जैसे तैसे
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा का एक साल भी जैसे तैसे पूरा हो ही
गया..! ऐसे में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के 6 मार्च के
हिंदुस्तान अखबार में छपे साक्षात्कार पर नजर पड़ी। साक्षात्कार ऐसा था कि अगर कोई
पढ़ ले तो बहुगुणा साहब के बारे में पढ़ने वाले की सोच ही बदल जाए कि वास्तव में
बहुगुणा साहब उत्तराखंड की कितनी चिंता करते हैं..?
उत्तराखंड की
स्थाई राजधानी के सवाल पर मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा कहते हैं कि पहाड़ी राज्य की
राजधानी पहाड़ में खासकर गैरसैंण को बनाना विवादित विषय है। बकौल बहुगुणा वे
गैरसैंण में राजधानी बनाने के विरोधी नहीं हैं लेकिन इस मुद्दे पर वे फिलहाल किसी
विवाद में नहीं पड़ना चाहते।
मेरी समझ से अगर
गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी बनाया जाता है तो शायद ये उत्तराखंड में किसी भी
सरकार का ऐसा फैसला होगा जिस पर कम से कम विरोध के स्वर नहीं उठेंगे...कोई भी पार्टी
चाहे वो खुद कांग्रेस हो, भाजपा हो या क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति पार्टी हो गैरसैंण
पर तो चाहकर भी विरोध के स्वर नहीं उठ पाएंगे...अगर उन्हें उत्तराखंड में राजनीति
करनी है तो..! हां बसपा जिसका थोड़ा बहुत जनाधार कुछेक मैदानी
इलाकों में है और सपा जिसका तो नामो निशां तक उत्तराखंड में नहीं बचा...वो जरूर
विरोध कर सकते हैं लेकिन इनका विरोध करना...न करना एक बराबर है।
फिर भी बहुगुणा
साहब का ये कहना कि वे विवाद में नहीं पड़ना चाहते इस ओर जरूर ईशारा करता है कि
पहाड़ी राज्य का, पहाड़ के लोगों का अगर कोई सबसे बड़ा विरोधी है तो वो खुद राज्य
के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा हैं...जिसे जबरदस्ती उत्तराखंड कांग्रेस पर और इस
राज्य पर थोपा गया है..! जो अकसर खुद कांग्रेसी दबी जुबान से कहते हुए सुनाई
भी दे जाते हैं..!
अपने साक्षातकार
में बहुगुणा साहब ने ये नहीं बताया कि जब गैरसैंण में राजधानी उन्हें विवादित विषय
लगता है तो फिर गैरसैंण में विधानभवन की नींव क्यों रखी गई..? क्या ये प्रदेश की जनता को बेवकूफ बनाने का खेल नहीं है..? प्रदेश की जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करना नहीं है..?
बहुगुणा साहब
शायद ये सोच रहे होंगे कि गैरसैंण में विधानभवन की नींव रखकर अगले कुछ और साल स्थायी
राजधानी के मसले को लटका कर रखेंगे ताकि जैसे तैसे एक साल का सफर पूरा किया है उसी
तरह चार साल और कट जाएंगे..!
वैसे भी गैरसैंण
में राजधानी को लेकर बहुगुणा सरकार कितनी संजीदा है इसका अंदाजा तो उसी दिन हो गया
था जब गैरसैंण में विधानभवन की नींव रखने के लिए मुख्यमंत्री समेत उनके मंत्रिमंडल
के ज्यादातर मंत्री हवाई मार्ग से गैरसैंण पहुंचे। बहुगुणा और उनके मंत्री जब एक
दिन गैरसैंण सड़क मार्ग से जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए तो क्यों ये चाहेंगे कि
गैरसैंण में राज्य की स्थायी राजधानी बने..?
इसका दूसरा
उदाहरण उस वक्त देखने को मिला जब मंत्रियों के प्रदेश दौरे के लिए सड़क मार्ग की
बजाए करोड़ों रूपए खर्च कर किराए का हेलिकॉप्टर लेने का फैसला बहुगुणा सरकार ने
लिया। (जरूर पढ़ें- 50 लाख का जनता दरबार..!)
बकौल बहुगुणा गैरसैंण
को राजधानी बनाने के लिए सरकार को 60 हजार करोड़ रूपए चाहिए। चलिए, आपने कहा और हमने
मान लिया..! लेकिन इतना और हमारा सामान्य ज्ञान बढ़ा दो कि इसमें से
कितना पैसा वास्तव में गैरसैंण में खर्च होगा और कितना गैरसैंण के बहाने सुविधा शुल्क
के बस्ते में जाएगा..? बहुगुणा साहब गैरसैंण को उत्तराखंड की
राजधानी बनाना है “मकाऊ” नहीं कि वहां पर
विश्व भर की ऐशो- आराम की सारी सुविधाएं जुटानी हैं..! (जरूर
पढ़ें- शराब के
लिए पैसे हैं…रसोई गैस के लिए नहीं…!)
साक्षात्कार में
बहुगुणा साहब ये भी बोले कि वे अपने पिता हेमवंती नंदन बहुगुणा के आदर्शों पर चलते
हैं। बहुगुणा साहब जहां तक मैंने आपके पिताश्री के बारे में पढ़ा है तो ये समझ में
आया कि वे बड़े स्वाभिमानी थे। यहां तक की उन्होंने कांग्रेस में रहते हुए भी तत्कालीन
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समक्ष कभी पूर्ण समर्पण नहीं किया। साथ ही अविभाजित उत्तर
प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने पहाड़ के विकास के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी।
लेकिन आप तो दिल्ली दरबार में राहुल गांधी के चाटुकारिता करने का कोई मौका नहीं छोड़ते
चाहे आपको राहुल की फटकार ही क्यों न सुननी पड़े..! (जरूर पढ़ें-विजय
बहुगुणा कैसे बने मुख्यमंत्री?) ये कैसा स्वाभिमान
है बहुगुणा साहब जो चाटुकारिता से भरपूर है और स्वाभिमान तो माइक्रोस्कोप से भी नहीं
दिखाई देता..! आपके पिताश्री हेमवंती नंदन बहुगुणा को हर्गिज
ऐसे न थे...फिर कैसे आप उनके आदर्शों पर चलने का दम भर रहे हो..!
deepaktiwari555@gmail.com