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शनिवार, 15 जून 2013

नीतीश तो 2002 से खा रहे हैं मरने की दवा..?

एनडीए से जद यू के अलग होने की संभावनाओं के बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक शेर पढ़ते हुए अपने दिल की बात कुछ यूं कही...दुआ देते हैं जीने की, दवा देते हैं मरने की...नीतीश कुमार के इस शेर का मतलब तो आप समझ ही गए होंगे कि इस शेर में दुआ का क्या मतलब है और दवा के क्या मायने हैं।
जाहिर है भाजपा-जद यू गंठबंधन को न तोड़ने की भाजपा की मंशा को नीतिश ने दुआ में व्यक्त किया है तो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनाव अभियान समिति का चेयरमैन बनाने को नीतीश ने दवा के रुप में..! कुल मिलाकर नीतीश के तेवरों और इस शायराना अंदाज का साफ मतलब है कि नीतीश 2014 के लिए मोदी को भाजपा के संभावित पीएम पद के उम्मीदवार के रुप में किसी भी कीमत में स्वीकार नहीं करना चाहते हैं फिर चाहे इसके लिए जद यू और भाजपा का 17 साल पुराना साथ ही क्यों न छूट जाए..!
सेक्यूलरिज्म की बात करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मोदी 17 सालों तक सेक्यूलर नजर आते हैं लेकिन बात जब प्रधानमंत्री की कुर्सी की आती है तो यही मोदी नीतीश कुमार को सांप्रदायिक नजर आते हैं। सिर्फ सांप्रदायिक नजर आते तो ठीक था लेकिन यहां तो नीतीश को मोदी मरने की दवा लगने लगे हैं..!
ये वही नीतीश कुमार हैं जो 2002 में गुजरात में हुए दंगों के वक्त केन्द्र की तत्कालीन एनडीए सरकार में रेलमंत्री थे। दंगों की वजह से ही नीतीश मोदी को मरने की दवा कह रहे हैं लेकिन अगर वाकई में ऐसा है तो सवाल तो नीतीश पर उठता है कि आखिर क्यों नीतिश ने तब रेल मंत्री की कुर्सी से इस्तीफा देकर अपने रास्ते अलग कर लिए..?
ये छोड़िए इसके बाद क्यों उसी मोदी वाली भाजपा के साथ मिलकर बिहार में विधानसभा चुनाव भी लड़ा..? तब तक भी नीतीश को मोदी सांप्रदायिक नहीं दिखाई दिए..! नीतीश यहां ये तर्क भले ही दे सकते हैं कि वे समय समय पर मोदी का विरोध करते रहे हैं लेकिन इसके बाद भी तो नीतीश मोदी वाली पार्टी के साथ मिलकर ही बिहार में सरकार चला रहे हैं..!
अब मोदी वाली भाजपा में जब मोदी का कद बढ़ रहा है तो नीतीश कुमार एंड कंपनी के पेट में दर्द होने लगा है और वे मोदी के नाम पर भाजपा से गंठबंधन तोड़ने की तैयारी कर रहे हैं..!
नीतीश कुमार जी ये तब भी मोदी वाली ही भाजपा थी जब आप 2002 में एनडीए सरकार में रेल मंत्री थे...ये तब भी मोदी वाली ही भाजपा थी जब आपने बिहार में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और ये अब भी मोदी वाली वही भाजपा है जिससे अब आप जीने की दुआ के साथ मरने की दवा खिलाने की बात कर गंठबंधन तोड़ने की बात कर रहे हैं..!
नीतीश जी शेर तो आपने आज पढ़ा लेकिन आपके ही अनुसार मरने की दवा तो आप 2002 से खा रहे हैं क्योंकि 2002 में शाद आपसे रेलमंत्री की कुर्सी का मोह नहीं छूट रहा था और उसके बाद बिहार में जद यू की सरकार बनाकर मुख्यमंत्री बनने का सपना आपको साकार करना था..!
सही मायने में राजनीति शायद इसी का नाम है...जब तक अपना फायदा है तब तक सब ठीक है...किसी से भी दोस्ती करने में परहेज नहीं है लेकिन जब अपना नुकसान लगने लगे या फिर सामने वाले आगे बढ़ने लगे तो उसकी टांग खींच दो..!
जद यू भी यही कर रही है...नीतीश को लगता है कि पीएम पद के उम्मीदवार के लिए मोदी के नाम पर सहमति जताने से बिहार का अल्पसंख्यक वोटर उनसे कट जाएगा तो भाजपा को लगता है मोदी की लोकप्रियता के नाम पर 2014 में उनकी नैया तर जाएगी..! लेकिन भाजपा और जद यू दोनों को ही ये नहीं भूलना चाहिए कि ख्वाब वे चाहे जितने बड़े देख लें लेकिन जनता के साथ के बिना ये साकार नहीं हो सकते... क्योंकि ये पब्लिक है...ये सब जानती है..!


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शुक्रवार, 14 जून 2013

नौ साल का वनडे मैच..!


आर्थिक सुधार कोई वन डे मैच नहीं है जिसमें हर गेंद पर विकेट गिरने या छक्का लगने की उम्मीद की जा सके..ये कहना है वित्त मंत्री पी चिदंबरम का। वैसे इसका आशय भी आप समझ ही गए होंगे कि चिदंबरम साहब कहना चाह रहे हैं कि आर्थिक सुधारों के लिए सरकार को और वक्त चाहिए। यूपीए सरकार को नौ साल हो गए हैं लेकिन बकौल चिदंबरम आर्थिक सुधारों के लिए ये नौ साल भी कम हैं..!
चिदंबरम की गणित को समझा जाए तो फिर आर्थिक सुधारों की दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बेहतर नतीजे के लिए ये वक्त काफी नहीं है और यूपीए सरकार को कम से कम 50 साल शासन करने का मौका और दिया जाना चाहिए तब जाकर देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आएगी..!
आर्थिक सुधारों के विषय में अपना सामान्य ज्ञान तो चिबंदरम के आगे कहीं टिकटा नहीं ऐसे में चलिए मान लेते हैं कि चिदंबरम साहब सही कह रहे हैं कि आर्थिक सुधार कोई वन डे मैच नहीं हैं लेकिन ये समझ नहीं आया कि फिर नौ साल तक यूपीए सरकार ने क्या काम किया..? अब जबकि सरकार का कार्यकाल सिर्फ एक साल बचा है तो चिदंबरम जनता को आर्थिक सुधार और वन डे मैच का गणित समझा रहे हैं..!
अरे चिदंबरम साहब आर्थिक सुधारों के संबंध में आपका सामान्य ज्ञान ज्यादा अच्छा होगा लेकिन वन डे मैच और 9 साल के यूपीए सरकार के कार्यकाल को देश की जनता आप से बेहतर ही समझ रही है।
नौ सालों में जब हर गेंद पर घोटालों और भ्रष्टाचार के रिकार्ड आपकी सरकार में शामिल लोग बना सकते हैं लेकिन देश की अर्थ व्यव्स्था को पटरी पर लाने के सवाल पर आप कहते हो कि आर्थिक सुधार कोई वनडे मैच नहीं है। चिदंबरम साहब सरकार में शामिल लोगों को ध्यान अगर घोटालों और भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होता तो शायद अर्थ व्यवस्था की ये हालत ही नहीं होती..! लेकिन अगर सरकार को अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की चिंता होती तो फिर नेताओं की जेबें घोटालों और भ्रष्टाचार की कमाई से कैसे भरती..?
रुपए की लगातार गिरावट पर चिदंबरम ये कहते हुए खुद के साथ ही जनता को दिलासा दे रहे हैं कि ब्राजील, मैकेसिको और चिली जैसे देश भी खराब दौर से गुजर रहे हैं..! गजब है चिदंबरम साहब तुलना भी कर रहे हो तो ब्राजील, मेक्सिको और चिली से...कभी चीन और जापान की बात भी तो कर लिया करो..आप तो ये देखकर खुश होने में लगे हैं कि चिली, मैक्सिको और ब्राजील भी ख़राब दौर से गुजर रहे हैं..!
दोष आपका भी नहीं है चिदंबरम साहब, जब देश के प्रधानमंत्री देश वासियों का सामान्य ज्ञान ये कहकर बढ़ाते हैं कि पैसे पेड़ पर नहीं लगते तो फिर आपसे क्या उम्मीद की जा सकती है..!

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बुधवार, 12 जून 2013

तौलिया मास्टर और कांडा..!

आईपीएल के तौलिया माटर एस श्रीशांत तिहाड़ से बाहर आ गए हैं। बड़े खुश हैं श्रीशांत महाराज...जेल में श्रीशांत को कांडा गुरु जो मिल गए। कांडा से श्रीशांत इतने प्रभावित हैं कि कांडा की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं। कांडा को तो जानते ही होंगे न आप...वही गोपाल कांडा...हरियाण का पूर्व मंत्री जो एयर होस्टेस गीतिका आत्महत्या केस में फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद है..!
तौलिया मास्टर कह रहे हैं कि गोपाल कांडा ने जेल में उसका खूब हौसला बढ़ाया...टिप्स भी दिए कि कैसे बुरे वक्त में हिम्मत रखी जाती है। श्रीशांत ने कांडा की तारीफ तो कि लेकिन ये नहीं बताया कि कांडा ने उसे और क्या क्या गुरुमंत्र दिए हैं..? जैसे- कैसे लड़कियों का शोषण करो..? कैसे लड़कियों को ब्लैकमेल करो..? कैसे उन पर अत्याचार करो..? और उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दो..? (पढ़ें ख़बर - तिहाड़ में गोपाल कांडा ने दिए श्रीशांत को 'टिप्स')
अब श्रीशांत ने कितनी सीख ली ये तो श्रीशांत ही जानें लेकिन जिस तरह से जेल से जमानत पर बाहर आने पर श्रीशांत गोपाल कांडा की तारीफ करते नहीं अघा रहे थे उससे तो यही लगता है कि कांडा और श्रीशांत की तिहाड़ में आपस में खूब जमी..!
अरे तौलिया मास्टर अब तो शर्म करो..! और अगर तारीफ ही करनी थी तो किसी दूसरे की कर लेते...लेकिन लगता है कांडा के कारनामों से तुम ज्यादा ही प्रभावित दिखे..! खैर इसमें तुम्हारा भी दोष नहीं है...तिहाड़ में वैसे भी तुम्हें गोपाल कांडा जैसे लोगों के अलावा और मिलता भी कौन..?  
एक ठहरा राजनेता और दूसरा क्रिकेटर...दोनों के पास दौलत और शोहरत की कोई कमी नहीं थी..! लेकिन इनको ये रास नहीं आयी और अपनी अय्याशी के लिए एक ने अपनी ही कंपनी की एयर होस्टेस का जमकर शारीरिक और मानसिक शोषण कर उसे आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया तो दूसरे ने उस खेल को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिस खेल ने उसे दौलत और शोहरत के शिखर पर पहंचाया..!
ये छोड़िए इतना सब होने के बाद भी दोनों खुद को निर्दोष ठहरा रहे हैं और एक दूसरे की तारीफ में कसीदे गढ़ रहे हैं..! अब दोनों वाकई निर्दोष हैं तो भई कम से कम दोनों तिहाड़ जेल प्रबंधन को अपनी मेहमान नवाजी का मौका तो नहीं ही दे रहे होते..!  


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मंगलवार, 11 जून 2013

चिट्ठी में लिखे शब्द कैसे वापस लोगे आडवाणी जी..?

आडवाणी पीएम पद के उम्मीदवार की रेस में मोदी से न जीत पाए तो क्या..? ग्वालियर में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तारीफ, गोवा बैठक से पहले आडवाणी की बीमारी और फिर मोदी की चुनाव अभियान समिति के चेयरमैन पद पर ताजपोशी के बाद पार्टी के सभी पदों से आडवाणी के इस्तीफे की चिट्ठी ने इतना काम तो कर ही दिया है कि जिस मोदी के सहारे भाजपा 2014 में केन्द्र की सत्ता में 10 साल बाद वापसी का ख्वाब देख रही है, वो ख्वाब पूरा होना अब इतना आसान नहीं रहा जितना कि भाजपा के इस नाटकीय घटनाक्रम से पहले लग रहा था..!
आडवाणी की बीमारी तक तो भाजपा के लिए सब कुछ इतना नहीं बिगड़ा था लेकिन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को लिखी आडवाणी के इस्तीफे की चिट्ठी ने भाजपा की साख पर ही बट्टा लगा दिया। आडवाणी ने जिस तरह से चिट्ठी में पार्टी की दिशा दशा को लेकर सवाल उठाए वो हैरान करने वाला था..! आडवाणी के इन सवालों ने न सिर्फ भाजपा के विरोधियों को भाजपा पर पूरी तरह से हावी होने का मौका दिया बल्कि 2014 को लेकर भाजपा की उम्मीदों पर भी कुठाराघात का काम किया..!  
मान मनौव्वल के बाद आडवाणी ने भले ही अपना इस्तीफा वापस ले लिया हो लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर भाजपा को शिखर में पहुंचाने वाले आडवाणी ने ही भाजपा को एक झटके में धरातल में लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी..!
आडवाणी ने इस्तीफा तो वापस लिया लेकिन आडवाणी पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को लिखी चिट्ठी में लिखे अपने शब्दों रुपी उन बाणों को चाहकर भी वापस नहीं ले सकते जिन बाणों के निशाने पर उनकी अपनी ही पार्टी है..! और ये बाण 2014 में भाजपा को लहूलुहान भी कर सकते हैं..!
आडवाणी ने ये सब शायद इसलिए भी किया क्योंकि उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं था...इस सब से आडवाणी जैसे तैसे पीएम पद की उम्मीदवारी पा जाते तो ये आडवाणी का प्लस ही होता लेकिन आडवाणी की बीमारी और खासकर चिट्ठी से भाजपा और मोदी दोनों कुछ पाने से पहले ही बहुत कुछ खोने की स्थिति में आ गए हैं..!


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सोमवार, 10 जून 2013

वो तेरे नसीब की बारिशें, किसी और छत पे बरस गयीं...

लाल कृष्ण आडवाणी ने राजनाथ सिंह को लिखी इस्तीफे की अपनी चिट्ठी में न सिर्फ अपने दर्द को बयां किया बल्कि ये भी लिखा कि जिस पार्टी का ध्येय देश सेवा हुआ करता था वह पार्टी अब नेताओं के निजि हितों को पूरा करने का माध्यम बन गयी है।
ये बात जगजाहिर हो चुकी है कि आडवाणी को पार्टी का उनकी इच्छा के खिलाफ मोदी को चुनाव अभियान समिति का चेयरमैन बनाने के फैसले पर आपत्ति है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आडवाणी खुलकर इस बात को क्यों नहीं कहते कि उन्हें पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर हो रही मोदी की ताजपोशी की तैयारी से दिक्कत है और वे खुद एक बार फिर से पीएम पद के उम्मीदवार बनना चाहते हैं..?
पार्टी में गिने चुने नेताओं को छोड़ दें तो कोई भी इस बात को कहने वाला नहीं है कि आडवाणी 2014 के लिए भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार हों..! आडवाणी मोदी के बढ़ते कद से तो नाराज़ हैं लेकिन खुद न तो इस बात को कह रहे है कि मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार न बनाया जाए और न ही ये कि पीएम पद की उम्मीदवार वे खुद बनना चाहते हैं..!
माना कि आडवाणी खुद पीएम पद का उम्मीदवार नहीं बनना चाहते तो फिर वे विकल्प सुझाएं न...वे क्यों नहीं अपनी दिल की पूरी बात कहते कि फलां नेता के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाए और फलां नेता को ही पीएम पद का उम्मीदवार बनाया जाए..?
जाहिर है आडवाणी कि खुद की इच्छा है कि वे पीएम पद के उम्मीदवार बनें और शायद इसलिए ही मोदी की चुनाव अभियान समिति के चेयरमैन पद पर ताजपोशी से आडवाणी को ये आभास हो गया है कि अब मोदी पीएम पद के उम्मीदवार की दौड़ में उनसे कहीं आगे निकल गए हैं..! ऐसे में आडवाणी ने पार्टी में उनकी एक न सुनी जाने पर पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देकर पार्टी के काम काज के तरीके और औचित्य पर ही सवाल खड़ा कर दिया..!
राजनीति भी गजब है जिस पार्टी को खड़ा करने में आडवाणी ने अपना पूरा जीवन लगा दिया उस पार्टी की कार्यप्रणाली और दशा-दिशा पर अब आडवाणी खुद ही सवाल उठाने लगे हैं और खुद के साथ ही पार्टी की भी मिट्टी पलीत करने में लगी हैं।
आडवाणी जी ये कैसा आपका पार्टी प्रेम हैं...खुद के निजि हित पूरे होते नहीं दिखाई दे रहे तो पार्टी पर ही सवाल खड़ा कर दिया..! और बात कर रहे हैं कि पार्टी नेताओं के निजि हितों को पूरा करने का माध्यम बन गयी है।
जिस पार्टी के साथ आडवाणी ने अपना पूरा जीवन गुजार दिया उम्र के इस पड़ाव में आडवाणी उस पार्टी का दमन छोड़कर अलग पार्टी का गठन या किसी दूसरे दल में तो शामिल होंगे नहीं..! ताउम्र भाजपा के प्राथमिक सदस्य तो बने ही रहेंगे फिर भी अपनी पार्टी की मिट्टी पलीत करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं..!
यहां आडवाणी की बात पर गौर कीजिए...आडवाणी कहते हैं कि वे पार्टी के काम करने के तरीके और दशा दिशा से खुद को इसलिए नहीं जोड़ पा रहे हैं कि क्योंकि उन्हें लगता है कि भाजपा अब वो पार्टी नहीं रही जिसका ध्येय राष्ट्र व राष्ट्र के लोगों की सेवा हुआ करता ।  
आडवाणी जी आप राष्ट्र सेवा की बात कर रहे हैं तो क्या सिर्फ पार्टी में रहकर या पीएम की कुर्सी पाकर ही राष्ट्र व राष्ट्र के लोगों की सेवा की जा सकती है..? क्या जो लोग किसी न किसी पार्टी के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं या पीएम जैसी कुर्सी पर बैठे हैं वे ही लोग राष्ट्र सेवा कर रहे हैं..?
जाहिर है राष्ट्र व राष्ट्र के लोगों की सेवा के लिए पार्टी या कुर्सी की जरुरत नहीं है बस सेवा करने का भाव दिल में होना चाहिए वरना जो लोग राजनीतिक दलों में बड़े पदों पर हैं या पीएम की कुर्सी पर बैठे हैं वे लोग कैसी देश सेवा कर रहे हैं ये तो देश बरसों से देखता आ रहा है..!
बहरहाल भाजपा में घमासान जारी है...लाल कृष्ण आडवाणी को इस्तीफा वापस लेने के लिए उन्हें मनाने की पूरी कोशिश की जा रही है ऐसे में देखना ये होगा कि आडवाणी के निजि हित पार्टी पर भारी पड़ेंगे या फिर आडवाणी भाजपा के लिए इतिहास हो जाएंगे। फिलहाल तो आडवाणी जी के लिए एक मशहूर शेर याद आ रही है-
वो तेरे नसीब की बारिशें, किसी और छत पर बरस गयीं
जो तुझे मिला उसे याद कर, जो न मिला उसे भूल जा


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रविवार, 9 जून 2013

शराब चीज ही ऐसी है न छोड़ी जाए

शराब चीज ही ऐसी है न छोड़ी जाए...पंकज उधास की गज़ल के ये बोल तो आपने सुने ही होंगे। मैंने भी आज से पहले इन बोलों को सिर्फ सुना ही था इसे साक्षात रुप में देखा नहीं था लेकिन रविवार को ये बोल मुझे बकायदा दौड़ते हुए दिखाई दिए। दरअसल मैं अपने एक मित्र के साथ दिल्ली के मयूर विहार फेज थ्री की मार्केट से गुजर रहा था। हमने देखा कि मार्केट के साथ ही लगे पार्क के सामने मदिरा की दुकान पर खूब रौनक थी।
मदिरा की दुकान के सामने पार्क में भी शराबियों की महफिल सजी हुई थी। इसी बीच दिल्ली पुलिस के दो जवान डंडा फटकारते हुए पार्क में दाखिल हुए तो पार्क में भगदड़ मच गयी। पुलिस कर्मियों के तेवर देखकर समझ में आ गया था कि उनका इरादा किसी को पकड़ने का नहीं था बस पार्क में मदिरा का सेवन कर रहे लोगों को खदेड़ना था। शायद ये पुलिसकर्मियों की रोज की एक्सरसाईज थी खैर जो भी हो लेकिन पार्क का नजारा बड़ा ही जबरदस्त था...शायद में इसे उस अंदाज में शब्दों में न बयां कर पाऊं...फिर भी कोशिश करता हूं।
दोनों पुलिस जवान अलग-अलग दिशा में शराबियों को डंडा फटकारते हुए खदेड़ने लगे। इसी बीच मेरी नजर एक युवक पर पड़ी जिसकी उम्र करीब 35 से 40 वर्ष रही होगी। जिस दिशा में हम आगे बढ़ रहे थे उसी दिशा में यह युवक पार्क के अंदर दौड़ रहा था और बार – बार पीछे मुड़ - मुड़ कर पुलिसवालों को देख रहा था। युवक के एक हाथ में डिस्पोजल गिलास में शराब थी तो दूसरे हाथ में पानी का पाउच। काफी आगे तक दौड़ने के बाद जब युवक को लगा कि अब पुलिसकर्मी उसके तरफ नहीं आ रहे हैं तो वह एक पल को रुका और फिर उसने चैन की सांस लेते हुए एक ही घूंट में पूरा गिलास खाली कर दिया और फिर शान से आगे बढ़ गया। हमारी केन्द्र में सिर्फ यह युवक था लेकिन पार्क में इधर उधर भाग रहे मदिरा प्रेमियों की हालत एक जैसी ही थी।
फिर से ये पंक्तियां दोहरा रहा हूं- शराब चीज ही ऐसी है न छोड़ी जाए...ये मेरे यार के जैसी है न छोड़ी जाए। वाकई में उस युवक को देखकर लग रहा था कि उसके लिए शराब के क्या मायने हैं..? उसके लिए शराब क्या चीज है..? जिस तरह वह शराब के गिलास को पकड़कर दौड़ रहा था उससे उस युवक का मदिरा प्रेम तो कम से कम जाहिर हो ही रहा था। अब लोग कहते हैं तो कहते रहें कि शराब बुरी चीज है...शराब पीना छोड़ दो। अब शराब की बोतल में लिखा हुआ होता है कि मदिरा सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तो लिखा रहे लेकिन शराब पीने का आनंद उस युवक से बेहतर कौन समझा सकता है जो पुलिसकर्मियों से बचकर भाग रहा है लेकिन शराब का गिलास उसने नहीं छोड़ा और जैसे ही उसे मौका मिला एक ही सांस में पूरा गिलास खाली कर दिया और शान से अपने रास्ते चल दिया...जैसे वह कोई बड़ी जंग जीतकर आ रहा हो।

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मोदी- ये राह नहीं आसां

1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के समय में भाजपा का एक नारा याद आ रहा है - सबको देखा बारी बारी अबकी बारी अटल बिहारी...ये नारा भाजपा क खूब भाया था और केन्द्र में एनडीए की सरकार बनने के साथ ही अटल बिहारी दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने थे।
समय बदल गया है...भाजपा में चेहरे भी तेजी से बदलने लगे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के बाद 2009 में भाजपा में आडवाणी शिखर पर थे लेकिन 2014 आते आते अब आडवाणी युग भी ढलान पर है। गोवा में मोदी को 2014 के चुनाव अभियान समिति का चेयरमैन बनाने की घोषणा के साथ ही अब मोदी अपने शिखर पर हैं।
भाजपा ने भले ही मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित न किया हो लेकिन अटल बिहारी की तरह मोदी के नाम का नारा गढ़ने की शुरुआत भाजपा में हो चुकी है या कहें कि नारा तो गढ़ा जा चुका है और मोदी के चाहने वाले इसका जप भी कर रहे हैं..! लेकिन सवाल वहीं खड़ा है कि मोदी को आगे करने से और मोदी के नाम का नारा गढ़ने से क्या 2014 में केन्द्र की सत्ता में वापसी का भाजपा का ख़्वाब साकार रुप ले पाएगा..?
केन्द्र की यूपीए सरकार भ्रष्टाचार और घोटालों से घिरी हुई है...ऐसे में भाजपा के पास सत्ता में वापसी का मौका भी है। तमाम ओपिनियन पोल औऱ सर्वे भी मोदी को भाजपा की नैया के खैवनहार होने की भविष्यवाणी कर रहे हैं लेकिन जितनी तेजी से मोदी की लोकप्रियता और कद बढ़ा उतनी ही तेजी से भाजपा में एक ऐसा वर्ग तेजी से तैयार हुआ जिन्हें मोदी के नाम पर एलर्जी है..!
ये एलर्जी होना लाजिमी भी है क्योंकि राजनीति में कुर्सी पाना हर किसी का ख्वाब होता है ऐसे में सालों से कुर्सी के लिए वेटिंग की कतार में खड़े नेता हों या फिर दूसरे बड़े नाम हर किसी की महत्वकांक्षा 2014 में सत्ता के एहसास में जोर मारने लगी थी..! लेकिन ये एलर्जी भाजपा में तेजी से फैलती इससे पहले ही गोवा में मोदी को चुनाव अभियान समिती की चेयरमैन बना दिया गया और अघोषित तौर पर 2014 के आम चुनाव के लिए मोदी एनडीए के पीएम पद के उम्मीदवार भी घोषित कर दिए गए..!
मोदी के नाम से जिन्हें एलर्जी है उनकी जब एक न चली तो जाहिर है 2014 में भाजपा और सत्ता के बीच की राह के सबसे बड़े रोड़े भी वे ही लोग हैं जो सबके सामने तो फिलहाल पार्टी के फैसले के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं लेकिन शायद ही वे कभी इस फैसले को स्वीकार कर पाएं..!
जाहिर है इन नेताओं की नाराजगी पर्दे के पीछे पार्टी और मोदी दोनों की राह में एक दीवार की तरह काम करेगी और 2014 की जो राह भाजपा मोदी के सहारे आसानी से तय करने का ख्वाब देख रही है वो राह आसान होने की बजाए और मुश्किल होती जाएगी..!
ऐसे में 2014 में पार्टी और खुद का ख़्वाब साकार करना नरेन्द्र मोदी के लिए आसान राह होने के बाद भी आसान तो बिल्कुल भी नहीं लगता..!
वैसे भी राजनीति में कब…? कौन..? किससे हाथ मिला ले..? कब..? कौन..? किससे नाता तोड़ ले कहा नहीं जा सकता..? ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जो आज मोदी के साथ खड़े हैं वो कल मोदी के विरोध में खड़े हों और जो मोदी का विरोध कर रहे हैं वो उनके साथ खड़े दिखाई दें..!

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