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शनिवार, 27 जुलाई 2013

उत्तराखंड त्रासदी- बहुगुणा को मिला भाजपा का साथ !

राजनीति जो न कराए वो कम है, आपदा की मार झेल रहे उत्तराखंड में राजनीति का असल खेल देखने को मिल रहा है। बहुगुणा के राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद से ही सिडकुल भूमि घोटाला हो या बहुगुणा सरकार के दूसरे फैसले, भाजपा ने बहुगुणा सरकार को विफल बताते हुए एक नहीं कई बार बहुगुणा के इस्तीफे की मांग को लेकर खूब आवाज बुलंद की लेकिन राज्य गठन के बाद से उत्तराखंड अब जब सबसे भीषण त्रासदी से जूझ रहा है तो राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा को अब बहुगुणा से न तो कोई नाराजगी है और न ही कोई गिले शिकवा..!
आपदा प्रबंधन में विफल रहने पर देशभर में भले ही विजय बहुगुणा की खूब आलोचना हो रही हो लेकिन आपदा के तुरंत बाद बहुगुणा के इस्तीफे की मांग करने वाले भाजपा नेताओं के सुर भी अब बदले बदले नजर आने लगे हैं..! भाजपा नेता सरकारी तंत्र पर तो राहत कार्यों में ढ़िलाई बरतने का आरोप लगा रहे हैं लेकिन व्यक्तिगत रुप से मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की आलोचना या उनके इस्तीफे की मांग पर भाजपा नेताओं ने रहस्यमयी चुप्पी साध ली है..!
चौंकिए मत, ऐसा नहीं है कि मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने अचानक से कोई बहुत अच्छा काम किया है या फिर ये बहुगुणा का विपक्ष मैनेजमेंट है, बल्कि ये दरअसल भारतीय जनता पार्टी की वो चुनावी रणनीति है जिसके बल पर भाजपा दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्यों में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को उत्तराखंड आपदा के बहाने भी पटखनी देने की तैयारी कर रही है..!
16-17 जून को आपदा ने भले ही उत्तराखंड में कहर बरपाया था लेकिन इसकी मार ने पूरे देश को अपने आगोश में लिया था। वैसे तो देशभर के हर राज्य के लोग आपदा के वक्त उत्तराखंड में मौजूद थे लेकिन दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के लोगों की तादाद इनमें कुछ ज्यादा ही थी और बड़ी संख्या में इन राज्यों के लोग त्रासदी का दंश झेल रहे हैं, ऐसे में अब जब ये राज्य चुनाव की देहरी पर खड़े हैं तो भाजपा उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार की नाकामी के मुद्दे को इन चुनावों में भी भुनाने की तैयारी में है..!
आपदा के तुरंत बाद बहुगुणा के इस्तीफे की मांग करने वाली भाजपा ने एकाएक अपने सुर इसलिए बदल लिए क्योंकि भाजपा चाहती है कि इन राज्यों में चुनाव तक कम से कम बहुगुणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने रहें ताकि इस बात को भुनाया जा सके कि कांग्रेस आलाकमान ने आपदा प्रबंधन में पूरी तरह विफल रहने के बाद भी बहुगुणा को कुर्सी से नहीं हटाया..!
भाजपा के विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो अगर भाजपा बहुगुणा के इस्तीफे की मांग पर अड़ी रहती और कांग्रेस आलाकमान बहुगुणा से कुर्सी छीन लेता तो कांग्रेस के प्रति लोगों का गुस्सा कुछ कम हो जाता और शायद आगामी दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में भाजपा इस मुद्दे को उतने प्रभावी ढंग से नहीं भुना पाती जितना की बहुगुणा के कुर्सी पर रहते हुए भुना सकती है..!
दरअसल भाजपा का गेम प्लान है कि इन राज्यों के चुनाव से ऐन पहले वे बहुगुणा के खिलाफ आक्रमक रुख अपनाकर इन चुनावों में इसका भी फायदा उठाना चाहती है और इसलिए ही भाजपा को फूटी आंख न सुहाने वाले बहुगुणा अब उत्तराखंड भाजपा नेताओं के निशाने पर नहीं है..!
सही मायने में शायद यही राजनीति है, जहां अपने फायदे के लिए नेता किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं, उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि जनता किस हाल में है..! उत्तराखंड में भीषण त्रासदी के बाद अपने सियासी फायदे के लिए राजनीतिक दल जो कुछ कर रहे हैं, उससे तो कम से कम यही जाहिर होता है..!


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गुरुवार, 25 जुलाई 2013

मेरा भारत महान ! कोई शक..?

65 सांसद मोदी को वीजा न देने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा को चिट्ठी लिखते हैं तो भाजपा सांसद चंदन मित्रा मोदी की आलोचना करने पर अमर्तय सेन से भारत रत्न वापस लेने का राग अलापते हैं..!
योजना भवन में 35 लाख रुपए टॉयलेट निर्माण में खर्च करने वाला योजना आयोग कहता है कि गांव में 28 रुपए और शहर में 33 रुपए से कम खर्च करने वाला गरीब नहीं है..! कांग्रेसी नेता इस बेतुके तर्क को सही ठहराने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते..! अभिनेता से नेता बने राज बब्बर कहते हैं कि मुंबई में 12 रुपये में आदमी भरपेट भोजन कर सकता है तो एक और कांग्रेसी राशिद मसूद कहते हैं कि दिल्ली में 5 रुपये में भरपेट भोजन मिलता है..!
हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा इन सब से दो कदम आगे निकल गए..! हरियाणा सरकार किसानों को मुआवजे के रूप में एक और दो रुपए का चैक देती है और मुख्यमंत्री हुड्डा कहते हैं कि सही हिसाब किताब के बाद ही किसानों को मुआवजे का चैक दिया गया है..!
चूतियापे की भी हद होती है, क्या बोल रहे हैं..? क्या कर रहे हैं..? किसी चीज का होश तक नहीं है..! इन महान नेताओं को देखकर, इनकी बातें सुनकर तो मानो ऐसा लगता है कि भारत में बस यही एक समझदार हैं बाकी तो सब निरे मूर्ख हैं..!
मतलब ये लोग कुर्सी पाने के लिए किसी भी हद तक गिरने को तैयार हैं और कुर्सी मिलने के बाद ये खुद को भगवान ये कम नहीं समझते..! खुद की संपत्ति करोड़ों के हिसाब से बढ़ रही है लेकिन गरीब की दो वक्त की रोटी के लिए इन्हें 33 रुपए बहुत नजर आते हैं..!
ससंद और राज्यों की विधानसभा में अपने वेतन भत्ते बढ़ाने की मांग को खूब उठाते हैं लेकिन बाढ़ में अपनी सालभर की मेहनत गंवा चुके किसान को मुआवजे के रुप में एक और दो रुपए का चैक थमाकर कहते हैं कि सही हिसाब किताब से मुआवजा दिया गया है..!
दो धूर्त पड़ोसी पाकिस्तान और चीन सिर पर नाच रहे हैं लेकिन ये खास वर्ग के वोटबैंक को साधने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर विश्व बिरादरी में अपने साथ ही भारत की 121 करोड़ जना का उपहास उड़ाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं..! (जरुर पढ़ें- वोटबैंक के लिए ओबामा को खत !)
अमर्त्य सेन एक भारतीय होने के नाते देश के प्रधानमंत्री के रुप में मोदी को न देखने की अपने मन की बात कहते हैं तो ये कहते हैं कि अमर्त्य सेन से भारत रत्न वापस ले लिया जाना चाहिए..!
ये चाहते हैं कि देश की जनता को ये मूर्ख बनाते रहें और जनता मूर्ख बनकर आंख मूंद कर बस इनको वोट देती रहे..! ये जो कहें उसे ही पत्थर की लकीर मानकर सच मान ले और ऐसे ही भ्रष्टाचार और घोटालों के नित नए कायम होते रिकार्डों को देखकर ताली बजाती रहे और महंगाई को इन नेताओं को वोट देने के प्रसाद के रूप में हंसकर गृहण करती रहे..!
इनता बस चले तो भूख और कुपोषण से देश में हो रही मौत पर ये जनता से ये कहें कि ये तो देश की बढ़ती आबादी को कम करने का सरकारी फार्मूला है..! आतंकवादी घटनाओं में निर्दोष लोग मारे जाएं ते यो लोग यहां भी यही सरकारी फार्मूला फिट करने में देर न करें..!
जब ये कौम(नेता) भारत में मौजूद है और न सिर्फ मौजूद है बल्कि देश के अहम पदों पर काबिज हैपूरे देश को चला रही है, तो फिर हम क्यों न शान से कहें- मेरा भारत महान” !

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बुधवार, 24 जुलाई 2013

वोटबैंक के लिए ओबामा को खत !

उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र की जनता की फिक्र नहीं है...उनके पास अपने संसदीय क्षेत्र में जाने का वक्त नहीं है..! ये छोड़िए कई माननीयों के पास संसद की कार्यवाही में हिस्सा लेना तक का वक्त नहीं है लेकिन किसी खास वर्ग के मतदाताओं को साधने की कला इन्हें बखूबी आती है..! कैसे अपने बयानों के जरिए, अपने अजीबो गरीब कारनामों के जरिए मतदाताओं को अपने पक्ष में किया जाए इस कला में इन्हें महारथ हासिल है लेकिन जनता की समस्याओं को संसद में उठाना या फिर अपने स्तर पर सक्षम होते हुए भी उनका निराकरण करना इन्हें फिजूल लगता है..!
जनता से जुड़े मसले, देशहित के मसलों पर न तो इनकी जुबान खुलती है और न ही इनकी कलम चलती है लेकिन कुर्सी पाने के लिए जुबान भी कैंची की तरह चलती है और चिट्ठी भी ये खूब लिखते हैं..!
बात हो रही है लोकसभा के उन 40 और राज्यसभा के 25 सांसदों की जिन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को खत लिखकर नरेन्द्र मोदी को वीजा नहीं देने की अपनी मौजूदा नीति को बनाए रखने की अपील की है।
इन माननीयों के पास इस चिट्ठी को लिखने के लिए खूब वक्त है, हो भी क्यों न आखिर मसला वोटबैंक से जो जुड़ा हुआ है...! इन्हें ये साबित भी तो करना है कि वे एक खास वर्ग के लोगों के शुभचिंतक हैं, उऩके लिए अमेरिका के राष्ट्रपति को तक चिट्ठी लिख सकते हैं..!
चिट्ठी लिखकर ये सांसद इतना इतरा रहे हैं मानो इन्होंने कोई जंग जीत ली हो लेकिन ये लोग शायद इतना नहीं समझते कि उनकी इस हरकत से वे खुद उपहास का पात्र बन रहे हैं..! अपने राजनीतिक ओछेपन को दूसरे देश के सामने उजागर कर रहे हैं कि वे लोग वोटबैंक के लिए किस हद तक जा सकते हैं..!
चीन आए दिन भारतीय सीमा में घुसपैठ कर भारत को चुनौती दे रहा है, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से भारत जूझ रहा है, भूख और कुपोषण से भारत में हजारों मौत हो रही हैं, महंगाई अपने चरम पर है, भ्रष्टाचारी और घोटालेबाज जनता की गाढ़ी कमाई को उड़ा रहे हैं लेकिन इन माननीयों ने कभी जनता से जुड़े मुद्दों पर, देशहित से जुड़े मुद्दों पर इतनी गंभीरता नहीं दिखाई, संसद में आवाज नहीं उठाई लेकिन वोटों के लिए ये कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं..!
मैं नरेन्द्र मोदी को वीजा न देना के अमेरिका के फैसले को सही या गलत नहीं ठहरा रहा हूं..! ये अमेरिकी की अपनी नीति है और मोदी को वीजा देना न देना उसका विशेषाधिकार है लेकिन इसको लेकर भारतीय सांसदों का विशेष वर्ग के वोटबैंक को साधने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखना  गले नहीं उतरता..!
इन सांसदों की चिट्ठी पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा क्या सोच रहे होंगे ये इस पोस्ट के साथ साझा किए गए कार्टूनिस्ट नवल के कार्टून में बेहतर ढंग से दर्शाया गया है..!

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मंगलवार, 23 जुलाई 2013

मौत, साजिश और सियासत !

बिहार में सुशासन बाबू नीतिश कुमार के राज में 23 मासूम काल के गाल में समा जाते हैं। मासूमों कि मौत पर विपक्ष को राजनीति करता ही है लेकिन नीतिश बाबू भी इसमें अपना सियासी फायदा ढूंढने से बाज नहीं आ रहे हैं। मिड डे मील खाने से हुई बच्चों की मौत के बाद नीतिश का ये बयान की ये विपक्ष की साजिश हो सकती है और भाजपा और राजद दोनों मिलकर उन्हें बदनाम करना चाहते हैं ये जाहिर करती है कि बोधगया के महाबोधि मंदिर में धमाके और उसके तुरंत बाद मिड डे मील खाने से बच्चों की मौत के बाद बैकफुट पर आए नीतिश कुमार खुद इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर वे करें तो क्या करें..?
ऐसे में बजाए इसके कि बिहार के मुख्यमंत्री होने के नाते नीतिश इस हादसे के दोषियों को कड़ी सजा दिलाने और भविष्य नें ऐसे हादसे न होना ऐसा सुनिश्चित करने की ओर कड़े कदम उठाते...नीतिश ने बच्चों की मौत का ठीकरा भाजपा और लालू की राजद के सिर फोड़ने में देर नहीं की..!
क्या सुशासन बाबू आपसे तो ऐसी उम्मीद नहीं थी। सत्ता से दूर बैठे विपक्ष को तो माना सरकार पर निशाना साधने का मौका मिल गया है लेकिन आप तो प्रदेश के मुखिया हो, बिहारियों के हक के लिए दिल्ली में हुंकार भरते हो लेकिन अपने ही प्रदेश के 23 बच्चों की मौत पर आपका दिल नहीं पसीजता..! माना आप सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी हैं लेकिन मासूमों की मौत पर तो कम से कम आपसे सियासत की उम्मीद नहीं थी..!
वैसे दोष आपका भी नहीं है नीतिश बाबू..! राजनीति चीज ही ऐसी है कि यहां संवेदनाएं मायने नहीं रखती, दूसरों का दुख दर्द मायने नहीं रखता, मायने रखती है तो बस सत्ता..! सत्ता पाने के लिए, विरोधी को सत्ता से बेदखल करने के लिए फिर चाहे लाशों पर राजनीतिक रोटियां ही क्यों न सेंकनी पड़े, आप जैसे लोग इससे भी परहेज नहीं करते..! बिहार में भी तो यही हो रहा है विपक्षी दल भाजपा और राजद भी यही कर रहे हैं और सत्ता में काबिज आप भी..!
उन मां बाप के दर्द को शायद आप में से कोई नहीं समझ पाएगा जिन्होंने अपने हाथों से अपने कलेजे के टुकड़े को जमीन में दफन कर दिया..! (जरुर पढ़ें- उसे भूख से डर लगता था..!)
समझोगे भी कैसे..? उनमें से कोई आपका अपना नहीं था न..! समझ पाते तो शायद कम से कम मासूमों की मौत पर तो बिहार में सियासत नहीं हो रही होती..!


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सोमवार, 22 जुलाई 2013

क्या शिवराज बनना चाहते हैं पीएम..!

भाजपा मोदी के नाम पर इतरा रही है...भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह मोदी की तारीफ करते नहीं अघा रहे हैं। 2014 में मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने के साथ ही पीएम के रुप में मोदी की ताजपोशी का दम भर रहे हैं लेकिन चुनाव की देहरी पर खड़े भाजपा शासित मध्य प्रदेश में भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने मोदी की तस्वीर लगाने से तक परहेज किया है। जन आशीर्वाद यात्रा से जुड़े पोस्टर, बैनर, होर्डिंग से नरेन्द्र मोदी गायब हैं जबकि पार्टी के तमाम बड़े नेताओं की मुस्कुराती हुई तस्वीरें साथ नजर आ रही हैं।
2014 में मोदी के सहारे अपनी नैया पार लगाने के सपने देख रही भाजपा में कांग्रेस से बड़ी चुनौती अपनों से निपटने की होगी जो शायद भाजपा में मोदी के बढ़ते कद को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं..! मोदी के नाम पर आडवाणी की नाराजगी के बाद भाजपा के कई और नेताओं ने मोदी के नाम पर सहमति नहीं जताई, यहां तक कि एनडीए का कुनबा भी बिखर गया और जदयू ने अपनी राहें जुदा कर लीं लेकिन इसके बाद भी भाजपा मोदी के नाम पर आगे बढ़ती रही। मोदी को 2014 के चुनाव अभियान कमेटी का चेयरमैन बना दिया गया...राजनाथ सिंह पीएम के रुप में ईशारों ईशारों में कोई बार मोदी का नाम ले चुके हैं..!
राजनाथ सिंह बार बार कहते हैं कि मोदी भाजपा का सबसे ज्यादा लोकप्रिय चेहरा है लेकिन इसके बाद भी मध्य प्रदेश में सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए जन आशीर्वाद यात्रा निकाल रहे शिवराज सिंह चौहान ने मोदी को तरजीह देना जरूरी नहीं समझा..! जबकि ग्वालियर में आडवाणी के श्रीमुख से अपनी तारीफ सुनने के बाद खुद शिवराज सिंह ने ये कहा था कि मोदी, रमन सिंह और उनमें से वे तीसरे नंबर हैं जबकि मोदी नंबर एक पर..! लेकिन कुछ ही दिनों में ऐसा क्या हो गया कि मोदी को नंबर एक बताने वाले शिवराज की जन आशीर्वाद यात्रा के पोस्टर से तक मोदी गायब हैं..? (जरुर पढ़ें- मोदी- ये राह नहीं आसां)
महत्वकांक्षाएं हर किसी की होती हैं ऐसे में पीएम की कुर्सी को लेकर क्या शिवराज की महत्वकांक्षा तो नहीं जाग गयी..? क्या शिवराज को ये तो नहीं लगने लगा है कि मोदी भी तो उनकी तरह ही एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं ऐसे मे अगर मोदी 2014 में पीएम पद के उम्मीदवार की दौड़ में शामिल हो सकते हैं तो वह क्यों नहीं..? आखिर कौन नहीं चाहेगा कि मौका मिलने पर राजनीति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा जाए..? (पढ़ें- मोदी, नीतीश और शिवराज..!)
इस बात से इसलिए भी इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि जनआशीर्वाद यात्रा के पोस्टर से मोदी का चेहरा गायब होने के सवाल पर शिवराज सिंह  का जवाब था कि ये स्थानीय यात्रा है, जबकि इस स्थानीय यात्रा में भाजपा के कई दूसरे राष्ट्रीय नेताओं की तस्वीर पोस्टर में शामिल थी..! लेकिन इस पर शिवराज कुछ नहीं बोले..!
बहरहाल ये राजनीति है...यहां कब, क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता..? कौन, कब किसके साथ हो जाए..? कौन, कब किसके विरोध में हो जाए..? फिलहाल तो 2014 फतह करने की तैयारी में जुटी भाजपा के साथ ही नरेन्द्र मोदी के लिए अपनी ही पार्टी में एक के बाद एक सामने आ रही चुनौतियां उनकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा बनती दिखाई दे रही हैं..! ऐसे में देखना रोचक होगा कि मोदी कैसे अपनों से मिल रही चुनौतियों का सामना करते हैं..?


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