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सोमवार, 27 अगस्त 2012

प्रधानमंत्री जी ये कैसे बोल...खोल दी अपनी ही पोल


प्रधानमंत्री जी ये कैसे बोल...खोल दी अपनी ही पोल

वैसे तो हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह साल में दो ही बार हिंदी में बोलते हैं (अंग्रेजी में भी कभी कभी बोलते हैं) 15 अगस्त और 26 जनवरी को...अभी 15 अगस्त बीते ज्यादा दिन नहीं हुए हैं...लेकिन सोमवार को संसद भवन के बाहर अचानक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कोयला घोटाले पर बोलते हुए देखा वो भी हिंदी का शेर बोलते हुए देखा तो यकीन नहीं हुआ कि 26 जनवरी से पहले इतनी जल्दी मनमोहन सिंह के श्रीमुख से हिंदी में बोल निकलेंगे। खैर प्रधानमंत्री बोले तो सही...लेकिन प्रधानमंत्री शायद ये नहीं समझ पाए कि उनके ये बोल उनकी ही पोल खोल गए। दरअसल कोयला घोटाले पर अभी तक चुप्पी साधे बैठे मनमोहन सिंह ने कुछ इस अंदाज में बयां किए अपने जज्बात...प्रधानमंत्री ने कोयला घोटाले पर कहा कि...'हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी'मौनी बाबा (हाल ही में बाबा रामदेव का दिया मनमोहन सिंह को नाम) के नाम से भी मशहूर हो चुके हमारे प्रधानमंत्री साहब ने खुद इस शेर को बोलकर ये साबित कर दिया कि उन्हें मौनी बाबा क्यों कहा जाता है। इस शेर के साथ ही अपने दिए बयान से भाजपा पर भी कोयला घोटाले के लिए सवाल खडे करने पीएम ने खुद पर ही कई सवाल खडे कर दिए। 1 लाख 86 हजार करोड़ जैसे बड़े कोयले घोटाले पर प्रधानमंत्री ने अपनी चुप्पी का हवाला देकर ये साबित कर दिया कि वो इस मुद्दे को लेकर कितने गंभीर हैं। रही सही कसर पूरी कर दी प्रधानमंत्री के उस बयान ने जिस पर उन्होंने कैग रिपोर्ट को तथ्यविहीन बताकर कैग के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिया। मैंने कहीं पढ़ा था कि संविधान निर्माता बाबा भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा की बहस के दौरान कहा था कि कैग इस देश का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी होगा...क्योंकि वह यह तय करेगा कि जनता का पैसा उसी तरह से खर्च हो रहा है कि नहीं जैसा जनादेश संसद को मिला है...यानि कि सरकार जनता के पैसे का दुरूपयोग तो नहीं कर रही है...ऐसे में हमारे देश के प्रधानमंत्री कैग पर सवाल खड़ा करते हैं तो देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है। चार दिनों तक संसद में हंगामा होने के बाद सामवोर को जब प्रधानमंत्री के संसद में बयान देने की खबर आयी तो सभी को लगा था कि शायद मनमोहन सिंह कोयला घोटाले पर बनी भ्रम की स्थिति को दूर करने के साथ ही अपने ऊपर लगे आरोपों का करारा जवाब देंगे...लेकिन प्रधानमंत्री अपनी छवि से बाहर नहीं निकल पाए और वही बयान देकर वापस लौट गए जो कैग रिपोर्ट आने के बाद से ही सरकार के कारिंदे मीडिया के सामने दे रहे थे। प्रधानमंत्री ने एक शेर सुनाकर अपनी मजबूरी भी जनता के सामने पेश कर दी कि विपक्ष कितना ही हल्ला मचा ले...वे नहीं बोलने वाले....ऐसा लगता हो जैसे बोलने की मनाही है हमारे प्रधानमंत्री को अब कौन मना करता होगा...ये यहां लिखने की जरूरत मैं नहीं समझता। खैर ये तो रही हमारे मजबूर और कमजोर प्रधानमंत्री (कोयला घोटाले के बाद तो यही लगता है) की...कोयला घोटाले पर हल्ला मचाने वाली भाजपा भी इस मुद्दे पर दूध की धुली नहीं प्रतीत होती है। भाजपा शासित राज्यों के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों पर भी प्रधानमंत्री को खत लिखकर कोल ब्लॉक की नीलामी न करने का अनुरोध करने के आरोप लग रहे हैं...सोमवार को भोपाल में तो बकायदा कांग्रेसियों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए मुख्यमंत्री के इस्तीफे तक की मांग कर डाली...यानि जो तीर भाजपा ने केन्द्र सरकार पर चलाया है...इसके जवाब में भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों को भी ऐसे ही तीर का सामना करना पड रहा है। रविवार को टीम केजरीवाल ने भी भाजपा पर कोयला घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाकर उसे भी कांग्रेस की पंक्ति में खड़ा करने का प्रयास किया था। प्रधानमंत्री तो अपने बयान और विशेष हिंदी के शेर से सरकार की सफाई तो पेश नही कर पाए उल्टा अपने ऊपर ही सवाल खड़े कर अपनी ही पोल खोलकर चल दिए हैं...लेकिन अब सवाल ये है कि कोयले के मुद्दे पर सरकार को घेरने के साथ ही इस मुद्दे को लेकर संसद ठप करने वाली भाजपा अपने पर लगे इन आरोपों से खुद को पाक साफ कैसे साबित करती है।

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रविवार, 26 अगस्त 2012

अन्ना की छाया बनी केजरीवाल की छटपटाहट !


अन्ना की छाया बनी केजरीवाल की छटपटाहट !

जंतर मंतर पर सफेद टोपी पहने लोगों को हुजूम...जिस सफेद टोपी पर 25 दिन पहले तक लिखा होता था मैं अन्ना हूं...उसी टोपी पर जब निगाह पड़ी तो मैं और हूं तो था...पर मैं औऱ हूं के बीच में ढाई शब्दों की बजाए पांच शब्द नजर आए। टोपी पर मैं और हूं के बीच में अन्ना की जगह लिखा था केजरीवाल...मैं केजरीवाल हूं। ये वही केजरीवाल हैं जो खुद कल तक अन्ना की टोपी लगाकर घूमा करते थे...लेकिन अब ये वो केजरीवाल नहीं हैं...अब शायद ये चाहते हैं अन्ना के परछाई से बाहर निकलकर अपनी ऐसी काया बनाई जाए जो दूसरों को परछाई दे सके। जंतर मंतर पर 3 अगस्त 2012 को टीम अन्ना का आंदोलन जब चुनावी विकल्प के एलान के साथ समाप्त हुआ था उसके बाद से ही अन्ना हजारे और उनके सहयोगी सुर्खियों से उतर गए थे। इसके ठीक बाद 9 अगस्त 2012 को बाबा रामदेव ने दिल्ली के रामलीला मैदान में सरकार के खिलाफ ताल ठोक दी तो मीडिया जगत की सुर्खियों में छाने के साथ ही सरकार की सबसे बड़ी परेशानी का सबब भी बाबा बन गए...और आखिरकार 14 अगस्त को बाबा ने अपना अनशन खत्म किया। इस आंदोलन ने टीम अन्ना के आंदोलन की चमक फीकी कर दी थी...ऐसे में अरविंद केजरीवाल एंड टीम को शायद ये समझ में आ गया था कि जनता की निगाहों में चढ़े रहना है तो सुर्खियां तो बटोरनी ही होंगी...क्योंकि हिंदुस्तान की जनता की याददाश्त बहुत कमजोर है...या यूं कहें कि जनता को शार्ट टर्म मेमोरी लॉस की बीमारी है...जिसके चलते ये बहुत जल्दी चीजों को भूल जाती है और गलती करने वाले को जल्दी ही माफ भी कर देती है...ऐसा न होता तो सत्ता से बेदखल होने के बाद बार – बार भ्रष्टाचारी सत्ता में काबिज ही न होते। खैर इस केजरीवाल एंड टीम ने कोयला घोटाले को हथियार बनाकर सरकार को घेरने की रणनीति बनाई और दिल्ली पुलिस को छकाते हुए ये लोग अपने मंसूबों में कामयाब भी रहे...साथ ही केजरीवाल ने इस बहाने सरकार को अपनी ताकत का एहसास भी करा दिया कि अन्ना हजारे इस प्रदर्शन में साथ नहीं है तो क्या फिर भी लोग हमारे साथ हैं...औऱ कुछ हद तक इससे केजरीवाल अन्ना की परछाई से बाहर झांकने में कामयाब भी हुए हैं। केजरीवाल एक अच्छे मकसद के लिए लड़ रहे हैं...और अब वो इस लड़ाई को राजनीति के मैदान में उतरकर ही लड़ेंगे...जो केजरीवाल के लिए आसान तो बिल्कुल नहीं होगा...क्योंकि केजरीवाल अन्ना की परछाई से बाहर झांकने में तो कामयाब रहे हैं...लेकिन अन्ना की तरह लाखों – करोड़ों लोगों के लिए एक ऐसी काया बनना जो उनको परछाई दे सके...केजरीवाल के लिए मुश्किल भरा और सालों लंबा रास्ता भी है। इस काया को पाने के लिए जब अन्ना जैसे व्यक्तित्व को करीब 30 से 40 साल का वक्त लग गया तो केजरीवाल तो अभी उनका अंश मात्र भी नहीं हैं। वो भी ऐसे वक्त में जब उनके सहयोगियों से उनके विचार उनकी भाननाएं मेल नहीं खा रही हैं। यहां बात हो रही है इंडिया अगेंस्ट करप्शन की प्रमुख सदस्य किरण बेदी की...जो आईएसी की नींव का मजबूत हिस्सा भी हैं। लेकिन भाजपा के विरोध के मुद्दे पर केजरीवाल और बेदी की सोच अलग – अलग प्रतीत होती है। केजरीवाल सबको भ्रष्ट मानकर उनका विरोध करने की बात करते हैं तो किरण बेदी इससे इत्तेफाक नहीं रखती। उनकी नजर में भाजपा का विरोध करना ठीक नहीं है क्योंकि भाजपा सत्ता में नहीं है। ये मतभेद आगे चलकर गहरा जाते हैं और केजरीवाल के साथ बेदी की जुगलबंदी अगर टूटती है तो इसका सीधा असर आईसीए के साथ ही केजरीवाल की क्रेडिबीलिटी पर पड़ेगा और लोगों का विश्वास उन पर कम हो सकता है...जिसका सीधा असर उनके आंदोलन पर पड़ेगा। बहरहाल ये तो भविष्य के गर्भ में है...लेकिन जो वर्तमान में है उसकी अगर बात करें तो पीएम मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के आवास के घेराव के बाद केजरीवाल अपने मकसद के पूरा होने की बात करते हैं...ऐसे मे सवाल ये उठता है कि आखिर केजरीवाल का समर्थकों संग घेराव का मकसद था क्या...? ऐसा तो नहीं कि केजरीवाल को लगता हो कि अगस्त 2011 में और 25 जुलाई 2012 से 3 अगस्त 2012 तक जंतर मंतर पर अन्ना हजारे के साथ मिलकर भ्रष्टाचार से घिरी सरकार और भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ जो माहौल देशभर में टीम अन्ना ने तैयार किया कहीं उसका फायदा कोई और या यूं कहें मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा उठा ले जाए...और शायद इसी वजह से पीएम औऱ सोनिया के आवास के साथ ही आईएसी ने विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष के निवास का घेराव कर जनता को ये संदेश देने की कोशिश की...कि भाजपा भी दूध की धुली नहीं है और भाजपा के नेता भी भ्रष्टाचार के समुद्र में गोते लगा रहे हैं...लिहाजा कांग्रेस का विकल्प भाजपा तो नहीं हो सकती। केजरीवाल अगर ऐसा सोचते हैं तो आईएसी के इस घेराव से जहां कांग्रेस को फायदा मिलता दिखाई दे रहा है वहीं भाजपा को इससे नुकसान ही हुआ है। कांग्रेस को फायदा इसलिए भी हुआ है क्योंकि कांग्रेस तो पहले से ही भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी है और ताजा कोयला घोटाले में भाजपा ने उसकी नाक में दम कर रखा था...ऐसे में कोयला घोटाले पर आईएसी का कांग्रेस के साथ ही भाजपा का भी विरोध करने और कोयला घोटाले में भाजपा के भी शामिल होने के आरोप लगाने पर कांग्रेस ने राहत की सांस ली होगी...जबकि भाजपा को इन आरोपों पर सफाई देनी पड़ सकती है।

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