सपने तो
प्रधानमंत्री बनने तक के थे लेकिन अब अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। ख़बर तो यही है कि जद
यू, राजद के बाद अब शरद पवार की एनसीपी, मायावती की बसपा और सीपीआई से राष्ट्रीय
दल की मान्यता छिन सकती है। 2014 के आम चुनाव में राष्ट्रीय दल की शर्तों को पूरा
न कर पाने पर अब चुनाव आयोग ने तीनों पार्टियों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है, जिस
पर चुनाव आयोग जल्द फैसला ले सकता है।
आम चुनाव से पहले का
वक्त याद कीजिए, एनसीपी के शरद पवार और बसपा सुप्रीमो मायावती के सपने खूब उड़ान
भर रहे थे। इन्हें उम्मीद थी कि ये किंगमेकर बनने की स्थिति में होंगे और सीटों की
संख्या ठीक ठाक होने पर इनके हाथ पीएम की कुर्सी भी लग सकती है, लेकिन मोदी की सुनामी
में न सिर्फ इनके पीएम बनने के सपने बिखर गए बल्कि अब इनकी पार्टी के कद पर
राष्ट्रीय से क्षेत्रिय होने के खतरा मंडराने लगा है।
चुनाव आयोग कि
शर्तों के मुताबिक...
-राष्ट्रीय दल की
मान्यता के लिए किसी भी राष्ट्रीय दल को चार राज्यों में कम से कम 6 फीसदी वोट
मिले हों।
-उस राजनीतिक दल को
तीन अलग-अलग राज्यों की लोकसभा (11 सीटों) की 2 प्रतिशत सीटें प्राप्त हुई हों।
-लोकसभा या विधानसभा के किसी आम चुनाव में उस राजनीतिक दल को 4 राज्यों के कुल
मतों में से 6 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हों और उसने लोकसभा की 4 सीटें जीती हों।
-किसी राजनीतिक दल को
4 या अधिक राज्यों में राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हो।
जाहिर है राष्ट्रीय
पार्टी का दर्जा छिन जाएगा तो इन पार्टियों की पहचान इनका चुनाव चिन्ह भी उन
राज्यों तक ही सीमित रह जाएगा, जिन राज्यों में इन पार्टियों को राज्य स्तरीय
दर्जा प्राप्त है। न फिर देशभर में शरद पवार की घड़ी चलेगी और न ही मायावती का मदमस्त
हाथी देश भर में दौड़ लगा पाएगा। ऐसा ही कुछ हाल सीपीआई का भी होगा।
देश में पावर में
आने का सपना देखने वाले पवार और हाथी की शाही सवारी करने का ख्वाब देखने वाली मायवती
को 2014 के आम चुनाव में देश की जनता ने सीधे जमीन पर ला पटका है। यही हाल पीएम का
ख्वाब संजोने वाले बिहार की राजनीति के महारथी लालू प्रसाद यादव का 2010 में भी
हुआ था, जब चुनाव आयोग ने इसी तरह लालू की पार्टी राजद की मान्यता समाप्त कर दी
थी। अब अगर एनीसीपी, बसपा और सीपीआई की मान्यता छिनती है तो देश में कुल तीन ही राष्ट्रीय
दल रह जाएंगे, भाजपा, कांग्रेस और सीपीएम। हालांकि देश में राजनीतिक दल की वर्तमान
स्थिति के हिसाब से 6 राष्ट्रीय दल हैं, जबकि 47 राज्य स्तरीय दल और 1563 गैर पंजीकृत
दल हैं।
एनसीपी, बसपा और सीपीआई
से राष्ट्रीय दल की मान्यता छिनने की स्थिति में इन पार्टियों के नेताओं का कद भी
क्षेत्रीय ही होकर रह जाएगा। जाहिर है ये इन राजनीतिक दलों के लिए बड़ा झटका है जो
अब तक देशभर में सिर्फ एक ही सिंबल पर चुनाव लड़ते आए थे। ऐसे में न सिर्फ देशभर
में इनकी साख दांव पर लग गई है बल्कि इनके सामने अपने वजूद को बचाने का भी संकट
है। ये फैसला चुनाव आयोग जरूर कर रहा है लेकिन इसकी पटकथा जनता ने इन पार्टियों के
प्रत्याशियों को नकार कर आम चुनाव के दौरान ही लिख दी थी। चुनाव के नतीजों में ये
साफ दिखाई दिया था, जब इन राष्ट्रीय दलों को राष्ट्रीय दल कहने में भी विचार करना
पड़ रहा था। मायावती का हाथी एक कदम भी नहीं चल पाया तो शरद पवार की घड़ी की सुई 6
बजे पर रुक गई जबकि सीपीआई महज एक सीट पर सिमट गई। (पढ़ें - अच्छे दिन आने वाले हैं..! )
दरअसल ये वक्त इन
तीनों पार्टियों के लिए विचार करने का भी है। आखिर क्यों देशभर के अधिकतर राज्यों
में ठीक ठाक प्रभाव रखने वाले इन दलों के सामने अब अपने अस्तित्व को बचाए रखने का
संकट खड़ा हो गया है। बहरहाल जनता के मिजाज को कौन समझ पाया है, कांग्रेस ने ही
कहां सोचा होगा कि वो अपने इतिहास की अब तक की सबसे कम 44 सीटों पर आकर सिमट जाएगी
तो भाजपा ने भी कहां सोचा था कि वो अपने दम पर 282 सीटों के साथ बहुमत हासिल कर
लेगी।
deepaktiwari555@gmail.com
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