1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के समय में भाजपा का एक
नारा याद आ रहा है - सबको देखा बारी बारी अबकी बारी अटल बिहारी...ये नारा भाजपा क
खूब भाया था और केन्द्र में एनडीए की सरकार बनने के साथ ही अटल बिहारी दूसरी बार
देश के प्रधानमंत्री बने थे।
समय बदल गया है...भाजपा
में चेहरे भी तेजी से बदलने लगे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के बाद 2009 में भाजपा में आडवाणी शिखर
पर थे लेकिन 2014 आते आते अब आडवाणी युग भी ढलान पर है। गोवा में मोदी को 2014 के
चुनाव अभियान समिति का चेयरमैन बनाने की घोषणा के साथ ही अब मोदी अपने शिखर पर हैं।
भाजपा ने भले ही
मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित न किया हो लेकिन अटल बिहारी की तरह मोदी के
नाम का नारा गढ़ने की शुरुआत भाजपा में हो चुकी है या कहें कि नारा तो गढ़ा जा
चुका है और मोदी के चाहने वाले इसका जप भी कर रहे हैं..! लेकिन सवाल वहीं
खड़ा है कि मोदी को आगे करने से और मोदी के नाम का नारा गढ़ने से क्या 2014 में
केन्द्र की सत्ता में वापसी का भाजपा का ख़्वाब साकार रुप ले पाएगा..?
केन्द्र की यूपीए
सरकार भ्रष्टाचार और घोटालों से घिरी हुई है...ऐसे में भाजपा के पास सत्ता में
वापसी का मौका भी है। तमाम ओपिनियन पोल औऱ सर्वे भी मोदी को भाजपा की नैया के
खैवनहार होने की भविष्यवाणी कर रहे हैं लेकिन जितनी तेजी से मोदी की लोकप्रियता और
कद बढ़ा उतनी ही तेजी से भाजपा में एक ऐसा वर्ग तेजी से तैयार हुआ जिन्हें मोदी के
नाम पर एलर्जी है..!
ये एलर्जी होना
लाजिमी भी है क्योंकि राजनीति में कुर्सी पाना हर किसी का ख्वाब होता है ऐसे में
सालों से कुर्सी के लिए वेटिंग की कतार में खड़े नेता हों या फिर दूसरे बड़े नाम
हर किसी की महत्वकांक्षा 2014 में सत्ता के एहसास में जोर मारने लगी थी..! लेकिन ये एलर्जी
भाजपा में तेजी से फैलती इससे पहले ही गोवा में मोदी को चुनाव अभियान समिती की
चेयरमैन बना दिया गया और अघोषित तौर पर 2014 के आम चुनाव के लिए मोदी एनडीए के
पीएम पद के उम्मीदवार भी घोषित कर दिए गए..!
मोदी के नाम से
जिन्हें एलर्जी है उनकी जब एक न चली तो जाहिर है 2014 में भाजपा और सत्ता के बीच की राह के सबसे बड़े
रोड़े भी वे ही लोग हैं जो सबके सामने तो फिलहाल पार्टी के फैसले के साथ खड़े
दिखाई दे रहे हैं लेकिन शायद ही वे कभी इस फैसले को स्वीकार कर पाएं..!
जाहिर है इन नेताओं
की नाराजगी पर्दे के पीछे पार्टी और मोदी दोनों की राह में एक दीवार की तरह काम
करेगी और 2014 की जो राह भाजपा मोदी के सहारे आसानी से तय करने का ख्वाब देख रही
है वो राह आसान होने की बजाए और मुश्किल होती जाएगी..!
ऐसे में 2014 में पार्टी
और खुद का ख़्वाब साकार करना नरेन्द्र मोदी के लिए आसान राह होने के बाद भी आसान
तो बिल्कुल भी नहीं लगता..!
वैसे भी राजनीति में
कब…? कौन..? किससे हाथ मिला ले..? कब..? कौन..? किससे नाता तोड़ ले
कहा नहीं जा सकता..? ऐसे में इस बात से
इंकार नहीं किया जा सकता कि जो आज मोदी के साथ खड़े हैं वो कल मोदी के विरोध में
खड़े हों और जो मोदी का विरोध कर रहे हैं वो उनके साथ खड़े दिखाई दें..!
deepaktiwari555@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें