कुल पेज दृश्य

रविवार, 30 जून 2013

बहुगुणा का सीएम बनना भी एक त्रासदी..!

उत्तराखंड विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनने की भीषण त्रासदी से सही से उबरा भी नहीं था कि एक और त्रासदी ने उत्तराखंड समेत पूरे देश को झकझोर के रख दिया। आधिकारिक रुप से त्रासदी में मौतों का आंकड़ा सैंकड़ों में है लेकिन कड़वा सच ये है कि चार धाम यात्रा पर उत्तराखंड पहुंचे हजारों लोगों का कुछ पता नहीं कि वे कहां गए..?
आपदा प्रबंधन को लेकर त्रासदी के बाद उत्तराखंड सरकार की पोल सबके सामने खुल ही चुकी है। ऐसे में अब त्रासदी के 48 घंटे पहले मौसम विभाग की सरकार को चेतावनी देने की ख़बर के बाद हर कोई हैरान है कि आखिर समय रहते सरकार की नींद क्यों नहीं खुली..? आखिर क्यों सरकार पहाड़ी इलाकों खासकर केदारनाथ में भारी बारिश की चेतावनी के बाद भी सोती रही..? क्यों नहीं एहतियात बरतते हुए लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने की कोई कोशिश सरकार की तरफ से की गई..?
समय रहते अगर सरकार ने मौसम विभाग की चेतावनी की गंभीरता से लेते हुए तत्परता दिखाते हुए आवश्यक कदम उठाए होते तो केदारनाथ की तबाही न सही लेकिन हजारों लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सकता था..!
लेकिन ऐसा नहीं हुआ और नतीजा सबके सामने है...एक बार फिर से शासन – प्रशासन की अनदेखी और लापरवाही का भयावह परिणाम हजारों लोगों को भगुतना पड़ा..!
हद तो तब हो गयी जब जैसे तैसे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने विजय बहुगुणा साहब को ये कहते सुना कि सरकार की तरफ से कोई लापरवाही नहीं बरती गयी..! गजब करते हो बहुगुणा साहब अगर लापरवाही नहीं बरती गयी तो फिर त्रासदी के 48 घंटे पहले भारी बरसात और मौसम के बिगडने की चेतावनी के बाद भी आखिर क्यों सरकार सोती रही..? अगर लापरवाही नहीं बरती गयी तो फिर क्यों मौत का सैलाब अपने साथ हजारों जिंदगियों का बहा कर ले गया..? (पढ़ें- वाह बहुगुणा ! हजारों मर गए, अब याद आया कर्तव्य..!)
हैरानी की हात ये भी है कि बहुगुणा साहब ये भी कहते सुनाई दे रहे हैं कि त्रासदी में कितने लोग मारे गए इसका पता कभी नहीं चल पाएगा..! साथ ही बहुगुणा ने विधानसभा अध्यक्ष गोविंद कुंजवाल के उस बयान को भी गलत ठहराया जिसमें कुंजवाल ने एक दिन पहले ही त्रासदी में करीब 10 हजार से ज्यादा मौतें होने का अंदेशा जताया था। बहुगुणा भले ही कुंजवाल की बात को नकार रहे हों लेकिन इस बातसे इंकार नहीं किया जा सकता कि चार धाम यात्रा सीजन का पीक समय होने के कारण करीब 20 से 25 हजार श्रद्धालु त्रासदी के वक्त गौरीकुंड, रामबाड़ा और केदारनाथ में मौजूद थे।
गौरीकुंड, रामबाड़ा और केदारनाथ तीनों ही स्थान पूरी तरह से तबाह हो गए हैं और इसमें रामबाड़ा जो यात्रा का सबसे अहम पड़ा था उसका तो नामो निशान ही मिट गया है। तीनों ही स्थानों में हर वक्त श्रद्धालुओं की तादाद 5000 से 10000 के बीच रहती थी ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौत का वास्तविक आंकड़ा कहां तक पहुंच सकता है..! (जरुर पढ़ें- 15 हजार तक पहुंच सकता है मौत का आंकड़ा..!!!)
हालांकि अधिकतर लोगों के 10-10 फिट मलबे के नीचे दब जाने से और मंदाकिनी में बह जाने से भले ही हजारों लापता लोगों के शव कभी न मिल पाएं लेकिन देश भर के सभी राज्यों के लोगों से चारधाम यात्रा पर निकले उनके परिजनों का डाटा तैयार कर त्रासदी के बाद  लापता लोगों की वास्तविक संख्या का तो पता चल ही सकता है..!
सुना तो यहां तक है कि उत्तराखंड के वो दिल्ली वाले मुख्यमंत्री..! बहुगुणा साहब का ज्यादा ध्यान प्रभावितों तक मदद पहुंचाने की बजाए मीडिया को मैनेज करने की तरफ है और इसके लिए बतौर सूचना विभाग के आला अधिकारी दिन रात एक किए हुए हैं..! वहीं सुनने में ये भी आ रहा है कि बहुगुणा साहब को जैसे तैसे उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाने में अहम किरदार निभान वाली उनकी बहन रीता बहुगुणा जोशी इस कार्य में भी अहम भूमिका में हैं..!
बहुगुणा की इस कवायद का असर दिखने भी लगा है और त्रासदी के तुरंत बाद जो बड़े बड़े चैनल बहुगुणा सरकार की बखिया उधेड़ने में लगे थे अब उनके तेवर नरम पड़ने लगे हैं। यहां तक कि सभी प्रमुख समाचार चैनलों में बहुगुणा साहब का 15 से 20 मिनट का साक्षात्कार भी चला जिसमें बहुगुणा कुदरत के कहर के आगे सरकार की बेबसी की कहानी सुनाते हुए नजर आए कुदरत के आगे किसी का बस न चलने की बात कहते हुए खुद को व सरकार को बचाते हुए दिखाई दिए।
ये उत्तराखंड का दुर्भाग्य ही है कि जिस भीषण त्रासदी के वक्त प्रदेश के मुख्यमंत्री को सरकार में शामिल सभी लोगों को साथ लेकर ज्यादा से ज्यादा आपदा प्रभावितों को दर्द बांटकर उनके राहत एवं पुनर्वास में पूरी ताकत के साथ जुट जाना चाहिए था वह मुख्यमंत्री सरकार की नाकामियों को छिपाने के साथ ही मीडिया मैनेजमेंट कर अपनी कुर्सी बचाने की जुगत में लगा हुआ है..! (जरुर पढ़ें- उतराखंड आपदा - एक कौम ऐसी भी..!)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें