हमारे देश के नेताओं
पर लगता है अदालत की महादशा शुरु हो गयी है। पहले सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक इतिहास
वाले दागी नेताओं पर लगाम कसने की ओर कदम बढ़ाते हुए फैसला दिया कि किसी भी मामले
में दो या दो साल से ज्यादा की सजा होने पर सांसद और विधायक की सदस्यता खुद ब खुद
समाप्त हो जाएगी तो यूपी हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश में जातीय आधारित
रैलियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाकर उन राजनीतिक दलों की नींद उड़ा दी है जो
जाति के नाम पर लोगों को बांटकर सत्तासीन होने का ख़्वाब देख रहे थे..!
नेतागण इस सदमे से
उबरे भी नहीं थे कि सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के उस फैसले पर अपनी मुहर लगा
दी जिसमें पटना हाईकोर्ट ने जेल में जाते ही चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी यानि कि
कोई भी व्यक्ति अब जेल जाने के बाद चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो जाएगा।
चुनाव करीब आते ही
सत्ता पर नजरें गढ़ाए बैठे जिन नेताओं के चेहरे पर खुशी दिखाई देती थी वो सर्वोच्च
न्यायलय और यूपी और पटना उच्च न्यायलय के फैसले के बाद अब अब काफूर होती दिखाई दे
रही है..! नेता हैरान हैं...परेशान
हैं कि करें तो क्या करें..?
अदालत के फैसले के
सामने नेता न तो खुलकर कुछ बोल पा रहे हैं और न ही इसका विरोध कर पा रहे हैं..!
कुछ अदालत के आदेश
को पढ़ने के बाद ही कुछ कहने की बात कर रहे हैं तो कुछ बेमन से अदालत के फैसले का
स्वागत करते दिखाई दे रहे हैं..! (पढ़ें- नेता जी, दाग अच्छे हैं..!)
संसद और राज्य
विधानसभाओं में जनता से जुड़े मुद्दों पर मुंह फेरने वाले और अपने हक के सवाल पर,
अपने वेतन भत्तों को बढ़ाने के नाम पर एकजुट होने वाले अधिकतर नेताओं को सर्वोच्च
न्यायालय के फैसले के बाद अब अपना भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा है, क्योंकि हमारे
अधिकतर माननीय अपनी सफेद पोशाक के पीछे हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, बलात्कार
जैसे जघन्य अपराधों के साथ ही भ्रष्टाचार और घोटालों की कालिख को समेटे हुए हैं..!
ये छोड़िए, ये लोग
तो लोगों को उनकी जाति के आधार पर बांटकर राज करने में भी गुरेज नहीं करते। देश के
सबसे बड़े प्रदेश यूपी में तो जातीय समीकरण को अपने अपने पक्ष में फिट करने के लिए
राजनीतिक दल क्या कुछ नहीं करते..? दलितों के नाम पर राज करने वाले बसपा सुप्रीमो मायावती
भी ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन करती हैं तो समाजवादी पार्टी जिसका नाम ही समाजवाद
है खास वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ती..! ऐसा ही हाल राज्य
में भाजपा और कांग्रेस के साथ ही दूसरे राजनीतिक दलों का भी है..! लेकिन जातीय रैलियों
पर रोक के इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले के बाद अब सबकी सिट्टी पिट्टी
गुम है। अब राजनीतिक दल मुश्किल में हैं कि करें तो क्या करें..? कैसे किसी खास जाति
के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए कोई नया रास्ता तैयार करें..?
बहरहाल अदालत के
फैसले से नेतानगरी में भले ही मातम छाया हुआ है पर नेताओं की कारगुजारियों से अजीज आ चुकी देश
की जनता में अदालत के इन फैसलों से खुशी की लहर है लेकिन इसका असली मजा तो तब है
जब देश की जनता अपने वोट की कीमत को समझे और चुनावों में भी ऐसे नेताओं को सबक
सिखाए..!
deepaktiwari555@gmail.com
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