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शनिवार, 29 सितंबर 2012

अन्ना ने क्यों की अनशन से तौबा ?


अन्ना हजारे ने ऐलान कर दिया है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी लेकिन वे अब इस लड़ाई के दौरान अनशन नहीं करेंगे। अन्ना न कहा कि सरकार पर दबाव बनाने के लिए वे आंदोलन का सहारा लेंगे...और ये आंदोलन मुद्दों पर ही आधारित होगा। अन्ना की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के इतिहास पर नजर डालें तो सामने आता है कि अन्ना के अभी तक के सभी आंदोलन में अनशन ही उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। अन्ना का पहला बड़ा आंदोलन महाराष्ट्र में ही शुरु हुआ था जब 1991 में  अन्ना हज़ारे ने महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की। ये मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप। अन्ना ने उन पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगाया था। सरकार ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन आखिरकार सरकार को दागी मंत्रियों शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को हटाना ही पड़ा। इसके बाद 1997 में अन्ना हज़ारे ने सूचना का अधिकार अधिनियम के समर्थन में मुंबई के आजाद मैदान से अपना अभियान शुरु किया। 9 अगस्त 2003 को मुंबई के आजाद मैदान में ही अन्ना हज़ारे आमरण अनशन पर बैठ गए। 12 दिन तक चले आमरण अनशन के दौरान अन्ना हज़ारे और सूचना का अधिकार आंदोलन को देशव्यापी समर्थन मिला। आख़िरकार 2003 में ही महाराष्ट्र सरकार को इस अधिनियम के एक मज़बूत और कड़े मसौदे को पारित करना पड़ा। बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया। इसके परिणामस्वरूप 12 अक्टूबर 2005 को भारतीय संसद ने भी सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया। अगस्त 2006, में सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ अन्ना ने 11 दिन तक आमरण अनशन किया, जिसे देशभर में समर्थन मिला। इसके परिणामस्वरूप, सरकार ने संशोधन का इरादा बदल दिया। 2003 में अन्ना ने कांग्रेस और एनसीपी सरकार के चार मंत्रियों... सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल को भ्रष्ट बताकर उनके ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गए। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया। नवाब मलिक ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। आयोग ने जब सुरेश जैन के ख़िलाफ़ आरोप तय किए तो उन्हें भी त्यागपत्र देना पड़ा। इसके बाद बीते साल जलनोकपाल के समर्थन में दिल्ली में दो बार और मुंबई में एक बार उनके अनशन ने सरकार को हिला कर रख दिया। और इस साल अगस्त में जंतर मंतर पर उनके अनशन ने फिर से सरकार की नींद उड़ा कर रख दी थी। लेकिन इसके बाद से ही अनके सहयोगियों के राजनीतिक दल गठन के फैसले के बाद अन्ना ने अपने सहयोगियों के किनारा कर अपना आंदोलन जारी रखने की बात कही...और अब ये साफ कर दिया है कि अब अन्ना अनशन नहीं करेंगे बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ और जनलोकपाल के समर्थन में अपनी लड़ाई तो जारी रखेंगे लेकिन अनशन नहीं करेंगे। बड़ा सवाल ये है कि आखिर क्यों अन्ना ने अपनी ताकत लंबे समय तक भूखे प्यासे रहकर अनशन करने से तौबा कर ली...क्या अन्ना को इस बात का आभास हो गया है कि उनकी ये लड़ाई लंबे वक्त तक चलेगी और लंबे समय तक अगर लड़ाई को जारी रखना है तो फिर बढ़ती उम्र में अपने स्वास्थ्य का ख्याल भी रखना होगा...ऐसे में अगर लंबे समय तक इस लड़ाई को जारी रखना है तो कहीं न कहीं अनशन से किनारा करना होगा...और आंदोलन के रूप में इस लड़ाई को जारी रखना होगा। इस साल अगस्त में अन्ना के अनशन पर नजर डालें तो पता चलता है कि सरकार ने आंदोलन को नजरअंजदाज करने की कोशिश की ताकि अन्ना और उनके पूर्व सहयोगी हताश होकर अपना अनशन समाप्त कर दें...और कुछ हद तक सरकार अपनी इस रणनीति में कामयाब भी रही थी...और अनशन अचानक से समाप्त हो गया...और इसके बाद टीम अन्ना में जो कुछ हुआ...इसकी कल्पना तक शायद किसी ने नहीं की थी। सरकार भी इस बात को समझ चुकी है कि अन्ना और उनके सहयोगियों में मतभेद के बाद का बिखराव अब आंदोलन में वो धार नहीं ला पाएगा...ऐसे में अब सरकार के लिए इसे नजरअंदाज करना औऱ आसान हो गया है। अन्ना भी इस बात को समझ गए हैं औऱ शायद इसलिए उन्होंने आंदोलन के रूप में इस लड़ाई को जारी रखने का ऐलान किया है। बहरहाल जो भी हो अन्ना की ये लड़ाई निश्चित तौक पर एक अच्छे मकसद के लिए दिखाई पड़ती है...ऐसे में हम तो बस यही कह सकते हैं...गुडलक अन्ना।

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गुरुवार, 27 सितंबर 2012

कांग्रेस का डर बना भाजपा की ताकत


कहते हैं समय खराब हो तो किसी से नहीं भिड़ना चाहिए...पिटाई आपकी ही होगी...कांग्रेस को भी शायद ये समझ में आ गया है लगता है...आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि दमानिया के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी पर लगाए आरोप पर कांग्रेस की चुप्पी तो कम से कम यही जाहिर करती है। कांग्रेस शायद ये जानती है कि पहले से ही कोयला घोटाले पर चौतरफा हमला...फिर महंगाई और एफडीआई पर सरकार के फैसले से मचा बवाल सरकार की किरकिरी करा चुका है...साथ ही महाराष्ट्र में सिंचाई घोटाले में सहयोगी एनसीपी के डिप्टी सीएम अजित पवार का इस्तीफे ने उसकी मुश्किलों को बढ़ा रखा है। ऐसे में गडकरी पर अपने व्यापारिक हितों के लिए केन्द्रीय मंत्री और एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार के भतीजे और तत्कालीन सिंचाई मंत्री अजित पवार को बचाने के लिए घोटाले को दबाने के आरोप के बाद भी कांग्रेस ने चुप्पी साधी है। आखिर ऐसा क्या हुआ जो कांग्रेस ने गडकरी पर लगे आरोप पर भाजपा को घेरने की बजाए रक्षात्मक रूख अपना लिया है और पूरे मामले में चुप्पी साध रखी है। दरअसल ये सारा खेल कुर्सी का है...कांग्रेस को निश्चित तौर पर बढ़िया मौका मिला था...लेकिन बदकिस्मती से महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार और एनसीपी की बैसाखी पर खड़ी है...ऐसी ही कुछ स्थिति केन्द्र में भी है...जब ममता के समर्थन वापस लेने के बाद यूपीए सरकार के लिए छोटे से छोटा दल भी महत्वपूर्ण हो गया है...यानि कि केन्द्र में भी एनसीपी के समर्थन का उतना ही महत्व है जितना कि महाराष्ट्र में। अब कांग्रेस अगर इस मुद्दे को लेकर गडकरी को घेरती तो छींटे शरद पवार की दामन पर भी उछलते...क्योंकि गडकरी से शरद पवार के व्यापारिक संबंध की बात आने के साथ ही जिस नेता पर सिंचाई घोटाले में लिप्त होने का आरोप है वो शरद पवार का भतीजा है। जाहिर है कांग्रेस चाहकर भी आक्रमक नहीं हो सकती क्योंकि कांग्रेस का आक्रमक रवैया शरद पवार को नागवार गुजर सकता है और शरद पवार की नाराजगी कांग्रेस की महाराष्ट्र सरकार के साथ ही केन्द्र की यूपीए सरकार पर भी भारी पड़ सकती है...लिहाजा कांग्रेस ने चुप्पी साधना ही बेहतर समझा...ताकि मामला धीरे धीरे शांत हो जाए और फिर लोग उसे भूल जाएं...जैसे कि हमारे सुशील गृहमंत्री शिंदे साहब का सोचना भी है। खैर ये तो रही कांग्रेस की मुश्किल अब बात करें गडकरी पर लगे आरोप कि तो ये तो जग जाहिर है कि गडकरी पहले उद्योगपति हैं उसके बाद राजनेता...अब व्यापार करना है तो शरद पवार क्या किसी से भी हाथ मिला सकते हैं। और अगर अंजलि दमायनी के आरोप सही हैं तो भी ऐसा लगता नहीं कि अंजलि अपने इन आरोपों को साबित कर पाएंगी...क्योंकि अंजलि भले ही ये साबित कर दें कि वे गडकरी से मिलने गई थी...लेकिन गडकरी पर जो बातें कहने का आरोप उन्होंने लगाया है उसे साबित करना अंजलि के लिए आसान नहीं होगा या यूं कहें कि नामुमकिन दिखाई पड़ता है। हालांकि अंजलि के सहयोगी और हाल ही में राजनीतिक पार्टी के गठन का ऐलान करने वाले अरविंद केजरीवाल ने अंजलि के आरोपों के बाद अब खुद गडकरी के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है...औऱ गडकरी पर सवालों की बौछार कर दी है...लेकिन केजरीवाल भी गडकरी को घेर पाएंगे इसकी उम्मीद कम ही है। वैसे अंजलि आरोप अगर सही हैं तो देश की जनता के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता कि जिस पार्टी को मुख्य विपक्षी दल होने के नाते सरकार के गलत कामों और फैसलों पर नजर रखते हुए उसे घेरना चाहिए वे ही लोग अपने फायदे के लिए आपस में सांठ गांठ करने में लगे हुए हैं। बहरहाल गडकरी ने अंजलि पर झूठे औऱ बेबुनियाद आरोप लगाने की बात कहते हुए अंजलि दमानिया को कानूनी नोटिस जरूर भेज दिया हैऐसे में देखना ये होगा कि अंजलि अब गडकरी के नोटिस का जवाब किसी पुख्ता सबूत के साथ देती हैं या फिर इस मामले का यहीं पटाक्षेप हो जाएगा।
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मंगलवार, 25 सितंबर 2012

रामदेव ने किया विश्वासघात !


योगगुरू बाबा रामदेव जो उनके लाखों भक्तों के लिए विश्वास का दूसरा नाम है। लेकिन अगर ये विश्वास टूट जाए तो...हालांकि आंख बंद कर उऩकी बात का समर्थन करने वाले उनके अनुयायी इस बात को नकार देंगे कि रामदेव उनके साथ कभी विश्वासघात कर सकते हैं...लेकिन ऐसा हो रहा है। बड़ी से बड़ी बीमारी को योग और आयुर्वेद से ठीक करने का दावा करने वाले बाबा रामदेव किराने का सामान भी बेचते हैं...बाबा के किराना सामान पर भी लोग उतना ही भरोसा करते हैं जितना कि उनके योग और आयुर्वेदिक दवाओं पर। लेकिन खाद्य विभाग के लिए गए रामदेव की फैक्ट्री उत्पादों के सैंपल फेल होने के बाद बड़ा सवाल ये उठने लगा है कि क्या बाबा रामदेव भी मिलावटखोर और कालाबाजारी करने वालों की तरह अपने सामान में मिलावट कर रहे थे। बाबा के 6 उत्पादों सरसों का तेल, शहद, काली मिर्च, जैम, बेसन और नमक के खाद्य विभाग की टीम ने सैंपल लिए थे...लेकिन ये सैंपल मानक पर खरे नहीं उतरे। इसके साथ ही एक और खुलासा हुआ है कि बाबा रामदेव के कई उत्पाद ऐसे हैं...जिन्हें बाबा की फैक्ट्री नहीं बनाती थी...यानि वे कहीं और बनते थे औप रामदेव अपना ब्रांड नेम लगाकर उनको बेचते थे। खाद्य विभाग को बाबा के उत्पादों पर जो आपत्ति है उसके अनुसार...जिस सरसों के तेल को पतंजलि फूड पार्क का लेबल लगाकर बेचा जा रहा है वह आर एंड जे ऑयल एंड फेट प्राइवेट लिमिटेड झोटवाड़ा जयपुर राजस्थान ने तैयार किया है और इसके ऊपर आरोग्य शब्द लिखा है जो गैरकानूनी है। वहीं काली मिर्च के पैकेट पर भी आरोग्य लिखा गया है साथ ही पैकेट पर न्यूट्रीशनल वैल्यू की जानकारी भी नहीं है। इसी तरह जिस नमक को पतंजलि कंपनी के नाम से बेचा जा रहा है, वो कच्छ गुजरात स्थित अंकुर कंपनी का उत्पाद है। बाबा का शुद्ध शहद लीची से निर्मित है और इसमें सिर्फ 5 प्रतिशत ही शहद है। अनानास जैम के पैकेट पर शुद्ध शब्द का इस्तेमाल किया गया है जबकि इसमें फ्लेवर का प्रोयोग किया गया है। वहीं आरोग्य बेसन पैकेट पर आरोग्य लिखा है लेकिन शुद्ध शाकाहारी का लेबल नहीं है। जबकि बाबा अपने योग शिविरों में भक्तों और अनुयायियों से रामदेव यही कहते फिरते थे कि उनके उत्पादों गुणवत्ता सर्वोत्तम है और सारे उत्पाद उनकी फैक्ट्री में ही बनते हैं। इसका मतलब क्या बाबा अपने भक्तों से अनुयायियों से झूठ बोल रहे थे...उनके साथ विश्वासघात कर रहे थे। हालांकि अभी भी बाबा इस सब को केन्द्र सरकार की साजिश बताते हुए खुद को पाक साफ साबित करने की कोशिश कर रहे हैं...लेकिन क्या वाकई में ये साजिश है या फिर बाबा के लाभ योग का एक हथकंडा ये तो वक्त ही बताएगा...लेकिन बाबा रामदेव के लिए ये अच्छी बात है कि जिस माहौल में, जिन परिस्थितियों में ये सब कुछ सामने आया है...ऐसे में उनके भक्त और अनुयायी ऐसी किसी बातों पर विश्वास नहीं करेंगे...क्योंकि उनको भी शायद यही महसूस होगा कि सरकार के खिलाफ हल्ला बोलने के बाद ही बदले की भावना से सरकार बाबा रामदेव को बदनाम करने की साजिश रच रही है। खैर देर सबेर तो सच सामने आ ही जाएगा...लेकिन अगर वाकई में ऐसा है तो बावा पर सवाल उठने लाजिमी है...क्योंकि बाबा एक तरफ स्वदेशी का नारा देते हैं मिलावटखोरों, कालाबाजारी करने वालों के साथ ही भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जहर उगलते हैं...दूसरी तरफ उनके उत्पादों के नमूनों का मानक पर खरा न उतरना बाबा पर आंख बंद कर भरोसा करने वालों के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। वैसे बाबा की संपत्ति को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं...ऐसे में अगर मिलावटखोरी की ये बात साबित हो जाती है तो फिर से उनकी संपत्ति को लेकर भी सवाल उठने लगेंगे कि क्या बाबा ने ये संपत्ति भी इसी तरह घालमेल कर अर्जित की है। वैसे जितने कम समय में रामदेव ने अपने साम्राज्य को स्थापित किया है...वो तो कम से कम इसी ओर ईशारा करता है। 1995 में दिव्य योग ट्रस्ट की स्थापना कर सिर्फ योग सिखाना शुरू करना...उसके बाद 2006 में पतंजलि योगपीठ की स्थापना के साथ आयुर्वेदिक दवाएं बनाना औऱ बेचना शुरू करने का साथ ही आयुर्वेद पर रिसर्च और योग की ट्रेनिंग देना और फिर एफएमसीजी के क्षेत्र में कदम रखना...और इस दौरान करीब 1100 करोड़ की संपत्ति अर्जित कर लेना...ये आसान काम तो नहीं है। बहरहाल रामदेव कितने सही हैं और कितने गलत ये तो वक्त ही बताएगा...लेकिन फिलहाल तो रामदेव एक और मुश्किल में घिर ही गए हैं...अब ये उनके पीछे पड़ी सरकार का रचा मायाजाल है या फिर रामदेव का मकड़जाल ये तो वक्त ही बताएगा।

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