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शनिवार, 6 जुलाई 2013

ये हैं राजनीति के मर्यादा पुरुष..!

मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार में वित्त मंत्री राघवजी और यूपी के औरेया के सपा जिलाध्यक्ष और श्रम प्रवर्तन विभाग के चेयरमैन रामबाबू यादव के कारनामों को सुनकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी की याद आ गयी। रामबाबू यादव एनडी तिवारी की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं तो राघव जी ने वो कर दिया जो शायद तिवारी जी नहीं कर पाए..!
79 वर्ष के राघव जी शिवराज कैबेनिट के सबसे वरिष्ठ सदस्य थे और वित्त मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहे थे। 2008 से 2010 तक भोपाल में पत्रकारिता के दौरान कई मौकों पर राघव जी से सामना हुआ। वो राघव जी जो बिना सहारे के ठीक से चल भी नहीं सकते। चश्मा लगाने के बाद भी पढ़ने में उन्हें दिक्कत होती थी..!
राघव जी की नौकर के साथ अपाकृतिक कृत्य की ख़बर सुनी तो राघव जी की पूरी काया जेहन में ताजा हो गयी। शुरु में तो यकीन नहीं हुआ लेकिन जब इसकी रिकार्डिंग होने की बात सामने आयी तो फिर क्या कह सकते हैं..! कहते भी हैं न कि कैमरा झूठ नहीं बोलता..!
क्या राघव जी 79 साल में जो कमाया था वो नवाबों के शौक में गंवा दिया..! वैसे भी तो भोपाल नवाबों का ही शहर है..! हालांकि राघवी जी कह रहे हैं कि ये उनके खिलाफ राजनीतिक साजिश है लेकिन सीडी बनाने का दावा करने वाला भी भाजपा का ही नेता है वो भी राघव जी के गृहक्षेत्र विदिशा का। ऐसे में राघव जी के लिए अपनों की ही घेराबंदी से पाक साफ निकल पाना आसान नहीं होगा..! वैसे भी मध्य प्रदेश में सत्ता पाने को बेकरार कांग्रेस के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में भुनाने के लिए इससे अच्छा मुद्दा और क्या हो सकता है..?
समाजवादी पार्टी से ताल्लुक रखने वाले 71 वर्ष के रामबाबू यादव के बारे में तो ज्यादा नहीं जानता लेकिन उनकी ही पार्टी की एक महिला मधु पांडे के साथ उनकी एक ऑडियो रिकार्डिंग ने उनके चर्चे भी बढ़ा दिए हैं। साहब को चूजे(कम उम्र की लड़कियों) का शौक है। खुद के पांव कब्र में लटक रहे हैं और लड़कियां चाहिए 18 से 20 साल की..! अब इनके शौक को क्या कहें..?
लगता है ये साहब एनडी तिवारी से कोई गुप्त फार्मूला लेकर आए हैं तभी तो 71 की उम्र में 18-20 साल की लड़कियों का शौक चढ़ा है..! माफ करना चौधरी साहब कम से कम इतना ही ख्याल कर लेते कि आपके पोते पोती की उम्र भी इतनी ही होगी..!
राघवजी और रामबाबू याद दोनों व्यक्ति भले ही अलग अलग हैं, दोनों की पार्टी भले ही अलग अलग हैं लेकिन कौम एक ही है...वही कौम जिससे एनडी तिवारी भी आते हैं..! दूसरों को मर्यादित आचरण की सीख देने वाले और खुद को पाक साफ बताने वाले इस कौम वाले निजी जीवन में कितने मर्यादित हैं और कैसी नीयत वाले हैं, ये सबके सामने है..?  समझ नहीं आता कि ये लोग अपने परिवार संग कैसे रहते हैं..? कैसे अपने बीवी बच्चों से नज़रें मिलाते हैं..?


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मंगलवार, 2 जुलाई 2013

आपके घर पर कोई अतिक्रमण कर ले तो..?


आपके घर पर अगर कोई अतिक्रमण कर ले तो कैसे लगेगा..? आपकी कार पार्किंग की जगह कोई और अपनी गाड़ी पार्क कर ले तो कैसा लगेगा..?
जाहिर है बहुत गुस्सा आएगा लेकिन ऐसे में आप क्या करेंगे..? प्यार से समझाने के बाद भी जब अतिक्रमणकारी नहीं मानेगा तो फिर आप क्या करेंगे..?
कुछ समझ आया कि केदारनाथ में ऐसा क्यों हुआ..?
समझ आया कि क्यों भागीरथी, मंदाकिनी, अलकनंदा, पिंडर और दूसरी नदियां क्यों अपने साथ सब कुछ बहा कर ले गई..!
जिस तरह आपके घर में कोई जबरन घुसकर कब्जा कर ले और बाहर जाने का नाम न ले ठीक उसी तरह पहाड़ों में नदियों में स्वार्थी, लालची लोगों ने कब्जा करने की कोशिश की..! पहाड़ों का सीना छलनी कर दिया तो नदियों की धारा को रोकने का प्रयास किया..! नतीजा सबके सामने है। जिस तरह हम अपने घर में किसी के अतिक्रमण को बर्दाश्त नहीं कर सकते ठीक उसी तरह नदियों और पहाड़ों ने भी ऐसा ही किया..!
और तो और हिमालय की गोद में बसे भगवान शिव के पावन धाम केदारनाथ को भी नहीं छोड़ा। मंदाकिनी के किनारों पर खड़े कर दिए दो-तीन मंजिले होटल, धर्मशाला और लॉज...सजा ली प्रसाद की थाली और फूलों की दुकान। किसलिए..? सिर्फ अपने निजि स्वार्थ के लिए..! पैसा कमाने के लिए..! तो क्यों न होती तबाही..? केदार बाबा क्यों अपने धाम में अतिक्रमण बर्दाश्त करते..? क्यों केदारनाथ की शांति भंग करने वालों को सबक नहीं सिखाते..?
जिम्मेदार लोगों (शसन-प्रशासन) ने अपनी जिम्मेदारी ठीक ढंग से निभाई होती तो शायद हालात इतने बुरे नहीं होते लेकिन जिम्मेदार लोगों की जेबें गरम हो रही थी तो उन्होंने आंख मूंद कर गहरी नींद में सो जाना ही बेहतर समझा। जिम्मेदार लोग सो रहे थे और पहाड़ों का सीना छलनी हो रहा था...नदियों की धारा को जंजीरों में बांधा जा रहा था। पहाड़ खोखले हो चुके थे, हरियाली मुरझा चुकी थी और नदियां नालों में बदल चुकी थी तो फिर आप ही बताओ कि क्यों न होता विनाश..? क्यों न गिरते पहाड़..? क्यों न रौद्र रुप धारण करती भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, पिंडर और दूसरी नदियां..?
अब रोते रहो कुदरत के कहर का राग अलापते हुए कुदरत ने तो अपना हिसाब बराबर कर लिया..!

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सोमवार, 1 जुलाई 2013

उत्तराखंड त्रासदी- लाशों पर बहुगुणा की कमेंट्री..!

उत्तराखंड में आई भीषण त्रासदी से निपटने में नाकाम रहने के साथ ही मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने एक बार फिर से ये साबित कर दिया कि आखिर क्यों वे उत्तराखंड के लिए एक राजनीतिक त्रासदी की तरह हैं। 16 जून को केदारनाथ में आए मौत के सैलाब के बाद से ही बहुगुणा सरकार एक तमाशबीन की तरह सिर्फ मौत का तमाशा ही देखती रही..! सरकार का आपदा प्रबंधन फेल हो चुका था और सरकार हर मोर्चे पर नाकाम साबित हो रही थी। विजय बहुगुणा का दरअसल पता ही नहीं था कि इस भीषण त्रासदी से आखिर निपटा कैसे जाए..? (पढ़ें - बहुगुणा का सीएम बनना भी एक त्रासदी..!)
त्रासदी के बाद से ही विजय बहुगुणा सुबह, दोपहर और शाम तीनों वक्त मीडिया के आगे एक बेबस मुख्यमंत्री की तरह दिखाई दे रहे थे और कर रहे थे तो सिर्फ त्रासदी में हुई मौत के आंकड़ों की कमेंट्री..! बहुगुणा सरकार के पास न कोई एक्शन प्लान था और न ही प्रभावितों की मदद करने का जज्बा...वो तो भला हो भारतीय सेना के जाबांज जवानों का जिन्होंने खुद को मौत के मुंह में झोंक कर लाखों लोगों को मौतौ के मुंह से निकालकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया।
सेना काम कर रही थी और बहुगुणा लाशों की गिनती की कमेंट्री..! बहुगुणा को लगा कि सरकार की छीछालेदर हो रही है तो करोड़ों में मीडिया को मैनेज कर समाचार चैनलों में कमेंट्री करने लगे। बताने लगे कि कुदरत के कहर के आगे सरकार बेबस है..!
दिल्ली में शीश नवाने के बाद उत्तराखंड के वो दिल्ली वाले मुख्यमंत्री आपदा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने पहुंचे तो आपदा प्रभावितों से साफ कह दिया कि दो महीने आप अपनी सुरक्षा खुद करो...सरकार कुछ नहीं कर सकती..! कहने का अंदाज भी ऐसा था कि मानो साल के 10 महीने बहुगुणा सरकार उत्तराखंड की आवाम का पूरा ख्याल रखती हो..!  हवाई जहाज में बैठकर आपदा प्रभावित क्षेत्रों में पहुंचने वाले मुख्यमंत्री आपदा प्रभावितों को संबल देने की बजाए...मदद का आश्वासन देने की बजाए जब ऐसा कहे कि अपनी सुरक्षा स्वंय करो तो सोचिए क्या बीती होगी उन हजारों आपदा प्रभावितों पर जो मुख्यमंत्री का हवाई जहाज जमीन पर उतरने से पहले उसे इस आस में टकटकी लगाए देख रहे थे कि ये जमीन पर उतरेगा तो उनकी आधी परेशानियां तो ऐसे ही दूर हो जाएंगी लेकिन अफसोस उनके सपने उस रहनुमा ने ही तोड़ दिए जिससे उन्हें सबसे ज्यादा आस थी..!
देहरादून लौटकर मीडिया में शेखी बघारते हैं कि आपदा प्रभावितों को राशन पानी मुहैया कराया जा रहा है जबकि जमीनी हकीकत तो ये है की उत्तराखंड के कई आपदा प्रभावित गांवों से भुखमरी और खाने के लिए खून खराबे की ख़बरें सामने आ रही हैं..! जिन गांव वालों ने अपने घर के राशन पानी से बाहरी प्रदेश से चार धाम यात्रा पर आए लोगों का पेट भरा वे खुद दाने दाने को मोहताज हो रहे हैं लेकिन बकौल बहुगुणा सरकार राहत सामग्री लोगों तक पहुंच रही है..!
देशभर से प्रभावितों के लिए मदद के नाम पर करोड़ों की राशि के साथ ही भारी मात्रा में राहत सामग्री पहुंच रही है लेकिन सरकार इसका सही प्रबंधन करने में भी नाकाम साबित हो रही है। पैसे राहत कोष में जमा हो रहा है...राहत सामग्री गोदामों में या फिर खड़े ट्रकों में खराब हो रही है लेकिन मुख्यमंत्री साहब को ये पता ही नहीं कि इसका इस्तेमाल कैसे किया जाए..? (पढ़ें- वाह बहुगुणा ! हजारों मर गए, अब याद आया कर्तव्य..!)
बेहतर होगा कि अब भी वक्त रहते लाशों की गिनती की बजाए किसी तरह त्रासदी में जिंदा बचे लोगों को लाश में तब्दील होने से रोकने के लिए बहुगुणा साहब अपनी कमेंट्री बंद करें और राहत एवं पुनर्वास में पूरी ताकत लगा दें ताकि काल की तरह आपदा प्रभावितों के सिर पर खड़े बरसात के दो महीनों में देवभूमि में और लाशों के ढ़ेर न लगें..!

deepaktiwari555@gmail.com

रविवार, 30 जून 2013

बहुगुणा का सीएम बनना भी एक त्रासदी..!

उत्तराखंड विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने की भीषण त्रासदी से सही से उबरा भी नहीं था कि एक और त्रासदी ने उत्तराखंड समेत पूरे देश को झकझोर के रख दिया। आधिकारिक रुप से त्रासदी में मौतों का आंकड़ा सैंकड़ों में है लेकिन कड़वा सच ये है कि चार धाम यात्रा पर उत्तराखंड पहुंचे हजारों लोगों का कुछ पता नहीं कि वे कहां गए..?
आपदा प्रबंधन को लेकर त्रासदी के बाद उत्तराखंड सरकार की पोल सबके सामने खुल ही चुकी है। ऐसे में अब त्रासदी के 48 घंटे पहले मौसम विभाग की सरकार को चेतावनी देने की ख़बर के बाद हर कोई हैरान है कि आखिर समय रहते सरकार की नींद क्यों नहीं खुली..? आखिर क्यों सरकार पहाड़ी इलाकों खासकर केदारनाथ में भारी बारिश की चेतावनी के बाद भी सोती रही..? क्यों नहीं एहतियात बरतते हुए लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की कोई कोशिश सरकार की तरफ से की गई..?
समय रहते अगर सरकार ने मौसम विभाग की चेतावनी की गंभीरता से लेते हुए तत्परता दिखाते हुए आवश्यक कदम उठाए होते तो केदारनाथ की तबाही न सही लेकिन हजारों लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता था..!
लेकिन ऐसा नहीं हुआ और नतीजा सबके सामने है...एक बार फिर से शासन – प्रशासन की अनदेखी और लापरवाही का भयावह परिणाम हजारों लोगों को भगुतना पड़ा..!
हद तो तब हो गयी जब जैसे तैसे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा साहब को ये कहते सुना कि सरकार की तरफ से कोई लापरवाही नहीं बरती गयी..! गजब करते हो बहुगुणा साहब अगर लापरवाही नहीं बरती गयी तो फिर त्रासदी के 48 घंटे पहले भारी बरसात और मौसम के बिगडने की चेतावनी के बाद भी आखिर क्यों सरकार सोती रही..? अगर लापरवाही नहीं बरती गयी तो फिर क्यों मौत का सैलाब अपने साथ हजारों जिंदगियों का बहा कर ले गया..? (पढ़ें- वाह बहुगुणा ! हजारों मर गए, अब याद आया कर्तव्य..!)
हैरानी की हात ये भी है कि बहुगुणा साहब ये भी कहते सुनाई दे रहे हैं कि त्रासदी में कितने लोग मारे गए इसका पता कभी नहीं चल पाएगा..! साथ ही बहुगुणा ने विधानसभा अध्यक्ष गोविंद कुंजवाल के उस बयान को भी गलत ठहराया जिसमें कुंजवाल ने एक दिन पहले ही त्रासदी में करीब 10 हजार से ज्यादा मौतें होने का अंदेशा जताया था। बहुगुणा भले ही कुंजवाल की बात को नकार रहे हों लेकिन इस बातसे इंकार नहीं किया जा सकता कि चार धाम यात्रा सीजन का पीक समय होने के कारण करीब 20 से 25 हजार श्रद्धालु त्रासदी के वक्त गौरीकुंड, रामबाड़ा और केदारनाथ में मौजूद थे।
गौरीकुंड, रामबाड़ा और केदारनाथ तीनों ही स्थान पूरी तरह से तबाह हो गए हैं और इसमें रामबाड़ा जो यात्रा का सबसे अहम पड़ा था उसका तो नामो निशान ही मिट गया है। तीनों ही स्थानों में हर वक्त श्रद्धालुओं की तादाद 5000 से 10000 के बीच रहती थी ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौत का वास्तविक आंकड़ा कहां तक पहुंच सकता है..! (जरुर पढ़ें- 15 हजार तक पहुंच सकता है मौत का आंकड़ा..!!!)
हालांकि अधिकतर लोगों के 10-10 फिट मलबे के नीचे दब जाने से और मंदाकिनी में बह जाने से भले ही हजारों लापता लोगों के शव कभी न मिल पाएं लेकिन देश भर के सभी राज्यों के लोगों से चारधाम यात्रा पर निकले उनके परिजनों का डाटा तैयार कर त्रासदी के बाद  लापता लोगों की वास्तविक संख्या का तो पता चल ही सकता है..!
सुना तो यहां तक है कि उत्तराखंड के वो दिल्ली वाले मुख्यमंत्री..! बहुगुणा साहब का ज्यादा ध्यान प्रभावितों तक मदद पहुंचाने की बजाए मीडिया को मैनेज करने की तरफ है और इसके लिए बतौर सूचना विभाग के आला अधिकारी दिन रात एक किए हुए हैं..! वहीं सुनने में ये भी आ रहा है कि बहुगुणा साहब को जैसे तैसे उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाने में अहम किरदार निभान वाली उनकी बहन रीता बहुगुणा जोशी इस कार्य में भी अहम भूमिका में हैं..!
बहुगुणा की इस कवायद का असर दिखने भी लगा है और त्रासदी के तुरंत बाद जो बड़े बड़े चैनल बहुगुणा सरकार की बखिया उधेड़ने में लगे थे अब उनके तेवर नरम पड़ने लगे हैं। यहां तक कि सभी प्रमुख समाचार चैनलों में बहुगुणा साहब का 15 से 20 मिनट का साक्षात्कार भी चला जिसमें बहुगुणा कुदरत के कहर के आगे सरकार की बेबसी की कहानी सुनाते हुए नजर आए कुदरत के आगे किसी का बस न चलने की बात कहते हुए खुद को व सरकार को बचाते हुए दिखाई दिए।
ये उत्तराखंड का दुर्भाग्य ही है कि जिस भीषण त्रासदी के वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री को सरकार में शामिल सभी लोगों को साथ लेकर ज्यादा से ज्यादा आपदा प्रभावितों को दर्द बांटकर उनके राहत एवं पुनर्वास में पूरी ताकत के साथ जुट जाना चाहिए था वह मुख्यमंत्री सरकार की नाकामियों को छिपाने के साथ ही मीडिया मैनेजमेंट कर अपनी कुर्सी बचाने की जुगत में लगा हुआ है..! (जरुर पढ़ें- उतराखंड आपदा - एक कौम ऐसी भी..!)