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गुरुवार, 22 अगस्त 2013

खुश रहने के लिए गालिब ख्याल अच्छा है !

खुश रहने के लिए गालिब ख्याल अच्छा है...ये पंक्तियां भारत सरकार पर बिल्कुल सटीक बैठती दिखाई दे रही हैं..! दरअसल बात सुपर हर्कुलस विमान की हो रही है, जिसे भारत ने पिछले दिनों दौलत बेग ओल्दी क्षेत्र में उतारा है..! हम अपनी ही जमीन में विमान उतारकर ठीक इसी तरह खुश हुए जा रहे हैं जैसे भारत ने अपनी जमीन में नहीं बल्कि चीनी सीमा में घुसकर चीन के इलाके में अपना विमान उतारा हो जबकि इसके उलट चीन की हिमाकत लगातार बढ़ती ही जा रही है..! लद्दाक में बार बार घुसपैठ के बाद चीन ने अरुणाचल प्रदेश में  20 किलोमीटर तक घुसपैठ की..! इतना ही नहीं खबर तो ये भी है कि चीनी सैनिक 2 दिनों तक भारतीय सीमा में रुके भी..!
बीते 8 महीनों मे चीन करीब 150 से ज्यादा बार एलएसी का उल्लंघन कर भारतीय सीमा में घुसपैठ कर चुका है और हम चीन के आगे सिर्फ हाथ जोडकर चीन को ऐसा न करने की विनती ही कर पा रहे हैं..!
जब सरकार से कुछ न हो पाया तो अपने ही क्षेत्र दौलत बेग ओल्दी में सुपर हर्कुलस विमान पहली बार उतार दिया। अपनी ही जमीन पर विमान उतरा कर भले ही हम इतरा रहे हैं लेकिन चीन तो काफी पहले से ही एलएसी के दूसरी तरफ अपनी सीमांत इलाकों को पूरी तरह विकसित करने में लगा हुआ है, जो आने वाले वक्त में भारत के लिए बड़ा खतरा भी बन सकता है..! लेकिन हमारी सरकार को या तो इस बात का आभास ही नहीं है या फिर वह जनबूझकर आंख मूंद कर बैठी है..!
एक तरफ से पाकिस्तान ने पहले ही नाक में दम कर रखा है और दूसरी तरफ से चीनी सैनिक बार बार भारतीय सीमा में घुसपैठ कर भारत को चुनौती दे रहे हैं लेकिन भारत सरकार के रवैये को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे उसे देश की सुरक्षा की कोई परवाह ही नहीं है..!
पाकिस्तान के साथ हम कर क्या रहे हैं...पाक सेना गोलीबारी करती है तो अब हम जवाबी फायरिंग कर दे रहे हैं लेकिन पाक को करारा जवाब देने में हमारी सरकार पता नहीं क्यों अभी भी कतरा रही हैं..! चीन की घुसपैठ बढ़ती जा रही है तो हम अपनी ही सीमा में मालवाहक विमान सुपर हर्क्युलस को उतार कर खुश हुए जा रहे हैं..! दरअल हमारी सरकार में शामिल लोग अपने व्यक्तिगत हितों की रक्षा में इतने उलझे हुए हैं कि उन्हें देश की रक्षा की कोई चिंता नहीं है..!  
बात जब ज्यादा आगे बढ़ जाती है तो प्रधानमंत्री जी का कुछ ऐसा बयान आता है कि हमारे धैर्य की परीक्षा मत लो”, हम किसी भी उकसाने वाले कार्रवाई का कड़ा जवाब देंगे लेकिन प्रधानमंत्री जी आपसे गुजारिश है कि चीन और पाकिस्तान जैसे धूर्त पडोसियों के सामने हाथ जोड़ने से काम नहीं चलने वाला..! चुनाव और वोट की चिंता छोड़कर जरा देश के बारे में सोचिए वर्ना कहीं ऐसा न हो कि चुनाव के नतीजों में भी आपको ख्यालों में ही खुश रहना पड़े..!


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बुधवार, 21 अगस्त 2013

अब बोलो आसाराम, ताली कितने हाथ से बजी ?

क्या कहा..? नाम है आसाराम ! अरे आसाराम कम से कम रामके नाम का ही मान रख लेते ! दिल्ली गैंगरेप के बाद तो बड़ा ज्ञान बांट रहे थे ! उस वक्त तो दरिंदों के बीच फंसी पीडिता को तो दरिंदों को अपना धर्म भाई बनाने की गुहार करने तक की सलाह दे डाली थी..! उल्टा उसे ही दोषी ठहरा दिया था..! खुद बड़े धर्मात्मा बने फिरते हो, फिर ये क्या कर डाला..! रती भर भी शर्म नहीं आई..! नाबालिग पर नीयत डोल गई..! अब समझ आया आसाराम दिल्ली गैंगरेप पर बघारे गए तुम्हारे ज्ञान का सही मतलब..! (पढ़ें- दिल्ली गैंगरेप- राम-रामआसाराम!)
संत का चोला ओढ़ लेने से मन का पाप नहीं छिप जाता आसाराम..! और छिपा भी लोगे तो कब तक..? कब तक अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर, लोगों को डरा धमका कर अपने पापों पर पर्दा डालते रहोगे..! वैसे भी सच्चाई ज्यादा दिन तक छिपी नहीं रह सकती..! वो तो उस मासूम ने हिम्मत दिखा दी वर्ना धर्म का लबादा ओढ़ कर पता नहीं तुम कब तक अपने कुकर्मों को छिपाते रहते और जाने कितनों की जिंदगियां बर्बाद करते..!
वैसे भी आसाराम तुम्हारे जैसे अधर्मी से देश को बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं थी..! होली के नाम पर पानी की बर्बादी करते हो और ऊपर से हेकड़ी दिखाकर कहते हो कि भगवान से तो मेरी यारी है, जब चाहे बारिश करवा दूंगा..!(पढ़ें- महान हैं आसाराम जैसे संत..!)
एक मासूम गैंगरेप का शिकार होती है और कहते हो ताली एक हाथ से नहीं बजती..! अब क्या कहोगे जब खुद पर यौन शोषण का आरोप लगा है..! अब नहीं कहोगे की ताली एक हाथ से नहीं बजती..!
गलती तुम्हारी भी नहीं है आसाराम, जब तक देशवासी अंधविश्वास में डूबे रहेंगे तुम्हारे जैसों को भगवान का दर्जा गेकर सिर माथे पर बैठाते रहेंगे ये सिलसिला नहीं रुकने वाला..! पता नहीं कब हटेगा लोगों की आंखों से अंधविश्वास का ये पर्दा जिसकी आड़ में आसाराम जैसे लोग ऐश कर रहे हैं..!


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रुपया तो उठने की चीज है !

रुपया इतना कैसे गिर सकता है कि उठाने में पसीने निकल आएं, वैसे अपना व्यक्तिगत अनुभव बताऊं तो मैंने तो हमेशा रुपये को उठते हुए ही देखा है..! राशन लेने जाओ तो लाला उठा लेता है, दूध लेने जाओ तो दूधवाला उठा लेता है, पेट्रोल भराने जाओ तो पेट्रोल पंप वाला उठा लेता है, बस, ट्रेन या हवाई जहाज में सफर करो हर जगह रुपये को उठते हुए ही देखा है..! और तो और कभी सुलभ शौचालय का इस्तेमाल करो तो वहां भी रुपया उठ जाता है..!
ऐसे में जब चारों और रुपए के गिरने की ही चर्चा और उस पर चिंता हो रही थी तो इस पर सहसा यकीन नहीं हो रहा था..! लेकिन मेरे एक मित्र ने सड़क पर गिरे हुए रुपए को उठाने की लाख कोशिश करने के बाद रुपये के न उठने का अनुभव मुझ से साझा किया तो समझ में आया कि वाकई में रुपया कुछ ज्यादा ही गिर चुका है, इतना ज्यादा कि अब इसका उठना नामुमकिन सा लग रहा है..!
मित्र ने रुपए के न उठने की जो अनुभव साझा किया वो कुछ इस तरह का था।  मित्र के अनुसार वो कुछ सामान खरीदने बाजार गया था, मंदी का असर बाजार में भी था और भीड़ न होने से बाजार की तंग गलियां भी काफी चौड़ी दिखाई दे रही थे..! ग्राहकों के साथ व्यस्त रहने वाले दुकानदार ग्राहकों के इंतजार में अपनी अपनी दुकान के आगे टाईम पास कर रहे थे..!
सड़क पर चलते हुए मित्र की निगाह सडक पर पड़ी किसी चमकीली वस्तु पर पड़ी, पास जाकर देखा तो वह रुपया था। रुपये तो देखते हुए वह ठिठक गया, उसने जल्दी से अपनी दोनों तरफ देखा कि कहीं किसी का ध्यान उस पर तो नहीं है, आश्वसत होने पर वह रुपये की ओर हाथ बढ़ाते हुए तेजी से नीचे झुका लेकिन रुपया उसके हाथ में नहीं आया, उसने दोबारा रुपये को उठाने की कोशिश की लेकिन रुपया उठने को तैयार नहीं था, इसी बीच उसे बगल की दुकान के सामने बैठे तीन – चार लोगों की जोर से हंसने की आवाज सुनाई दी तो वह एकपल को झेंप गया और तेजी से वहां से आगे निकल आया..! वह समझ गया था कि ये आस पास के दुकानदारों की शरारत थी..!
दरअसल मंदी में टाइम पास कर रहे आस पास के दुकानदारों ने रुपए के एक तरफ डामर लगाकर उसे सड़क पर चिपका दिया था ताकि कोई भी उसे उठाने की कोशिश करे तो वह उसके हाथ में न आए..! भले ही दुकानदारों ने टाईम पास के लिए मस्ती के लिए ये सब किया हो लेकिन रुपये की ये कहानी अपने आप में बहुत कुछ बयां करती है..! कुछ मिलाकर रुपया इसी तरह गिरता रहा तो वॉट आम जनता की ही लगनी है, उन्हें इससे क्या फर्क पड़ता है जिनका काला – सफेद सारा रुपया विदेशी बैंकों में जमा है..! वैसे भी ये लोग आम जनता की मेहनत के रुपये को भ्रष्टाचार और घोटालों के जरिए उठाना अच्छी तरह जानते हैं..! पता नहीं,  सत्ता के नशे में मदहोश देश के इन कथित कर्णधारों को देश के जनता कब गिराएगी..!


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मंगलवार, 20 अगस्त 2013

आखिर आलाकमान को भी तो खुश करना है !

उत्तराखंड में आई भीषण आपदा को दो महीने का वक्त बीत जाने के बाद भी सरकार प्रभावितों तक राहत सामग्री पहुंचाने के साथ ही उनके पुनर्वास के लिए प्रभावी कदम उठाने में विफल रही है..! आपदा राहत कार्यों को सही ढंग से अंजाम देने में विफल रहने और इस दौरान दिल्ली दरबार पर माथा टेकने में व्यस्त रहने पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की खूब आलोचना भी हुई लेकिन हैरत की बात है कि इसके बाद भी जैसे तैसे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा की कुर्सी अभी तक एकदम सही सलामत है..! (पढ़ें- उत्तराखंड के वो दिल्ली वाले मुख्यमंत्री..!)
हालांकि चर्चाएं तो अभी भी गर्म हैं कि आगामी एक-दो महीने में बहगुणा पर गाज गिर सकती है और मुख्यमंत्री की कुर्सी उनसे छीनकर किसी और को सौंपी जा सकती है, इन चर्चाओं से कुर्सी के दूसरे दावेदार मन ही मन खुश भी हो रहे हैं, लेकिन दूर दूर तक मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार न होने के बाद भी अगर बहुगुणा जैसे तैसे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो वे ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि कैसे अपनी कुर्सी बचानी है..! (जरुर पढ़ें- विजय बहुगुणा कैसे बने मुख्यमंत्री?)
फिर चाहे दिल्ली दरबार के चक्कर लगाने पड़ें या फिर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रुप में देखने का राग अलापना पड़े, बहुगुणा किसी भी जुगत को आजमाने से नहीं चूकते..!
सियासी आपदा प्रबंधन के बीच बहुगुणा को फिर से एक ऐसा ही मौका मिल गया है जिसे भुनाने में बहुगुणा ने बिल्कुल भी देर नहीं की..!
बहुगुणा ने आलाकमान को खुश करने के लिए 2014 के मद्देनजर यूपीए सरकार की महत्वकांक्षी योजना खाद्य सुरक्षा योजना को उत्तराखंड में लांच करने में देर नहीं की, ये बात अलग है कि बहुगुणा सरकार आपदा प्रभावितों को दो वक्त का राशन मुहैया कराने में विफल रही है..!
आपदा का दंश झेल रहे उत्तराखंड में इस योजना से 61 लाख से ज्यादा परिवारों को इसका लाभ मिलेगा जबकि लोगों को सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए सरकारी खजाने पर करीब 155 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा..! उत्तराखंड सरकार ने इस योजना को लांच तो कर दिया लेकिन प्रदेशवासियों को इसका लाभ दो सितंबर 2013 से मिलना शुरु होगा..!
दरअसल अपदा प्रबंधन में विफल रहे बहुगुणा का ये कदम खुद के सियासी आपदा प्रबंधन की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है क्योंकि बहुगुणा भी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि आपदा प्रबंधन में सरकारी विफलता के कारण उनकी कुर्सी डगमगा रही है और इसे बचाने का एक ही तरीका है कि कोई भी जुगत लगाकर बस आलाकमान को खुश किया जाए, फिर बहुगुणा के लिए इस नाजुक वक्त पर इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता था..? बहुगुणा ने भी देर नहीं की और राजीव गांधी के जन्मदिवस के मौके पर दिल्ली सरकार की तरह खाद्य सुरक्षा योजना को लांच कर दिया..!
शायद बहुगुणा की ये जुगत काम भी कर जाए और उनकी कुर्सी बच जाए क्योंकि आलाकमान तो बहुगुणा टाइप लोगों की ही सुनता है क्योंकि ऐसे लोग आलाकमान के आदेश पर सवाल नहीं करते बस आदेशों का पालन करते हैं और शायद यही आलाकमान चाहता भी है, तभी तो दौड़ में न होने के बाद भी सबको दरकिनार कर विजय बहुगुणा उत्तराखंड की कुर्सी पर काबिज हो गए..! (पढ़ें- वाह बहुगुणा ! हजारों मर गए, अब याद आया कर्तव्य..!)

deepaktiwari555@gmail.com 

रविवार, 18 अगस्त 2013

प्याज न खाने से नहीं मरता कोई..!

खाने में और सलाद में प्याज का मजा तो मेरे जैसे प्याज के शौकीन ही समझ सकते हैं..! मजे से प्याज खा भी रहे थे, बाजार में प्याज 35 से 40 रुपए किलो मिल भी जा रहा था लेकिन सभी समाचार चैनलों के साथ ही अख़बारों में प्याज के दाम आसमन में, थाली से प्याज गायब टाईप ख़बरों ने प्याज को एक बेशकीमती वस्तु बना दिया है..! प्याज की तुलना सेब के दामों सी की जाने लगी तो जो प्याज 35 से 40 किलो रुपए बिक रहा था वो प्याज रातों रात 60 से 80 रुपए किलो बिकने लगा..! (जरुर पढ़ें- एक प्याज की ताकत)
मीडिया का भी अगर प्याज पर ध्यान केन्द्रित नहीं होता तो शायद प्याज पर न तो महंगाई के पंख लगते और न ही मैं आज ये पोस्ट लिख रहा होता और आज एक बेशकीमती वस्तु बना प्याज सब्जी वाली के ठेले में आलू के बराबर में पड़ा - पड़ा चुपचाप बिक रहा होता..!
सिर्फ प्याज से अगर किसी भूखे का पेट भरता तो बात समझ में भी आती और प्याज के दामों को लेकर मच रहे हो हल्ले में भईया हम भी शामिल हो जाते लेकिन सच तो ये है कि किसी गरीब परिवार में सब्जी प्याज के बिना तो बन सकती है, वह प्याज के सलाद के बिना तो खाना खा सकता है लेकिन उस परिवार के पास सब्जी और रोटी खरीदने के पैसे ही अगर न हों तो क्या कर लिजिएगा..?
जाहिर है उसके पास अगर पैसा है भी तो उसकी पहली प्राथमिकता रोटी, सब्जी, दाल चावल ही होगी न की सिर्फ प्याज..! बावजूद इसके प्याज को लेकर तो हो हल्ला मचा है लेकिन एक गरीब परिवार दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कैसे करेगा इसकी फिक्र किसी को नहीं है..!
दिल्ली का ही अगर उदाहरण ले लें तो कांग्रेस सरकार के 14 साल के कार्यकाल में दिल्ली में 737 लोगों की मौत की वजह भूख और गरीबी रही है..! विश्व के 95 करोड़ भूखों में से 45 करोड़ तो भारत में ही है, जिनमें से हर रोज कई लोग भूख के चलते दम तोड़ देते हैं..! मुझे नहीं लगता कि इनमें से कोई भी एक ऐसा रहा होगा जिसकी मौत प्याज के दाम बढ़ने के कारण या प्याज न खा पाने के कारण हुई हो..!
आटा 20 से 30 रुपए किलो मिल रहा है, खाने लायक चावल 30 रुपए से कम में नहीं मिल रहा है, दालें 70 से 80 रुपए किलो मिल रही हैं और सब्जियों के दाम तो खुद सब्जी वाला किलो में नहीं बताता कि कहीं खरीदने वाला ही न वापस लौट जाए..! ऐसे में सिर्फ एक प्याज के दामों को लेकर इतना हो हल्ला कहां तक सही है..? और तो और प्याज के दाम पर सरकार भी बावली हुई जा रही है..! खासकर दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार को शायद 1998 याद आ रहा है और आगामी विधानसभा चुनाव में सत्ता से बेदखल होने का डर सता रहा है तो 1998 में सत्ता गंवाने वाली भाजपा को 1998 का ये दोहराव सत्ता की एक सीढ़ी नजर आ रही है..! शायद इसलिए ही भाजपा प्याज की बढ़ती कीमतों को सरकार के खिलाफ मुद्दा बनाने की तैयारी कर रही है तो सरकार प्याज के सरकारी स्टॉल लगाकर जनता की नाराजगी दूर करने का प्रयास कर रही है..!
कुल मिलाकर प्याज के नाम पर सिर्फ सियासत हो रही है..! समाचार चैनल और अखबार अपनी-अपनी टीआरपी बढ़ा रहे हैं, वर्ना एक प्याज की इतनी मजाल कि वो बिना कटे ही लोगों की आंख से आंसू टपका दे..!