगा सकता है।












दीपक तिवारी
deepaktiwari555@gmail.com