2014 के आम चुनाव से पहले आम जनता की
नजरों में खुद को एक दूसरे से बेहतर साबित करने के लिए राजनीतिक दल सियासी मंच पर किसी
भी तरह की नौटंकी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। दागियों को चुनाव लड़ने से रोकने के
लिए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद से ही शुरु हुआ ये सिलसिला अनवरत जारी
है। फिर चाहे इस पर पहले सभी दलों का एक सुर में बात करना हो या फिर सरकार का इस
फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश लाना और ऐन वक्त पर राहुल गांधी का अध्येदेश को बकवास
करार देते हुए इसे फाड़ कर फेंक देने जैसे बात कहना। (जरुर पढ़ें- सियासी ड्रामे के जरिए ही सही, कुछ तो अच्छा हुआ !)
सुप्रीम कोर्ट का ये ऐतिहासिक फैसला रास
तो शायद ही किसी राजनीतिक दल को आ रहा है लेकिन इसका खुलकर विरोध करने की हिम्मत
शायद किसी में नहीं है। भाजपा ने कोशिश करके पैर पीछे खींच लिए तो कांग्रेस भी
भाजपा की देखा देखी राहुल गांधी के गुस्से के बहाने अपने कदम पीछे खींचने की
तैयारी कर ली है। ये बात अलग है कि राहुल का ये गुस्सा कुछ ज्यादा ही बाहर आ गया
जिसके चलते सरकार असहज स्थिति में दिखाई दे रही है। इतनी असहज की प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह सोच तक नहीं पा रहे हैं कि राहुल के इस गुस्से पर प्रतिक्रिया दें या
फिर अपना इस्तीफा..!
कुल मिलाकर सभी राजनीतिक दल जनता के सामने
अब ये तस्वीर रखने की कोशिश में हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नाखुश
नहीं है और वे नहीं चाहते कि दागियों को बचाया जाए। दिल में तो सबके चोर है लेकिन
दिखाना ये चाहते हैं कि वे जनता के सच्चे हितैषी हैं और चुनाव सुधारों की दिशा में
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का वे पूरा सम्मान करते हैं। लेकिन बड़ी संख्या में
दागियों को चुनाव में वे क्यों दिल खोलकर टिकट देते हैं इसका सीधा सा जवाब शायद
किसी के पास नहीं है।
राजनीतिक दलों की सियासी चालों को न समझने
वाले लोगों को लगने लगा है कि भाजपा ने इस अध्यादेश का विरोध कर ठीक किया है और
राहुल गांधी ने भी अध्यादेश को बकवास करार देकर एक नेक काम किया है और भविष्य में ये
सभी राजनीतिक दल चुनाव में अब दागियों को टिकट देने से परहेज करेंगे लेकिन बड़ा
सवाल ये है कि क्या ऐसा कभी हो पाएगा..?
जाहिर है दागी मैदान में उतारे जाते
रहेंगे और राजनीतिक दल भी इनको पूरा संरक्षण देते रहेंगे लेकिन लोगों को ये नहीं
भूलना चाहिए कि दागियों से निजात दिलाने के लिए जनता को राजनीतिक दलों के भरोसे
नहीं बैठना चाहिए, उन्हें ये याद रखना चाहिए कि इसकी चाबी तो उनके खुद के पास ही
है। चुनाव में दागियों को नकार कर ईमानदार उम्मीदवार को जिताकर चाहे वह किसी भी दल
का क्यों न हो जनता अपनी ताकत का एहसास इन राजनीतिक दलों के आकाओं को करा सकती है,
लेकिन सवाल यहां भी खड़ा है कि क्या हम ऐसा होने की उम्मीद कर सकते हैं..?
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