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रविवार, 2 नवंबर 2014

राबर्ट वाड्रा और शनिवार की रात !

किसी ने सही कहा है कि जब वक्त और हालात आपके अनुकूल न हो, तो शांत रहने में ही भलाई है, वरना नुकसान अपना ही होता है। अब देश की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा को ही देख लिजिए। शनिवार की रात शायद ही वाड्रा साहब कभी भूल पाएंगे। जमीन सौदों पर मीडिया से बात करने से बचने वाले राबर्ट वाड्रा ने जब मुंह खोला और अपना आपा खोया तो, वो भी उस वक्त जब वक्त और हालात दोनों उनके पक्ष में नहीं थे। केन्द्र में यूपीए सरकार का बोरिया बिस्तर बंध चुका था, तो हरियाणा में भी कांग्रेस सरकार सत्ता से बेदखल हो चुकी थी। इतना ही नहीं हरियाणा के नव नियुक्त सीएम ने तो हरियाणा में जमीन सौदों पर जांच की बात से तक इंकार नहीं किया है।
इसी सवाल पर वाड्रा खुद तो शायद सीरीयस नहीं थे, लेकिन सवाल पूछने वाले न्यूज एजेंसी एएनआई के संवाददाता से उल्टा सवाल करने लगे- “Are you Serious”, वो भी एक बार नहीं चार- चार बार !  पत्रकार तो सीरियस ही था, तभी वाड्रा साहब से इतना सीरियस सवाल किया, लेकिन वाड्रा साहब को शायद ऐसा नहीं लगा, तभी तो जवाब देने की बजाए वो कुछ ऐसा कर बैठे, जो उन्हें क्या किसी को शोभा नहीं देता !
सवाल नहीं पसंद था, तो तरीके तो कई थे, जवाब न देने के, लेकिन वाड्रा साहब का शायद ये पसंदीदा तरीका था जवाब देने का। राबर्ट वाड्रा को शायद इस बात का एहसास हो चुका था, कि वो कुछ ज्यादा ही बोल और कर गए, ऐसे में इस शर्मनाक हरकत पर वाड्रा की सफाई भी चंद घंटों में आ गई। लेकिन सफाई में जो कहा गया, उस पर कैमरे में कैद वाड्रा की हरकत देखने के बाद कोई स्कूली बच्चा भी यकीन न करे !  वाड्रा साहब अपनी सफाई में कहते नजर आए कि उन्हें लगा कि कोई निजी फोटोग्राफर उनसे सवाल कर रहा है। लेकिन वाड्रा साहब को कौन समझाए कि उनकी ये हरकत पूरा हिंदुस्तान देख चुका था।
समय शायद कुछ ज्यादा ही खराब था वाड्रा कि, क्योंकि जिस जमीन सौदे के सवाल पर वाड्रा बिफर पड़े थे, उस सौदे पर ही कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में सवाल उठा दिए कि हरियाणा सरकार की सहमति के चलते रॉबर्ट वाड्रा ने कानूनों से खिलवाड़ करते हुए जमीन सौदे में 44 करोड़ रुपए कमाए। रिपोर्ट में कहा गया है, कि वाड्रा ने खरीदी गई जमीन को जल्दी ही बेचकर जो मुनाफा लिया, हरियाणा सरकार ने वाड्रा से उसे भी वसूलने की कोशिश नहीं की। मतलब साफ है कि हुड्डा सरकार भी वाड्रा के आगे नतमस्तक थी, अब हुड्डा सरकार नतमस्तक क्यों थी, ये लिखने की शायद जरूरत नहीं है !
बहरहाल वक्त और हालात अनुकूल न होने पर क्या बोलना चाहिए, क्या नहीं, क्या करना चाहिए, क्या नहीं, अब तो शायद राबर्ट वाड्रा अच्छी तरह समझ ही गए होंगे !

deepaktiwari555@gmail.com

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