मामा की रेलगाड़ी पर शाही सवारी कर करोड़ों
के वारे न्यारे कर रहे भांजे पर सीबीआई का शिकंजा क्या कसा मामा ने रेलगाड़ी से भांजे
का डिब्बा ही गोल कर दिया..! मामा अब कहते फिर रहे हैं कि सरकारी
कामकाज में उनके किसी रिश्तेदार का कोई हस्तक्षेप नहीं है और इस घूसकांड की उनका
कोई लेना देना नहीं है लेकिन
मामा की ये दलील गले नहीं उतरती कि बिना उनकी जानकारी के उनका भांजा करोड़ों के
वारे न्यारे कर रहा है..! भरोसा हो भी तो कैसे..? रेलवे विभाग में किसी
छोटे कर्मचारी या अधिकारी से प्रमोशन के बदले रिश्वत लेने की बात होती तो समझ में भी
आती लेकिन रेलवे बोर्ड के मेंबर से मनचाही कुर्सी के
बदले दो करोड़ की डील करना और 90 लाख रूपए की पहली किश्त हासिल करना हर किसी के
बूते की बात तो है नहीं..!
जाहिर है इस मलाईदार पोस्ट के लिए रिश्वत
देने वाले महेश कुमार भी छोटे खिलाड़ी तो होंगी नहीं कि किसी से भी दो करोड़ की
डील कर 90 लाख रुपए की पहली किश्त दे भी दें...! उन्हें सामने वाले की बात और पहुंच के वजन का अंदाजा होगा और सामने से कोई
ठोस भरोसा मिला होगा तभी उन्होंने 90 लाख रुपए ढीले किए होंगे...!
हैरानी की बात तो ये है कि रेलवे बोर्ड में
मेंबर (इलेक्ट्रिकल) जैसी मलाईदार पोस्ट पाने के
लिए रेलमंत्री के भांजे विजय सिंगला ने महेश कुमार से दस करोड़ रुपए की मांग की थी
लेकिन मामला दो करोड़ में सैटल हुआ था..!
सोचिए जिस पद के लिए महेश कुमार दो करोड़
रुपए की रिश्वत देने को तैयार हो गए थे आखिर उस कुर्सी पर बैठने के बाद महेश कुमार
जैसे अधिकारी देश को कितना लूटते..!
जाहिर है महेश कुमार दो करोड़ रुपए रिश्वत देकर अगर वो कुर्सी हासिल करते तो इस
कुर्सी के बल वे रिश्वत की रकम के कई गुना के वारे न्यारे भी करते..!
फिलहाल तो महेश कुमार सीबीआई की गिरफ्त में
हैं और उनका रेलवे बोर्ड में मेंबर (इलेक्ट्रिकल) बनने के सपने पर सीबीआई ग्रहण
लगा चुकी है।
भांजे की गिरफ्तारी के बाद कठघरे में खड़े मामा
कुछ भी कहें लेकिन यहां दाल में काला नहीं है बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आ रही है
और इस काली दाल के लिए भांजे के साथ ही मामा की भूमिका भी बराबर शक के घेरे में है..!
हालांकि मामा ने भरोसा दिलाया है कि इस मामले
में सीबीआई निष्पक्ष तरीके से काम करेगी। मामा के इस बयान से तो यही लगता है कि जैसे
दूसरे मामलों में सीबीआई निष्पक्ष तरीके से जांच नहीं करती लेकिन इस मामले में
करेगी..! दूसरे मामलों की तरह कितनी निष्पक्ष जांच
होगी ये बताने की जरूरत नहीं है..! बस
सीबीआई निदेशक रंजीतसिन्हा कोलगेट मामले की तरह किसी तरह
की रिपोर्ट रेलमंत्री से या पीएमओ के पास चैक कराने न ले जाएं..! (जरूर पढ़ें- क्यों दें कानून मंत्री इस्तीफा..?)
वैसे भी जब पार्टी ने घूसकांड में भांजे की
गिरफ्तारी के बाद भी जब मामा का इस्तीफा लेने की बजाए बचाव शुरु कर दिया हो तो फिर
क्यों कोई रेलमंत्री की कुर्सी छोड़ेगा..! कुर्सी
वो भी केन्द्रीय मंत्री की इतनी आसाने से तो मिलती नहीं...कुर्सी के लिए नेतागण
क्या - क्या जतन नहीं करते..?
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