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शुक्रवार, 4 जुलाई 2014

शाह को Z Plus सुरक्षा, वाह !

सुना है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबसे खासमखास और आम चुनाव में यूपी में भाजपा के खेवनहार अमित शाह को जेड प्लस सुरक्षा दी जाने वाली है। इसके पीछे कहा ये जा रहा है कि अमित शाह की जान को खतरा है, इसलिए उन्हें ये सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है। जबकि इसके साथ ही कई वीवीआईपी नेताओं को वर्तमान में दी जा रही जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा पर फिर से विचार किया जा रहा है और जल्द ही इस पर गृह मंत्रालय फैसला ले सकता है यानि कि कई वीवीआईपी नेताओं की सुरक्षा हटाई जा सकती है। दूसरी बात तो समझ में आई कि कई वीवीआईपी को दी जा रही जेड प्लस सुरक्षा की समीक्षा के बाद उसे वापस लिया जा सकता है लेकिन अमित शाह को जेड प्लस सुरक्षा दिए जाने की बात गले नहीं उतर रही है।
पीएम की कुर्सी संभालने के साथ ही अपने मंत्रियों के साथ ही दूसरे लोगों को खर्चों में कटौती का पाठ पढ़ाने वाले पीएम नरेन्द्र मोदी के सबसे करीबी अमित शाह को जेड श्रेणी सुरक्षा दिया जाने का फैसला कई सवाल खड़े करता है। साथ ही मोदी की कथनी और करनी के फर्क को भी झलकाता है। जाहिर है शाह की सुरक्षा को लेकर गृह मंत्रालय के फैसले की जानकारी मोदी को भी होगी लेकिन इसके बाद भी अपने खासमखास को जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा दिए जाने पर मोदी की रजामंदी, शाह के मोदी प्रेम की ही एक झलक है।
आखिर हो भी क्यों न, आखिर दिल्ली का सुल्तान बनाने की राह में सबसे बड़े रोड़े उत्तर प्रदेश को अमित शाह ने मोदी के लिए फतह जो किया था। फतह भी ऐसी कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने दम पर पहली बार 282 सीटों के साथ बहुमत हासिल कर लिया। वैसे भी मोदी के पीएम रहते अमित शाह ने अगर सत्ता सुख हासिल नहीं किया तो फिर और कौन करेगा ?
इस फैसले पर सवाल सिर्फ इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि एक तरफ मोदी खुद खर्चों में कटौती की बात कर रहे हैं, दिखावे से दूर रहने का पाठ सबको पढ़ा रहे हैं, इसके लिए जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त लोगों की सुरक्षा की समीक्षा कर उसे वापस लेने की तैयारी सरकार कर रही है, दूसरी तरफ अमित शाह को जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा देने की तैयारी की जा रही है। बहरहाल बात अमित शाह की है, इसलिए कोई कुछ नहीं बोलेगा,  कहीं पीएम साहब नाराज हो गए तो अच्छे दिन कहां से आएंगे ?


deepaktiwari555@gmail.com

बुधवार, 2 जुलाई 2014

महंगाई, मोदी और अच्छे दिन !

जिस महंगाई का जाप कर यूपीए सरकार को पानी पी पी कर कोसने वाली भाजपा ने जनता का विश्वास इस विश्वास के साथ हासिल किया कि सत्ता में आने पर वे महंगाई को पलक झपकते ही छूमंतर कर देंगे, वही महंगाई अब मोदी सरकार के गले की फांस बन गई है। पेट्रोल, डीजल, गैस और आलू – प्याज के साथ खाद्य सामग्री के एक के बाद एक दाम आसमान पर चढ़ने से मोदी सरकार से जनता का विश्वास डगमगाने सा लगा है। सरकार भले ही इसके पीछे अलग अलग कारण गिनाते हुए पिछली यूपीए सरकार को कोसते हुए देश की जनता को अभी भी अच्छे दिन आने का भरोसा दिला रही हो लेकिन बढ़ती महंगाई से पार पाना फिलहाल तो सरकार के बूते की बात नहीं दिखाई दे रही है।
पेट्रोल और डीजल पर इराक संकट का हवाला देकर सरकार भले ही बचने का रास्ता खोज रही हो लेकिन आलू और प्याज जैसी अहम चीजों की देश में पर्याप्त उपलब्धता होने के बाद भी इनके दाम तेजी से चढ़ना न सिर्फ हैरान करता है बल्कि सरकार पर भी कई सवाल खड़े करता है। इससे भी ज्यादा हैरानी तब होती है जब सरकार जमाखोरों के खिलाफ कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं कर पा रही है। कई राज्यों में जमाखोरों के खिलाफ ताबड़तोड़ छापामार कार्रवाई के बाद भी खासकर प्याज की कीमतें जमीन पर नहीं आ पा रही हैं। राज्य सरकारें असल जमाखोरों तक या तो पहुंच नहीं पा रही है या फिर पहुंचना नहीं चाहती। जाहिर है इस खेल में जनाखोर ही सिर्फ अकेले खिलाड़ी नहीं है बल्कि राजनेताओं के साथ ही अफसर भी इसमें किसी न किसी रूप में भागीदार हैं...! वरना ऐसे कैसे संभव है कि सरकार के पास हर जिले- तहसील में पूरा प्रशासनिक तंत्र होने के बाद भी जमाखरों मौज काट रहे हैं और गरीब जनता आलू-प्याज को तरस रही है। जाहिर है कहीं तो गड़बड़ है..!
हालांकि महंगाई पर चिंतित केन्द्र सरकार ने कैबिनेट की बैठक में अहम फैसला लेते हुए आलू और प्याज को एक साल के लिए एपीएमसी एक्ट से बाहर रखने का ऐलान किया है। जिसके बाद किसान मंडी से बंधा नहीं रहेगा और किसा आलू और प्याज को कहीं भी बेच सकेंगे। लेकिन सवाल वही कायम है कि क्या इससे आलू और प्याज के बढ़ते दामों पर लगाम कसेगी और आम जनता को राहत मिलेगी।
उम्मीद तो यही है, महंगाई डायन जनता का पीछा छोड़ेगी, लेकिन ये उम्मीद इतनी बार टूट चुकी है कि अब इस उम्मीद से भी कोई उम्मीद करना बेमानी लगता है। लेकिन आम जनता कर भी क्या सकती है, सिवाए अच्छे दिनों का इंतजार करने के, जो फिलहाल तो आते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं !  


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मंगलवार, 1 जुलाई 2014

दीदीराज में दादागिरी !

दीदी के राज में उनके लोग दादागिरी करें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए, पश्चिम बंगाल के टीएमसी सांसद तापस पाल की बदजुबानी तो दीदीराज की असली कहानी बयां कर रही है। क्या कहा- अगर टीएमसी के कार्यकर्ताओं को छुआ भी तो मैं अपने लड़के भेजकर सीपीएम की महिला कार्यकर्ताओं को बलात्कार करवा दूंगा। ये शब्द हैं एक जनप्रतिनिधि के, जिसे जनता ने इसलिए चुना है कि वो उनके हक की आवाज संसद में उठाए और उनकी परेशानियों को दूर करने के लिए प्रयत्न करे लेकिन सांसद साहब तो किसी और ही काम में मशगूल हैं, उनके लिए अपने विरोधी पार्टी की महिलाओं के लिए कोई ईज्जत नहीं है, और तो और वे उनकी इज्जत को सरेआम तार-तार करने की धमकी देते नजर आते हैं।
तापस पाल दीदीराज में महिलाओं की इज्जत सरे बाजार तार तार करने की धमकी देते हैं लेकिन पार्टी सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चुप हैं। पार्टी के नेता कहते हैं कि दीदी आहत हैं, लेकिन तापस पाल पर कोई फैसला लेने के लिए वे 48 घंटों का वक्त मांगते हैं। महिला मुख्यमंत्री के राज में महिलाओं की इज्जत से खेलने की बात सरेआम की जाती है, महिलाओं को धमकी दी जाती है लेकिन मुख्यमंत्री खामोश हैं। महिला चाहे वह विरोधी पार्टी की ही क्यों न हो, क्या सत्ताधारी दल के नेताओं को उनके खिलाफ कुछ भी बोलने का, कुछ भी करने का अधिकार मिल जाता है..? जाहिर है ये अधिकार किसी को नहीं है, ऐसे में महिला मुख्यमंत्री के होते हुए ये सब उनकी ही पार्टी के एक जनप्रतिनिधि द्वारा कहना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।
हैरानी तो तब होती है जब टीएमसी के वरिष्ठ नेता और टीएमसी सरकार में शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी कहते हैं कि यह देखना चाहिए की सांसद तापस पाल ने किन परिस्थितियों में ऐसी बात कही होगी, विपक्ष ने जरूर ही ऐसी स्थिति पैदा की होगी कि तापस पाल ने ऐसी प्रतिक्रिया दी। गजब करते हो चटर्जी साहब, इसके लिए भी आप विपक्ष को ही जिम्मेदार ठहराने से बाज नहीं आ रहे हैं। ठीक है विपक्ष की कोई बात माना तापस पाल को चुभ गई होगी, लेकिन इससे तापस पाल को जो कि एक सांसद हैं, उन्हें महिलाओं के खिलाफ कुछ भी बोलने की आजादी मिल गई। बंगाल में टीएमसी और सीपीएम के बीच टकराव किसी से छिपा नहीं है, आए दिन खूनी झड़प होने की ख़बरें भी सामान्य सी बात है लेकिन एक जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधि से ये उम्मीद तो नहीं की जा सकती कि वो महिलाओं की सुरक्षा की बात करने की बजाए सरेआम ये धमकी दे कि वो अपने लड़कों से महिलाओं का रेप करवा देगा। शर्म करो तापस पाल, शर्म करो सांसद का बचाव करने वाले शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी और शर्म करो पश्चिम बंगाल की महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जो अब तक तापस पाल के मुद्दे पर खामोश बैठी हुई है। महिलाओं के अपमान को महिला मुख्यमंत्री ही बर्दाश्त कर रही हो तो फिर और किसी से क्या उम्मीद की जा सकती है। उम्मीद करते हैं सांसद तापस पाल के बयान का संज्ञान लेते हुए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन पाल के खिलाफ कार्रवाई करेंगी और ऐसे सांसद को संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराएंगी क्योंकि ऐसे जनप्रतिनिधि को देश की संसद में कदम रखने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए जो सरेआम महिलाओं की आबरू को तार तार करने की बात करता हो।


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सोमवार, 30 जून 2014

संकट में राष्ट्रीय दल !

सपने तो प्रधानमंत्री बनने तक के थे लेकिन अब अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। ख़बर तो यही है कि जद यू, राजद के बाद अब शरद पवार की एनसीपी, मायावती की बसपा और सीपीआई से राष्ट्रीय दल की मान्यता छिन सकती है। 2014 के आम चुनाव में राष्ट्रीय दल की शर्तों को पूरा न कर पाने पर अब चुनाव आयोग ने तीनों पार्टियों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है, जिस पर चुनाव आयोग जल्द फैसला ले सकता है।
आम चुनाव से पहले का वक्त याद कीजिए, एनसीपी के शरद पवार और बसपा सुप्रीमो मायावती के सपने खूब उड़ान भर रहे थे। इन्हें उम्मीद थी कि ये किंगमेकर बनने की स्थिति में होंगे और सीटों की संख्या ठीक ठाक होने पर इनके हाथ पीएम की कुर्सी भी लग सकती है, लेकिन मोदी की सुनामी में न सिर्फ इनके पीएम बनने के सपने बिखर गए बल्कि अब इनकी पार्टी के कद पर राष्ट्रीय से क्षेत्रिय होने के खतरा मंडराने लगा है।
चुनाव आयोग कि शर्तों के मुताबिक...
-राष्ट्रीय दल की मान्यता के लिए किसी भी राष्ट्रीय दल को चार राज्यों में कम से कम 6 फीसदी वोट मिले हों।
-उस राजनीतिक दल को तीन अलग-अलग राज्‍यों की लोकसभा (11 सीटों) की 2 प्रतिशत सीटें प्राप्‍त हुई हों।
-लोकसभा या विधानसभा के किसी आम चुनाव में उस राजनीतिक दल को 4 राज्‍यों के कुल मतों में से 6 प्रतिशत मत प्राप्‍त हुए हों और उसने लोकसभा की 4 सीटें जीती हों।
-किसी राजनीतिक दल को 4 या अधिक राज्‍यों में राज्‍य स्‍तरीय दल के रूप में मान्‍यता प्राप्‍त हो।
जाहिर है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिन जाएगा तो इन पार्टियों की पहचान इनका चुनाव चिन्ह भी उन राज्यों तक ही सीमित रह जाएगा, जिन राज्यों में इन पार्टियों को राज्य स्तरीय दर्जा प्राप्त है। न फिर देशभर में शरद पवार की घड़ी चलेगी और न ही मायावती का मदमस्त हाथी देश भर में दौड़ लगा पाएगा। ऐसा ही कुछ हाल सीपीआई का भी होगा।
देश में पावर में आने का सपना देखने वाले पवार और हाथी की शाही सवारी करने का ख्वाब देखने वाली मायवती को 2014 के आम चुनाव में देश की जनता ने सीधे जमीन पर ला पटका है। यही हाल पीएम का ख्वाब संजोने वाले बिहार की राजनीति के महारथी लालू प्रसाद यादव का 2010 में भी हुआ था, जब चुनाव आयोग ने इसी तरह लालू की पार्टी राजद की मान्यता समाप्त कर दी थी। अब अगर एनीसीपी, बसपा और सीपीआई की मान्यता छिनती है तो देश में कुल तीन ही राष्ट्रीय दल रह जाएंगे, भाजपा, कांग्रेस और सीपीएम। हालांकि देश में राजनीतिक दल की वर्तमान स्थिति के हिसाब से 6 राष्ट्रीय दल हैं, जबकि 47 राज्य स्तरीय दल और 1563 गैर पंजीकृत दल हैं।  
एनसीपी, बसपा और सीपीआई से राष्ट्रीय दल की मान्यता छिनने की स्थिति में इन पार्टियों के नेताओं का कद भी क्षेत्रीय ही होकर रह जाएगा। जाहिर है ये इन राजनीतिक दलों के लिए बड़ा झटका है जो अब तक देशभर में सिर्फ एक ही सिंबल पर चुनाव लड़ते आए थे। ऐसे में न सिर्फ देशभर में इनकी साख दांव पर लग गई है बल्कि इनके सामने अपने वजूद को बचाने का भी संकट है। ये फैसला चुनाव आयोग जरूर कर रहा है लेकिन इसकी पटकथा जनता ने इन पार्टियों के प्रत्याशियों को नकार कर आम चुनाव के दौरान ही लिख दी थी। चुनाव के नतीजों में ये साफ दिखाई दिया था, जब इन राष्ट्रीय दलों को राष्ट्रीय दल कहने में भी विचार करना पड़ रहा था। मायावती का हाथी एक कदम भी नहीं चल पाया तो शरद पवार की घड़ी की सुई 6 बजे पर रुक गई जबकि सीपीआई महज एक सीट पर सिमट गई। (पढ़ें -  अच्छे दिन आने वाले हैं..! )
दरअसल ये वक्त इन तीनों पार्टियों के लिए विचार करने का भी है। आखिर क्यों देशभर के अधिकतर राज्यों में ठीक ठाक प्रभाव रखने वाले इन दलों के सामने अब अपने अस्तित्व को बचाए रखने का संकट खड़ा हो गया है। बहरहाल जनता के मिजाज को कौन समझ पाया है, कांग्रेस ने ही कहां सोचा होगा कि वो अपने इतिहास की अब तक की सबसे कम 44 सीटों पर आकर सिमट जाएगी तो भाजपा ने भी कहां सोचा था कि वो अपने दम पर 282 सीटों के साथ बहुमत हासिल कर लेगी।


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