उपराष्ट्रपति हामिद
अंसारी पड़ोसी देश चीन के साथ पंचशील समझौते की 60वीं वर्षगांठ मनाने चीन के दौरे
पर हैं, लेकिन चीन अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अरुणाचल प्रदेश के साथ
ही जम्मू कश्मीर के एक बड़े हिस्से को अपने नए नक्शे में दिखाकर चीन ने साबित कर
दिया है कि वह सुधरने वाला नहीं है। चंद दिन पहले ही चीन का एक हेलिकॉप्टर
उत्तराखंड के जोशीमठ में भारतीय सीमा के घुस आया था। दिल्ली में काबिज मोदी सरकार
भले ही बीजिंग की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रही हो लेकिन चीन को लगता है, ये रास
नहीं आ रहा है। वैसे देखा जाए तो इसमें चीन का कोई दोष नहीं है। ये तो चीन की
फितरत में ही है, बस हमारी सरकार ही इसे नहीं समझ पाती। नतीजा चीन एक के बाद एक
गुस्ताखी करता है और हमारी सरकार उसे नजरअंदाज करती रही है। यूपीए सरकार के वक्त
भी यही हुआ था और अब दिल्ली में नई सरकार गठन के बाद भी तो यही हो रहा है। चीन की
गुस्ताखियों पर हमारी सरकार का एक बयान आ जाता है, जिसमें वे इस पर कड़ी आपत्ति
जताने की बात करते हुए चीन से बात करने की बात करते हैं, लेकिन चीन पर इसका कोई
असर नहीं होता है।
ये सवाल इस वक्त
इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि चीन के साथ पंचशील समझौते को 60 वर्ष पूरे हो
चुके हैं और हमारे उपराष्ट्रपति इस 60वीं वर्षगांठ के अवसर पर चीन दौरे पर हैं। दरअसल
पंचशील समझौते पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उनके चीनी समकक्ष चाऊ एन लाई ने 29 अप्रेल
1954 को दस्तखत किए थे। यह समझौता मुख्य रूप से भारत और तिब्बत के व्यापारिक
संबंधों पर केन्द्रित है, लेकिन इसे इसके पांच सिद्धांतों की वजह से जाना जाता है।
ये सिद्धांत हैं –
1 एक - दूसरे की
अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना
2 एक – दूसरे के
विरूद्ध आक्रमक कार्रवाई न करना
3 एक दूसरे के
आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना
4 समानता और परस्पर
लाभ की नीती का पालन करना और
5 शांतिपूर्ण
सह-अस्तित्व की नीति में विश्वास रखना
इस समझौते के तहत
भारत ने तिब्बत को चीन का एक क्षेत्र स्वीकार कर लिया। इस तरह उस समय इस संधि ने
भारत और चीन के संबंधों के तनाव को काफ़ी हद तक दूर कर दिया था। भारत को 1904 की ऐंग्लो तिबतन
संधि के तहत तिब्बत के संबंध में जो अधिकार मिले थे भारत ने वे सारे इस संधि के
बाद छोड़ दिए, हालांकि बाद में ये
भी सवाल उठे कि इसके एवज में भारत ने सीमा संबंधी सारे विवाद निपटा क्यों नहीं लिए।
बहरहाल माना जाता है कि इसके पीछे भारत की मंशा भारत की चीन के प्रति मित्रता की
भावना थी लेकिन चीन के मन में कुछ और ही था। इस समझौते के आठ साल बाद ही 1962 में चीन
ने भारत पर हमला कर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे कि उसके लिए पंचशील जैसे समझौतों
का कोई मोल नहीं है। इसके बाद भी विस्तारवादी सोच रखने वाले चीन की नजरें हमेशा
अपने पड़ोसी देशों की सीमाओं पर लगी रही। भारत के अभिन्न अंग अरुणाचल प्रदेश और
जम्मू कश्मीर में चीन अपना दावा जताता रहा और आए दिन भारतीय सीमा में घुसपैठ कर
भारत को चुनौती देता रहा।
इसके उल्ट भारत
एकतरफा पंचशील के सिद्धांतों पर चलता रहा और चीन पंचशील के सिद्धांतों की धज्जियां
उड़ाते हुए अपनी दादागिरी झाड़ता रहा। इसका इससे बड़ा ताजा उदाहरण और क्या हो सकता
है कि एक तरफ भारत के उपराष्ट्रपति पंचशील समझौते की 60वीं वर्षगांठ पर चीन दौरे
पर चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात करते हुए आपस के मतभेद दूर करने की बात
करते हैं लेकिन चीन अपने नए नक्शे में अरूणाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के बड़े
हिस्से पर अपना जावा जताने से बाज नहीं आता।
बहरहाल अच्छे दिनों
के वादे के साथ दिल्ली की सत्ता में मोदी सरकार काबिज हो चुकी है, जिसने देश
वासियों से भारत की सीमा में घुसपैठ कर भारत को आंख दिखाने वाले चीन की दादागिरी खत्म करने का वादा भी किया था,
ऐसे में निगाहें मोदी सरकार की तरफ है, देखते हैं देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास
मोदी अब चीन की दादागिरी कैसे खत्म करते हैं। उम्मीद का पहाड़ तो बहुत बड़ा हैं,
देखते हैं इन उम्मीदों पर कितना खरे उतरते हैं हमारे पीएम साहब ?
deepaktiwari555@gmail.com
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