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गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

आईपीएल- बाप बड़ा न भैया...सबसे बड़ा रूपैया..!


एक कहावत है- बाप बड़ा न भैया...सबसे बड़ा रुपैया। सुनी तो आपने भी होगी और आज के समय में जब हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा है तो ये कहावत कई मौकों पर चरितार्थ भी होती दिखाई देती है। आईपीएल में तो ये कहावत खूब चरितार्थ हो रही है। आईपीएल मैच के दौरान अलग – अलग फ्रेंचायजी मालिक की टीमों में खेल रहे एक ही देश के खिलाड़ी मैदान में ही एक दूसरे से भिड़ते नजर आ रहे हैं और नौबत गाली – गलौज और हाथापाई तक आ रही है। ये वही खिलाड़ी हैं जो हैं तो एक ही देश के और अंतर्राष्ट्रीय मैचों में एक दूसरे का हौसला बढ़ाते दिखाई देते हैं लेकिन आईपीएल में कहानी कुछ और ही नजर आ रही है।
11 अप्रेल को आईपीएल 6 में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। दुर्भाग्य से आपस में भिड़ने वाले दोनों खिलाड़ी भारत के ही थे और अपनी – अपनी टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। बॉलिवुड में किंग खान के नाम से मशहूर शाहरुख खान की टीम कोलकाता नाईटराइडर्स और उद्योग जगत में किंग ऑफ गुड टाइम्स के नाम से मशहूर विजय माल्या की टीम रॉयल चैलेंजर्स बैंगलौर आमने – सामने थी। मुकाबला कांटे का था। कोलकाता ने पहले बल्लेबाजी करते हुए बंगलौर के सामने जीत के लिए 155 रनों का लक्ष्य रखा। कोलकाता की ओर से कप्तान  गंभीर ने सबसे ज्यादा 59 रन बनाए। बंगलौर के लिए 20 ओवर में 155 का लक्ष्य आसान नहीं था तो बहुत ज्यादा मुश्किल भी नहीं था वो भी तब जब विरोधी टीम में टी-20 के किंग क्रिस गेल मौजूद हों। हुआ भी कुछ ऐसा ही जब मयंक अग्रवाल के रूप में पहला विकेट गिरने के बाद बंगलौर के कप्तान विराट कोहली ने गेल के साथ मिलकर कोलकाता की धज्जियां उड़ानी शुरु कर दी। कोलकाता के कप्तान गंभीर के माथे पर बल साफ दिखाई दे रहे थे तो बंगलौर के कप्तान कोहली कुछ ज्यादा ही जोश में दिखाई दे रहे थे और हर गेंद को बाउंड्री के बाहर पहुंचाने को बेताब दिखाई दे रहे थे। ऐसी ही एक कोशिश में कोहली बालाजी की गेंद में मोर्गन को कैच थमा बैठे। परेशान गंभीर का चेहरा खिल उठा तो कोहली की खीज साफ दिखाई दी। गंभीर और कोहली के बीच इशारों इशारों में शुरु हुई तकरार गाली – गलौज तक पहुंच गयी। साथी खिलाड़ियों ने दोनों को अलग कर स्थिति को संभाला लेकिन तब तक ये शर्मनाक वाक्या घट चुका था। गेल के 50 गेदों में 9 छक्कों की मदद से बनाए धमाकेदार 85 रनों की बदौलत मैच भले ही विराट कोहली की टीम बंगलौर ने जीत लिया हो और गंभीर की टीम कोलकाता को मात मिली हो लेकिन यहां हार हुई तो खेल भावना की जिसकी दोनों ही टीमों के कप्तानों ने मैदान में धज्जियां उड़ा दी और दिखा दिया कि पैसे के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं..!
मैच के बाद भले ही दोनों ने इसे मैदान के अंदर की बात बताकर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की लेकिन ये वाक्या अपने आप में कई सवाल खड़े कर गया..! आईपीएल में टी-20 का रोमांच जरूर है लेकिन विशुद्ध रूप से ये सिर्फ पैसों का खेल है। जिसकी शुरुआत खिलाड़ियों की बिक्री के साथ शुरु होती है। फ्रेंचायजी मालिक अपने पसंदीदा खिलाड़ी पर दिल खोलकर पैसा लुटाते हैं और बदले में खिलाड़ी पर दबाव होता है हर मैच में टीम को जीत दिलाने के साथ ही आईपीएल जिताने का..! जाहिर है जो फ्रेंचायजी मालिक करोड़ों खर्च कर एक-एक खिलाड़ी को खरीद रहा है वो इन खिलाड़ियों से आईपीएल को झोली में लाने की उम्मीद तो पालेगा ही..!
पैसे के इस खेल में खिलाड़ी पर अच्छे प्रदर्शन के साथ ही टीम को जिताने का किस तरह का दबाव रहता है इसका ताजा उदाहरण कोलकाता और बंगलौर के मैच में हुई दोनों टीम के कप्तानों गंभीर और कोहली की शर्मनाक भिड़ंत है। ये शर्मनाक इसलिए है क्योंकि ये दोनों ही खिलाड़ी एक ही देश के हैं और अंतर्राष्ट्रीय मैचों में विरोधियों के खिलाफ एक ही टीम में खेलते हुए एक दूसरे का हौसला बढ़ाते हैं लेकिन पैसे के खेल आईपीएल ने इन्हें एक – दूसरे का दुश्मन बना दिया..!
जाहिर है पैसा खिलाड़ियों के सिर चढ़कर बोल रहा है और इसके लिए वे कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं..! क्या फर्क पड़ता है कि ये अंतर्राष्ट्रीय मैचों में विरोधियों के खिलाफ एक ही देश के लिए एक ही टीम से खेलते हैं..! पैसे के लिए तो ये कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं..!

deepaktiwari555@gmail.com

बुधवार, 10 अप्रैल 2013

1984 दंगे- इंसाफ अभी बाकी है..!


29 साल का वक्त छोटा नहीं होता। 29 साल में लोगों की जिंदगियां बदल जाती है। 29 साल में एक बच्चा व्यसक हो जाता है। वो स्कूल से निकलकर अपने रोजगार में जुट जाता है तो अपनी जीवन संगिनी के साथ एक नये जीवन की शुरुआत कर लेता है। उसकी जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं और वो एक जिम्मेदार व्यक्ति बन जाता है लेकिन 29 सालों में कुछ लोगों के लिए कुछ भी नहीं बदला।
उनके चेहरे पर झुर्रियां जरूर उभर आयीं लेकिन चेहरे की झुर्रियां भी उनके दर्द को छुपा नहीं पायी। 29 साल से इंसाफ की उम्मीद में जीवन का एक – एक पल अपनों को खोने के गम में काटने वाले 1984 के सिख विरोधी दंगों में मारे गए लोगों के परिजनों के चेहरों को देखकर तो ऐसा ही लगता है। दंगो में कांग्रेसी नेता जगदीश टाईटलर की भूमिका की जांच कर रही जिस सीबीआई पर लोगों को भरोसा था कि उनके न्याय की लड़ाई में सीबीआई उनका साथ देगी उसी सीबीआई ने जगदीश टाईटलर को क्लीन चिट देते हुए अदालत में मामले को बंद करने की अर्जी दे दी।
लेकिन अदालत ने न्याय की आस में जिंदा लोगों को निराश नहीं किया और सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करते हुए दोबारा से मामले की जांच के आदेश देते हुए कांग्रेसी नेता टाईटलर के खिलाफ केस चलाने के आदेश दे दिया। लोगों के चेहरे में न्याय की उम्मीद की खुशी जरूर थी लेकिन मन में ये सवाल भी था कि 29 साल बाद फिर से टाईटलर के खिलाफ केस चलेगा तो उन्हें इंसाफ कब मिलेगा..?  कितना और वक्त इंसाफ मिलने में लगेगा..?
सवाल ये भी है कि जिस सीबीआई ने टाईटलर को क्लीन चिट देते हुए अदालत में केस बंद करने की अर्जी दे दी वही सीबीआई अब फिर से जांच करेगी तो कैसे ये जांच निष्पक्ष होगी..?
अदालत के फैसले से ये न्याय व्वस्था पर एक बार फिर से विश्वास तो मजबूत हुआ है लेकिन सवाल भी कई खड़े हुए हैं। जाहिर है सीबीआई ने अपना काम पूरी ईमानदारी से नहीं किया जिस वजह से टाईटलर बचते रहे और आखिरकार कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया..!
1984 में सिख विरोधी दंगों के वक्त टाईटलर की उम्र 40 साल थी। 29 साल बाद जब अदालत ने सीबीआई की अर्जी खारिज करते हुए टाईटलर के खिलाफ दोबारा से केस चलाने का आदेश दिया है तो अब टाईटलर की उम्र 69 वर्ष है। टाईटलर इन 29 वर्षों में कई बार केन्द्रीय मंत्री भी रहे और टाईटलर ने बड़े ही आराम से इस वक्त को काटा लेकिन इसके उल्ट इंसाफ की आस लगाए बैठे दंगों के पीड़ितों के लिए ये 29 वर्ष किसी सजा से कम नहीं थे। अब फिर से सीबीआई मामले की जांच करेगी तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितना और वक्त सीबीआई मामले की दोबारा जांच में लेगी..? हो सकता है शायद तब तक टाईटलर की उम्र 80 से 85 वर्ष हो जाए या ऐसा भी हो सकता है कि इस लंबे वक्त में टाईटलर की स्वाभाविक मौत हो जाए..!
इंसाफ की आस लगाए बैठे पीड़ित जो इन 29 सालों में जैसे तैसे अपनी लड़ाई लड़ते रहेहो सकता है कि वे इंसाफ की आस में वे दम तोड़ दें..!  जगदीश टाईटलर के साथ ही पीड़ितों की उम्र का तकाजा तो कम से कम इसी ओर ईशारा कर रहा है कि शायद ही जीते जी टाईटलर को सजा और पीड़ितों को इंसाफ मिले..!
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रिया के बाद अगर टाईटलर को सजा होती भी है तो क्या वाकई में ये पीड़ितों के साथ इंसाफ होगा..?
टाईटलर के केस के बहाने एक बार फिर से क्या भारतीय अदालतों में सालों से लंबित पड़े उन आधा करोड़ मामलों पर सोचने का वक्त नहीं है कि क्यों न लंबित मामलों के निपटारे के लिए विशेष कदम उठाएं जाएं..? (पढ़ें- चौटाला केस- भ्रष्टाचारियों के लिए सबक)। हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ ही चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने भी इस पर चिंता जाहिर की है लेकिन सवाल फिर उठता है कि क्या ये चिंता सालों से न्याय की आस लगाए बैठे लाखों लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण लेकर आएगी..?

deepaktiwari555@gmail.com